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शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

कानून बना कर भ्रष्टाचार से मुक्ति का सपना


कानून बना कर भ्रष्टाचार से मुक्ति का सपना
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों हम लोगों ने भ्रष्टाचार हटाने के लिए नया लोकपाल विधेयक लाने की माँग का समर्थन किया और इसके लिए देश की राजधानी के जंतर मंतर पर अन्ना हजारे के आमरण अनशन के प्रतीक के साथ जनमत संग्रह का काम भी किया। इस अभियान को भारी समर्थन मिला क्योंकि भ्रष्ट से भ्रष्ट व्यक्ति भी चाहता है कि उसे दूसरे के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिले। यह जनमत संग्रह ईमेल, और एसएमएस के साथ देश के विभिन्न स्थानों पर निकाली गयी रैलियों और धरनों के द्वारा भी किया गया। उस दौरान मीडिया के पास सबसे अधिक सनसनीखेज समाचार यही था जिसे उसने अपनी टीआरपी को ध्यान में रखते हुए और अधिक सनसनी पूर्ण बना कर लोगों तक पहुँचाया जिससे ऐसा लगा कि पूरा देश एक साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है और मिश्र, ट्यूनीशिया, लीबिया, आदि देशों की तरह तख्तापलट करने वाला जनज्वार उमड़ पड़ा है। पाँच राज्यों में होने वाले चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए केन्द्रीय सरकार ने नया लोकपाल विधेयक लाने और उसे तैयार करने के लिए बनी कमेटी में सिविल सोसाइटी के लोगों को सम्मलित करने की घोषणा करके यह भ्रम पैदा किया जैसे कि वे खुद भी भ्रष्टाचार को हटाना चाहते हैं और इसी लिए उन्होंने जनता की माँगें मान ली हैं। ऐसा लगा कि जैसे जनमत के आगे सरकार झुक गयी है। अपनी कूटनीति के अंतर्गत मुख्य विपक्ष ने भी आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा कर दी ताकि वह खुद के पाक साफ होने का भ्रम पैदा कर सके। दरअसल यह सब कुछ बच्चों को लालीपाप देकर बहलाने से अधिक कुछ भी नहीं है। इस पूरी कसरत में यह भी नहीं सोचा गया कि भ्रष्टाचार क्या है, कैसे हो रहा है, कौन कौन कर रहा है, कानून किस किस के समर्थन से बन पायेगा और उसे कौन लागू करेगा। यदि कानून बनाने वाले और उसका पालन सुनिश्चित करने वाले भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं और उन्हें चुनने वालों का बहुमत राजनीतिक चेतना से वंचित है तो इसी संसदीय व्यवस्था में ये परिवर्तन कैसे सम्भव है? उक्त आन्दोलन, चार दिन तक श्री अन्ना हजारे के नेतृत्व में चला, जो गान्धीवादी हैं और उन्होंने अपनी माँगें मनवाने के लिए गान्धीजी के अस्त्र अनशन का प्रयोग किया। इससे ऐसा लगा कि सरकार का हृदय द्रवित हो गया है और उसने अनचाहे ही अनशन की ताकत से दब कर उनकी माँगों को स्वीकार कर लिया है। यदि दोनों ही गठबन्धनों की सरकारें अनशन से प्रभावित होती होतीं तो उन्होंने इरोम शर्मीला की बात मान ली होती जो पिछले दस सालों से अनशन कर रही हैं।
जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, वे यह मान कर चलते हैं कि भ्रष्टाचार इस हद तक फैल और बढ चुका है कि आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है। ट्रांस्परेंसी इंटर्नैशनल के आंकड़े भी हमें दुनिया के कुछ प्रमुख भ्रष्ट देशों में सूची बद्ध करते हैं। जब सब कुछ इतना खुला खुला है तो सरकार और आन्दोलनकारी दोनों को ही यह पता होना चाहिए कि जो दल भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल विधेयक लाने को समर्थन देने का वादा कर रहे हैं उनके कौन कौन से सदस्य भ्रष्टाचार के घेरे में सन्दिग्ध हैं । क्या वे उक्त वादा करते समय अपने कुख्यात सदस्यों को उनके पदों