सोमवार, दिसंबर 09, 2013

मताभिव्यक्ति और मतदान, सन्दर्भ म.प्र. विधानसभा चुनाव

मताभिव्यक्ति और मतदान, सन्दर्भ म.प्र. विधानसभा चुनाव  
वीरेन्द्र जैन

      लोकतंत्र नागरिक को मत व्यक्त करने की आजादी देता है। यही आज़ादी सरकार चुनने के लिए प्रत्येक नागरिक को आम चुनाव में मत देने का अधिकार देती है। किंतु देखा गया है कि सरकार बना कर सत्ता पर अधिकार करने की वासना पालने वाले तत्व चुनावों को ऎन केन प्रकारेण प्रभावित करने के लिए नागरिकों के स्वतंत्र विचारों को दुष्प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग मतदाता की वैचारिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर उसे एक सौदागर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं और इसी प्रभाव में सरल मतदाता त्वरित ठोस लाभ के लिए अपने मत चन्द रुपयों, कम्बलों, या शराब की बोतलों के बदले बेच कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पथभ्रष्ट कर देते हैं।

      गत दिनों हुये विधानसभा चुनावों में दिल्ली विधानसभा चुनाव के अंतिम दिन भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने अपनी प्रैस कांफ्रेंस में कहा कि उन्हें विश्वास है कि दिल्ली के मतदाता आम आदमी पार्टी को वोट देकर अपना वोट व्यर्थ नहीं करेगा। उनका यह कथन अलोकतांत्रिक है क्योंकि मतदान का अर्थ अपने विचार को आकार देने वाले उम्मीदवार को समर्थन देकर अपने मत की अभिव्यक्ति करना होता है। उम्मीदवार का प्रतिनिधि के रूप में चयन तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार अधिक मत मिलने का सहज परिणाम होता है। यदि कोई किसी खास उम्मीदवार को जीतने वाला बता कर सरल मतदाता को भ्रमित करने की कोशिश करता है तो वह लोकतांत्रिक भावना को भ्रष्ट करता है। ओपीनियन पोल या प्रीपोल सर्वेक्षण, जो कभी कभी ही संयोग से ठीक निकल आते हैं, भी इसी तरह का भ्रम पैदा कर मतदाता को भटकाने का काम करते हैं।

      उपरोक्त विधानसभा चुनावों में यदि हम नमूने के तौर पर मध्य प्रदेश का उदाहरण लें तो हम देखते हैं कि इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने गत विधानसभा चुनावों में जीती 143 सीटों की तुलना में 22 सीटें अधिक जीतकर यह संख्या 165 तक पहुँचा ली है। दूसरी ओर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सीटें पिछले चुनाव में जीती 71 सीटों से घट कर 58 तक पहुँच गयी हैं। इन चुनावों का विश्लेषण करते हुए हमारे विद्वान समीक्षक भी चुनावी जीत को ही आधार बना कर ही कांग्रेस की नीतियों की समीक्षा कर रहे हैं जबकि चुनावों में जहाँ कोई उम्मीदवार तीस हजार वोट पाकर ही चुनाव जीत जाता है जैसे मेहगाँव से भाजपा प्रत्याशी मुकेश सिंह चौधरी तो कोई अस्सी हजार वोट पाकर भी चुनाव हार जाता है, जैसे मल्हारगढ विधानसभा क्षेत्र से काँग्रेस के श्यामलाल जोकचन्द। ये आँकड़े बताते हैं कि बहुदलीय चुनावों में जीत हार से केवल सरकार बनाने का अधिकार मिलता है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के इन विधानसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को पिछले आम चुनाव से पचास लाख वोट अधिक मिले हैं जो कुल मतदान का 39.3% हैं और 7% अधिक हैं फिर भी उसकी सीटें कम हुयी हैं क्योंकि अधिक मतदान और गैर भाजपा गैर कांग्रेस दलों के मतों में आयी जबरदस्त गिरावट के कारण भाजपा को 48.7% वोट मिले हैं जो पिछले आम चुनावों में मिले मतों से 69 लाख अधिक हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि छह लाख उन्नीस हजार वोट नोटा अर्थात उपरोक्त में से किसी को नहीं को दिये गये हैं जो कुल मतों के लगभग दो प्रतिशत हैं। यह संख्या कम से कम दस विधायकों को औसत विजयी बनाने के बराबर है। चौबीस विधान सभा क्षेत्रों में तो जीत हार का अंतर उन चुनाव क्षेत्रों में नोटा को गये वोटों से भी कम है।

      उल्लेखनीय है कि 2012 में हुये उत्तरप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ बहुजन समाज पार्टी को गत चुनावों की तुलना में चौंतीस लाख वोट अधिक मिले थे फिर भी वे कम सीटें पाकर सत्ताच्युत हो गये थे। इसी तरह पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों में बाम मोर्चा भी नौ लाख वोट अधिक पाकर भी सत्ता से दूर हो गया था।  

      अधिक सीटों की जीत के धूम धड़ाके में यह बात भुला दी जा रही है कि मध्य प्रदेश के दस मंत्री चुनाव में हार गये है ये मंत्री शिवराज मंत्रिमण्डल द्वारा बहु प्रचारित विकास के आंकड़ों के प्रमुख सूत्रधार रहे हैं। इन मंत्रियों में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास, संस्कृति, जनसम्पर्क, धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा, राजस्व व पुनर्वास मंत्री करण सिंह वर्मा, किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री राम कृष्ण कुसमारिया, और इसी विभाग के राज्यमंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, आदिमजातिऔर अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री हरि शंकर खटीक, पशु पालन, मछुआ कल्याण एवं मत्सय विभाग, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री अजय विश्नोई, सामान्य प्रशासन, नर्मदा घाटी विकास, और विमानन के राज्यमंत्री के.एल अग्रवाल, श्रम मंत्री जगन्नाथ सिंह, और दशरथ सिंह लोधी चुनाव हार गये हैं। लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह ने चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया था, और वित्त, योजना, आर्थिक विकास, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री राघव जी की कथा तो सब को पता ही है। जीत की संख्याओं के आगे ये मंत्रिपरिषद के सदस्यों की यह पराजय शासन के बारे में कुछ संकेत देती लगती है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
वीरेन्द्र जैन                                                         
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629

             

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें