यह फासिज्म की भाषा नहीं तो और क्या है
वीरेन्द्र जैन
आरएसएस
प्रमुख मोहन भागवत ने संघ का प्रांतीय स्तर शिविर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य
मंत्री और कांग्रेस के सर्वाधिक मुखर महासचिव दिग्विजय सिंह के मूल निवास क्षेत्र
राजगढ में आयोजित किया। अपने मन और वचन में भेद रखने के लिए जाने जाने वाले इस
संगठन के प्रमुख ने राजगढ में शिविर रखने के पीछे कारण बताया कि वहाँ पूरे प्रांत
में सबसे अधिक शाखाएं हैं, इस कारण से इस स्थान का चुनाव किया गया। इस आंकड़े की
सत्यता तो वे ही जानें किंतु यदि यह सच भी है तो भी प्रांतीय स्तर का शिविर आयोजित
करने के लिए हमेशा यही कारण नहीं होता रहा है, और न ही वहाँ भी है। उल्लेखनीय है
कि इस समय दिग्विजय सिंह के बयान न केवल सर्वाधिक सुर्खियां बटोर रहे हैं अपितु वे
अफवाहों से निर्मित माहौल के गुब्बारे में सुई का काम भी करते हैं जिससे संघ
परिवार द्वारा रचे गये झूठ का पर्दाफाश हो जाता है। धार्मिक आस्थाओं वाले समाज में
भाजपा जिस तरह से धार्मिक भावनाओं का अपने पक्ष में विदोहन करती है, वह भी
दिग्विजय सिंह के सामने नहीं चल पाता क्योंकि उनके द्वारा भी समान रूप से धार्मिक
संस्थाओं और धार्मिक नेताओं से निकट सम्बन्ध रखा रखा जाता है। यहाँ तक कि बामपंथी
उन पर सौफ्ट हिन्दुत्व अपनाने तक का आरोप लगाते रहे हैं। परिणाम यह निकला है कि
मँहगाई, भ्रष्टाचार आदि के कारण अलोकप्रिय हो रहे यूपीए गठबन्धन में वे ‘कूल-कूल’ कांग्रेस की गर्म धड़कन बने हुए हैं। कांग्रेस के
विरोधी तो यह भी आरोप लगाते हैं कि राहुल गान्धी उन्हीं की सलाह पर चलते हैं। मध्य
प्रदेश में विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद उन्होंने दस साल तक कोई पद न लेने की
घोषणा की हुयी थी जिस पर उन्होंने तब से पूरी ईमानदारी से अमल किया व अब इसकी अवधि
समाप्त होने के करीब है। इससे प्रदेश में सत्तारूढ भाजपा में घबराहट है। नव गठित
प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी जिन लोगों को पद दिये गये हैं वे भी उन्हें अपेक्षाकृत
अपना प्रिय और सक्षम नेता मानते हैं, व इसी कारण अपनी निष्क्रियता छोड़ चुके हैं। ऐसी
दशा में संघ प्रमुख द्वारा बताया गया राजगढ में ही संघ द्वारा प्रांतीय शिविर
आयोजित करने का कारण हजम नहीं होता। इसकी पृष्ठ्भूमि में अगले आम चुनावों में
दिग्विजय सिंह के खिलाफ काम करने की आधारभूमि तैय्यार करने की योजना ही नजर आती
है।
इस
अवसर पर संघ प्रमुख ने कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि वे दिग्विजय जैसे
नेताओं के बयानों से विचलित न हों और न उनके विरोध में भाषणबाजी करें। अपने काम को
आगे बढाएं। यह बयान फासिज्म का संकेत देता है। लोकतंत्र में सारे हल बातचीत से
निकाले जाते हैं और बहुमत का निर्णय स्वीकार किया जाता है। राराजनीतिक दलों के
नेताओं के बयान से अगर असहमति है तो उसका विनम्र प्रतिवाद किया जा सकता है, आम
सभाएं की जा सकती हैं, समाचार पत्रों में लेख लिखे जा सकते हैं किंतु किसी बात का
जबाब ही न देना किस बात का संकेत है। फासिज्म में दल प्रमुख का कथन ही अंतिम होता
है और वहाँ बात करने या बहस करने की अनुमति नहीं होती। असहमति की दशा में बात का
जबाब लाठी से दिया जाता है या दमन के दूसरे दूसरे साधनों का उपयोग किया जाता है।
आखिर क्या कारण है कि संघ के लोग दिग्विजय सिंह की बात के उत्तर में या तो अनाप
शनाप गालियां बकने लगते हैं, फेसबुक या ट्वीटर पर छद्म नामों से गन्दी गन्दी भाषा
में कमेंट्स करने लगते हैं, या काले झंडे दिखाने के नाम पर हिंसा करने लगते हैं।
पिछले दिनों से लगातार यह फैलाया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह के बयानों से
कांग्रेस का वोट बैंक घट रहा है, या उन्हें पागलखाने भेजने की बात की जा रही है,
पर उनके किसी बयान का जबाब नहीं दिया जा रहा है। यह अपराध बोध का परिणाम है
क्योंकि वे जानते हैं कि दिग्विजय सिंह के बयान तथ्यात्मक रूप से गलत नहीं होते और
अगर बहस में उतरे तो कहीं टिक नहीं पायेंगे। दूसरी ओर उनके बयानों का जबाब काम से
देने को कहा गया है। ऊपर से देखने पर यह एक शांत बयान लगता है किंतु वैसा है नहीं।
आखिर आरएसएस काम क्या करता है? घोषित रूप से यह एक सांस्कृतिक संगठन है किंतु उनके
