भाजपा का अपमान बोध
से दूर तक सम्बन्ध नहीं
वीरेन्द्र जैन
पिछले
दिनों भाजपा कार्यालय में एक और चेहरा बचाने की ओट तैयार की गयी।
जेडी[यू]
ने अपने सम्मेलन में यह जोर शोर से यह स्पष्ट कर दिया है कि वे ऐसी भाजपा के साथ
गठबन्धन में सम्मलित नहीं होंगे जिन्हें नरेन्द्र मोदी जैसे बदनाम [राजनाथ सिंह के
शब्दों में मशहूर] नेता को प्रधानमन्त्री पद प्रत्याशी के रूप में चुनने की मजबूरी
हो। उन्होंने साफ साफ शब्दों में कहा कि वे अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उदारवादी
चेहरे [गोबिन्दाचार्य के शब्दों में मुखौटे] के कारण भाजपा जैसे [राजनीतिक अछूत]
दल के नेतृत्व में एनडीए में सम्मलित हुए थे और वैसी ही दशा में बने रह सकते हैं।
स्मरणीय है कि इस एनडीए गठबन्धन को बनाये रखने के लिए ही भाजपा ने अपनी उन तीन
प्रमुख माँगों को स्थगित कर दिया था जिनके कारण उसकी एक अलग पहचान थी और वे माँगें
थीं, अयोध्या में रामजन्म भूमि स्थल पर ठीक उसी स्थान पर एक भव्य मन्दिर का
निर्माण जहाँ बाबरी मस्जिद स्थित थी, दूसरी समान नागरिक संहिता और तीसरी थी कश्मीर
के लिए बनी धारा 370 की समाप्ति। इनको स्थगित रखने के बाद भी तेलगु देशम ने उनके
गठबन्धन में सम्मलित होना स्वीकार नहीं किया था तथा सरकार से बाहर रह कर कांग्रेस
को सत्ता से दूर रखने के उद्देश्य से समर्थन दिया था। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में भी
उन्होंने पहले अध्यक्ष के आकस्मिक निधन के बाद दूसरे किसी सांसद को अध्यक्ष पद के
लिए नामित करने से इंकार कर दिया था। 2002 में गुजरात में सरकारी सहयोग से किये
गये मुसलमानों के नरसंहार के बाद ही ममता बनर्जी, राम विलास पासवान, जयललिता आदि
के नेतृत्व वाले दलों ने अपना समर्थन वापिस ले लिया था व अन्य दलों ने राजनीतिक
मजबूरियों के कारण समर्थन बनाये रखते हुए भी इस कृत्य की निन्दा की थी। स्वय़ं अटल
बिहारी वाजपेयी ने अपनी गोलमोल शब्दावली में दोनों पक्षों को साधते हुए राजधर्म
निभाने की बात कही थी व अत्याचार की घटनाओं को सुनने के बाद आँखों के आगे रूमाल रख
कर फोटो खिंचवाया था। जब देश के अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग, मानव अधिकार संगठन
से लेकर देश भर के राजनीतिक दलों, मीडिया हाउसों, के साथ उनके अपने नेताओं ने भी एक
स्वर में मोदी सरकार की निन्दा की थी तब यह जरूरी था कि गुजरात के मुखिया को बदल
दिया जाता। यदि गुजरात की जनता भाजपा के कार्यकाल से खुश थी तो विभिन्न जाँचों के
पूरा होने तक नेतृत्व बदलने से क्या नुकसान था जबकि ये इसी आधार पर केशुभाई पटेल,
आदि को पहले भी बदल चुके थे। सच तो यह है कि यह वही समय था जब नरेन्द्र मोदी नामक
व्यक्ति ने भाजपा नामक संगठन की जगह ले ली थी और गुजरात भाजपा को जयललिता की
एआईडीएमके, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, करुणानिधि की डीएमके, लालू प्रसाद की
राजद आदि में बदल दिया था। गुजरात भाजपा एक लोकतांत्रिक सैद्धांतिक संगठन की जगह
एक फासिस्ट गिरोह में बदल गयी थी जिसके दुष्परिणाम स्वयं भाजपा ने भुगते। मोदी
सरकार पर केवल मुसलमानों के नरसंहार के ही आरोप नहीं लगे अपितु उनके मंत्रिमण्डल
के महत्वपूर्ण मंत्री व भाजपा के समर्पित नेता हरेन पण्ड्या के परिवार वालों ने भी
सार्वजनिक रूप से भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं के सामने नरेन्द्र मोदी को जिम्मेवार
ठहराया। उल्लेखनीय है कि जब पिछले दिनों भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता
विलियम भारत आयी तो वह हरेन पण्ड्या की विधवा जाग्रति पण्ड्या के साथ तो रहीं पर
गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय के निरंतर प्रयास के बाद भी उन्होंने नरेन्द्र
मोदी से मिलना पसन्द नहीं किया। अमेरिका और ब्रिट्रैन आदि देशों द्वारा वीजा देने
से इंकार कर देने की तो काफी चर्चा हो ही चुकी है।
जब
यह साफ हो गया कि जेडी[यू] नरेन्द्र मोदी को नेता घोषित किये जाने की सम्भावनाओं
पर भी एनडीए गठबन्धन से बाहर होने पर कृतसंकल्प है और वह अपनी बात बिना किसी लाग
लपेट के कह रही है तो यह भी तय हो गया कि या तो भाजपा को साफ साफ यह कहना होगा कि
