राजनीतिक सामाजिक और साहित्यिक रंगमंच के नेपथ्य में चल रही घात प्रतिघातों का खुलासा
शनिवार, मई 28, 2011
भगवा पर भड़कने वाले अब कहाँ हैं?
भगवा पर भड़कने वाले अब कहाँ हैं?
वीरेन्द्र जैन
यदि देश विदेश में जाने जाने वाले भगवाभेषधारी सन्यासी को अपमानित करने के लिए किसी सार्वजनिक स्थान पर चाँटा मार दिया जाता है तब भगवा रंग की चिंताओं पर एकाधिकार प्रकट करने वाले धार्मिक संगठनों को क्या चुप रहना चाहिए? यह सवाल उन हिन्दू संगठनों की कलई खोलता है जो देश के गृहमंत्री द्वारा आतंकवाद के आरोप में पकड़े गये उन व्यक्तियों को भगवा आतंकी कहने पर भड़क गये थे जो भगवा भेष में रह कर अपनी आतंकी गतिविधियां संचालित कर रहे थे व अपने ही धार्मिक समाज को धोखा देकर उन्हें दंगों की आग में झोंके जाने का षड़यंत्र रच रहे थे। यद्यपि यह तय है कि जब कोई रंग या भेष किसी सम्प्रदाय विशेष की पहचान करा रहा तो उसके उल्लेख में सावधानी बरतना चाहिए ताकि उस सम्प्रदाय के निर्दोष लोग आरोपों की चपेट में आकर आहत न हों। पर यह सावधानी इकतरफा नहीं हो सकती। देश के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रसिद्ध आर्यसमाजी स्वामी अग्निवेश पर मोदी के राज्य गुजरात में जो हमला किया गया उस पर संघ परिवार से जुड़े हिन्दू संगठन न केवल मौन रहे अपितु उनमें से अनेक ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमलावरों का समर्थन किया। इससे भगवा की ओट में की जा रही राजनीति अपने नग्न रूप में प्रकट हुयी। इसके अनुसार वही भगवा श्रद्धेय है जो भाजपा या संघ परिवार के साथ है, वे चाहे प्रज्ञा सिंह हों, दयानन्द पांडे हों, योगी आदित्यनाथ हों, उमाश्री भारती हों, या दूसरे छोटे बड़े ढेर सारे भगवा भेषधारी राजनीतिज्ञ हों। स्मरणीय है कि हमारे देश में तेरहवीं शताब्दी में माधवाचार्य ने जिन षडदर्शनों की चर्चा की है उनमें शैव, शाक्त और वैष्णव, तीन आस्तिक और जैन, बौद्ध व लोकायत तीन नास्तिक दर्शन हैं जिन्हें एक साथ समेट कर आज की हिन्दू राजनीति अपना बल प्रकट करती है। किसी समय इन दर्शनों के पंडितों के बीच में खुला शास्त्रार्थ चलता था और सिद्धांतों के आधार तीव्र मतभेद प्रकट होते थे। इन शास्त्रार्थों से प्रभावि हो कर लोग अपने विश्वासों और पूजा पद्धतियों को बदलते रहते थे। विभिन्न समयों में भिन्न भिन्न आस्थाओं का बाहुल्य इस बात का प्रमाण है हमारे यहाँ आस्थाओं और पूजा पद्धतियों के सम्बन्ध में एक लोकतंत्र जिन्दा था जिसे अब कट्टरता द्वारा नष्ट करने की कोशिश की जा रही है व वैचारिक स्वतंत्रता पर हमले किये जा रहे हैं। बिडम्बनापूर्ण यह है कि ये हमले वही लोग कर रहे हैं जो इमरजैंसी में विचारों की स्वतंत्रता को सीमित किये जाने के खिलाफ किये गये राजनैतिक प्रतिरोध की पैंशन ले रहे हैं। रामकथा के प्रतीक बताते हैं कि साधु स्वरूप के प्रति जो श्रद्धा जनमानस में थी उसका दुरुपयोग भी होता था। इस कथा में सीताहरण का प्रसंग ऐसा ही प्रसंग है जो परोक्ष में सन्देश देता है कि साधु की परीक्षा उसके स्वरूप से नहीं अपितु उसके बारे में जानकर ही की जा सकती है। संघ परिवार इसके विपरीत चल रहा है और उसके अनुसार उनके पक्ष के साधु भेषधारी चाहे जो कुछ भी कर रहे हों और उनके ज्ञान व कर्म का क्षेत्र कुछ भी हो, वे सम्मानीय माने जाने चाहिए। दूसरी ओर किसी अन्य राजनीतिक धारा के लोगों या सामाजिक कार्य से जुड़े साधु भेषधारी चाहे जितना भी समाज हितैषी और उल्लेखनीय कार्य कर रहे हों वे उनसे असहमति रखने वाले विचारों के लिए थप्पड़ के पात्र हैं। आतंकवाद के आरोप में कैद प्रज्ञा सिंह से भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह और भाजपा में प्रवेश के लिए निरंतर लालायित उमा भारती जेल में मिलने जाती हैं और उसको जेल में मिलने वाली सुविधाओं के सम्बन्ध में अतिरंजित बयान देकर लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश करती हैं। कोई नहीं जानता कि प्रज्ञा सिंह का धार्मिक ज्ञान त्याग और तपस्या कितनी है कि भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री ही उसे मेहमान बनाते हैं और सपरिवार उसके साथ बैठ कर फोटो खिंचवाते हैं। उसके इस ज्ञान, तपस्या और त्याग की खबर दूसरे दलों में कार्य करने वाले धार्मिक हिन्दू