अयोध्या में मस्ज़िद निर्माण का गडकरी प्रस्ताव
वीरेन्द्र जैन
नये भाजपा अध्यक्ष ने अपने एक बयान से हिन्दुत्व की राजनीति में हलचल सी मचा दी है। अयोध्या में मस्ज़िद निर्माण में मुसलमानों से सहयोग मांगने की नई बात किसी को भी हज़म नहीं हो रही है।
भाजपा के थिंक टैंक रहे गोबिन्दाचार्य अब भाजपा में नहीं हैं किंतु वे अभी भी उसी की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्होंने नये भाजपा अध्यक्ष को बिन मांगी सलाह दी है कि उन्हें कम बोलना चाहिये। उनकी यह सलाह उनके इस विश्वास का संकेत देती है कि भले ही श्री गडकरी को संघ ने अध्यक्ष के रूप में पदस्थ करवा दिया हो किंतु उन्हें अभी तक भाजपा की रीतिनीति के अनुरूप गोलमोल बातें और द्विअर्थी सम्वाद करना नहीं आया है। आखिर भाजपा के शुभचिंतक की यह सलाह इसके सिवा और क्या अर्थ रखती है कि उसका सर्वोच्च पदाधिकारी अपने विचार भी खुल कर नहीं रखे और दिन प्रति दिन के सम्वाद के लिये भी संघ की ओर देखे। वैसे तो लोकसभा में भाजपा की ओर से विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज समेत सारे प्रमुख लोगों ने कहा है कि गडकरी को संघ ने नहीं थोपा और वे भाजपा के लोगों की ही पसन्द रहे हैं किंतु उनकी यह बात किसी को भी हज़म नहीं हो रही है क्योंकि इस पसन्दगी के इससे पहले किसी को भी कोई संकेत नहीं मिले थे, और यह रहस्य पूर्ण लगता है कि अचानक सभी सदस्यों को एकमत से यह इल्हाम हो गया कि इतने चर्चित नेताओं के बीच् उनका नेतृत्व, वे गडकरीजी ही ठीक से कर सकते हैं, जिनको गोबिन्दाचार्य कम बोलने की सलाह दे रहे हैं। हो सकता है कि गोबिन्दाचार्य जी गडकरीजी को अपना अनुभव समझाने की कोशिश कर रहे हों कि ज्यादा बोलने से उन्हें क्या क्या नुकसान हुये हैं। इधर आडवाणी जी ने भी राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद यह कह कर कि गडकरी को लेकर जो भी सन्देह था वह धुल गया है और इसकी जगह आशावाद और अत्मविश्वास ने ले ली है, इस बात को पुष्ट किया है कि अधिवेशन होने तक ग़डकरी के लिये उन जैसे महत्वपूर्ण नेता के मन में भी सन्देह था। राम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के लिये मुसलमानों से सहयोग माँगने से सम्बन्धित् गडकरीजी के कथन के दूसरे आयाम भी हैं। भाजपा को उसके वर्तमान स्वरूप तक पहुँचाने में राम जन्म- भूमि मंदिर को मिले भावनात्मक समर्थन को वोटों की ओर मोड़ लेने की बड़ी भूमिका रही है। पिछले चुनावों में निरंतर मिलती पराजयों और गठबन्धन के सहयोगियों द्वारा साथ छोड़ते चले जाने के दौर में दबा दिये गये इस प्रकरण को पुनः चर्चा के केन्द्र में लाना ज़रूरी था। उनका यह बयान परोक्ष रूप से मन्दिर को चर्चा में लाने का एक चतुर तरीका भी हो सकता है।
राजनीति में शतरंज के खेल की तरह दूरदर्शित्त ज़रूरी होती है। अगर उक्त बयान किसी से सलाह लिये बिना विशुद्ध व्यक्तिगत था तो यह भी लगभग तय था कि उनके इस बयान को पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों से नकारा जाये। भीतर से इसलिये क्योंकि अपने रक्षात्मक बयानों में पार्टी बार बार यह कहती रही है कि वह उक्त स्थल पर मन्दिर के समर्थन में तो है किंतु मन्दिर निर्माण का काम और कार्यक्रम विश्व हिन्दू परिषद का है। पर इस बयान से यह साबित हो गया कि राम जन्म भूमि मन्दिर से भाजपा अलग नहीं है। उपरोक्त किस्म का बयान उन्हें [अर्थात संघ परिवार को] उन मुसलमानों की स्वेच्छा पर छोड़ता है जिनके बीच तनाव पैदा करके ही वे अभी तक अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते रहे हैं। उनका काम मन्दिर बनाना नहीं है पर राजनीतिक लाभ उठाना तो है। किसी भी किस्म की साम्प्रदायिकता को पनपने के लिये कोई झूठा या सच्चा दुश्मन चाहिये होता है पर यदि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही समाप्त हो जायेगा तो बिना राजनीतिक कार्य किये जो थोक में हिन्दू साम्प्रदायिकता से प्रभावित वोट उन्हें मिल जाते हैं, वे बन्द हो जायेंगे और सीटें घटेंगीं। इस स्थिति को शासन के माध्यम से दौलत के अम्बार खड़े करने वाले नेता कैसे सहन कर सकते हैं!
