आस्था के प्रतीकों
के रहस्यपूर्ण अपमान
वीरेन्द्र जैन
विविध
धर्मों और संस्कृतियों वाले हमारे विशाल देश में सद्भाव, सह-अस्तित्व और सहिष्णुता
का वातावरण सदियों से रहा है। राज्यों के लिए होने वाले युद्धों में भी प्रत्येक
सेना में हर जाति और सम्प्रदाय के सिपाही हुआ करते थे। साम्प्रदायिकता हमारे
देशवासियों के मूल चरित्र में नहीं है इसलिए निहित स्वार्थों को झूठ पर झूठ बोल कर
उसे पैदा करना पड़ता है। हर धर्म में सत्य बोलना प्रमुख सन्देश होता है फिर भी हर तरह
की साम्प्रदायिकता को अपने धर्म के अनुयायियों को गलत बयानी करके उकसाना पड़ता है
तब भोले-भाले सरल लोग उत्तेजित होकर भटकते हैं और हिंसा पर उतर आते हैं, जिसकी
प्रतिक्रिया होती है और इस क्रिया प्रतिक्रिया की एक श्रंखला शुरू हो जाती है। साम्प्रदायिकता
से लाभ उठाने वाले कुछ राजनीतिक दल ऎतिहासिक घटनाओं को बदलकर और तात्कालिक घटनाओं
के बारे में निरंतर झूठ बोल कर एक स्थायी तनाव बनाने की कोशिश करते रहते हैं
त्ताकि वे कभी भी चोरी छुपे कोई हरकत करके उस तनाव को साम्प्रदायिक दंगे में बदल
सकें। साम्प्रदायिक संगठन दुष्प्रचार की संस्थाएं चलाते हैं जिसमें विशेष रूप से कोमल
दिमाग बच्चों को घेरने की कोशिश की जाती
है, और उनके मन में दूसरे समुदायों से भय और उनके प्रति निरंतर नफरत बोते रहते
हैं।
देखा
गया है कि दंगे फैलाने वाले चोरी छुपे अपने समुदाय की आस्था के प्रतीकों को ही
अपमानित कर देते हैं और दूसरे समुदाय के लोगों पर आरोप लगा कर उत्तेजना फैलाते हैं
जिसे पूर्व से ही प्रदूषित किया हुआ दिमाग सहजता से ग्रहण कर लेता है, और दंगा हो
जाता है। सरकारी एजेंसियां भी आग लगने के बाद कुँआ खोदने वाले अन्दाज में कार्यवाही
करती हैं, पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। जबकि समाज को साम्प्रदायिकता से
राजनीतिक लाभ उठाने वाली शक्तियों की पहचान कराने का काम उसी तरह दैनिन्दिन आधार
पर किया जाना चाहिये जिस तरह से वह प्रति दिन फैलायी जा रही है। उनके मंसूबों को
ही नहीं अपितु उनकी कार्यप्रणाली को भी सार्वजनिक जानकारी का विषय बनाया जाना चाहिये।
किसी समय कुछ राज्यों में राष्ट्रीय एकता परिषदें बनायी गयी थीं किंतु
साम्प्रदायिक दलों के हाथों में सत्ता आने के बाद या तो उन्हें समाप्त कर दिया गया
या निष्क्रिय कर दिया गया।
आज
के समय में कोई भी धर्म या समाज चोरी छुपे किसी दूसरे धर्म के आस्था के प्रतीकों
को नुकसान पहुँचा कर अपने धर्म और समाज का भला नहीं कर सकता है और न ही उसका विस्तार
ही कर सकता है, इसलिए किसी धर्म का सच्चा प्रचारक भी किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल
या उस धर्म की पवित्र पुस्तक को चोरी छुपे नुकसान पहुँचाने की भूल नहीं करेगा। अगर वह ऐसा
करता है तो घटना से आहत समुदाय के लोग और अधिक संगठित होने लगेंगे जिससे खुद उस
प्रचारक का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकेगा और पहचान लिए जाने के बाद उसके समुदाय को
नुकसान ही पहुँचेगा। इतिहास में भी जिन पर अपना धर्म विस्तारित करने की कोशिश का
आरोप लगाया जाता है उन्होंने कभी भी चोरी से किसी दूसरे धर्म के प्रतीकों को
नुकसान पहुँचाने की कोशिश नहीं की। इसलिए आज अगर कोई चोरी से किसी धर्मस्थल, किसी
पवित्र पुस्तक, किसी मूर्ति, किसी पवित्र पशु, या अन्य प्रतीकों को नुकसान
