आत्महंता काँग्रेस
के आत्ममुग्ध शिकारी
वीरेन्द्र जैन
एक
रोचक कथा के अनुसार, एक युवा सैनिक युद्ध के बाद घर लौटा और शेखी बघारते हुए अपने
दादाजी से बोला कि अपने कुल की परम्परा निभाते हुये युद्ध में मैंने बहादुरी दिखाई
है और प्रमाण के लिए दुश्मन के सिपाही की बाँह काट कर लाया हूं। अनुभवी दादाजी ने
पारखी नज़रों से देखते हुए पूछा कि तुम दुश्मन के सिपाही का सिर काट कर क्यों नहीं
लाये?
“ वो भी ले आता पर उसका सिर तो पहले से ही
कोई काट कर ले गया था।“ बयान
बहादुर पोते ने जबाब दिया।
जो लोग भी
काँग्रेस को हराने के नाम पर अपनी पीठ थपथपाते हुए नहीं थक रहे हैं उन्हें याद
रखना चाहिए कि उन्होंने उस लाश की बाँह काटी है जिसका सिर पहले ही कट चुका था। इस देश
की राजनीतिक- वर्णव्यवस्था में खुद को सवर्ण मानने वाले काँग्रेसी तो बचे थे, पर
काँग्रेस बची ही नहीं थी। अपने अपने अलग अलग कारणों से चुनावों में क्षेत्र के
सबसे ज्यादा वोट लेकर जीतने का प्रमाणपत्र पाने वाले वाले लोग सत्ता पाने के लिए
जिस मंच पर एकत्रित हो जाते थे उसे ही काँग्रेस कहते चले आ रहे थे। सरलता से वोट
हस्तगत करने के लिए यह काँग्रेस स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए बने संगठन के नाम पर
चली आ रही थी पर उसके वारिसों के आचरण वैसे नहीं रह गये थे। यदाकदा कुछ बचे हुए
लोग जब काँग्रेस के पुराने मूल्यों की बात करते थे तो सारे चुने हुए काँग्रेसी उस
पर टूट पड़ते थे और नक्कारखाने में इतना शोर करते थे कि उसकी आवाज तूती की आवाज बन
कर रह जाती थी। चुनावों तक में ऐसे काँग्रेसी ऐसे ही दूसरे काँग्रेसियों को हरा
रहे थे।
गैरकाँग्रेसी
दलों द्वारा अपने राजनीतिक हित के लिए बार बार यह बात उठायी जाती है कि आज़ादी मिल
जाने के बाद महात्मा गाँधी ने काँग्रेस को समाप्त करने का सही सुझाव रखा था जिसे
उस काल के काँग्रेसियों ने स्वीकार नहीं किया था। बाद में श्रीमती इन्दिरा गाँधी
ने तो पुरानी काँग्रेस को लगभग समाप्त ही नहीं किया था अपितु अपने नेतृत्व वाली
पार्टी की पहचान भी कुछ नये नारों के साथ नई काँग्रेस के नाम से की थी। पर सत्ता
के बिना जब पुराने लोग बिल्कुल ही समाप्त हो गये और बचे खुचे लोग क्षमा भाव से इन्दिरा
गाँधी के आगे शरणागत हो गये तब उन्होंने पुरानी फर्म के लोकप्रिय ब्रांड नेम को
छोड़ने का लोभ संवरण नहीं किया जिससे पुरानी काँग्रेस की हवेली में ही नई काँग्रेस
रहने लगी, और उसका खानदानी नाम बचा रहा। इस दौर के बाद काँग्रेस सिद्धांतों की जगह
अपने समकालीन अध्यक्ष के अनुसार काम करने वाली पार्टी बन गयी। श्रीमती गाँधी की
दुखद हत्या के साथ लगभग मृत हो गयी काँग्रेस लगातार अन्दर से खोखली होती गयी, भले
ही उसे संसद में बहुत अधिक सीटें और देश की सत्ता मिल गयी थी। सत्ता के रंग रोगन
ने उसके ढाँचे को बचाये रखा। काँग्रेस को बचा कर रखने के लिए निर्विवाद नेतृत्व के
रूप में राजीव गाँधी को आगे किया गया था पर वीपी सिंह ने बाहर निकल कर उस काँग्रेस
की पोल उजागर कर दी थी। कुछ समय बाद आरक्षण विरोध के बहाने उनकी सरकार तो गिरा दी
गयी पर राजीव गाँधी की हत्या के बाद विकल्प में मिली सरकार होने के कारण
नरसिम्हाराव काल में कुछ साँसें चलीं। फिर सत्ता विहीन सीताराम केसरी के हाथों में
आकर काँग्रेस की कथित एकता छिन्न भिन्न होने लगी। यही समय था जब पुराने
काँग्रेसियों ने विकल्पहीनता की स्थिति में नेहरू गाँधी परिवार की कानूनी वारिस