विहिप को यह आशंका पहले ही से थी कि बरसों से बीरान पड़ी मस्ज़िद टूट जाने के बाद जब मुसलमान अंततःवहाँ मन्दिर बनवाने के लिये तैयार हो जायेंगे तब ध्रुवीकरण का क्या होगा! इसलिये विहिप के पदाधिकारियों ने कहा था कि वे पूरे अयोध्या के परिक्रमा क्षेत्र में मस्ज़िद नहीं बनने देंगे तथा काशी और मथुरा के अलावा अभी साढे तीन सौ इमारतें और भी विवादास्पद हैं जिन्हें समय पर उठाया जायेगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने जब दुबारा मस्ज़िद बनाने का आश्वासन दे दिया था जिसके प्रतिरोध में भाजपा समेत सभी हिन्दूवादी संगठनों ने तीव्र प्रतिवाद किया था। किंतु अब राम जन्म भूमि मन्दिर के पास खाली पड़ी जगह में मस्ज़िद बनाने की अनुमति गडकरी जी ऐसे दे रहे थे गोया वह उनके हिस्से में आयी पैतृक सम्पत्ति हो और भाजपा जिसे चाहे उसे दे सकने के लिये अधिकृत हो।
विहिप के अशोक सिंघल कह रहे हैं कि यह राजनीति का सवाल नहीं है अपितु धर्म का मामला है इसलिये भाजपा को कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है किंतु इसी तर्क से यह भी कहा जा सकता है कि इस मामले का धर्म से भी कुछ लेना देना नहीं है अपितु यह विशुद्ध ज़मीनी विवाद है और सक्षम कोर्ट का फैसला ही अंतिम माना जा सकता है। पर जैसे कि पाकिस्तान के साथ वार्ता के मामले में भाजपा बार बार यह कह रही है कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बाद ही वार्ता होनी चाहिये, उसी तरह मुस्लिम नेतृत्व भी उक्त मामले में कह सकता है कि अदालत के आदेश से पहले आक्रामक तरीके से मस्ज़िद तोड़ने वालों को सज़ा का फैसला हो जाये तब बाद में मन्दिर मस्ज़िद का स्थान तय किया जा सकता है क्योंकि चर्चित मस्ज़िद भी बीरान मस्ज़िद थी और उसमें वर्षों से नमाज अता नहीं की गयी थी इसलिये ध्वस्त कर दी गयी मस्ज़िद के बदले में थोड़ी सी दूरी पर यदि नई मस्ज़िद मिल जाये तो भी स्वीकार किया जा सकता है बशर्ते भाजपा की नीयत ठीक हो।
सवाल है कि क्या सचमुच ऐसा है? विभिन्न संविद सरकारों में निरंतर सम्मलित तथा जनता पार्टी के समय केन्द्र की सरकार के समय में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रहे नेताओं को एक बार भी राम जन्म भूमि मन्दिर की याद नहीं आयी थी किंतु जब लोकसभा में वे कुल दो सीटों पर सिमिट कर रह गये तब उन्हें अचानक चार सौ साल पुराने ऐतिहासिक अपमान की चोट कचोटने लगी। जब वे केन्द्र की सरकार में आ गये तो राम जन्म भूमि मन्दिर को फिर भूल गये पर जैसे ही सत्ता से बाहर हुये तो फिर से राम जन्म भूमि मन्दिर को चर्चा में लाने के नये नये तरीके तलाशने लगे। फिर भी यदि आशंकाओं और सन्देहों को छोड़ कर देखें तो ऊपरी तौर पर गडकरी का प्रस्ताव बुरा नहीं है बशर्ते कि
• संघ परिवार विभाजनकारी राजनीति को छोड़ने और अपनी पिछली भूलों के लिये क्षमा माँगने के लिये तैयार हो।
• विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, और शिव सेना भी उनके विचार से सहमत हों या वे उनका साथ छोड़ने के लिये तैयार हों।
• वे मुसलमानों समेत दूसरे सभी अल्पसंख्यकों को दोयम दर्ज़े का नागरिक समझने की मानसिकता से मुक्त हो गये हों और उनकी समझ में आ गया हो कि भारत एक बहुलतावादी देश है और इसके विभिन्न धर्म, जातियां क्षेत्र, और भाषाभाषी हमेशा एक साथ रहेंगे और अपने मतभेद लोकतांत्रिक तरीके से ही दूर करेंगे।
• वे इतिहास को साम्प्रदायिक चश्मे से देखना बन्द कर दें, और इतिहास की गलतियों की सज़ा उन इतिहास पुरुषों के सम्प्रदायों के लोगों को देने का प्रचार बन्द कर दें।
• लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करने दें और समाज तथा धर्मों में व्याप्त उन बुराइयाँ और कुरीतियों के खिलाफ सामाजिक कार्य को आगे बढायें जिनके कारण धर्म परिवर्तन का माहौल बनता है।
पिछले दिनों संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने का जो आवाहन किया था वह एक बेहद अच्छा प्रस्ताव था किंतु ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया है उसे आगे बढाया जाना चाहिये। मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भ्रष्टाचार के घेरे में घिरे मंत्रियों को हटाने के लिये संगठन को निर्देश देने चाहिये तथा शिबू सोरेन की सरकार से समर्थन वापिस लेना चाहिये तभी ऐसा लगेगा कि ‘भाजपा में एक नई जान आयी है’ [बकौल शिवराज सिंह, मुख्य मंत्री म.प्र.] अन्यथा तो ऐसा लगेगा कि भाजपा में वही पुरानी जान है और वह भी धीरे धीरे निकल रही है।
वीरेन्द्र जैन
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