पहुँचाता है तो वह निश्चित रूप से उसी समुदाय का व्यक्ति होता है जिस समुदाय के
प्रतीकों को अपमानित किया गया है। यह काम वह अपने समुदाय को भयजनित उत्तेजना पैदा
करके एकजुट करने और उस एकजुटता को राजनीतिक समर्थन में बदलने के लिए करता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपरिपक्वता और विचार की जगह हथकण्डों की राजनीति फैलने के
बाद इस तरह के काम अधिक होने लगे हैं। पाया गया है कि आम तौर पर इस तरह रात्रि में
तोड़फोड़ करने वाले ही दिन में उत्तेजित भीड़ का नेतृत्व करने लगते हैं।
साम्प्रदायिक
ध्रुवीकरण उस क्षेत्र विशेष के बहुसंख्यकों को लाभ पहुँचाता है इसलिए जिस चुनाव क्षेत्र
में जो बहुसंख्यक होता है, उस समुदाय के राजनेताओं द्वारा ऐसी घटनाएं उनके लिए
राजनीतिक लाभ का कारण बनती हैं। पिछले दिनों कर्नाटक में सरकारी कार्यालयों पर
चोरी से पाकिस्तानी झंडा फहराये जाने का जोर शोर से विरोध करने वाले ही उस कार्य
में लिप्त पाये गये थे। कई जगह अम्बेडकर की मूर्ति को चोरी से नुकसान पहुँचाने
वाले दलित समुदाय का नेतृत्व हथियाने वाले लोग ही पाये गये हैं। हिन्दुओं के मन्दिरों
को, या मुसलमानों की मस्जिदों को चोरी से नुकसान पहुँचाने वाले उसी समुदाय से जुड़े
लोग पकड़े जाने की अनेक घटनाओं के बाद लगभग यह तय हो गया है कि ऐसी घटनाओं का
लक्ष्य आस्था के प्रतीकों का अपमान करना नहीं अपितु लोगों को अपने स्वार्थ हल करने
के लिए भड़काना अधिक होता है। इसलिए जरूरी है कि इस सच को सीधे सरल आस्थावान लोगों
तक पहुँचाया जाये कि जब तक ऐसी किसी घटना के दोषियों की पहचान नहीं हो जाती तब तक
अफवाहों के आधार पर कोई निष्कर्ष न निकालें।
आजकल
जगह जगह विभिन्न धर्मों, जातियों के आस्था के प्रतीक बहुतायत में स्थापित किये
जाने लगे हैं जिनमें से ज्यादातर के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होती है और निहित
स्वार्थों द्वारा हजारों की संख्या में तो ऐसे धर्मस्थल स्थापित कर दिये गये हैं
जिनमें धार्मिक कर्मकांड करने वाला भी कोई नहीं जाता। ऐसे सारे स्थलों ने
संवेदनशीलता के बटनों की जगह ले ली है जिनका कभी भी दुरुपयोग सम्भव हो सकता है।
इनमें से बहुत सारे तो सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करके बनाये गये हैं और सड़कों के
चौड़ीकरण या मार्गों के विस्तार में वाधा बन रहे हैं। जब भी इस अतिक्रमण को हटाया
जाता है तब धर्मान्ध लोग इस कार्यवाही का विरोध करके कानून और व्यवस्था की समस्या
पैदा कर देते हैं। गत दिनों हर राज्य में यह समस्या सामने आयी है और कई मामलों में
सुरक्षा बलों के साथ टकराहट भी हुयी है। अपनी धार्मिक आस्था के कारण ही सरकारी
कर्मचारी/ अधिकारी इनके निर्माण के समय आँखें मूंदे रहते हैं। इसलिए जरूरी हो गया
है कि हम सारे अस्थावान लोगों को इस बात के लिए तैयार करें कि किसी आस्था के
प्रतीक को चोरी चुपके पहुँचायी गयी क्षति से उनके आदर्शों का कुछ नहीं बिगड़ता।
मूर्तियां और धर्मस्थल पुनः बनाये जा सकते हैं, तथा धर्मग्रंथों की लाखों प्रतियां
दुनिया में उपलब्ध हैं और वे कभी भी एक दिन के अन्दर पुनः प्रकाशित हो सकती हैं।
जो इनको तोड़ने जलाने का काम चुपके चुपके कर रहा है वह स्वयं ही डरपोक है तथा जरूरी
नहीं कि वह किसी दूसरे समुदाय का हो।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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