संस्मरण
श्रीकृष्ण सरल ने
हास्य कविताएं भी लिखीं
वीरेन्द्र जैन
यह श्रीकृष्ण सरल का जन्म शताब्दी वर्ष है। ठेठ बचपन में जिन लोगों की कविताओं
ने रस पैदा किया था उनमें श्री चतुर्भुज चतुरेश, श्री वासुदेव गोस्वामी और
श्रीकृष्ण सरल का नाम याद आता है। आज जिन सरल जी को लोग राष्ट्रवादी कविताओं के
लिए जानते हैं, उनमें से कम ही लोगों को पता होगा कि सरल जी ने हास्य कविताएं भी
लिखी हैं और उनकी हास्य कविताओं का एक संकलन पिछली सदी के छठे दशक में प्रकाशित
हुआ था जिसका नाम था “ हैड मास्टर जी का पाजामा” । बचपन में मिले इस संकलन की
हास्य कविताओं से मिले आनन्द ने भी कविताओं के प्रति मेरे आकर्षण में बढोत्तरी की
थी।
पहले आम चुनाव में आरक्षित वर्ग की सीटों के लिए सुपात्र प्रतिनिधि नहीं मिले
होंगे इसलिए जो जितने शिक्षित लोग मिले उन्हें ही कांग्रेस ने टिकिट देकर विधायक
बनवा दिया था। ऐसे ही एक विधायक थे दतिया निवासी श्री राम दास चौधरी जो उस समय सम्भवतः
दो या तीन क्लास तक पड़े थे। पता नहीं यह बात सच है या झूठ पर सवर्ण जगत में इसे
लोग बहुत मजे लेकर सुनाते थे कि जब श्री चौधरी टीकमगढ जिले की किसी सीट से विधायक
चुन कर आये तो उन्होंने लोगों से कहा कि वे एल एम ए [एम एल ए ] बन गये हैं। उस समय
दतिया में जो दो तीन दर्जन सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोग रहे होंगे उनमें मेरे
पिता भी आते थे क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और
चन्द्रशेखर आज़ाद के सहयोगी रहे थे। मेरे घर में उन दिनों अखबार आते थे और ज्ञानोदय
[पुरानी] आती थी। दद्दा के प्रैस से छपीं किताबें भी थीं। श्री राम दास जी हमारे
घर भी आते थे क्योंकि उन दिनों हमारा निवास नगर के बिल्कुल बीचों बीच था। बाद में
रामदास जी चुनाव नहीं जीत सके थे किंतु वे सामाजिक रूप से सक्रिय रहना चाहते थे।
उन्होंने नगर में एक पुस्तकालय स्थापित करना चाहा जिसमें मेरे पिता ने भी उनका
सहयोग किया। पुस्तकालय का नाम अम्बेडकर पुस्तकालय रखा गया था और मेरे घर से भी ढेर
सारी पुस्तकें उस पुस्तकालय को उपहार में दी गयीं थीं। प्रारम्भ में यह पुस्तकालय
बीच बाजार में सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री राम प्रसाद कटारे की दुकान के सामने था।
इस पुस्तकालय में मैं और मेरी बहिन साधिकार पुस्तकें लेने जाते थे और इसी क्रम
में हमें श्रीकृष्ण सरल जी की पुस्तक “
हैड मास्टर जी का पाजामा” को पढने का सौभाग्य मिला था। इसकी अनेक कविताएं उस समय
याद हो गयी थीं जिन्हें स्कूल के कार्यक्रमों में सुना कर लूटी गयी वाहवाही से ही
वाहवाही का चस्का लगा था। एक कविता की पंक्तियां तो अभी तक याद हैं, जिनमें कविता
का पात्र अपनी मोटी पत्नी के साथ सिनेमा देखने जाता है और कुछ देर हो जाने के कारण
जब सीटें टटोलता हुआ आगे बढता है तो उस घटनाक्रम का चित्रण है-
फिल्म हो गयी थी
चालू जब पहुंचे चित्र भवन में
अंधियारे में सीटें
टटोलते बढते थे विचित्र उलझन में
एक सीट पर दुबले
पतले भाई बैठे दब कर
खाली कुर्सी समझ,
श्रीमती जी बैठीं उन्हीं पर
चिल्लाये वे मरा मरा
मैं, कौन बला है आयी
आगे बढ कर श्रीमती
ने आसन नई जमायी
खाली वार गया लेकिन,
कुर्सी का केवल भ्रम था
वे धड़ाम से गिरीं,
गिरा मानो यह एटम बम था ........
बाद में यदा कदा उनके बारे में सुनने को मिलता रहा कि उन्होंने देश के
महापुरुषों की जीवन गाथाओं को छन्दबद्ध करके अनेक महाकाव्य रचे हैं। वे
राष्ट्रीयता के कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। किंतु प्रगतिशील, जनवादी कविता के
ओर रुझान होने से मेरा ध्यान उनकी कृतियों की ओर नहीं गया।
1995 में मेरी पोस्टिंग भोपाल के बैरागढ में मेरे बैंक पंजाब नैशनल बैंक की एक
उप शाखा के प्रबन्धक के रूप में हुयी। यह उप शाखा एक समाजसेवी संस्था सेवा सदन से
जुड़ी कई संस्थाओं, व उनके कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से खोली गयी थी। संस्था के
ही एक पदाधिकारी मेरे बैंक में कर्मचारी भी थे। उन्होंने एक बार संस्था में
राष्ट्रीय कवि के आने की सूचना दी तो मैंने नाम जानना चाहा। उन्होंने श्रीकृष्ण
सरल जी का नाम बताया तो मेरी पुरानी स्मृतियां ताजा हो गयीं। मैंने उन्हें अपने
बैंक में आमंत्रित करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वे
आये और जब मैंने उन्हें उनकी कृति के साथ जुड़ी स्मृतियों के बारे में बताया तो वे
बहुत खुश हुये। वे काफी देर तक रुके, उन्होंने हम लोगों के साथ फोटो भी खिंचवाया।
सेवा सदन ने उनकी कृतियों का पूरा सेट भी खरीदा, जिसके लिए उनकी यात्रा थी। इस
पीढी के लोगों को अपनी किताबों के प्रकाशन और प्रमोशन में कोई संकोच नहीं होता था।
सुप्रसिद्ध लेखक एक्टविस्ट हंसराज रहबर, भगत सिंह के साथी कामरेड शिव वर्मा, और
कामरेड सव्यसाची जी भी अपनी किताबें खुद ही बेचते भी थे, पर इनकी किताबें बहुत
सस्ती होती थीं जबकि सरल जी की किताबों का सैट बहुत मंहगा था जो संस्थाओं के लिए ही
होता था।
आज अशोकनगर के एक साथी ने उनके और गिरिजा कुमार माथुर के बारे में लिख कर उनकी
यादों को कुरेद दिया। ये दोनों विभूतियां अशोककनगर से ही जुड़ी थीं। उनकी स्मृति को
नमन।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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