धर्म के बारे में खुले विचार का समय
वीरेन्द्र जैन्
अभी हाल ही में अयोध्या के राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने महिलाओं को सलाह दी है कि महिलाओं को मन्दिरों और मठों में अकेले जाने की इज़ाज़त नहीं होनी चाहिए। उनके समर्थन में राम जन्म भूमि के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास और राम जन्म भूमि न्यास के सदस्य राम विलास दास वेदांती ने भी किया है। संत कह रहे हैं उन्हें मठों मन्दिरों में अपने भाई पिता या पति के साथ जाना चाहिए। इन महानुभावों का कहना है कि हाल ही में कुछ बाबाओं से जुड़े जो प्रसंग सामने आये हैं उनमें उन माता पिताओं का भी दोष है, जो अपनी लड़कियों पर ध्यान नहीं देते और उन्हें मनमानी करने की छूट देते हैं। रोचक यह है कि उपरोक्त तथाकथित संत महंतों ने जिनमें भाजपा के पूर्व सांसद राम विलास दास वेदांती भी सम्मलित हैं, ने ना तो बाबाओं के खिलाफ कुछ कहने का साहस दिखाया है और ना ही बाबाओं के लिये कोई आचार संहिता ही बतायी है। ये महान विचार तब सामने आये हैं जब इस इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में राज्य सभा देश की संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिये 33% स्थान आरक्षित करने का विधेयक पास कर चुकी है, और जिसके लिये पक्ष और विपक्ष की महिला नेत्रियाँ पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर सार्वजनिक रूप से खुशी जता चुकी हैं। इन तथाकथित स्वघोषित संत महात्माओं का पीड़ित परिवार के लोगों को ही दोषी ठहराना स्वयं में ही अपराध और अमानवीय कृत्य है।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों स्वामी नित्यानन्द, इच्छाधारी बाबा, कृपालु महाराज, आशाराम बापू, केरल के चर्चों के पादरी से लेकर बाबा राम देव, और हरिद्वार के कुम्भ मेले में असली-नकली शंकराचार्यों के सवाल पर दिये गये उग्र बयानों के बाद इन बाबाओं की भूमिगत दुनिया की सच्चाइयों की झलक लोगों को मिलने लगी है जिससे धर्म में अन्ध आस्था रखने वाले लोगों के भरोसे को गहरा धक्का लगा है, तथा इन आस्थाओं से धन्धा करने वाले लोग बौखला कर ऊल ज़लूल प्रतिक्रियाएं देने लगे हैं।
गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि प्रत्येक धर्म अपने समय की ज्वलंत समस्याओं से पीड़ित मानवता को उबारने के लिये अपनी तत्कालीन समझ का सर्वश्रेष्ठ लेकर अस्तित्व में आया, तथा उसने अपने कार्य क्षेत्र के बड़े वर्ग का विश्वास अर्जित किया। कालांतर में सम्बन्धित धर्म के संस्थापकों की विरासत के लोगों ने जन मानस की आस्था से लाभ लेते हुये उस समय दिये गये नीति नियमों को जड़ बना दिया जबकि सामाजिक परिस्तिथियाँ निरंतर बदलती गयीं। बदलती स्तिथियों से उनके विश्वासों में आ सकने वाले भावी परिवर्तनों से अपने लाभदायी अनुयायियों को बचाने के लिये धर्म से सन्देह, विचार और तर्क को रोक दिया गया व अन्ध आस्था को बढावा दिया गया। इसी अन्ध आस्था के चलते धर्मानुयायियों के शोषण का रास्ता खुला। जिस किसी ने भी धर्म के बारे में सवाल किया उसे धर्म विरोधी करार दे दिया गया और उसके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार से लेकर प्राण हर लेने तक के दण्ड दिये गये। धर्म से अवैध लाभ उठाने वाले इन लोगों ने बदलती परिस्तिथि में धर्म स्थापना की मूल भावनाओं की रक्षा करने वाले बचे खुचे सच्चे धर्म प्रचारकों का भी खात्मा कर दिया। धर्म से सम्बन्धित जितने भी संस्थान थे वे धीरे धीरे नये