दिवंगत बाला साहब
ठाकरे -जिन्होंने हमेशा भाजपा पर अंकुश रखा
वीरेन्द्र जैन
बाला
साहब ठाकरे ने हिन्दुत्व और मराठी जातीयता की राजनीति को आधार बनाया था, व इस के
आधार पर उन्होंने जो संगठन खड़ा किया था उससे देश की आर्थिक राजधानी में व्यापार कर
रहे कुबेरों की नस दबाने में सफल रहे थे। जिस दौरान मुम्बई में जो बड़े स्मगलर और
माफिया गिरोह थे उनके सरगना कुछ मुस्लिम थे इसलिए उन्होंने अपना संगठन बनाने के
लिए हिन्दुत्व का सहारा लिया तथा कुछ साउथ इंडियन थे जिनसे टकराने के लिए उन्होंने
महाराष्ट्र में मराठी का नारा उछाला। उनके काम से सुरक्षा पाने वाले धनपतियों ने
उन्हें धन और साधन दोनों ही उपलब्ध कराये तथा इस तरह अर्जित धन को उन्होंने संगठन
के लिए खर्च किया और पूरी मुम्बई में जगह जगह शिवसेना के स्थानीय कार्यालय बनाये
जहाँ एक भयानक शेर के चित्र के नीचे कैरम व शतरंज खेलते हुए बाहुबली युवा देखे जा
सकते थे। ये उनकी सेना थे और इसीलिए उन्होंने अपने संगठन का नाम शिवसेना रखा जो
लगभग भारतीय पुलिस और न्याय व्यवस्था के समानांतर कार्यरत रही। प्रारम्भ में उन्होंने
युवाओं को खर्च दिया पर बाद में अपनी संगठन की दम पर ये स्थानीय कार्यालय आत्म
निर्भर होते गये थे। क्षेत्र में प्रत्येक अवैध काम करने वालों को इन संगठनों को वैसे
ही हफ्ता देना पड़ता था जैसे कि पूरे देश की पुलिस वसूल करती है। बड़े स्तर पर
व्यवसाय करने वालों को भी अपनी सुरक्षा के नाम पर मोटी रकम चुकानी पड़ती थी। क्रमशः
उनकी संगठन क्षमता बढती गयी और देश के सबसे महत्वपूर्ण नगर निगम पर अधिकार करने से
प्रारम्भ कर उन्होंने प्रदेश की राजनीति में अपने पैर फैला लिये, तथा भाजपा के साथ
मिलकर एक बार प्रदेश में सरकार भी बनायी। गठबन्धन की राजनीति में क्षेत्रीय दलों
की पूछ परख बढ जाने से राष्ट्रीय राजनीति में भी दखल देने लगे थे।
महाराष्ट्र
की राजनीति में अपना स्थान बना कर बाला साहब ठाकरे ने राष्ट्रीय दल भाजपा की
राजनीति को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया क्योंकि उन्होंने जो साम्प्रदायिक आधार लिया
था उसी पर भाजपा काम करती है और इस तरह वे महाराष्ट्र में भाजपा के प्रतियोगी रहे।
दूसरी ओर उन्होंने भाजपा के साथ जब भी गठबन्धन किया तब अपनी शर्तों पर किया, और
बड़ा हिस्सा अपने लिए सुरक्षित रखा। जल्दी से जल्दी सत्ता हथियाने के लालच में
भाजपा ने स्वाभिमान बेच कर देश भर में जो समझौते किये हैं उनमें बाला साहब के साथ
किये गये समझौतों में सबसे अधिक नीचा देखना पड़ा है। इसका कारण यह था कि शिवसेना की
कार्यनीति और दल का आधार उन्हें महाराष्ट्र से बाहर के सपने नहीं देखने देता था, और
महाराष्ट्र में उन्होंने इतना बड़ा संगठन खड़ा कर लिया था कि भाजपा को उनके साथ
समझौता करने को मजबूर होना पड़ता था। दूसरी ओर बाला साहब की कोई मजबूरी नहीं होती
थी कि वे झुक कर समझौता करें। उनका सिद्धांत था कि -
दोस्ती हो तो
मेरे तौर पै हो
बरना ये मेहरबानी किसी और पै हो
बरना ये मेहरबानी किसी और पै हो
उल्लेखनीय
है कि भाजपा ने अपनी सत्ता लोलुपता में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के साथ
गठबन्धन किया। यहाँ पर भी उनके गठबन्धन साथी को उस समय सत्ता में आने की बहुत
जल्दी नहीं थी तथा वे भी झुकना नहीं चाहते थे इसलिए बसपा से अधिक विधायक होने के
