[यह लेख ‘अस्वीकृति में उठा हाथ’ श्रंखला में कुछ समय पूर्व लिखा गया था। महिला आरक्षण विधेयक पास हो जाने के बाद जो सामाजिक अंगड़ाई सम्भावित है उस सन्दर्भ में यह पुनः प्रस्तुत किया जा रहा है।]
नई नैतिकताओं पर विमर्श की जरूरतें
----------------- वीरेन्द्र जैन
अंग्रेजी में कहा गया है कि -मोरलिटी डिर्फस फ्रोम प्लेस टु प्लेस एन्ड एज टु एज- अर्थात स्थान से स्थान और युग से युग तक नैतिकता बदलती रहती है।सच भी है कि हमारे दो पौराणिक युग त्रेता और द्वापर भी अपनी नैतिकताओं में कितने विविध हैं। त्रेतायुग द्वापर से पहले माना जाता रहा है पर आज हमारी नैतिकता द्वापर के स्थान पर त्रेता युग की नैतिकता को आदर्श मानती है।
नैतिकताएं दैवीय आदेश नहीं होती हैं भले ही कुछ क्षेत्रों में प्रभावी अनुशासन बनाये रखने के लिए इन्हें दैवीय आदेशों की तरह प्रस्तुत कर दिया गया हो। ये हमारी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्तिथियों के अनुसार बनती बिगड़ती रहती हैं। जब शहर के छोटे से फ्लैट में पूरा परिवार एक साथ रहता है तो पर्दा प्रथा बची नहीं रह सकती है। मिनी बसों और टैम्पो में सफर करने वाली महिलायें अगर किसी दबाव में बुर्का पहिने भी हों तो भी वे जानती हैं कि उनकी इस पर्दादारी का क्या मतलब शेष रह गया है। इसलिये दबाव से मुक्त होते ही पहला काम वे बुर्का फेंकने का ही करती हैं।
हमारे आज के बहुत सारे संकटों के पीछे नैतिकताओं की वे जड़ताऐं हैं जिन्हें पहले कौन ,पहले कौन के चक्कर में हम तोड़ नहीं पाते और ढोते रहते हैं। हमारी सैक्स सम्बन्धी नैतिकताएं भी कुछ कुछ ऐसी ही जकड़नें हैं क्योंकि आज चिकित्साविज्ञान ने उन नैतिकताओं के निर्माण के आधार ही बदल दिये हैं। सैक्स का गर्भ धारण से सीधा सम्बन्ध है, या कहना चाहिये कि रहा है, और किसी मानव शिशु को आत्मनिर्भर होने के लिये लम्बे समय तक पाले जाने की जरूरत रहती है। लम्बे गर्भ काल में गर्भ धारण करने वाली महिला को कम से कम कुछ माह तक विशेष देख रेख की जरूरत भी रहती रही है। इसलिये किसी भी महिला के लिये सैक्स सम्बन्ध बनाने से पूर्व सम्भावित संतति के पालन और सामाजिक आर्थिक पक्ष पर घ्यान देने की जरूरत होती थी। इसी जरूरत ने उसे परावलम्बी बनाया और सैक्स सम्बन्धों की स्वाभाविकता पर कठोर नियंत्रण और अनुशासन के लिये विवश किया। वहीं पुरूष उससे मुक्त रहा व उसके लिये नैतिकता की परिभाषाएं भिन्न रहीं।
बढती आबादी ने दुनिया को जनसंख्या नियंत्रण के लिये उपाय खोजने को प्रेरित किया और उसने सैकड़ों ऐसी विधियां खोज निकालीं जिससे गर्भधारण की आशंका से मुक्त सैक्स सम्भव हो सका। इस खोज ने जहां एक ओर अनचाहे गर्भधारण को रोका वहीं नारी के सैकड़ों बन्धन भी खोल डाले।यह वही समय था जब नारी स्वातंत्र की आवाज सर्वाधिक ओज के साथ बुलन्द हो सकी। गर्भधारण से मुक्ति,नारी को पुरूष के साथ बराबरी पर खड़ा कर देती है। समानता का नारा इसी स्थान पर खड़े होकर ही लगाया जा सका। जो समाज जिस तीव्रता से परिवार नियंत्रण की ओर बढा है, नारी स्वातंत्र की ओर भी उसी अनुपात से बढा है। संसद और दूसरी विधायी संस्थाओं में महिलाओं के आरक्षण की मांग तथा अन्य संस्थाओं में इस अघिकार की प्राप्ति इन्हीं कारणों से सम्भव हो सकी है।