नेताओं को नहीं होती और न वे उसके ज्ञान का लाभ लेते हैं न उसके साथ सपरिवार फोटो खिंचवाते हैं। यदि किसी धार्मिक व्यक्ति का कद उसकी राजनीतिक सम्बद्धता से तय किया जाने लगे तो सवाल उठता है कि धर्म और उसके प्रतिनिधियों का अपमान कौन कर रहा है? गत दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री देवास में एक साध्वी की कथा सुनने चले गये थे जिसका आयोजन कांग्रेस के किसी नेता ने करवाया था, तो उन्हें अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपमानित होना पड़ा और खरी खोटी सुननी पड़ीं, जबकि उक्त साध्वी गाहे बगाहे भाजपा और संघ परिवार की मददगार के रूप में जानी जाती हैं व भाजपा ने अपने शासन के दौरान उन्हें अनेक स्थानों पर आश्रमों के नाम पर बड़ी बड़ी जमीनें आवंटित की हैं। धार्मिक नेताओं को राजनीति के आधार पर बाँटने का माहौल किसने बनाया है। उपरोक्त घटना में जिसने भगवा भेषधारी सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का अपमान किया वह उन्हें माला पहिनाने के बहाने उनके पास तक पहुँचा था और उन पर हमला कर दिया था। इसे संघ परिवार के समर्थक उचित प्रसाद देना बतला रहे हैं। स्मरणीय है कि यही तरकीब नाथूराम गोडसे ने भी अपनायी थी और वह भी हाथ जोड़ते हुये बापू को प्रणाम करने के बहाने पिस्तौल छुपा कर आया था व सीने में नजदीक से तीन गोलियां उतार दी थीं। जो व्यक्ति अपने दुस्साहस के लिए जिम्मेवारी तक लेने और अपने किये को स्वीकारने के लिए भी तैयार न हों उनके प्रति क्या धर्मान्ध भी श्रद्धा रख सकते हैं! सारे देश में घूम घूम कर बाबरी मस्जिद ध्वंस का वातावरण तैयार करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी जब कहते हैं कि वे तो मस्जिद तोड़ने वालों को रोक रहे थे पर वे मराठीभाषी होने के कारण उनकी बात नहीं समझ सके, तो क्या उनकी बात विश्वसनीय कही जा सकती है। इसी घटनाक्रम को सम्हालने के लिए दिल्ली भेज दिये गये अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था कि मुझे बताया गया है कि इस अवसर पर आडवाणीजी बहुत दुखी थे और उनका चेहरा आँसुओं से भरा हुआ था, तो क्या उनके समर्थकों ने भी अपने प्रिय नेता की बात का भरोसा किया होगा। विश्वसनीयता का यह संकट कौन पैदा कर रहा है!
विस्मरणीय यह भी नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे को जो समर्थन मिला है उसको दो फाड़ करने के लिए बाबा रामदेव को अनशन पर बैठने हेतु भाजपा नेताओं ने ही उत्प्रेरित किया है तथा उनकी छवि के अनुसार मिलने वाले समर्थन में अन्ना के सबसे बड़े सहयोगी स्वामी अग्निवेश रामदेव की काट बन रहे थे। इसलिए उनके एक विचार को मुद्दा बना के उनके भेष को बदनाम करने के प्रयास किये गये हैं।
शगूफे बुलबुलों की तरह होते हैं उनकी उम्र लम्बी नहीं होती। लोकतंत्र शगूफों पर ज्यादा नहीं चल सकता अंततः सच्चाई ही बचती है। कवि केदारनाथ अग्रवाल की कविता है-
कागज की नावें हैं तैरेंगीं, तैरेंगीं
लेकिन वे डूबेंगीं डूबेंगीं डूबेंगीं
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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virendar jain ko pata hai ki likh ne ke lia koi bahana chahiye ab inhe kaun batye ki padne wale bhi kotu hal bas kuchh bi ho pad hi lete hain kabhi agni vesh agar bhagva dhari sadhu hain to ye chanta thik waisa hi tha jaise ek bete ko uske baap ka chanta.yahi sadhutav hai ab ise bhagva se jod kar loote hua cmmunist ki raajniti karna thik nahin BJP kya karti hai wo hi jane par ulljulul likh kar apni dukan chalana bhi thik nahi pane dimag par lagam laga kar apna concentration badao bhat ko nahin kyon ki hindustan main bhatakti aatmaon ki kami nahin hai. gade murde ukhad na hai to angrejo ke ukhado,aur agr dam hai to muslimon ke ukhdo saali dukan dari band ho jaye gi kyon ki unke jyada niklen ge...imandar soch kisi ke bhi mat ukado bas ek swashth vichar man main rakho aur likho to fir jarur achhe tolstoy ban jaoge aur bhagat singh ki soch ke bhi kuchh karib aajaoge.
जवाब देंहटाएंbaki sab thik hai duniya hai sab chal ta hai
thanks