अर्थतंत्र के अनुसार लोगों की जेबों से धन निकालने के गिरोहों में बदलते गये। इन संस्थानों ने आधुनिक तक़नीक का भरपूर स्तेमाल किया और एसी आश्रमों, एसी कारों, से लेकर मोबाइल सी डी, डीवीडी और लेपटाप तक के भरपूर उपयोग कर रहे हैं। उनके पास बिना किसी प्रोजेक्ट के करोड़ों अरबों रुपयों की सम्पत्तियाँ जमा हैं जिनसे सम्बन्धित गबन और हत्या तक के मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं। बहुत सारे आश्रमों में फरार अपराधी बाबा का रूप रख कर रह रहे हैं। जहाँ सरकारी अर्जुन देव समिति की रिपोर्ट के अनुसार सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी बीस रुपये रोज़ पर गुजर कर रही है वहीं इन आश्रमों के बाबाओं और उनके धार्मिक संस्थानों की मूर्तियों के पास टनों सोना है। प्रति वर्ष हज़ारों लोग शीत लहर, लू, और बाढ से मर जाते हैं, भूख से मर जाते हैं, कुपोषण से मर जाते हैं, तथा रोकी जा सकने वाली बीमारियों से मर जाते हैं किंतु इन धार्मिक संस्थानों में जमा धन से केवल ब्याज़ उगाया जाता है और कई तो शेयर बाज़ार में विनियोजित करते हैं। जो सरकार इन धार्मिक संस्थानों को टेक्स में पूरी छूट देती है तथा इन आश्रमों में आने वाले काले धन को सफेद में बदलने का अघोषित लाइसेंस दिये हुये है वह इस बात का ध्यान नहीं रखती कि वे जिन आदर्शों के आधार पर लोगों की कमाइयाँ हड़प रहे हैं, उन पर कितना टिके हुये हैं? साम्प्रदायिकता के खिलाफ रहने वाली सरकार इस आशंका के बारे में बिल्कुल उदासीन है कि आर्थिक भ्रष्टाचार में घिरने वाले संस्थान अपने स्वार्थ में कभी भी साम्प्रदायिक गढों में बदल सकते हैं। एक बड़े साम्प्रदायिक राजनीतिक दल ने एक शंकराचार्य के हत्या और यौन शोषण के आरोपों में घिर जाने पर दिल्ली में विरोध प्रदर्शन और अनशन तक किया था। ज़रूरी यह है कि इन आश्रमों के कार्यकलापों में पूरी पारदर्शिता अनिवार्य हो, तथा उनके घोषित आदर्शों से विचलन पर उनकी सारी सुविधायें समाप्त कर जनता को सन्देश दिया जाये। इन धार्मिक संस्थानों को बिना किसी योजना के धन संग्रह पर प्रतिबन्ध हो तथा एक निश्चित समय तक व्यय न किया जा सकने वाला सारा धन प्रधानमंत्री राहत कोष के लिये प्राप्त कर लिया जाये।
आज के वैज्ञानिक युग में पहली ज़रूरत तो यह है कि धार्मिक संस्थानों समेत किसी भी जाति धर्म समाज में अन्धविश्वास को बढने न दिया जाये और हर स्तर पर अपना सन्देह व्यक्त करने और सवाल पूछने की आज़ादी हो। यदि सम्बन्धित संस्थान से संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता हो तो धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता को बाधित करने वालों को कठोर दण्ड मिलना सुनिश्चित हो। धर्म परिवर्तन जितना सहज होगा उतना ही अधिक धार्मिक मंथन होगा तथा धर्म के मूल में निहित मानवीय पक्ष तथा उसमें पल रहे दोष सामने आते रहेंगे। इसलिये धर्म परिवर्तन धर्म की मूल भावना के हित में है। जो लोग संविधान प्रदत्त धर्म परिवर्तन के अधिकार पर सिर काटने के फतवे देते हैं उन पर हत्या के लिये उकसाने का मुक़दमा चलाया जाना चाहिये।
धर्म मनुष्य के लिये है, मनुष्य धर्म के लिये नहीं है। यह किसी एक धर्म स्कूल या धर्म संस्थान का सवाल नहीं है। प्रत्येक धर्म में विकृति आने की संभावना रहती है, इसलिये देश के संविधान और कानून को सदैव ही धर्म के मठाधीशों से ऊपर होने की सच्चाई समय समय पर बताते रहना चाहिये।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
वीरेन्द्र जैन्