से निलम्बित करने के लिए तैयार हैं? हिन्दी फीचर फिल्मों में ऐसा होता है कि जब हीरो भेष बदल कर खलनायक की पार्टी में गायक बन कर घुस जाता है तो सिनेमा हाल के दर्शक तो सारे के सारे उसे पहचान लेते हैं केवल खलनायक ही नहीं पहचान पाता। क्या यहाँ भी ऐसा ही चल रहा है? ऐसा कौन सा चुनाव क्षेत्र है जिसके मतदाता अपने नेताओं और अफसरों की सम्पत्ति के उफान से अनभिज्ञ हैं। जब सब भुगत रहे हैं तो सबको पता होगा कि किस काम का क्या रेट चल रहा है और इसके अनुपात में किस नेता और अफसर के पास कम से कम कितना भ्रष्ट धन है, पर आन्दोलनकारियों ने अपने समर्थकों से ऐसी किसी भी सूची को बनाने का आवाहन नहीं किया है। यदि घोषित तिथि को विधेयक लागू भी हो जाता है तो इतने भ्रष्टाचार के प्रकरण तैयार करने में कितने युग लगेंगे? नींबू पानी पी कर अनशन खत्म कर देने वाले दिन अन्ना हजारे ने अपने लाखों समर्थकों को प्रदेश, जिला, तहसील और ग्राम स्तर पर भ्रष्टाचार के प्रकरण तैयार करने के लिए क्यों नहीं कहा?
एक गाँव में भयंकर सूखा पढा तब उस गाँव के एक पुजारी ने आवाहन किया कि सारे गाँव के लोग एक खास दिन पास के जंगल में स्थित मन्दिर पर एकत्रित हों जहाँ बारिश के लिए भगवान से प्रार्थना की जायेगी। तय समय पर पूरे गाँव के लोग एकत्रित हो गये तब पुजारी ने गाँव वालों से पूछा कि उन्हें यह भरोसा तो है कि भगवान हमारी प्रार्थना सुन कर पानी बरसायेंगे। इस पर सारे गाँव वालों ने एक स्वर से सहमति दी। तब पुजारी ने पूछा कि तब आप लोगों में से छाता लेकर कौन आया है! उसके सवाल के जबाब में सारे सिर झुके रह गये।
मैंने कुछ ठेकेदारों और ट्रांस्पोर्ट आपरेटरों से, जिन्हें प्रतिदिन रिश्वत देनी पड़ती है, पूछा कि जब पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना कोलाहल मचा हुआ था तब क्या किसी अधिकारी या निरीक्षक को रिश्वत लेने में संकोच करते हुए पाया। उल्लेखनीय है कि उनका उत्तर नकारात्मक था। उनका कहना था कि उनमें से कोई भी इस सब से बिल्कुल भी भयभीत नहीं था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब कभी भी सीबीआई, विजीलेंस आदि छापों में कोई अफसर रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो उसकी जगह पर आने वाला अफसर उसके दूसरे दिन से ही अपना हिस्सा माँगते हुये पिछले के बारे में कहता है कि उनका समन्वय ठीक नहीं था, अन्यथा यह कमीशन तो तय नियम के अनुसार है। जो दल अरबों रुपयों का चुनावी चन्दा कुख्यात भ्रष्ट लोगों से लेते हैं, जो नेता कई करोड़ खर्च करके चुनाव जीतते हैं, जो अफसर लाखों देकर कमाई वाली जगह ट्रांसफर कराते हैं, वे इस विधेयक को पास हो जाने देंगे यह मानना मूर्खों के स्वर्ग में रहना है। जब भ्रष्टाचार इतने व्यापक पैमाने पर फैला है और सरकार तथा विपक्ष दोनों ने ही विधेयक पास कराने के आश्वासन दिये हैं तब भी किसी एक भ्रष्ट व्यक्ति का भी ह्रदय अन्ना के आमरण अनशन से द्रवित नहीं हुआ, न किसी ने स्वयं का भ्रष्ट होना स्वीकारा और ना ही किसी ने अपनी अवैध अर्जित सम्पत्ति सरकार को सौंपने के लिए प्रस्तुत की। जिनका बनाया कानून इतने दिनों से भ्रष्ट व्यक्तियों की रक्षा कर रहा है, और उन्होंने स्वयं आगे बढ कर उसे बदलने की कोई कोशिश नहीं की, उन्हीं सन्दिग्ध लोगों से बिल पास कराने की उम्मीद हास्यास्पद है। वैसे गान्धी का एक तरीका कानून तोड़ने का भी था जिसे उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया था।
नया कानून बनवाने वाले अन्ना हजारेजी, उसके बारे में क्या विचार है?


वीरेन्द्र जैन
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