सम्भावित सरकार को
कौन चलायेगा?
वीरेन्द्र जैन
गोएबल्स
ने गलत नहीं कहा था कि किसी झूठ को बार बार दुहराने पर लोग उसका भरोसा करने लगते
हैं। चैनलों पर एक ही वस्तु के लगातार प्रसारित होते विज्ञापनों का सच भी यही होता
है कि वे दिमाग में खुब जाते हैं और दुकान पर सम्बन्धित वस्तु लेने जाने पर वही
ब्रांड नेम याद आ जाता है। किसी समय विज्ञापनों की अति के कारण ही वनस्पति घी का
नाम डालडा हो गया था और डिटर्जेंट पाउडरों का नाम सर्फ हो गया था। इस आम चुनाव में
मोदी के प्रचार के लिए अनुबन्धित अमेरिकी कम्पनी भी इसी तरकीब को अपना रही है और
मोदी मोदी के नाम की इस तरह से चोट दी जा रही है कि किसी साधारण जन के ध्यान में अपने
क्षेत्र के उम्मीदवारों से ज्यादा मोदी का ही नाम याद रहता है। उल्लेखनीय है कि जो
कम्पनी प्रतिनिधि मोदी की छवि बनाने में लगा है वही हंसा कम्पनी से भी जुड़ा है
जिसने तथाकथित सर्वेक्षण के द्वारा मोदी द्वारा पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लेने की
भविष्यवाणी की गयी है।
इस
बीच विभिन्न सूचना माध्यमों द्वारा अपने सन्देशों में कुछ ऐसा प्रचारित या विचारित
किया जा रहा है जैसे कि मोदी प्रधानमंत्री बन ही गये हों और उनको केवल शपथ लेना ही
शेष रह गया हो। कुछ अस्थिर चित्त मतदाताओं को प्रभावित करने, शासकीय मशीनरी को
अपने पक्ष में करने और उद्योग जगत व अवैध कमाई करने वालों से चुनावी चन्दा वसूलने
में ऐसा प्रचार काम आता है। कहा जाता है कि ऐसी अवधारणाएं बन जाने पर चुनावी
हेराफेरी पर ध्यान कम जाता है क्योंकि मतदाता पहले ही सम्बन्धित की जीत को सहन कर
चुका होता है। मोदी पर प्रैस का सामना न करने का आरोप भी लगता रहा है इसलिए पिछले
दिनों उन्होंने कुछ साक्षात्कार भी दिये हैं जिनमें पूछे गये सवालों के बारे में
एक धारणा यह भी बनी कि ये साक्षात्कार फिक्स थे और तीखे से लगने वाले सवाल,
विवादित विषयों पर उनके स्पष्टीकरण को सामने लाने के लिए ही पूछे गये लगते थे। इन
साक्षात्कारों में उनके अपर्याप्त उत्तरों पर कोई प्रतिप्रश्न नहीं किये गये। ऐसे ही फिक्स सवाल जबाब के
लिए एक लतीफा बहुत प्रसिद्ध है. “एक
बार जब चर्चिल अपना चुनावी भाषण देकर बैठने ही वाले थे कि भीड़ में से किसी व्यक्ति
ने उनसे बहुत चुटीला सवाल किया। सवाल सुन कर भी चर्चिल की मुस्कान में कोई फर्क
नही आया और उन्होंने वैसा ही सटीक और चुटीला उत्तर दिया। सभा में पहले तो सन्नाटा
खिंच गया और फिर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसी बीच सभा के दूसरे
कोने से वैसा ही चुनौतीपूर्ण कठिन सवाल उठा जिसका उत्तर देने में भी चर्चिल ने
पूरी सावधानी अपनायी और फिर से पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट और उनके समर्थन के
नारों से गूंज उठा। इसके बाद सभा के बीच से एक तीसरा आदमी उठा उसने पहले तो सवाल
पूछने की अनुमति चाही पर फिर असमंजस में सिर खुजाते हुए चर्चिल को सम्बोधित करते
हुए बोला कि सर आपने मुझे जो सवाल पूछने के लिए कहा था उसे मैं भूल गया हूं।
आमतौर
पर संघ परिवार और उनकी विचारधारा से प्रेरणा प्राप्त लोग देश में विश्वसनीय नहीं
माने जाते क्योंकि उनके मन और वचन में भेद रहता है। गोडसे ने महात्मा गाँधी को
मारने के विचार की प्रेरणा संघ के नेतृत्व के गाँधी और काँग्रेस विरोधी विचारों से
ही ली थी किंतु वह गाँधी को मारने के लिए उनके प्रशंसक की तरह हाथ जोड़ता हुआ ही
प्रकट हुआ था और उन हाथों में पिस्तौल छुपायी हुयी थी। बाबरी मस्ज़िद को तोड़ने से
पहले भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और दूसरे नेताओं ने संविधान का पालन करने
का वादा किया था पर उसके विपरीत बाबरी मस्ज़िद तोड़ने वालों की मदद की थी, और बाद
में उस पर खुशी मनायी थी तथा तब से लगातार उस घटना पर गर्व करते हुए शौर्य दिवस
मनाते आ रहे हैं। संघ के निर्देश उनके लिए संविधान से भी ऊपर होते हैं और इन्हीं
निर्देशों पर वे न केवल दूसरे धर्मों के लोगों से शत्रुवत व्यवहार करते हैं, अपितु
अपने दल के अडवाणी जैसे वरिष्ठतम नेताओं को भी अलोकतांत्रिक ढंग से पहले दल की
अध्यक्षता से, फिर विपक्षी दल के नेता होने से, और फिर प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी
