बुधवार, अप्रैल 09, 2014

फिल्म समीक्षा क्वीन- नारी चेतना की अंगड़ाई

फिल्म समीक्षा
क्वीन- नारी चेतना की अंगड़ाई
वीरेंद्र जैन
                                                                                
       अंगड़ाई, वह देह मुद्रा होती है जो कोई मनुष्य या प्राणी देर तक सोने या विश्राम के बाद शरीर को फिर से काम करने के लिए सक्रिय करने हेतु फैलाता और मरोड़ता है। दासों को यह अनुमति नहीं होती थी कि वे अपने स्वामियों के सोने के बाद जागें इसलिए उनके सामने उनके अंगड़ाई लेने को भी अनुशासनहीनता माना जाता था। यही हाल पत्नियों का भी था जो अपने थोपे गये अनुशासन में स्वयं को पति के चरणों की दासी मानने लगती थीं। किसी महिला का किसी पुरुष के सामने अंगड़ाई लेने को अश्लीलता या कामुक आचरण माना जाता था। हिन्दी की एक अश्लील कथा पत्रिका का नाम ही ‘अंगड़ाई’ था।
       पिछली सदी के पूर्वार्ध में रूस में हुयी समाजवादी क्रांति के बाद से नारियों को समान अधिकार मिलने शुरू हो गये थे। इंगलेंड जैसे देश ने हमें तो दो सौ साल गुलाम रखा ही पर अभी तक सर्वोच्च पद पर वंश परम्परा से मुक्त न हो सकने वाले इस देश ने अपने यहाँ की नारियों को भी वोटिंग का अधिकार 1925 में दिया, और फ्रांस में यह अधिकार 1944 में दिया गया। हमारे यहाँ आज़ादी के बाद संविधान के लागू होते ही महिलाओं को समान अधिकार मिल गया था पर स्विट्जरलेंड जैसे देश में यह अधिकार 1971 में मिला।
       परतंत्रता की कई ग्रंथियां होती हैं और स्वतंत्रता के लिए उन सब को खोलना होता है। कहाँ कौनसी ग्रंथि पहले खुलती है यह परिवेश पर निर्भर करता है। पिछले दिनों आयी फिल्म ‘क्वीन’ नारी वर्ग की ऐसी ही चेतना की पकती हांड़ी के एक दाने की कथा है।  1947 में देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये शरणार्थियों द्वारा अपने व्यापारिक कौशल से सम्पन्न हुये पंजाबी परिवार की एक लड़की के बदलाव की कथा है। इस परिवार की एक लड़की रानी [कंग़ना रनौत]  की सगाई के बाद शादी से दो दिन पहले ही लड़का विजय [राज कुमार राव] शादी से इंकार कर देता है। शादी दोनों परिवारों की सहमति से हुयी थी और लड़की शादी से पहले लड़के से डेटिंग करती रही थी, और अपने हनीमून को पेरिस और एम्स्टर्डम में मनाने के ख्वाब सजा लिये थे। शादी की पूरी तैयारियों के बाद जब यह घटना घटती है तो नवधनाड्य परिवार के सम्मान को लगी ठेस के साथ मासूम लड़की को अपने हनीमून का ख्वाब टूटने का दुख ज्यादा रहता है। नई आर्थिक नीतियों के वैश्वीकरण ने हमारी संस्कृति का पश्चिमीकरण कर दिया है और हमारी युवा पीढी की भावनाओं में गहराई कम व सतहीकरण अधिक आ गया है। आहत लड़की अपने को कमरे में बन्द कर लेती है और आशंकाओं में डूबा परिवार अपना आहत आत्मसम्मान भूल कर उसे मनाने में जुट जाता है। बाहर परिवार को भले ही उसके चौबीस घंटे से भूखे रहने की चिंता है पर वह भूख लगने पर अन्दर रखे मिठाई के डिब्बों में से लड्डू खाती रहती है। पुरानी पीढी उसे मनाने के लिए उसकी हर माँग मानने को तैयार हो जाती है जिसमें उसके पूर्व से रिजर्व टिकिट और होटल में अकेले ही हनीमून पर जाने का प्रस्ताव है। कथा यहाँ से ही प्रारम्भ होती है जहाँ उस बेहद मासूम कबूतर सी लड़की जो सड़क पार करने में भी डरती रही थी व जिसे बाहर छोटे भाई के सात्ह ही भेजा जाता था. को एक नई दुनिया देखने को मिलती है।