वह किसी भी हालत में नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति को अपनी ओर से प्रधानमंत्री पद
प्रत्याशी नहीं बनायेगी या उसे उस एनडीए गठबन्धन से बाहर जाना होगा जिसके अध्यक्ष
श्री शरद यादव हैं। इसका परिणाम यह भी होगा कि उसे बिहार में सत्ता सुख की
हिस्सेदारी छोड़ना होगी, जिसका नेतृत्व जेडी[यू] के नितीश कुमार कर रहे हैं। जब
नितीश कुमार भाजपा को सरकार से बाहर करेंगे तो सत्तासुख भोगने वाले विधायक विद्रोह
भी कर सकते हैं इसलिए भाजपा नेतृत्व ने बिहार के कुछ नेताओं को यह बयान देने के
लिए दिल्ली बुलाया कि वे निकले जाने से पहले स्वयं ही बिहार सरकार से बाहर हो लें
और रोज रोज हो रहे अपमान से बच सकें। असल में निर्लज्ज भाजपा ने सत्ता के लिए कभी
भी किसी भे तरह के अपमान की परवाह नहीं की है और वे अंत अंत तक सत्ता से चिपके
रहने की कोशिश करते रहे हैं। जिस साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे उनकी राजनीति
चलती है उसकी बेल सत्ता के सहारे ही ऊपर चढती है। स्मरणीय है कि वे अकेले ऐसे दल
हैं जो हर तरह की संविद सरकार में सम्मलित होने में सबसे आगे खड़े रहते रहे हैं।
जनता पार्टी के गठन के समय तो उन्होंने अपने जनसंघ को जनता पार्टी में विलीन करने का
ड्रामा करना भी मंजूर कर लिया था जबकि सीपीएम जैसे दलों ने ने ऐसा करने से साफ
इंकार कर दिया था और अपना अस्तित्व बनाये रखते हुए केवल सीटों का समझौता ही किया
था। सत्ता के लिए इन्होंने उत्तर प्रदेश में बसपा के साथ छह छह महीने तक सत्ता
चलाने का हास्यास्पद समझौता किया और अधिक विधायक होने के बाद भी मायावती को पहले
सरकार बनाने की शर्त पर भी झुक गयी थी। बाद में मायावती ने तो समझौता तोड़ दिया था
पर इन्होंने दल बदल कर सरकार बना ली थी। उल्लेखनीय है कि सरकार बनाने के लिए
सर्वाधिक दल बदलवाने की बीमारी इसी पार्टी ने फैलायी है। सत्ता के लिए सामाजिक और
आर्थिक अपराधियों को टिकिट देने में यह किसी भी ऐसे दल से पीछे नहीं रही। मुलायम
सिंह के खिलाफ मोहर सिंह को खड़ा करने की शुरुआत इसी पार्टी ने शुरू की थी। बाद में
तो उत्तर प्रदेश में राजा भैया, कुंवर अखिलेश सिंह, सुशील सिंह, और जेल में बन्द बृजेश सिंह तक को टिकिट देकर
जीतने की बाजी बिछाते रहे हैं। मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी भ्रष्टाचार से घिरे
विधायकों को महत्वपूर्ण मंत्री पद लगातार दिये जाने में भी पार्टी ने कभी अपमानित
महसूस नहीं किया। येदुरप्पा को तब तक पद पर बनाये रखा जब तक कि पानी सिर से ऊपर
नहीं गुजर गया और खनन माफिया रेड्डी बन्धुओं के सिर पर तो सुषमा स्वराज का हाथ
हमेशा रहा। बंगारुओं और ग़डकरियों से भरी इस पार्टी में अब सारे ही लोग सत्ता लोभ
में ही पार्टी में हैं इसके लिए वे किसी बदनामी से नहीं डरते। इनके लोग सवाल पूछने
के लिए पैसे मांगते पकड़े जाते हैं, सांसद निधि बांटने में पकड़े जाते हैं, कबूतर
बाजी में पकड़े जाते हैं, अविश्वास प्रस्ताव पर पाला बदलने के लिए धन लेने में पकड़े
जाते हैं और कोई शर्म महसूस नहीं करते व दुबारा टिकिट पा जाते हैं तो गठबन्धन से
निकाले जाने में काहे की शर्म? जब अमित शाह और माया कोडनानी को मंत्रिमण्डल में
रखने वाले को वे सबसे मशहूर मुख्यमंत्री बताते हुए राजनाथ सिंह गर्व कर सकते हैं
तो वे बिहार में जेडी[यू] द्वारा किये जा रहे अपमान की चिंता क्यों करेंगे। बिहार
के नेताओं से इसलिए बयान दिलवा दिया गया है ताकि हटाये जाने के संकेत मिलते ही खुद
ही छोड़ देने का पाखण्ड दिखा सकें।
भाजपा
स्वाभमानियों की पार्टी नहीं है, यदा कदा कभी गोबिन्दाचार्य जैसे स्वाभिमानी आ
जाते हैं तो अब उनके भाजपा के बारे में जो विचार हैं वे भाजपा के चरित्र की असलियत
बताते हैं।
खग जाने खग ही की
भाषा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
achchha lekh hai. bidamna hai ki desh ki adhisankhy janta muddon se anjan rahte hai.
जवाब देंहटाएंachchha lekh hai. bidamna hai ki desh ki adhisankhy janta muddon se anjan rahte hai.
जवाब देंहटाएंbhot achcha likha hai
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