रविवार, जनवरी 05, 2014

मोदी के गुब्बारे में झाड़ू की सींक

मोदी के गुब्बारे में झाड़ू की सींक
वीरेन्द्र जैन

       पाँच राज्यों में हो चुके विधानसभा चुनावों के बाद देश लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो रहा है और दिल्ली विधानसभा के परिणामों में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता ने बहुत सारे समीकरण उलट दिये हैं।
       2004 के आम चुनावों में भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की पराजय के बाद सत्ता से दूर हुयी भाजपा लगातार विक्षिप्तों जैसी हरकतें करती रही है और ऎन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिए अलोकतांत्रिक ढंग से हाथ पैर मारती रही है। जब 2009 के आम चुनाव में भी सत्ता उनके हाथ नहीं आयी तो उनकी बौखलाहट अपनी सारी हदें पार कर गयी। उल्लेखनीय है कि 2004 में यूपीए की पहली सरकार बनी तो उसे बाम मोर्चे का समर्थन प्राप्त करना पड़ा था। बाम मोर्चा की यह नीति रही है कि उसने जब भी किसी गठबन्धन को समर्थन दिया है तो वह सरकार में शामिल हुए बिना बाहर रह कर ही दिया है। वे ऐसी किसी सरकार में सम्मलित नहीं होते हैं जो पूरी तरह से उनके कार्यक्रम पर कार्य नहीं करती। बाममोर्चा अपने समर्थन से पहले न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय कर लेता है जिसके आधार पर ही अपना समर्थन जारी रखता है। यही कारण था कि भाजपा को यह भरोसा नहीं था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यह सरकार साझा कार्यक्रम पर अमल कर सकेगी और पाँच साल चल पायेगी इसलिए वे इस दौरान लगातार अपने कार्यकर्ताओं को मध्यावधि चुनावों हेतु तैयार रहने के लिए कहते रहे। दूसरी ओर वे हर असहमति पर बामपंथियों को समर्थन वापिस लेने की चुनौती देते रहे। उनके दुर्भाग्यवश बामपंथियों ने गैरज़िम्मेवाराना व्यवहार नहीं किया और सरकार लगातार चार साल तक न केवल चली अपितु उसने सूचना के अधिकार को कानूनी रूप देने से लेकर मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी देने वाली परिवर्तनकारी योजनाएं भी प्रारम्भ कीं। पाँचवें साल में न्यूनतम साझा कार्यक्रम के विपरीत अमरीका के साथ परमाणु समझौते के सवाल पर बाम मोर्चा ने समर्थन वापिस लिया तो समाजवादी पार्टी ने समर्थन देकर सरकार को अपनी अवधि तक चलने दिया और भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सरकार चलते रहने की खीझ में उसने भाजपा ने संख्या बल के आधार पर संसद को न चलने देने की नीति अपनायी व दोनों कार्यकाल में उसकी कार्यवाही को निरंतर स्थगित कराते रहे। इस दौरान औसत बैठकों की संख्या 127 से घटकर 73 दिन रह गयी। जो सदन कभी 118 तक विधेयक पास करने का रिकार्ड बना चुके थे वे अब 18 विधेयकों तक सीमित हो गये। सदन में शोर गुल करके गर्भगृह तक आकर नारे लगाने का दृश्य आम हो गया।     
       दूसरे कार्यकाल में बामपंथियों के सहयोग की जरूरत नहीं पड़ी किंतु उनके जिम्मेवारीपूर्ण नियंत्रण के हटने से सरकार में शामिल गठबन्धन के सहयोगी दलों ने न केवल अपनी पसन्द के मंत्रालय ही चुने अपितु उन मंत्रालयों में मनमानी भी की जिसका रोग गठबन्धन के प्रमुख दल कांग्रेस के कतिपय मंत्रियों तक भी पहुँचा। भ्रष्टाचार के आरोपों का इतना असर हुआ कि सीएजी के बताये सम्भावित लाभ में कमी को भी भ्रष्टाचार मान लिया गया। भ्रष्टाचार के ये रोगाणु भाजपा शासित कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी प्रकट हुये जिसके परिणाम स्वरूप पहले तीन राज्यों में भाजपा पराजित हो गयी, और कांग्रेस पुनः सत्तारूढ हुयी। इन चुनाव परिणामों ने भाजपा की बौखलाहट को और बढा दिया और उसने चुनाव जीतने के लिए वापिस जनसंघ वाले युग में लौटने का खतरनाक फैसला किया। आगामी आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के रूप में वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी की जगह कट्टरता के लिए बदनाम गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव कर लिया जिन्होंने तीसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा में रिकार्ड बना लिया था। इसके बाद वे देश भर में आम सभाएं करते हुए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के बीज बोने लगे। मोदी के सहारे अपनी