बुधवार, नवंबर 30, 2011

संविधान कानून और अनियंत्रित बयान



संविधान कानून और अनियंत्रित बयान  
                                                               वीरेन्द्र जैन
      संसद और विधानसभाओं के लिए चुने जाने के बाद नेता लोग संविधान की शपथ खाते हैं और उसमें विश्वास व्यक्त करते हैं किंतु इन्हीं नेताओं के आचरण बताते हैं कि या तो वे संविधान में भरोसा नहीं करते या उसकी परवाह नहीं करते। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति देने के बारे में राजनीतिक दलों में मतभेद हो सकते हैं और वे लोकतांत्रिक तरीके से संसद और उसके बाहर अपनी असहमति दिखाने को स्वतंत्र हैं, किंतु एक राजनीतिक दल की एक कद्दावर नेता जो एक प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हों, का यह कहना कि वे विदेशी निवेश वाली खुदरा दुकानों में आग लगा देंगीं, कहाँ तक उचित है! उनकी पार्टी ने भी उनके इस बयान पर कोई असंतोष व्यक्त नहीं किया है। क्या किसी नेता को यह अधिकार है कि वह इस तरह से खुले आम इस तरह की आपराधिक गतिविधि की धमकी देकर भी पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद को प्राप्त विशेष अधिकारों और सुविधाओं को प्राप्त कर सके। ये वही मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने पार्टी छोड़ने के बाद अपनी त्यागी हुयी पार्टी के मुख्यमंत्री पर अपनी हत्या का षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया था, बाद में वे फिर से उसी पार्टी में सम्मलित हो गयीं।
      किसी भी दल के नेता को विरोध करने का अधिकार कानून की सीमा तक ही होता है। जो सरकार को सीधी चुनौती देते हुये कानून का उल्लंघन करते हैं वे उग्रवादियों की श्रेणी में आते हैं जिनके साथ सुरक्षा एजेंसियां वैसा ही व्यवहार करती रही हैं जैसा कि उन्होंने अभी किशनजी के साथ किया है या इससे पहले कई हजार नक्सलियों, खालिस्तानियों, या लश्कर के लोगों के साथ करती रही है। क्या हमारी सरकार चुनाव लड़ने वाले उग्रवादियों और चुनाव न लड़ने वाले उग्रवादियों में फर्क करती है? क्या उक्त नेता के दल के प्रमुख लोगों, जिनमें देश के नामी गिरामी वकील शामिल हैं, को भी यह ज्ञान नहीं है कि ऐसा बयान देना आपराधिक है और उसके खिलाफ कोई कानून भी है। इसी दल के एक प्रदेश अध्यक्ष जो अपने आप को एक बड़ा पत्रकार मानते आये हैं और इसी आधार पर बाहरी होते हुए भी एक प्रदेश का अध्यक्ष पद व राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त किये हुये हैं, अपनी मांगें न माने जाने की दशा में राष्ट्रपति से प्राण त्यागने का अनुरोध करते हैं। यह अनुरोध भले ही हास्यास्पद और छद्म हो किंतु आपराधिक तो है।
 यही काम अगर किसी आम आदमी ने किया होता तो उसको तरह तरह से कानूनी संकट झेलना पड़ता किंतु सरकारी वेतन और पेंशन के साथ ढेर सारी सरकारी सुविधाएं पाने वाले ये लोग वोटरों को बरगलाने के लिए इसी तरह के शगूफे छोड़ते रहते हैं। शायद इन्हें ये भरोसा होगा कि कानून इनके लिए नहीं है।
      उत्तर प्रदेश के एक मंत्री जिनके कार्यकाल में दो अधिकारियों की हत्या हो गयी और तीसरे की जेल में सन्दिग्ध मृत्यु हुयी जिसे आत्महत्या बताया गया। उस मंत्री ने मंत्रिमण्डल से निकाले जाने के बाद अपनी ही पार्टी और एक मुख्य सचिव से अपने जीवन को खतरा बताया। माना जाता है कि उनके पास विभाग में व्याप्त अकूत भ्रष्टाचार के अलावा पार्टी द्वारा एकत्रित दौलत के भी भंडार रहे हैं और उन्हें पार्टी से निकाले जाने के बाद इस दौलत के लिए खूनी संघर्ष छिड़ सकता है।
      मध्य प्रदेश की एक मुँहफट महिला विधायक ने तो अभी हाल के अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए ही कहा कि इस विधानसभा पर ताला लगा दिया जाना चाहिए। ऐसा कहते हुए वे यह भूल गयीं कि उन्हें विधायक होते हुए ही अभिव्यक्ति के ये सारे अधिकार प्राप्त हैं और बैठने वाली डाल को काटने वालों को समझदार नहीं कहा जाता। संसद और विधानसभाएं लोकतंत्र के मन्दिर हैं जो देश को बड़े संघर्ष के बाद प्राप्त हुए हैं, इन पर ताला लगा देने के बाद तो तानाशाही या मिलेट्री शासन ही विकल्प बनते हैं।
      मुम्बई में गत 26/11/2008 को हुये हमले के दौरान पकड़े गये एक मात्र आतंकी कसाब की सुरक्षा पर होने वाले खर्च के अतिरंजित आंकड़ों के आधार पर कुछ संगठन यह प्रकट करते रहते हैं जैसे कि सरकार अपने वोट बैंक के लिए उसे दामादों की तरह पाल रही है, जबकि सच यह है कि प्रज्ञा सिंह समेत किसी भी विचाराधीन कैदी को जेल के मैन्यूल के अनुसार ही सुविधाएं मिलती हैं और किसी भी विचाराधीन कैदी की सुरक्षा सरकार की जिम्मेवारी होती है जो सम्भावित खतरों के अनुसार मिलती है। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि कसाब और उसको मदद करने के आरोपियों का मुकदमा लड़ने वाले वकील की हत्या कर दी गयी है जिसकी वकालत पर उसको मदद करने के आरोपी बरी हो गये थे। कसाब को कानून के अनुसार दण्ड दिलाना देश में कानून के शासन का प्रमाण है जिसके कारण ही यही सुविधा महात्मा गान्धी और इन्दिरा गान्धी के हत्यारों को भी मिली थी। सरकार पर वोट बैंक के लिए कसाब को सुविधाएं देने के आरोप लगाने वाले बहुत ही गन्दी राजनीति कर रहे हैं क्योंकि इस तरह वे परोक्ष में इस देश के मुस्लिम वोटरों पर भी पाकिस्तान के आतंकवादियों के प्रति सहानिभूति रखने का आरोप भी लगा रहे होते हैं।
      इस समय देश कुछ गम्भीर परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और राजनेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने बयानों में न केवल गम्भीर और तथ्यात्मक हों अपितु उनकी भाषा भी संयमित हो। राज्य सभा का एक संसद सदस्य जो अभी जेल में रह चुका है इतना गैर गम्भीर रहा है कि एक रुपये में परमानन्दा दिलाने या झंडू बाम बेचने वाले फिल्मी अभिनेता को देश का राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव देने लगता है। देश के सर्वोच्च पद को इतने सस्ते में लेना देश के लोकतंत्र का अपमान है। राजनीतिक दलों को भी अपने सदस्यों के बयानों पर अनुशासन बनाना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
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