सोमवार, फ़रवरी 24, 2020

राजनेताओं के बयानों और आचरण में गम्भीरता का अभाव

राजनेताओं के बयानों और आचरण में गम्भीरता का अभाव
वीरेन्द्र जैन

भारत एक बड़ा व महान देश है जिसे इन दिनों ओछे और निचले स्तर के नेता चला रहे हैं।
पिछले दिनों जब पुलवामा कांड को एक साल पूरी हुआ तब राहुल गाँधी ने एक सवाल पूछा कि उक्त घटना की जाँच रिपोर्ट में क्या निकला, व हमारे 40 जवानों को शिकार बना देने वाली घटना की खामियों के लिए किसको उत्तरदायी ठहराया गया। देश की सबसे बड़ी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष की इस बात पर मोदीशाह की भाजपा के सभी महत्वपूर्ण नेता बौखला गये| इस स्वाभाविक सवाल का सीधा जबाब देने की जगह सम्बित पात्रा टीवी की बहसों की तरह विषय को भटका कर उन्हें लश्करे-ए तैयाबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ सहानिभूति रखने वाला बताने लगे। उल्लेखनीय है कि घटना के ठीक बाद जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने सुरक्षा में खामियों की चर्चा की थी। उनके ही एक और बड़बोले प्रवक्ता जीवीएल नरसिंहाराव ने तो इसे सुरक्षा बलों पर निशाना बता दिया व राहुल गाँधी को शर्म करने की सलाह देते हुए टिप्पणी की कि वे पाकिस्तान से सवाल नहीं करेंगे, अर्थात उनकी सहानिभूति दुश्मन देश पाकिस्तान से है। ।
मैं और जिन लोगों से भी मैंने चर्चा की, वे भी यह नहीं समझ पाये कि इस उचित सवाल को करने वाले को परोक्ष में गद्दार और देशद्रोही बताना कहाँ तक उचित है? यह सही है कि पहले से संकेत मिल जाने के बाद भी हमारी सुरक्षा सम्बन्धी खामियों के कारण ही हमारे इतने जवान एक साथ मारे गये, इसलिए जरूरी था कि उन खामियों को पहचाना जाये व संकेत मिलने के बाद भी चूक करने वाले को नियमानुसार दण्डित किया जाये। इसके विपरीत जाँच रिपोर्ट को छुपाया जा रहा है जिससे लग सकता है कि दोषियों को बचाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इस घटना के बाद सीमा पर युद्ध का वातावरण बनाते हुए जो चुनाव सम्पन्न हुये उनके प्रचार में इस घटना का भरपूर चुनावी उपयोग किया गया। जनता की निगाह में गद्दार और देशद्रोही ठहराये जाने के खतरे से बचने के लिए देशहित में विपक्ष ने सरकार के साथ खड़े होने की घोषणा की। इसका भी सत्तारूढ दल ने चुनावी लाभ उठाया। यहाँ सवाल राहुल या किसी अन्य नेता के चरित्र चित्रण का नहीं है अपितु देश की सुरक्षा की खामियों और उसके सहारे राजनीति करने का है। सच तो यह है कि राहुल गाँधी से पहले इस सवाल को तो देशभक्ति का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा के ही किसी सदस्य को पूछना चाहिए था। खेदजनक है कि मोदीशाह का नेतृत्व आने के बाद भाजपा में ऐसे नेता सक्रिय नहीं हैं जो खुद सोच सकें, और सोच कर सवाल पूछने का साहस कर सकें। केवल पूर्व सांसद उदित राज ही यह सवाल उठा सके, पर वे भाजपा छोड़ चुके हैं।
केजरीवाल ने अपने चुनाव प्रचार में किसी पत्रकार के पूछने पर पूरा हनुमान चालीसा सुना दिया। पता नहीं यह घटना स्वाभाविक रूप से घटी या आपकी अदालत की तरह प्रायोजित थी, किंतु उसके बाद केजरीवाल हनुमान मन्दिर में पूजा करने गये। चुनाव परिणाम में जीतने की सूचना आने के बाद उन्होंने अपने समर्थकों को याद दिलाया कि आज मंगल है, हनुमान जी का दिन है और उनके आशीर्वाद से विजय मिली है। वे बाद में भी सपरिवार हनुमान मन्दिर गये। कहा जाता है कि इस बार चुनावों के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उनके लिए काम किया था और बहुत सम्भव है कि चुनाव में मुख्य प्रतियोगी भाजपा के धार्मिक, राम मन्दिर, कार्ड की काट के लिए उन्हें हनुमान भक्त बनने की सलाह दी गयी हो। उल्लेखनीय है कि दो-ढाई वर्ष पूर्व केजरीवाल ने जैनमुनि तरुण सागर को अपने निवास पर आमंत्रित किया था और उसके बाद ही अरुण जैटली प्रकरण में क्षमा मांग ली थी। वैसे तो यह उनका निजी ममला है किंतु यह सब कुछ सार्वजनिक हुआ था, जिससे इसका राजनीतिक महत्व भी हो जाता है।