अभी हाल ही में अयोध्या के राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने महिलाओं को सलाह दी है कि महिलाओं को मन्दिरों और मठों में अकेले जाने की इज़ाज़त नहीं होनी चाहिए। उनके समर्थन में राम जन्म भूमि के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास और राम जन्म भूमि न्यास के सदस्य राम विलास दास वेदांती ने भी किया है। संत कह रहे हैं उन्हें मठों मन्दिरों में अपने भाई पिता या पति के साथ जाना चाहिए। इन महानुभावों का कहना है कि हाल ही में कुछ बाबाओं से जुड़े जो प्रसंग सामने आये हैं उनमें उन माता पिताओं का भी दोष है, जो अपनी लड़कियों पर ध्यान नहीं देते और उन्हें मनमानी करने की छूट देते हैं। रोचक यह है कि उपरोक्त तथाकथित संत महंतों ने जिनमें भाजपा के पूर्व सांसद राम विलास दास वेदांती भी सम्मलित हैं, ने ना तो बाबाओं के खिलाफ कुछ कहने का साहस दिखाया है और ना ही बाबाओं के लिये कोई आचार संहिता ही बतायी है। ये महान विचार तब सामने आये हैं जब इस इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में राज्य सभा देश की संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिये 33% स्थान आरक्षित करने का विधेयक पास कर चुकी है, और जिसके लिये पक्ष और विपक्ष की महिला नेत्रियाँ पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर सार्वजनिक रूप से खुशी जता चुकी हैं। इन तथाकथित स्वघोषित संत महात्माओं का पीड़ित परिवार के लोगों को ही दोषी ठहराना स्वयं में ही अपराध और अमानवीय कृत्य है।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों स्वामी नित्यानन्द, इच्छाधारी बाबा, कृपालु महाराज, आशाराम बापू, केरल के चर्चों के पादरी से लेकर बाबा राम देव, और हरिद्वार के कुम्भ मेले में असली-नकली शंकराचार्यों के सवाल पर दिये गये उग्र बयानों के बाद इन बाबाओं की भूमिगत दुनिया की सच्चाइयों की झलक लोगों को मिलने लगी है जिससे धर्म में अन्ध आस्था रखने वाले लोगों के भरोसे को गहरा धक्का लगा है, तथा इन आस्थाओं से धन्धा करने वाले लोग बौखला कर ऊल ज़लूल प्रतिक्रियाएं देने लगे हैं।
गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि प्रत्येक धर्म अपने समय की ज्वलंत समस्याओं से पीड़ित मानवता को उबारने के लिये अपनी तत्कालीन समझ का सर्वश्रेष्ठ लेकर अस्तित्व में आया, तथा उसने अपने कार्य क्षेत्र के बड़े वर्ग का विश्वास अर्जित किया। कालांतर में सम्बन्धित धर्म के संस्थापकों की विरासत के लोगों ने जन मानस की आस्था से लाभ लेते हुये उस समय दिये गये नीति नियमों को जड़ बना दिया जबकि सामाजिक परिस्तिथियाँ निरंतर बदलती गयीं। बदलती स्तिथियों से उनके विश्वासों में आ सकने वाले भावी परिवर्तनों से अपने लाभदायी अनुयायियों को बचाने के लिये धर्म से सन्देह, विचार और तर्क को रोक दिया गया व अन्ध आस्था को बढावा दिया गया। इसी अन्ध आस्था के चलते धर्मानुयायियों के शोषण का रास्ता खुला। जिस किसी ने भी धर्म के बारे में सवाल किया उसे धर्म विरोधी करार दे दिया गया और उसके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार से लेकर प्राण हर लेने तक के दण्ड दिये गये। धर्म से अवैध लाभ उठाने वाले इन लोगों ने बदलती परिस्तिथि में धर्म स्थापना की मूल भावनाओं की रक्षा करने वाले बचे खुचे सच्चे धर्म प्रचारकों का भी खात्मा कर दिया। धर्म से सम्बन्धित जितने भी संस्थान थे वे धीरे धीरे नये अर्थतंत्र के अनुसार लोगों की जेबों से धन