बयानों में झलकता
नेताओं की नजर में जनता का स्तर
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों भाजपा के कुछ प्रतिष्ठित नेताओं के बयानों की चतुर्दिक निन्दा हो
चुकी है और चुनाव आयोग द्वारा उन स्टार प्रचारकों पर 48 घंटे प्रचार पर रोक का
हास्यास्पद प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है जिसकी परवाह या शर्मिन्दगी कहीं नहीं दिखी।
सवाल यह है कि उन्होंने जो उत्तेजक बयान दिये वह उनकी सोच को दर्शाता है या
कूटनीति को? जाहिर है कि इतने बड़े बड़े पदों तक पहुंचे नेता ऐसा नहीं सोच सकते कि
अगर उनकी पार्टी नहीं जीती तो विजेता पार्टी लोगों के घरों में जाकर उनकी बहू
बेटियों के साथ बलात्कार करेगी, और उन्हें मोदी शाह के अलावा कोई नहीं बचा सकता।
डा. राही मासूम रजा ने किसी फिल्म को सत्ता विरोधी ठहरा कर प्रतिबन्ध लगाये
जाने के सवाल पर लिखा था कि ऐसे तो शोले फिल्म सबसे बड़ी सत्ता विरोधी फिल्म है,
जिसमें एक पूर्व पुलिस अधिकारी क्षेत्र के डाकुओं से मुक्ति के लिए व्यवस्था पर
भरोसा खो चुका है और दो नामी बदमाशों को उनके जेल से छूटने के बाद अपने गाँव में
बुला लेता है। फिल्म बताती है कि यही एक तरीका उस पूर्व पुलिस अधिकारी को समझ में
आया था। क्या यह फिल्म व्यवस्था पर विश्वास न होने का प्रचार करती नजर नहीं आती!
जब देश का एक सांसद और केन्द्रीय मंत्री जनता को अराजक तत्वों से डराता है तो क्या
वह व्यवस्था के खिलाफ नहीं बोल रहा होता है? यदि चुनावों में दुरुपयोग की जाने
वाली सन्दिग्ध सर्जीकल स्ट्राइक का सबूत मांगना देशद्रोह बतलाया जाता है तो क्या
यह देशद्रोह के अंतर्गत नहीं आता?
उल्लेखनीय है कि जब रजाकारों के नेता कासिम रिजवी ने सरदार पटेल से कहा था कि
अगर आप हैदराबाद रियासत को भारत में शामिल करने का कदम उठायेंगे तो हम लाखों लोगों
को काट डालेंगे। इस पर सरदार पटेल ने कहा था कि आप ऐसा करेंगे तो क्या हम देखते रह
जायेंगे! हुआ भी यही था कि उस के हैदराबाद पहुंचने से पहले ही भारत की सेना ने
पुलिस एक्शन के नाम पर हैदराबाद को हजारों रजाकारों से मुक्त करा लिया था, जिसमें
काफी जनहानि हुयी थी। स्वयं को सरदार पटेल का वंशज बताने वाले आज के नेता वोटों की
खातिर निराधार आशंकाएं फैला कर खुद ही जनता को डरा रहे हैं। केन्द्र में भाजपा का
शासन है, दिल्ली की पुलिस उनके पास है, एनसीआर क्षेत्र में भी भाजपा शासित राज्य
हैं फिर भी जनता को डराने का एक मतलब यह भी निकलता है कि वे स्वयं को कानून
व्यवस्था लागू करने में अक्षम मान रहे हैं।
यह भी स्मरणीय है कि जब प्रारम्भ में पंचवर्षीय योजनाओं में हाइड्रो
इलेक्ट्रिक आयी थी तो जनसंघ के नेता किसानों से कहते थे कि ये कांग्रेस पानी में
से बिजली निकाल लेती है तो वह सिंचाई के लायक नहीं बचता, या दो बैलों की जोड़ी पर
क्रास की मुहर लगाने का मतलब होता है गौवंश को कटने के लिए भेजना। किंतु आज़ादी के
सत्तर साल बाद सत्तारूढ पार्टी बन जाने तक भी नेताओं द्वारा इस तरह के बयान दिये