नैया पार लगाने की सोच रखने वाली पार्टी ने मोदी को लोकप्रिय करने के लिए न केवल विदेशी प्रचार एजेंसी का ही सहारा लिया अपितु सोशल मीडिया में हजारों नकली एकाउंट बना कर मोदी को लोकप्रिय करने व कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ कुत्सित प्रचार करने लगे। अयोध्या के रामजन्मभूमि मन्दिर आन्दोलन की तर्ज़ पर गुजरात में स्टेच्यू आफ यूनिटी की योजना बनायी गयी जिसका आकार अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध स्टेच्यू आफ लिबर्टी से बड़ा रखने की घोषणा हुयी। इस स्टेच्यू के लिए प्रत्येक घर से लोहा एकत्रित करने की योजना उसी तरह बनायी गयी जैसी की प्रत्येक घर से ईँटें एकत्रित करने के बहाने देश भर में प्रचार और सर्वेक्षण का काम किया गया था। इसके विपरीत अपनी गुरुता, वरिष्ठता, गम्भीरता और सत्ता जनित आलस्य के वशीभूत कांग्रेस ने उनके किसी अभियान का उत्तर नहीं दिया, और न ही प्रतियोगिता में उतरे। इतना ही नहीं उसने अपना प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी तक घोषित नहीं किया जिससे भ्रम की स्थिति बनी रही। इसी बीच पाँच विधानसभाओं के चुनाव हुये जिनमें से एक राज्य उन्होंने कांग्रेस से छीन लिया व दो में सत्ता बनाये रखी।
       इन विधानसभा चुनावों में मिजोरम में कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाये रखी तो मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ में उसने मतों के प्रतिशत में वृद्धि की। राजस्थान और दिल्ली में उसका मत प्रतिशत घटा। पाँच में से तीन राज्यों में सरकार बनने का श्रेय भी मोदी के सिर बाँधने की कोशिश की कोशिश हुयी ताकि उसका लाभ चुनावों में मिले। पश्चिमी चुनाव प्रचार की तर्ज पर मोदी के मुखौटे, आम सभाओं में मोदी के नाम की तख्तियां उठाने वाले व नारे लगाने वाले दो हजार लोगों की टीम प्रत्येक सभा में भिजवायी जाने लगी। प्रैस के कुछ हिस्से को पेड न्यूज द्वारा भीड़ की अतिरंजित संख्या बताने व ऐसे फोटो प्रसारित करने के लिए तैयार किया गया जिससे भीड़ बड़ी दिखे। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए मोदी की आम सभा में उस विधायक का सम्मान भी किया गया जिसने नकली वीडियो बनाकर मुज़फ्फरनगर में दंगा भड़काने में मुख्य भूमिका अदा की थी और जिसे उसके लिए गिरफ्तार किया गया था। मोदी की आम सभाओं की कुर्सियां तक नीलाम होना प्रायोजित किया गया जिससे लोगों में उनके प्रति दीवानगी का भ्रम बने। ऐसा भ्रम बना भी और नई सूचना तकनीक व प्रबन्धन को कैरियर बनाने वाली युवा पीढी प्रभावित भी हुयी थी पर केजरीवाल के उदय ने मोदी के सारे उफान पर पानी डाल दिया।
       पुराने औद्योगिक राज्य गुजरात में औद्योगिक विकास की निरंतरता से चमत्कृत जो युवा पीढी कांग्रेस को पुराने जमाने की पार्टी मानने लगी थी और मोदी के नकली प्रचार से प्रभावित होने लगी थी उसे आयकर विभाग के कमिश्नर पद से त्यागपत्र देकर आये आईआईटी डिग्री वाले अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम की सादगी और लगन ने प्रभावित किया है। दिल्ली में कांग्रेस की एंटी इनकम्बेंसी और बढती मँहगाई के आधार पर जो भाजपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी उसके ढाई प्रतिशत मत घट गये हैं। यह तब हुआ है जब भाजपा के पक्षधर सर्वेक्षण कर्ता केजरीवाल की आप पार्टी की  उपेक्षा कर रहे थे व उसकी वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने प्रचार के अंतिम दिन लोगों से आम आदमी पार्टी को वोट देकर अपना वोट बेकार न करने की सलाह दी थी।
       चलती ट्रेन में एक व्यक्ति खिड़की पर पैर टिकाये अधलेटा गुनगुना रहा था कि अचानक उसके पाँव की चप्पल नीचे गिर जाती है तो वह बिना देर किये हुये दूसरी चप्पल भी नीचे फेंक देता है, ताकि जिसको भी मिले तो उसके काम तो आये। कांग्रेस ने आप पार्टी को समर्थन देकर ऐसी ही समझदारी दिखायी है। नितिन गडकरी और प्रभात झा के आरोप तथा भाजपा पक्ष के प्रचारकों की प्रतिक्रियाएं साफ संकेत दे रही हैं कि इस समझदारी ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी नाम के फुलाये गये गुब्बारे में झाड़ू की सींक चुभो कर फोड़ दिया है।           
वीरेन्द्र जैन
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