सोनिया गाँधी को नेतृत्व के लिए मनाने का प्रयास किया और अंततः सफल भी हो गये।
सोनिया गाँधी न तो ऐसे किसी नेतृत्व की इच्छुक थीं और न ही खुद को उस पद के
दायित्व निर्वहन के लिए उपयुक्त समझती थीं पर अनाथ काँग्रेसियों की करुण पुकार पर
अपने परिवार पर रहे काँग्रेसजनों के भरोसे का निर्वाह करने के लिए तैयार हो गयीं। अपना
स्वाभाविक नेतृत्व न चुन पाने वाली काँग्रेस की यह पहली हार थी। यह वही समय था जब मण्डल
आन्दोलन, राममन्दिर रथयात्रा और बाबरी मस्ज़िद ध्वंस अभियान से जनित जातीय व साम्प्रदायिक
ध्रुवीकरण का लाभ लेकर भाजपा ने संसद में अपने सदस्यों की संख्या समुचित बढा ली थी
और काँग्रेस के कमजोर होते जाने के कारण स्वतंत्र रूप से सत्ता में आने के सपने
देखने लगी थी। सोनिया गाँधी के आने से काँग्रेस में बिखराव थम गया तो संघ परिवार
ने धर्म परिवर्तन की खिलाफत के नाम पर प्रत्यक्ष में चर्चों पर हमले करवाना प्रारम्भ
कर दिये जो परोक्ष में सोनिया गाँधी और कांग्रेस पर थे। यह स्पष्ट हो जाने के बाद
कि भाजपा परिवार की रथयात्रा, बाबरी मस्ज़िद ध्वंस, फादर स्टेंस का उसके दो मासूम
बच्चों सहित दहन, चर्चों पर हमलों आदि राजनीतिक साजिश का हिस्सा थे उससे ऐसा माहौल
बना कि सभी धर्मनिरपेक्ष दल भाजपा को हराने के लिए कृत संकल्प हो गये जिससे 2004
में एनडीए की सरकार गिर गयी। पर इन आम चुनावों में काँग्रेस को भी स्पष्ट बहुमत
नहीं मिला और गैरभाजपाई, गैरकाँग्रेसी दलों के सदस्यों की संख्या भी समुचित रही। यह
वही समय था जब गठबन्धन सरकार न बनाने का संकल्प लेने वाली काँग्रेस ने मजबूर होकर अपने
पचमढी प्रस्ताव से हाथ खींच लिये और अनेक दलों समेत बामपंथियों के बाहरी समर्थन से
उनके न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सरकार बनाने को तैयार हो गयी। इस बीच चुनावों में
पराजित भाजपा ने अपनी महिला नेत्रियों को आगे कर सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री
बनाये जाने के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और कमजोर काँग्रेस की नेता ने एक नौकरशाह को
आगे कर के प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। सबसे ज्यादा मतों से जीत जाने
के बाद सबसे अधिक सीटें पाने वाली पार्टी अपने चुने हुए नेता को प्रधानमंत्री पद
पर नहीं बैठा सकी यह उसकी दूसरी हार थी। आगे यह पार्टी बहुमत के बाद भी कभी अपनी
मर्जी से सदन नहीं चलवा सकी, और भाजपा ने जब चाहा तब सदन चला और जब चाहा तब स्थगित
करा दिया। परमाणु विधेयक को छोड़ कर जिसमें भी काँग्रेस को भाजपा का परोक्ष सहयोग
रहा। वे उसकी मर्जी के बिना कोई विधेयक पास नहीं करवा सके। पिछले दस वर्षों में
काँग्रेस के नेता न सदन में सक्रिय हुये और न ही सड़क पर निकल कर आये। उनकी
सक्रियता के चर्चे केवल भ्रष्टाचार और सेक्स स्केंडलों में दिखे, या आपसी गुट्बाजी
में। काँग्रेसी सुख लूटते रहे और काँग्रेस हारती रही।
अपनी इकलौती
नेता के वैधानिक अधिकारों की रक्षा न कर पाने वाले काँग्रेसियों से निराश सोनिया
गाँधी ने दुखी मन से हार कर राहुल गाँधी का नाम आगे बढाया तो चापलूस काँग्रेसी
उन्हें अपना खेवनहार मान कर जयजयकार करने
लगे वहीं दूसरी ओर भाजपायी लोग उनकी छवि खराब करने में जुट गये। भाजपा ने तो अपने
सबसे मुखर और वाक्पटु नेता को आगे कर के दोनों के बीच अघोषित मुक़ाबला ही छेड़ दिया।
जनता को सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार, मुफ्त स्वास्थ की