बाद भी भाजपा ने छह छह महीने मुख्यमंत्री बनने का बेहद हास्यास्पद समझौता किया।
भाजपा बड़ी और राष्ट्रीय पार्टी थी फिर भी पहला मुख्यमंत्री बनने की शर्त बहुजन
समाज पार्टी की मानने को मजबूर हुए। उस समय पहली बार मायावती उत्तर प्रदेश की
मुख्यमंत्री और धर्म बहिन बनीं थी तथा वह जातिवाद पर आधारित बहुजन समाज पार्टी की
नेतृत्व वाली पहली सरकार थी जो भाजपा की मदद से बनी थी। इस पर भाजपा का मजाक उड़ाते
हुए कार्टूनिस्ट रहे बाला साहब ठाकरे ने कहा था कि यह छह छह महीने की सरकार क्या
होती है? अगर कुछ पैदा ही करना था तो कम से कम नौ नौ महीने की सरकार तो
बनाते। उनके इस बयान के बाद से भाजपा की
बहुत ही छीछालेदर हुयी थी और बाद में तो मायावती ने छह महीने बाद भी स्तीफा देने
से इंकार कर दिया था। पाकिस्तान के प्रति अपनी नफरत का मुखर प्रदर्शन करने वाले
बाला साहब ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ की भारत यात्रा के दौरान
सुषमा स्वराज का उनको आदाब करते हुए चित्र के प्रकाशन पर कहा था कि यह मुद्रा तो
मुजरे की मुद्रा है तथा सुषमा जी को इसकी क्या जरूरत पड़ गयी थी। वे अपने मित्र शरद
पवार को भी आलू का बोरा कहा करते थे।
पिछले
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्होंने अपने बड़े गठबन्धन पार्टनर भाजपा के उम्मीदवार
के खिलाफ कांग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का खुला समर्थन किया था जिसे उनकी
मराठी राजनीति की मजबूरी बताया गया था किंतु इस चुनाव के दौरान भी उन्होंने
कांग्रेसी उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन करके यह बता दिया था कि वे भाजपा के
पिछ्लग्गू नहीं हैं। महाराष्ट्र में जहाँ संघ का मुख्यालय है, भाजपा की बड़त को रोक
कर उन्होंने देश को भाजपा की जकड़ में आने से बहुत हद तक रोके रखा है। उनकी
विचारधारा और कार्य प्रणाली से बहुत से लोगों को असहमतियां रही हैं पर कभी विषस्य
विष औषधिम की तरह उनके अंकुश के परिणाम सकारात्मक भी रहे हैं। अटल बिहारी की सरकार
को तो उन्होंने इतना मजबूर कर रखा था कि अपने पिता के नाम पर भी डाक टिकिट जारी
करवा लिया था। आज जहाँ जहाँ भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली राज्य सरकारें हैं वहाँ की
मानव अधिकारों के दमन की खबरें रोंगटे खड़े कर देती हैं, तब ऐसा लगता है कि अगर कोई
सार्थक विरोध पैदा नहीं हो पा रहा हो तो कम से कम कोई प्रतियोगी ही पैदा हो जाये जो
इन निरंकुश सरकारों पर लगाम लगा सके। बाला साहब के सारे दबावों के बाद भी भाजपा
कभी उनके खिलाफ मुँह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा सकी, उनके निधन से भाजपा पर लगाम
लगाये रखने वाला एक महत्वपूर्ण सवार नहीं रहा है। दुखद यह है कि उनकी विरासत जिन
लोगों के हाथों में जाने वाली है उनकी रीड़ मजबूत नजर नहीं आती।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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मोबाइल 9425674629
जानकारी से परिपूर्ण आपके लेख काफी सारगर्भित होते हैं। मैं आपके विश्लेषण से सहमत हूँ और मानता हूँ क़ि भाजपा के महाराष्ट्र में पैर नहीं जमा पाने का एक महत्वपूर्ण कारण शिवसेना ही रहा है। हाँ ये देखकर दुःख होता है की इस देश में ऐसे लोगों को इतना सम्मान और यश मिलता है। आपका आपका फिर से धन्यवाद - प्रभात , नॉएडा
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