राजनीतिक जगत में
छवियों का खेल
वीरेन्द्र जैन
मुख्तार
अब्बास नक़वी ने साबिर अली की भाजपा में भर्ती से असंतुष्ट दिख कर सार्वजनिक रूप से
कहा था कि अली आतंकी भटकल के दोस्त हैं और अब तो दाउद भी भाजपा में आ जायेंगे। वे
इस पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। इससे घबरा कर भाजपा ने बिना किसी तर्क वितर्क
जाँच के साबिर अली को चौबीस घंटे के अन्दर बाहर का रास्ता दिखा दिया। दूसरी ओर जब
अली ने माफी न माँगने की दशा में पत्नी के मुख से इस निष्कासन का विरोध करवाया और
मानहानि के दावे समेत मुख्तार के घर के बाहर अनशन की धमकी दिलवायी तो उनका कहना था
कि मेरी साबिर अली से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है पर उनकी छवि अच्छी नहीं है।
उनके इस दूसरे बयान ने देश की सत्ता पाने का सपना देखने वाली भाजपा के अन्दर की कार्यप्रणाली
पर ढेरों सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। जो पार्टी चेहरा चाल चरित्र का नारा देती
थी वह केवल चुनावों की चिंता करते हुए चेहरे के आधार पर चालें चल रही है और चरित्र
से उसे कोई मतलब नहीं रह गया है। राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता उसके लिए केवल मोहरे
हैं, जिन्हें कभी भी इधर से उधर किया जा सकता है।
उल्लेखनीय
है कि इन दिनों भाजपा ने जिस व्यक्ति को चुनाव से पहले ही चुने जाने वाले सांसदों
का अधिकार छीन कर प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी वाले राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्णय
को थोप दिया है उन नरेन्द्र मोदी की छवि देश और दुनिया में कैसी है उस पर ढेरों
सामग्री उपलब्ध है। यदि छवि का ही सवाल था तो भाजपा में मोदी से वरिष्ठ दर्ज़नों
दूसरे अपेक्षाकृत बेहतर छवि वाले लोग मौजूद थे जिनमें लालकृष्ण अडवाणी से लेकर
सुषमा स्वराज, अरुण जैटली, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, शिवराज सिंह चौहान, आदि लोग मौजूद
थे जिन्हें प्रशासनिक और संसदीय कार्य का अनुभव है। किंतु जिस व्यक्ति को
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है उसकी छवि सबसे अधिक खराब थी,
जिसके कर्मों से दुखी होकर भाजपा के सबसे लोकप्रिय वरिष्ठ नेता तत्कालीन प्रधान
मंत्री को कहना पड़ा था कि अब मैं कौन सा मुँह लेकर विदेश जाऊंगा। दूसरी ओर किसी
व्यक्ति को पार्टी में प्रवेश देने के पूर्व उसकी छवि के बारे में जानकारी करने का
काम पार्लियामेंटरी बोर्ड के अंतर्गत प्रवेश देने वाली समिति का होता है और प्रवेश
देने के बाद किसी सदस्य विशेष द्वारा अपनी आपत्ति को सार्वजनिक करना और उस पर आनन
फानन में फैसला ले लेना पार्टी के लोकतंत्र का मजाक है जिस की बार बार दुहाई दी
जाती है। जब एक बार प्रवेश दे दिया जाता है तो किसी भी निष्कासन के लिए उचित
प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए था।
सच
तो यह है कि भाजपा सत्ता के लिए जिस अन्धी हवस में है उसमें उसने अपने विवेक और
बची खुची नैतिकिता को भी तिलांजलि दे दी है। इससे पूर्व इस पार्टी ने पिछले दिनों
में जैसे लोगों को पार्टी में भर्ती किया है उससे तुलना करने पर एक चुटकला याद आ
रहा है – एक व्यक्ति किसी मनोचिकित्सक के पास पहुँचा और कहा कि डाक्टर साहब मुझे
बार बार एक सपना आता है कि मैं भरे बाज़ार के चौराहे पर नितांत नगा घूम रहा हूं,
सिर्फ जूते पहिने हुये। डाक्टर ने उसकी ओर सहानिभूति से देखते हुए कहा कि तब तो
आपको बहुत शर्म आती होगी। हाँ डाक्टर साहब शर्म की बात ही होती है क्योंकि उन
जूतों पर पालिश जो नहीं की हुयी होती है। शर्म किस बात पर आना चाहिए थी और किस बात
पर आ रही है।
कुछ
उदाहरण देखिये-
·
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री
गीगांग अपांग को पार्टी में सम्मलित कर लेने पर श्री नक़वी को छवि का ध्यान नहीं
आया जो एक हजार करोड़ के पीडीएस घोटाले में जेल जा चुके हैं
·
बेल्लारी से श्रीरामलु को पार्टी में
सम्मलित किये जाने पर लोकसभा में भाजपा की नेता सुषमा स्वराज को शर्म के मारे
निर्णय से स्वयं के असहमत होने के बारे में सार्वजनिक बयान देना पड़ता है।
·
रामविलास पासवान से गठबन्धन करने के बाद
उनके लिए बिहार में जो सात सीटें छोड़ी गयी हैं उनमें से एक सीट हत्या के मामले में
उम्रकैद की सजा पाये कुख्यात बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीना सिंह की है
·
इसी गठबन्धन में एक सीट अनेक संगीन
अपराधों के मामले दर्ज़ रमा सिंह की भी है
·
नरेन्द्र मोदी को कातिल से लेकर विभिन्न
विशेषणों से सुशोभित करने वाले कल तक यूपीए सरकार में मंत्री रहे जगदम्बिका पाल को
गले चिपका कर फोटो खिचवाने से कोई छवि खराब नहीं हुयी।
·
जब तक समाजवादी पार्टी का कानपुर से टिकिट
घोषित रहा तब तक छप्पन इंच की छाती राक्षस की बतलाने वाले मसखरे राजू श्रीवास्तव
को छवि की चिंता किये बिना सम्मलित कर लिया गया।
·
उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और
एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त बाबूलाल कुशवाहा को बेशर्मी के साथ सम्मलित कर देने
के बाद चुनावी नुकसान का अनुमान कर बड़े सम्मान के साथ किनारे किया गया था
आधा दर्जन फिल्म स्टार, एक दर्जन साधु साध्वी
वेषधारी पाखण्डी नेता, पूर्व राजा रानियां, आदि को समेट कर चुनाव के लिए जो
भानुमती का कुनबा जोड़ा जा रहा है उसे पेड मीडिया लहर बता रहा है। रोचक यह है कि इस
ड्रामे का नायक इतना भी आश्वस्त नहीं कि विधानसभा और मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र
दे देता और लोकसभा के लिए किसी एक ही स्थान से चुनाव लड़ता। यदि श्री नक़वी को सचमुच
ही साबिर अली के भटकल से सम्बन्धों के बारे में पता था तो देश हित में सुरक्षा से
जुड़े लोगों को बता कर सावधान करना चाहिए। पर मोदी देश की सुरक्षा के मामले में देश
के रक्षा मंत्री और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री पर सार्वजनिक मंच से गद्दारी का
आरोप लगाते हैं और कोई सुरक्षा एजेंसी उनसे सच्चाई भी जानने की कोशिश नहीं करती।
भाजपा को अगर देश की सचमुच कुछ फिकर हो तो
देश की सुरक्षा के मामले टुच्चे राजानीतिक लाभों से ऊपर उठ कर गम्भीर मदद करना
चाहिये और चाय की दुकानों जैसे हल्के फुल्के मनमाने आरोप लगाने से बचना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
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