ढेरों योजनाएं, महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना, अनेक अनुदान, देने के बाद भी
सक्रिय संगठन के अभाव में मुर्दा काँग्रेस इसका राजनीतिक लाभ नहीं उठा सकी और
प्रचार के लिए जुटाये गये संसाधनों को छुटभैये काँग्रेसी नेता प्रेमचन्द की कहानी
कफन के पात्रों की तरह पीते रहे।
नगर पंचायतों
से लेकर विधानसभा चुनावों और संसद के उपचुनावों तक वे लगातार हारते रहे, और चुनावी
हार में भी खेल भावना का परिचय देते रहे। कहीं जीते भी तो उन्होंने यह नहीं देखा
कि वे कितने समर्थन से जीते हैं और विपक्षियों के अंतर्विरोधों के कारण जीते हैं।
2014 के आम चुनाव आते आते तक भी वे ‘प्रभु सब अच्छा करेगा’ की भावना से भरे रहे।
चुनावी सर्वेक्षण तो अवैज्ञानिक होते हैं पर अजगर की तरह लेटी इस पार्टी ने यह भी
नहीं सोचा कि क्यों उसके मंत्रिमण्डल के सदस्यों से लेकर सांसद और विधायक दल बदल
रहे हैं। यहाँ तक कि जिसको टिकिट देकर फार्म भरवाया वह वापिसी की तारीख निकलने के
बाद भाजपा में शामिल हो गया या जिस दिन काँग्रेस ने किसी को टिकिट दिया वह उसी दिन
भाजपा में शामिल हो गया।
काँग्रेस की
हार उससे ज्यादा बुरी हार है जितनी दिखायी दे रही है। जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड,
हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा, तामिलनाडु, राजस्थान, गुजरात, गोआ, झारखण्ड, आदि
अनेक राज्यों में कोई भी सीट नहीं जीत सकी, तो उत्तर प्रदेश में केवल सोनिया गाँधी
और राहुल गाँधी ही अपनी सीट बचा सके, मध्यप्रदेश में राजपरिवार से जुड़े
ज्योतिरादित्य सिन्धिया और सम्पन्न व्यापारी कमलनाथ अपने व्यक्तिगत प्रभावों से ही
जीत दर्ज करा सके हैं। छत्तीसगढ में जीती इकलौती सीट का अंतर बहुत हास्यास्पद है
तो बिहार में राजद से चुने गये बाहुबली पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन ने
काँग्रेस का टिकिट लेकर मानो काँग्रेस पर कृपा कर दी हो। बंगाल में राष्ट्रपति के
पुत्र ने चुनाव जीत कर योगदान दिया है तो बिहार और बंगाल से मुस्लिम बाहुल्य
क्षेत्र से एक एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीतकर लाज बचायी। महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री ने तो हरियाणा
में मुख्यमंत्री के रिश्तेदार ने जीत कर काँग्रेस की चवालीस की संख्या बनाने में
मदद की है। शेष योगदान काँग्रेस शासित उत्तरपूर्व, कर्नाटक और केरल राज्यों का है।
भाजपा भले ही
काँग्रेस को पराजित करने का श्रेय लेने में लगी हो पर सच तो यह है कि यह पार्टी तो
खुद ही हारने में लगी हुयी थी। तामिलनाडु में इसे एआईडीएमके ने हराया तो उड़ीसा में
बीजू जनता दल ने, सीमान्ध्र और तेलंगाना में तेलगु देशम, टीआरसी, और वायएसआर
काँग्रेस ने तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल काँग्रेस ने महाराष्ट्र में शिवसेना ने हराया
पंजाब में आप ने।
जिस पार्टी
को भाजपा से ज्यादा चन्दा मिलता हो अगर उसके मध्य प्रदेश कार्यालय की बिल न चुका
पाने के कारण बिजली कटने की नौबत आ जाये और जो पार्टी राजनीतिक कारणों से करोड़ों
में खेल रहे अपने सदस्यों पर लेवी भी न लगा सके तो उस पार्टी को हार ही जाना था। पर
जो उसे हराने का दावा कर रहे हैं वे झूठे हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.]
462023
मोबाइल 9425674629
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