होने से भी हटा देते हैं। पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी ने एक चैनल को दिये गये
साक्षात्कारनुमा भाषण में कहा था कि वे संविधान को देश की गीता मानते हैं और उसी
के अनुसार शासन करेंगे, पर इन्हीं मोदी को इन्हीं के दल के सबसे प्रमुख नेता और
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधर्म अर्थात संविधान का पालन न
करने का दोषी पाया था।
उपरोक्त
साक्षात्कार ऐसा लगा था कि जैसे पहले उन्होंने अपना भाषण लिख कर दे दिया हो और उसी
भाषण को साक्षात्कार के रूप में प्रकट किये जाने हेतु सवाल बना लिये गये हों। अगर
देश का कालाधन विदेशों में जमा है तो वह देश के बड़े उद्योगपतियों, व्यापारियों,
नौकरशाहों, और राजनेताओं का ही होगा। यह देखना कौतुकपूर्ण है कि सबसे अधिक
उद्योगपति, नौकरशाह, और दोषी राजनेताओं का प्रवेश भाजपा में हो रहा है जहाँ उनका न
केवल खुले दिल से स्वागत हो रहा है अपितु उनमें से अनेकों को प्रत्याशी बना दिया
गया है और अनेकों को राज्यसभा की सदस्यता का भरोसा दिया गया है। शायद ऐसे ही लोगों
को आश्वस्त करने के लिए ही मोदी ने विदेश से कालाधन लाने के बारे में कहा कि ऐसे
धन की सही मात्रा का पता उन्हें नहीं है अतः सत्ता का अवसर मिलने पर वे सही मात्रा
पता करने का प्रयास करेंगे, उसे जानने के लिए विभिन्न देशों से सन्धियां करेंगे और
तब उचित कार्यवाही करेंगे जिसकी समय सीमा दूसरे देशों से मिलने वाले सहयोग पर
निर्भर करेगी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान सरकार द्वारा अनुभव की जा रही ऐसी ही
मजबूरियों को ये अभी तक भुलाते आ रहे थे और उन्हें कटघरे में खड़ा कर रहे थे। समय
सीमा के एक सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि कोई भी घोषणा पत्र सरकार के
कार्यकाल तक की सीमा के लिए ही होता है अर्थात पाँच साल। इस उत्तर का दूसरा पहलू
यह भी है कि जब पिछले वर्षों में छह साल तक अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में
भाजपा की जो सरकार रही तब या तो विदेशों में जमा काला धन शून्यवत था या उस सरकार
में मोदी जितनी समझदारी या ईमानदारी नहीं थी। सवाल उठता है कि उन दिनों क्यों वह
सब कुछ नहीं हो सका जिस वादे पर अब वोटों को लुभाया जा रहा है। इसी साक्षात्कार
में पूछे गये इस सवाल के उत्तर में कि गुजरात में किसी उद्योगपति विशेष को किस दर
पर ज़मीनें दी गयीं जिन्हें कांग्रेस के नेता टाफी के रेट में ज़मीनें देना कह रहे
हैं, मोदी ने कहा कि उन्हें इस समय याद नहीं है कि उनके शासन काल में किस रेट पर
ज़मीनें दी गयीं पर उसी समय उन्हें यह जरूर याद आ गया कि कांग्रेस के शासनकाल में
किस रेट पर ज़मीनें दी गयी थीं।
साक्षात्कार
में यह बतानेवाले मोदी कि चुनावी भाषण में तेजतर्रारी होना अलग बात है किंतु शासन
तेजतर्रारी से नहीं चलता, की बात इसलिए अविश्वसनीय लगी क्योंकि गुजरात में 2002 से
लेकर हरेन पंड्या की हत्या, इशरतजहाँ की मुठभेड़ के नाम पर की गयी हत्या और
सहाबुद्दीन हत्याकांड समेत राजनीति से जुड़े अनेक हत्यारों को उनकी सरकार के दौरान
न केवल संरक्षण ही दिया गया अपितु महत्वपूर्ण पद देकर कानून के हाथों से बचाने की
कोशिशें भी हुयीं।
आज
देश के बड़े बड़े साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलाकार, और सच्चे धार्मिक
ईमानदार लोग चुनावों में दुष्प्रचार के प्रभाव की आशंका से व्यथित हैं। जिन आधारों
पर वर्तमान सरकार की लोकप्रियता कम हुयी है उनको दूर करने की कोई ठोस योजना और
समयसीमा भी सामने नहीं रखी जा रही है। लोग इसलिए भी आशंकित हैं कि जो सरकार
लोकतंत्र में पूर्ण आस्था नहीं रखती वह अपने अस्तित्व की रक्षा में हिंसा का सहारा
लेती है और उसे हटाने में वैसी ही प्रतिहिंसा पैदा होती है, जिससे लोकतंत्र खतरे
में आता है। जब संघ के नेतृत्व में भाजपा की नहीं अपितु मोदी की सरकार बनवाने के
प्रयास हो रहे हों और भाजपा के उदारवादी चेहरों तक को हाशिए पर धकेला जा रहा हो तो
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि भाजपा का चुनाव चिन्ह जीतता है तो देश पर शासन
कौन करेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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मोबाइल 9425674629
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