अब आवश्यकता इस बात की है कि पुरानी वर्जनाओं का नये सिरे से मूल्यांकन हो। हम जिन्हें सामाजिक नैतिकताओं से विचलन मानते रहे आये थे उन नैतिकताओं के आधार बदल चुके हैं किंतु हमारी रूढिवादी आदतें हमें नये मानदण्डों की स्थापना से रोकती हैं । हमारे सोच और व्यवहार का यही भेद सामाजिक संकटों की जननी बन रहा है। समाचार माध्यमों में यौन वर्जनाओं के उल्लंघनों के समाचारों की बाढ सी आयी हुयी है। आये दिन प्रेमी प्रेमिकाओं के परिवार वालों में झगड़े, आत्महत्याएं या हत्याएं हो रही हैं,। प्रतिदिन अवैध माने जाने वाले सम्बन्धों या अवैध ढंग से चल रहे सैक्स कारोबारों के समाचार आते रहते हैं। दूसरी सामाजिक गतिविघियों में भी इनका प्रभाव देखा जा सकता है। बाजारवाद में जिसके पास जो होता है वह उसे बेचता है। स्वतंत्र हुयी नारियों में जिसके पास जिस्म के अलावा कुछ और बेचने के लिये नहीं है, वे उसे ही बेचने लगी हैं क्यों कि अब वे उसकी मालिक हो गयी हैं। जो पुराने ढंग से मूल्यांकन करते हैं उन्हें यह बुरा लगता है और अपनी नासमझी में वे ना जाने किस किस को दोष देते रहते हैं। समाज एक संतुलन का नाम है और किसी भी एक ओर होने वाले परिर्वतन का असर दूसरी ओर होना अवश्यंभावी है जबकि हम अपनी सुविधा के सारे परिवर्तन कर लेने के बाद शेष वस्तुओं को अपरिवर्तित रखना चाहते हैं जो सम्भव नहीं है। जब दुनिया का बाजार आयेगा तो आपके सत्त्त्तू और बिरचुन को लेकर नहीं आयेगा वह केंटुकी चिकिन, पिज्जा और बर्गर को लेकर भी आयेगा और उसके लिये आपकी नैतिकताओं को नूडल्स की तरह मुलायम चिकनी और हड़पनीय बना कर निगलेगा भी। जो लोग कम्यूटर ओर इन्टर नैट में नहीं घुसे हैं उन्हें शायद पता भी नहीं होगा कि वहां अश्लीलता उनकी कल्पना शक्ति से भी सैकड़ों गुना आगे है व समस्त मध्यमवर्ग के घरों व दफतरों में झलकती रहती है। यदि उनके आंकड़ों को विश्वसनीय मानें तो आज हमारे देश में भी लाखों महिलायें अपने स्वतंत्र मित्रों की तलाश खुलेआम कर रही हैं जो अनुमानित न्यूनतम बासठ लाख सैक्स वर्कर के अलावा है। समाज के सामने आने वाले अवैध सम्बन्धों के अलावा हजारों गुना सम्बन्ध ऐसे भी निरन्तर चल रहे हैं जो समाज के सामने नहीं आ पाते। हममें से प्रत्येक ऐसी दस-बीस घटनाओं की जानकारियां रखता है।
पर इन घटनाओं के नायकों को हम नई नैतिकता के अग्रदूत नहीं कह सकते जब तक कि वे अपना पक्ष खुलकर रखने और अपना एक समाज बनाने का साहस नहीं जुटा लेते व पुरानी नैतिकताओं के ठेकेदारों से लोहा नहीं ले लेते। बिहार में एक प्रोफेसर की प्रेमप्रसंग में पिटायी ,मुंह काला किया जाना और फिर उसके समर्थन में जलूस निकालने से लेकर राजनीतिक नेताओं के सामने आने तक की घटनाएं कुछ संकेत दे रही हैं जिन्हें समाजशास्त्रियों द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिये।
वीरेन्द्र जैन
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असरदार लेख है और बढ़िया है..वर्ड वेरिफिकेशन हटायें कृपया.
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