केजरीवाल ने जब अन्ना आदि के साथ मिल कर लोकपाल के लिए आन्दोलन किया था तब उस आन्दोलन को शुद्ध रूप से गैरराजनीतिक आन्दोलन बताया था तथा इसे हड़पने की कोशिश करने वाले राजनीतिक दलों के लोगों को जिनमें उमा भारती, और स्वभिमान दल के रामदेव आदि को धरना स्थल से बाहर करवा दिया था। बाद में जब आन्दोलन बिखर गया तब उन्होंने खुद राजनीतिक दल बनाया और भिन्न तरह की ईमानदार राजनीति का वादा किया। रामलीला मैदान में पहली बार शपथ ग्रहण करते समय जो गीत गाया, उसके बोल थे-
इंसान का इंसान से हो भाईचारा / यही पैगाम हमारा
यह गीत धरमनिरपेक्षता का पैगाम देता था। इस बार उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय शांति गीत ‘ हम होंगे कामयाब, एक दिन’ का समूह पाठ किया। उन्होंने अपना लोकसभा का चुनाव भी सीधे प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लड़ कर भी ऐसा ही सन्देश देने की कोशिश की थी। अपनी जीत को हनुमानजी की कृपा से जोड़ने के बाद उनके राजनीतिक सन्देश का सुर बदला हुआ लगता है। या तो वे भाजपा की कूटनीति की तरह आस्थावानों को बहलाने की कोशिश कर रहे हैं या वे स्वयं अपनी समाजसेवा की राजनीति से देवकृपा की चुनावी कूटनीति की ओर बढ रहे हैं। जो भी हो वे कहीं न कहीं अपने आन्दोलनकारी समर्थकों व मतदाताओं के एक हिस्से के साथ छल कर रहे हैं। केवल आर्थिक ईमानदारी ही ईमानदारी नहीं होती। अपनी चुनावी जीत के लिए चुनावी प्रबन्धकों की सलाह पर धार्मिक व्यवहार का विज्ञापन करते हुए सरकार बना लेने से आपकी राजनीति के भिन्न होने प्रचार फुस्स हो गया है। काँग्रेस से मिल कर तो सरकार बना ही चुके हैं और तीन तलाक से लेकर 370 व सीएए तक भाजपा का साथ दे ही चुके हैं, किसी दिन उसके साथ सरकार भी बना लेंगे। वे ना तो खुल कर जे एन यू और ज़ामिया के छात्रों के साथ आये ना ही शाहीन बाग के आन्दोलनकारियों का साथ देते नजर आये।
काँग्रेस के सिकुड़ जाने व भाजपा के दो लोगों की मनमानी में सिमिट कर असफल सरकार चलाने से राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक शून्यता छा गयी है जिसे कब कौन सी उत्तेजना पर सवार कोई व्यक्ति या संगठन भर ले कहा नहीं जा सकता। साहस की कमी व नियंत्रित विवेक वाले सदस्यों के संख्या बल वाली मोदी सरकार अपनी गलत नीतियों के कारण खोखली हो चुकी है, तो काँग्रेस के सूबेदार अंतिम सांसें गिन रहे हैं। जातिवादी क्षेत्रीय दल अपने अपने कोने सम्हाल कर राष्ट्रीय एकता को भूल चुके हैं, व भाजपा की नीतियों ने हिन्दू मुस्लिम विभाजन को तेज कर दिया है। तीसरे पक्ष के पास केवल थ्योरी और बयानबाजी बची रह गयी है।
क्या हम भारत को उसके पुराने युग में धकेले दे रहे हैं जहाँ अलग अलग राज्य थे और राजे रजवाड़े थे, जिन्हें केवल अपनी चिंता थी।
वीरेन्द्र जैन
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अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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