तिरंगे पर खतरा
वीरेन्द्र जैन
उपरोक्त शीर्षक से हर भारतीय का चौंकना
स्वाभाविक है, क्योंकि तिरंगा हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है। यह भावना हमारे
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ही पैदा और विकसित हुयी जब तिरंगे को पहले कांग्रेस
और फिर बाद में राष्ट्रीय झंडे के रूप में स्वीकार किया गया। राष्ट्रीय ध्वज में
अशोक चक्र और कांग्रेस के ध्वज में चरखा लगा कर भेद किया गया था, किंतु स्वतंत्रता
आन्दोलन की प्रमुख पार्टी होने के कारण व उसके बाद सबसे पहले सत्तारूढ होने के
कारण सामान्य लोगों को इस भेद का पता ही नहीं था। उस दौरान यह कहा जाता था कि वोट
देने का अधिकार सब को है किंतु वोट लेने का अधिकार सिर्फ काँग्रेस को है।
तिरंगे का विरोध प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ द्वारा किया गया था, जो मानते थे कि हिन्दुस्तान का राष्ट्रीय ध्वज
भगवा होना चाहिए। उन्होंने तो यह भी कहा था कि जब हमारे यहाँ मनु स्मृति है तो अलग
से संविधान की क्या जरूरत है। इसी विश्वास के कारण आज़ादी के पचास साल तक आर एस एस
कार्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया गया और ऐसी कोशिश करने वालों के खिलाफ पुलिस
रिपोर्ट भी करवायी गयी। शायद आम लोगों ने इसी कारण से आज़ादी के बाद लम्बे समय तक
भारतीय जनसंघ, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में प्रकट हुआ, को राष्ट्रीय
दल के रूप में स्वीकारता नहीं दी व उसे एक सम्प्रदाय विशेष के सवर्ण जाति की
पार्टी ही मानते रहे।
अच्छा व्यापारी अपने ग्राहकों को लुभाने
के लिए उसकी भावुकता को भुनाता है। एक बार मैं एक पार्क में बैठा हुआ था, जहाँ
सामने की बेंच पर एक निम्न मध्यम वर्गीय दम्पति अपने छोटे बच्चे के साथ बैठा था।
बच्चा शायद पहला और इकलौता ही रहा होगा। बच्चे को देख कर एक आइसक्रीम वाला झुनझुना
बजाने लगा तो बच्चा आइसक्रीम के लिए मचलने लगा जो उसे दिलवायी गयी, फिर पापकार्न,
चिप्स, गुब्बारा आदि बेचने वाले क्रमशः आते गये और बच्चे के प्रति अतिरिक्त प्रेम
से भरे परिवार की जेब खाली होती गयी। अंततः उन्हें शायद समय से पहले ही पार्क छोड़
कर जाना पड़ा। जिस तरह व्यापारी भावुकता को भुना रहे हैं, उसी तरह राजनीतिक दल व
उससे जुड़े संगठन भी यही काम कर रहे हैं। वे धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, आदि की
भावनाओं को पहले उभारते हैं और फिर उसके प्रमुख प्रतिनिधि की तरह प्रकट होकर
चुनावों में उनके वोट हस्तगत कर लेते हैं। जिस तिरंगे को संघ परिवार ने पसन्द नहीं
किया था उसी के सहारे उन्होंने वोटों की फसल काटनी शुरू कर दी क्योंकि जनता अपने
तिरंगे के प्रति भावुक थी।
कर्नाटक के हुगली में ईदगाह से सम्बन्धित
विवादास्पद स्थान पर भाजपा नेता उमा भारती को तिरंगा फहराने के लिए भेजा गया था व
इस तरह पैदा किये गये संघर्ष में गोली चलाने की नौबत आ गयी थी जिसमें कई लोग मारे
गये थे। इस मामले में भाजपा ने विषय को भटकाने के अपने पुराने हथकण्डे का प्रयोग
करते हुए बयान दिया था कि अगर भारत में तिरंगा नहीं फहराया जायेगा तो क्या
पाकिस्तान में फहराया जायेगा! जबकि यह सवाल तिरंगा फहराने का नहीं था अपितु फहराये
जाने वाले स्थान के मालिकत्व और उपयोग का था। वे तिरंगे पर लोगों की श्रद्धा को
अपने पक्ष में भुनाना चाहते थे। बाद में जब इसी मामले में उमा भारती को सजा हुयी
तो भाजपा ने उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटाने की प्रतीक्षित योजना
का आधार बना लिया था। इसका विरोध करने के लिए उमा भारती ने पार्टी की अनुमति के
बिना तिरंगा यात्रा निकाल कर अपना पक्ष रखना प्रारम्भ कर दिया तो उन्हें कठोरता से
रोक दिया गया था। जिस तिरंगे को ईदगाह मैदान में फहराना चाहते थे उसे जनता के बीच
ले जाने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि दोनों ही बार तिरंगा केवल साधन था। पहली
बार वह ध्रुवीकरण के लिए उपयोग में लाया जा रहा था किंतु दूसरी बार वह व्यक्ति
विशेष के नेतृत्व को बचाये रखने के लिए उपयोग में लाया जा रहा था।
बाद में तो तिरंगे को एक ऐसा परदा बना
लिया गया जिससे हर अनैतिक काम को ढका जाने लगा। जेएनयू के तत्कालीन अध्यक्ष
कन्हैया कुमार को जब कोर्ट में ले जाया जा रहा था तब भाजपा समर्थित वकीलों के एक
गिरोह ने कोर्ट परिसर में ही उस पर हमला कर दिया था व उस कुकृत्य को ढकने व लोगों
की सहानिभूति के लिए उनके ही कुछ साथी कोर्ट परिसर में तिरंगा फहरा रहे थे।
तिरंगे के दुरुपयोग की ताजा घटना तो जम्मू
में घटी है जो बेहद शर्मनाक है। एक आठ वर्षीय मासूम लड़की से बलात्कार और हत्या के
आरोपी को छुड़ाने के लिए उसके समर्थकों ने तिरंगा लेकर प्रदर्शन किया। इस घटना में
तिरंगे की ओट एक ऐसे जघन्य अपराध के लिए ली गयी जो पूरी मानवता को शर्मसार करने
वाला है। इस निन्दनीय घटना का विरोध संघ परिवार के किसी संगठन ने नहीं किया अपितु
जो लोग इसमें सम्मलित थे वे ही भाजपा के पक्ष में निकाले गये प्रदर्शनों में देखे
जाते हैं। ऐसा ही राजस्थान में शम्भू रैगर द्वारा की गयी घटना के बाद उसकी पत्नी
के पक्ष में धन एकत्रित करने की अपीलों और उसके समर्थकों द्वारा कोर्ट के ऊपर चढ
कर तिरंगे की जगह भगवा ध्वज फहराने में देखने को मिला। इसकी आलोचना करने में संघ
परिवार के संगठन आगे नहीं आये जिससे उनकी भावना का पता चलता है।
जो लोग तिरंगे को भगवा ध्वज में बदल देना
चाहते हैं वे लोग कुटिलता से उसका उपयोग गलत जगह करके उसे बदनाम करने का खेल खेल
रहे हैं। इसी के समानांतर गत दिनों भोपाल में तीन तलाक के पक्ष में हुए मुस्लिम
महिलाओं के सम्मेलन के दौरान कहा गया कि वे शरीयत से अलग संविधान को महत्व नहीं
देतीं इसलिए तीन तलाक कानून का विरोध कर रही हैं।
यह समय संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों के
लिए खतरनाक होता जा रहा है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629
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