       परम्परागत व्यापारी परिवार में पली लड़की को होटल में काम करने वाली एक लड़की विजयलक्ष्मी मिलती है जिसके माँ और बाप दोनों ही मिश्रित राष्ट्रीयता के थे और एक मिश्रण भारतीयता का भी था इसलिए वह टूटी फूटी हिन्दी भी जानती है। वह बिना ब्याही माँ है जो एक ओर तो बिना किसी हीन भावना के होटल में सफाई का काम करती है बच्चे की परवरिश करती है, और दूसरी ओर अपनी स्वतंत्रता को पूरी तरह जीते हुए शराब, डांस और फ्री सेक्स में डुबाये है। नायिका प्रधान इस फिल्म की कथा नायिका इस नई दुनिया को शुरू में भीगी बिल्ली की तरह असमंजस से देखती है और जब एक हादसे के बाद उसे इस अनजान देश में विजयलक्ष्मी [लिसा हिडेन] से सहारा मिलता है तो दुनिया को उसी की तरह साहस पूर्वक जीने की कोशिश करती है।  इस कोशिश में उसमें कई बदलाव आते हैं। उसे अपने अगले पड़ाव में एम्स्टर्डम जाना है जहाँ उसके पास होटल का कोई आरक्षण नहीं है। वह विजयलक्ष्मी से जिस हास्टल का पता लायी थी उसमें चार बेड वाले रूम में एक बेड ही उपलब्ध है और शेष तीन बेड पर लड़के हैं। वह उस हास्टल में न रुकने की सोचती है पर दूसरी जगह पाने में सफल नहीं होती और मजबूरी में लौट आती है। तीन लड़कों के साथ वाले कमरे में रहने से आतंकित वह सोने के लिए कमरे से बाहर बेंच पर सोने चली जाती है तो तीनों खुद बाहर सोकर उसे अन्दर सोने के लिए दे देते हैं। उनके इस मानवीय व्यवहार से वह अभिभूत हो जाती है और उनकी मित्र बन जाती है। उसके इन नये मित्रों में से एक फ्रेंच है तो दूसरा जापानी व तीसरा रशियन। सबकी अपनी अलग अलग भाषाएं और काम हैं सबके अपने अपने दुख भी हैं। फ्रेंच लड़का चौराहे पर गिटार बजाता है जिससे सुनने वाले उसे पैसे देते हैं, रशियन पैंटिंग करता है और पूरी दुनिया को पेंट कर देने के सपने देखता है ताकि दुनिया शांति से भर सके। अपने माँ बाप को खो चुके जापानी लड़के का पूरी दुनिया में कोई नहीं है और वह कोई भी सहयोगी काम कर लेता है। चे ग्वारा का पोर्ट्रेट कमरे में लगाये ये लड़के राक संगीत पसन्द करते हैं और बिन्दास जीवन जीते हैं। लड़की इन तीनों के साथ को जीने लगती है। विजयलक्ष्मी द्वारा दी गयी एक सामग्री को देने जब वह उसकी भारतीय मित्र की तलाश में जाती है जो जहाँ रहती है वह वहाँ का प्रसिद्ध रेडलाइट एरिया है, और परिस्तिथियोंवश अपनी छह बहनों व माँ को हिन्दुस्तान में पालने के लिए विदेश में काम करने आयी थी पर मन्दी के दुष्परिणामों वश उन्हें बिना बताये वहाँ सेक्सवर्कर बनना पड़ा था। खाने की तलाश करते हुए वह एक रेस्त्राँ चलाने वाले के सम्पर्क में आती है और उसके आग्रह पर भारतीय व्यंजन बना कर बेचने का प्रयोग करती है और रूम मेट्स के सहयोग से प्रयोग में सफल भी होती है। इसी बीच उसका पुराना मँगेतर अपनी गलती मनाते हुए उसे मनाने के लिए तलाशता हुआ आ जाता है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वह भारत लौट कर बात करने का कह कर उसे लौटा देती है जिससे वह उम्मीद पाल लेता है, पर लौट कर वह पहला काम यही करती है कि साहस के साथ उसकी सगाई की अँगूठी लौटा देती है।
       नायिका के रूप में कँगना रानौत विजयलक्ष्मी के रूप में लिसा हिडेन और नायक के रूप में राजकुमार राव समेत सभी का अभिनय बेहतरीन है, न कहानी में कहीं झोल है और न ही विकास बहल के निर्देशन में। अच्छी फोटोग्राफी दर्शक को सीट पर बैठे बैठे ही पेरिस और एम्स्टर्डम घुमा देती है  लगातार लीक से हट कर बनती इन फिल्मों से बालीवुड के प्रति उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा सकता है और उसके उज्जवल भविष्य की कामना की जा सकती है।   
वीरेन्द्र जैन
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मोबाइल 9425674629
                

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