निकालने के गिरोहों में बदलते गये। इन संस्थानों ने आधुनिक तक़नीक का भरपूर स्तेमाल किया और एसी आश्रमों, एसी कारों, से लेकर मोबाइल सी डी, डीवीडी और लेपटाप तक के भरपूर उपयोग कर रहे हैं। उनके पास बिना किसी प्रोजेक्ट के करोड़ों अरबों रुपयों की सम्पत्तियाँ जमा हैं जिनसे सम्बन्धित गबन और हत्या तक के मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं। बहुत सारे आश्रमों में फरार अपराधी बाबा का रूप रख कर रह रहे हैं। जहाँ सरकारी अर्जुन देव समिति की रिपोर्ट के अनुसार सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी बीस रुपये रोज़ पर गुजर कर रही है वहीं इन आश्रमों के बाबाओं और उनके धार्मिक संस्थानों की मूर्तियों के पास टनों सोना है। प्रति वर्ष हज़ारों लोग शीत लहर, लू, और बाढ से मर जाते हैं, भूख से मर जाते हैं, कुपोषण से मर जाते हैं, तथा रोकी जा सकने वाली बीमारियों से मर जाते हैं किंतु इन धार्मिक संस्थानों में जमा धन से केवल ब्याज़ उगाया जाता है और कई तो शेयर बाज़ार में विनियोजित करते हैं। जो सरकार इन धार्मिक संस्थानों को टेक्स में पूरी छूट देती है तथा इन आश्रमों में आने वाले काले धन को सफेद में बदलने का अघोषित लाइसेंस दिये हुये है वह इस बात का ध्यान नहीं रखती कि वे जिन आदर्शों के आधार पर लोगों की कमाइयाँ हड़प रहे हैं, उन पर कितना टिके हुये हैं? साम्प्रदायिकता के खिलाफ रहने वाली सरकार इस आशंका के बारे में बिल्कुल उदासीन है कि आर्थिक भ्रष्टाचार में घिरने वाले संस्थान अपने स्वार्थ में कभी भी साम्प्रदायिक गढों में बदल सकते हैं। एक बड़े साम्प्रदायिक राजनीतिक दल ने एक शंकराचार्य के हत्या और यौन शोषण के आरोपों में घिर जाने पर दिल्ली में विरोध प्रदर्शन और अनशन तक किया था। ज़रूरी यह है कि इन आश्रमों के कार्यकलापों में पूरी पारदर्शिता अनिवार्य हो, तथा उनके घोषित आदर्शों से विचलन पर उनकी सारी सुविधायें समाप्त कर जनता को सन्देश दिया जाये। इन धार्मिक संस्थानों को बिना किसी योजना के धन संग्रह पर प्रतिबन्ध हो तथा एक निश्चित समय तक व्यय न किया जा सकने वाला सारा धन प्रधानमंत्री राहत कोष के लिये प्राप्त कर लिया जाये।
आज के वैज्ञानिक युग में पहली ज़रूरत तो यह है कि धार्मिक संस्थानों समेत किसी भी जाति धर्म समाज में अन्धविश्वास को बढने न दिया जाये और हर स्तर पर अपना सन्देह व्यक्त करने और सवाल पूछने की आज़ादी हो। यदि सम्बन्धित संस्थान से संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता हो तो धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता को बाधित करने वालों को कठोर दण्ड मिलना सुनिश्चित हो। धर्म परिवर्तन जितना सहज होगा उतना ही अधिक धार्मिक मंथन होगा तथा धर्म के मूल में निहित मानवीय पक्ष तथा उसमें पल रहे दोष सामने आते रहेंगे। इसलिये धर्म परिवर्तन धर्म की मूल भावना के हित में है। जो लोग संविधान प्रदत्त धर्म परिवर्तन के अधिकार पर सिर काटने के फतवे देते हैं उन पर हत्या के लिये उकसाने का मुक़दमा चलाया जाना चाहिये।
धर्म मनुष्य के लिये है, मनुष्य धर्म के लिये नहीं है। यह किसी एक धर्म स्कूल या धर्म संस्थान का सवाल नहीं है। प्रत्येक धर्म में विकृति आने की संभावना रहती है, इसलिये देश के संविधान और कानून को सदैव ही धर्म के मठाधीशों से ऊपर होने की सच्चाई समय समय पर बताते रहना चाहिये।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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