जाना व प्रमुख नेताओं द्वारा किसी तरह की असहमति न व्यक्त करना लोकतंत्र को
गम्भीरता से न लेने की तरह है। पिछले ही दिनों एक भाजपा नेता ने कहा था कि दिल्ली
का चुनाव तो हम कैसे भी जीत ही जायेंगे। ऐसी ही बातों से लोग ईवीएम पर सन्देह करने
लगते हैं क्योंकि जब लोकतांत्रिक तरीके से किये जा रहे शाहीन बाग जैसे जन आन्दोलन
को चुनावों के लिए साम्प्रदायिक और विदेशी आन्दोलन बताया जाने लगता है तो यह
लोकतंत्रिक तरीकों पर भी बड़ा हमला होता है। सत्तारूढ दल के लोग भले ही किसी
आन्दोलन से कितना भी असहमत हों किंतु उसके चरित्र का गलत चित्रण लोकतंत्र के खिलाफ
अपराध है। इस तरह के विरोध से यह भी प्रकट होता है कि सरकार अपने पक्ष को कमजोर पा
रही है और अपना पक्ष रख कर उसका विरोध नहीं कर पा रही है। शाहीन बाग का आन्दोलन न
केवल लोकतांत्रिक है, देशव्यापी है, अपितु चरित्र में सेक्युलर भी है। यह
साम्प्रदायिक या जातिवादी भावनाएं उभार कर किये जाने वाले आन्दोलनों से भिन्न है।
खेद यह है कि वोटों के लिए इसे पाकिस्तानी कहा जा रहा है क्योंकि आम जन मानस के मन
में पाकिस्तान के प्रति दुश्मनी का भाव है।
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार तो है, किंतु झूठ बोलने और झूठ
गढने की आज़ादी का अधिकार नहीं है। दुर्भाग्य से हो यह रहा है कि इस नाम पर झूठ गढे
जा रहे हैं. चरित्र हत्याएं की जा रही हैं और नंगे झूठ बोले जा रहे हैं। यह नासमझी
में नहीं अपितु जानबूझ कर किया जा रहा है। गोधरा में निजी दुश्मनी में साबरमती
एक्सप्रैस की एक बोगी संख्या 6 में निजी बदले में लगायी गयी आग को रामभक्तों से
भरी पूरी ट्रेन में लगायी गयी आग प्रचारित कर दी जाती है व उस नाम पर पूरे गुजरात
में निरपराध मुसलमानों के खिलाफ नृशंस अपराध किये जाते हैं और अटूट सम्पत्ति लूट
ली जाती है या बरबाद कर दी जाती है। नरेन्द्र मोदी के स्थापित होने का इतिहास इसी
ध्रुवीकरण से शुरू होता है। बाद में तो राजनीतिक हत्याओं की श्रंखला शुरू हो जाती
है, व सभी मृतक बड़े नेताओं को मारने के इरादों से आये बताये जाते हैं।
इस इंटरनैट व डिजीटल मीडिया के दौर में भी वे झूठ बोलने से नहीं हिचकते और झूठ
पकड़े जाने पर शर्मिन्दगी भी महसूस नहीं करते, क्योंकि जनता के विवेक और याद्दाश्त
को वे कमजोर समझते हैं। स्टिंग आपरेशन में कैद हो जाने वाला बाबू बजरंगी कहता है
कि मेरा कथन तो मेरे द्वारा खेले जाने नाटक का एक हिस्सा था। मोदी को विकास पुरुष
नहीं विनाश पुरुष बताने वाली उमाभारती अहमादाबाद से बड़ौदा आने तक अपना विचार बदल
लेती हैं और कहती हैं कि यह रास्ते में दिखे विकास के कारण उनके विचारों में
परिवर्तन आया।
जनता को धोखा देने के लिए झूठ बोलने पर जब तक सजा नहीं होती तब तक लोकतंत्र
मजाक ही बना रहेगा।
वीरेन्द्र
जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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