सदस्य किसी भी कला विधा के लिए वे नहीं जाने जाते। उनके संगठन में कोई भी बड़ा
कलाकार या बुद्धिजीवी नहीं है। वे शाखाओं में खेल कूद के बहाने अपरिपक्व बुद्धि के
बच्चों को एकत्रित करते हैं और बौद्धिक के नाम पर उनमें साम्प्रदायिकता का जहर
भरने के लिए जाने जाते हैं। उनके संविधान से लेकर उनकी ड्रैस और कार्यप्रणाली सभी
हिटलर की पुस्तक मीन कैम्फ और उसके संगठन से प्रभावित है। वे शाखाओं में लाठी और
दूसरे अस्त्र चलाना सिखाते हैं, तलवारें लेकर पथ संचालन करवाते हैं। परिणाम यह
निकलता है कि साम्प्रदायिक दंगों के दौरान इन्हीं शाखाओं से निकले लोगों को ही
हिंसा में लिप्त देखा जाता है। विहिप और बजरंग दल आदि इन्हीं के अनुषांगिक संगठन
हैं जिनके कारनामे आये दिन समाचार पत्रों में देखे जा सकते हैं। अगर वे किसी आपदा
में काम भी करते हैं तो उसमें भी उनकी साम्प्रदायिक दृष्टि ही काम करती है, और
अपने धार्मिक समुदाय के लोगों को प्राथमिकता के आधार पर सहयोग करना व दूसरों की
उपेक्षा करना भी देखने में आया है। ऐसी दशा में किसी बात का जबाब ‘अपने’ काम से देने के निर्देश का आशय स्वयं में ही स्पष्ट है।
पिछले
दिनों से संघ की सारी गतिविधियों का केन्द्र मध्यप्रदेश होता जा रहा है जहाँ न
केवल संघ से निकला व्यक्ति मुख्यमंत्री है अपितु वह संघ के आदेशों के प्रति इतना
समर्पित है कि अपने व अधिकारियों के विवेक से बाहर भी संघ के आदेशों और आशयों पर
अमल करता है। जहाँ गुजरात, उत्तराखण्ड, हिमाचल आदि भाजपा शासित क्षेत्रों में
मुख्यमंत्री संघ के आदेशों का पालन करते समय जन भावनाओं की उपेक्षा नहीं करते वहीं
मध्यप्रदेश में आँख मून्द कर संघ के आदेशों पर अमल किया जाता है। यही कारण है कि
संघ के पूर्व प्रमुख को कार्यमुक्ति के बाद पूरा हिन्दुस्तान छोड़ कर मध्यप्रदेश ही
पसन्द आया। ऐसे में अगर एक क्षेत्र विशेष में शिविर करते हुए संघ के प्रमुख अपने
स्वयं सेवकों को बातचीत की जगह ‘काम’ से जबाब देने की बात कहते हैं तो उसमें कहीं
न कहीं फासिस्ट ध्वनियां सुनायी देती हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
दिग्विजय जैसे नेताओं के बयानों से विचलित न हों और न उनके विरोध में भाषणबाजी करें। अपने काम कोआगे बढाएं। यह बयान फासिज्म का संकेत देता है। आप जरा बताईये कैसे कुछ ना कहना भी फ़ासीवाद लगता है अगर कुछ कहे तो भी आग लगती है फ़िर उन्हे क्या करना चाहिए?
जवाब देंहटाएं@प्रिय सन्दीप
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आप यह बताइए कि 'दिग्विजय सिंह जैसे नेता' कहने से उनका आशय क्या है, क्या दिग्विजय सिंह के सींग लगे हैं? क्या दिग्वुजय सिंह ने कोई हिंसक कार्यवाही की है? दिग्विजय सिंह के क्षेत्र में जाकर शिविर लगाना क्या एक सामान्य घटना है। अगर दिग्विजय सिंह के बयानों से असहमति है तो उसके प्रतिवाद पर रोक क्यों? क्या यह निरुत्तर होने के संकेत नहीं हैं? जब हिंसा के लिए कुख्यात कोई संगठन शांति ओढता है तो उसके अर्थ क्या आम शांति से भिन्न नहीं होंगे ? क्या दिग्विजय सिंह का कोई बयान गैर राजनीतिक है या भाषा में असंसदीय है? उन अन्ना हजारे के बारे में आप क्या सोचते हैं जिन्हें संघ से सहयोग लेने का आरोप गाली जैसा लगता है। अनुपम खेर ने तो इस आरोप पर हरिकिशन सिंह सुरजीत पर मानहानि का दावा ठोक दिया था। संघ के लोग क्या करें या न करें यह उनकी स्वतंत्रता है पर चुप रहने का निर्देश तो अभिव्यक्ति पर हमला है।
क्या दिग्विजय सिंह के सींग लगे है जैसा की वीरेंद्र जी ने पूछा
जवाब देंहटाएंजी हा अब आपको दिख नहीं रहे तो इसमें कसूर किसका है आपको अपना चेकअप करना चाहिए अन्यथा ओसामा जैसे दुर्दांत को जो व्यक्ति "जी" कहकर संबोधित करे उसके बौध्धिक स्तर का ज्ञान आप जैसे विचारको को पता होना चाहिए .
दरअसल दिग्विजय सिंह के मुह में बवासीर नाम की भयानक व्याधि है जिसकी वजह से वे सदैव स्वप्निल बयानबाजी करते रहते है जिसका जवाब देना किसी को जरूरी नहीं लगता क्योकि बीमार तो बीमार ही होता है .
आपको एक आदर्स पडोसी के नाते उन्हें बाबारामदेव के पास ले के जाना चाहिए जिन्होंने बवासीर का बेहतरीन सस्ता इलाज खोजा है.
विमलेश जी के कहने के बाद मुझे कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं रही।
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