कृपालु महाराज को गिरफ्तार न किये जाने से
वारेन एंडेर्सन को गिरफ्तार करने की मांग पर असर
वीरेन्द्र जैन
प्रतापगढ में कृपालु महाराज के आश्रम में निरीह निर्धन लोगों की जो मौतें हुयी हैं वे आश्रम प्रबन्धन की लापरवाही का ही परिणाम थीं। आज तथाकथित धार्मिक संस्थानों और आश्रमों के पास अटूट दौलत के भंडार हैं तथा वे इस दौलत के नशे में जो खेल खेल रहे हैं उनकी झलक कभी कभी मीडिया के स्टिंग आपरेशनों में देखने को मिल जाती है। ऐसे स्टिंग आपरेशन हमेशा सम्भव नहीं हो पाते। इससे केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि इन आश्रमों के बारे में लोगों के जो विश्वास हैं उससे अलग अनैतिक आचरण चल रहा है। यह किसी एक धर्म, एक आश्रम या एक बाबा का सवाल नहीं है अपितु ऐसे आचरणों में ‘सर्व धर्म समभाव’ देखने को मिलता रहा है। ऐसी घटनाएं आये दिन देखने को मिलती रहती हैं और इनमें सदैव ही गरीब, महिलाएं और बच्चे ही अधिक संख्या में शिकार होते हैं।
जो सरकारें दलित, आदिवासी, पिछड़े, महिलाएं, बच्चे, अल्प्संख्यक, आदि निःशक्त जनों के लिये विभिन्न तरह की योजनायें बनाकर उनके लिये कुछ करने के दावे किया करती है वह इन तथाकथित धर्मस्थलों पर सर्वाधिक इन्हीं वर्गों के लोगों की मौतों पर उनके लिये ज़िम्मेवार लोगों को बचाने में लग जाती है। जब छोटी छोटी दुर्घटनाओं पर किसी ज़िले के ज़िलाधीश और पुलिस अधीक्षक आदि का ट्रांस्फर कर दिया जाता है तथा उन्हें इस रूप में दंडित किया जा सकता है तो लालच देकर एक बड़ी भीड़ जुटाने और उसके उचित प्रबन्धन की व्यवस्था न करने के लिये धर्म स्थलों के प्रमुखों को क्यों दण्डित नहीं किया जा सकता। इतनी सारी दुर्घटनाओं में प्रति वर्ष हज़ारों जानें जाने के बाद भी ना तो सरकार स्वयं कोई व्यवस्था करती है और ना ही सम्पत्ति और वैभवशाली इन स्थल के प्रमुखों को अपनी दौलत से सम्भावित भीड़ की उचित व्यवस्था के लिये कहती है। प्रश्न यह है कि इन धर्मस्थलों की यह दौलत अगर नर नारायण के हित में व्यय नहीं हो सकती तो फिर इन धर्मस्थलों पर इस दौलत के जमा होने का अर्थ क्या है? देश में इस वर्ष सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 500 से अधिक लोगों की मौतें सर्दी के कारण हो गयीं और ऐसी ही मौतें लू या अतिवृष्टि में भी होती रहती हैं तथा उस क्षेत्र के धर्म स्थल न केवल फलते फूलते रहते हैं अपितु उनमें इच्छाधारी और नित्यानन्द जैसे लोग वीआईपियों को अतिथि बनाते रहते हैं। किसी भी घटना के दूरगामी परिणाम होते हैं। भोपाल में आज से 25 साल पहले युनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में जो गैस रिसी थी उससे 15000 लोग मौत का शिकार हुये एवम 475000 लोग विभिन्न रोगों से पीड़ित हुये। उस का मालिक अमेरिका में रहता है पर फिर भी न केवल उसे अरबों खरबों का मुआवज़ा ही देना पड़ा अपितु उसके खिलाफ मुकदमा चला और भोपाल की गलियों में अभी भी लगातार उसको फांसी देने की मांग के नारे गूंजते रहते हैं। यदि हम धार्मिक तुष्टीकरण में कार्यवाहियों से बचते रहे तो इससे वारेन एंडेर्सन और उपहार सिनेमा के मालिकों के पक्ष ही मज़बूत होंगे। हमारा देश वह साहस कब जुटा पायेगा जब वह कह सके कि इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत आने वाले सभी आरोपियों के साथ एक जैसा व्यवहार होगा, और संस्थानों में एकत्रित धन का उपयोग निश्चित समय में उस संस्थान के घोषित उद्देश्यों के लिये ही होगा।
सरकार चाहे तो यह भी कर सकती है कि चुनावों में पराजित होने वाले प्रमुख उम्मीदवारों को अपने अपने क्षेत्र के किसी एक सार्वजनिक संस्थान के कार्यों की गहन निरीक्षण और रिपोर्टिंग की ज़िम्मेवारी दे ताकि वे समाज सेवा का कार्य करते रहें।
वीरेन्द्र जैन
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अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
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