जहर की खेती और उत्तर
प्रदेश का खेत
वीरेन्द्र जैन
यदि उन्हें जहर की खेती नहीं करनी होती तो
वे गुजरात के अनुभवी कृषक अमित शाह को गुजरात क्यों भेजते? क्या यहाँ कई योगी और
1992 के अनुभवी पहले से ही मौजूद नहीं थे। पर जिस तरह गाँजे अफीम की अवैध खेती से
हमारे अन्नदाता कहलाने वाले कुछ किसान जल्दी रहीस हो जाना चाहते हैं उसी तरह कुछ
रजनीतिक दल जहर की खेती करके जल्दी सत्ता हथिया लेना चाहते हैं। वाचाल, अशिष्ट और
मुँहफट लोग ज्यादा जोर से बोल कर अर्थ का अनर्थ कर देने की भी पात्रता रखते हैं।
जब राहुल गान्धी ने अपनी भावुक अभिव्यक्ति में अपनी माँ के ममत्व भरे उस वाक्य को सार्वजनिक
किया था जिसमें उन्होंने सत्ता को शिव के गरल पान के अर्थ में लिया था जिसे सबजन
हिताय पान करने से पहले उसकी गुणधर्मिता का ज्ञान जरूरी होता है। पर दूसरी बार जब
उन्होंने जहर की खेती की बात की तब उसका अर्थ उन स्वार्थी लोगों के कामों से था जो
अपने लाभ के लिए दूसरों की जान लेने के लिए उसे फैलाते हैं।
साम्प्रदायिक
घटनाएं कभी कभी अनायास भी घट जाती हैं किंतु उनका त्वरित प्रसार और देर तक जारी
रहना यह साबित करता है कि वे निहित स्वार्थों द्वारा योजना बना कर तैयार किये गये
अपराधों की भूमिका हैं। साम्प्रदायिक घटनाओं में एक पक्ष ही ज़िम्मेवार नहीं होता
किंतु जब कोई घटना योजना के साथ घटित होती है तो उसमें दूसरे पक्ष की तात्कालिक
प्रतिक्रिया अपराध नहीं अपितु रक्षात्मक प्रयास होता है। हमारे देश में घटित
प्रमुख साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं में संघ परिवार पर इसीलिए आरोप अधिक लगते हैं
क्योंकि वे ऐसी योजनाओं पर लगातार काम करते रहते हैं और उसकी ज़िम्मेवारी से बचने
के लिए गलत इतिहास और कल्पित कथाएं फैलाते रहते हैं।
घटनाएं
संकेत करती हैं कि अगस्त 2013 के मुज़फ्फरनगर के साम्प्रदायिक दंगे की भूमिका मोदी
को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनाये जाने के विचार के समानांतर ही बनी होगी और उस
पर काम हुआ होगा। यदि ऐसा है तो आगामी लोकसभा चुनाव से पहले समय रहते दूसरी
योजनाओं का पता भी चलाना होगा। संघ परिवार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से संचालित
अयोध्या अभियान और फिर बाबरी मस्ज़िद ध्वंस के घटनाक्रम इस बात के प्रमाण हैं कि
राजनीतिक लाभ के इस खेल में वे किस कुटिलिता से षड़यंत्र बुनते, हुए जिम्मेवारी
दूसरे पर थोपते हैं। दूसरे समुदाय की बस्तियों और इबादत स्थलों के सामने से प्रमुख
समय पर उत्तेजित करने वाले अपमानजनक नारे लगाते हुए सशस्त्र जलूस निकालते हैं और
सोचे समझे ढंग से माहौल तैयार कर देते हैं। 27 अगस्त 2013 को कवाल गाँव में छेड़छाड़
की जिस घटना में तीन युवक मारे गये थे और जिसके बाद वहाँ दंगा फैला था, उनमें दो
एक ही समुदाय के थे तथा एक दूसरे समुदाय का था। उल्लेखनीय है कि शाब्दिक
साम्प्रदायिकता में सिद्धहस्त यह संगठन ‘लव-ज़ेहाद’ जैसा शब्द गढ कर अंतर्जातीय
प्रेम को साम्प्रदायिक रूप दे माहौल पहले से ही तैयार करता रहा है।
27
अगस्त की उपरोक्त घटना से पूर्व 23 अगस्त 2013 के समाचार पत्रों में मुज़फ्फरनगर का
समाचार प्रकाशित हुआ था कि जिले के सौरभ गांव में भाजपा के उमेश मलिक और छह अन्य
को शाहपुर क्षेत्र में साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के जुर्म में हिरासत में लिया
गया। इस मामले में पुलिस ने 150 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज़ किया जिसमें से 14 लोग
गिरफ्तार किये जा चुके हैं [सन्दर्भ पत्रिका भोपाल]। यह वही समय था जब विश्व
हिन्दू परिषद ने असमय चौरासी कोसी परिक्रमा करने की घोषणा की थी और यह चाहती थी कि
उत्तर प्रदेश की सरकार उस पर रोक लगाये और इस रोक के बहाने वह हिन्दुओं के कथित
धार्मिक कार्यों पर प्रतिबन्ध का राग अलाप कर सीधे सरल लोगों को उत्तेजित करे। इस
यात्रा के बहाने उत्तेजना फैलाने का काम उक्त संगठनों ने तब भी किया था जब
परिक्रमा के संयोजक महंत गयादास ने गत 19 जुलाई को आयोजित बैठक में विश्व हिन्दू
परिषद के लोगों को बता दी थी कि चातुर्मास में यह आयोजन धर्म के विपरीत है।
इससे
पहले 14 जुलाई 2013 को प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ में आयोजित एक
प्रैस कांफ्रेंस में भाजपा पर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने का
आरोप लगाया था जिसके उत्तर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने मायावती को हिन्दूवादी
संगठनों पर केन्द्र सरकार से रोक लगवाने हेतु पत्र लिखने की चुनौती भरी सलाह दी
थी। यह अनायास नहीं था कि दंगे भड़कने के तुरंत बाद भाजपा विधायक संगीत सोम ने
इंटरनेट पर एक फर्ज़ी वीडियो अपलोड करके हिन्दुओं को उत्तेजित कर दंगों में झौंकने
का षड़यंत्र रचा जिसके लिए बाद में उन्हें
गिरफ्तार किया गया था। ऐसी घटनाएं संकेत देती हैं कि साम्प्रदायिक लोग
दूसरे समुदाय के लोगों से ज्यादा अपने समुदाय के लिए खतरनाक होते हैं क्योंकि वे
उन्हें उस घटना के लिए ईंधन बना कर झौंकने के लिए तैयार करते हैं जिसका कोई
अस्तित्व ही नहीं होता। जाँच का विषय यह है कि ऐसे वीडियो उनके पास कहाँ से आये!
जब उत्तर प्रदेश में इतने सारे वरिष्ठ नेताओं के होते हुए भी गुजरात के दागी
मंत्री अमित शाह को प्रदेश प्रभारी बनाया जाता है तो बाबरी मस्ज़िद ध्वंस की
अभियुक्त रही मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को मुख्यमंत्री पद
प्रत्याशी घोषित कर एक विधायक के रूप में चुनवाना भी सन्देह पैदा करता है।
उल्लेखनीय है कि गत 19 जनवरी 2013 को हिन्दू साध्वी भेषधारी उमा भारती ने मुज़फ्फर
नगर जिले के खतौली कस्बे में जैन समाज के एक सम्मेलन में भाग लेते हुए उनके सबसे
सम्मानित संत विद्या सागर में अपनी गहरी आस्था व्यक्त की थी। साथ ही उनकी भावनाओं
को बल देने के बाद बहुत ही आक्रामक भाषण दिया था जो रामजन्म भूमि अभियान वाले
दिनों की याद दिला गया था। जैन समाज के शाकाहार सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए
उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को हवा देते हुए कहा था
कि इस दोआब क्षेत्र में खेतीबाड़ी की जगह पशुओं के नित नये खुल रहे कत्लखाने चिंता
का विषय हैं। दिल्ली में भाजपा की सत्ता आयी तो जीवित गाय तो दूर कागज़ पर भी बनी
गाय की तस्वीर काटने पर भी पाबन्दी लगाई जायेगी। यह खबर देते हुए जनसत्ता ने अपने
21 जनवरी 2013 के अंक में टिप्पणी की थी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत
की सम्भावनाएं हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण से ही मजबूत होती हैं।
मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद जब उन्हें भड़काने
के आरोप में विधायक हुकुम सिंह [विधायक दल के नेता], संगीत सोम, और सुरेश राणा को
लखनऊ में विधानसभा के बाहर गिरफ्तार करने की तैयारी पुलिस ने की थी तो शपथ लेने के
बाद कभी उत्तर प्रदेश विधानसभा नहीं पहुँची उमाभारती ने वहाँ पहुँच कर योजना बनायी
कि सभी विधायक साथ में बाहर निकलेंगे ताकि गिरफ्तारी पर हंगामा हो सके और
विशेषाधिकार का मामला बने, जिससे हिन्दू जनता उत्तेजित हो। उन्होंने बाहर पार्टी
कार्यकर्ताओं को भी बुला लिया था। स्थिति देख कर पुलिस को आरोपियों को गिरफ्तार
करने की योजना को टालना पड़ा था। गत साल भर से वे प्रदेश में साम्प्रदायिक आधार पर
उत्तेजित करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। मुज़फ्फरनगर अंतर्जातीय
विवाहों और सगोत्र विवाहों के प्रति सामाजिक असहिष्णुता के रूप में लगातार खबरों
में बना रहता है पर अगर ये अंतर्जातीय विवाह हिन्दू मुसलमानों के बीच हों तो
परम्परावादी समाज को सरलता से उत्तेजित किया जा सकता है। भाजपा इसी उत्तेजना को
साम्प्रदायिक दंगों में बदलकर अपनी गुजरात 2002 की योजना को दुहराना चाहती है। एक
कमजोर मुख्यमंत्री के राज्य में उसे प्रारम्भिक सफलता मिल चुकी है, इसलिए अगर
मुज़फ्फरनगर से सबक लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार समय से न चेती तो वे और प्रयोग कर
सकते हैं। इन प्रयोगों की सफलता देश के भविष्य के लिए खतरनाक होगी।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
एक पत्रकार को निष्पक्ष और समझदारी से लिखना चाहिए, आप के आलेख तथ्यों से परे होते हैं. आपकी लेखनी पक्षपातपूर्ण और गैर ज़िम्मेदार और लोगों को गुमराह करने वाली है.
जवाब देंहटाएंफिलहाल आप अगर इस लेख पर विचार व्यक्त करते तो अच्छा होता, अभी तो आपकी टिप्पणी अस्पष्ट होने के कारण फिजूल महसूस हो रही है
जवाब देंहटाएं