शुक्रवार, सितंबर 26, 2014

मोर पंख और मनेका गाँधी के बहाने



मोर पंख और मनेका गाँधी के बहाने
वीरेन्द्र जैन

         मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। उसके रंगबिरंगे पंख जो उसके नृत्य के समय एक खास परिधि में फैल जाते हैं, व फैल कर रंगों का ऐसा समायोजन करते हैं कि प्रकृति की अद्भुत छटा दिखायी देती है। इसी के कारण उसके पंखों से कई कलात्मक और सजावटी वस्तुओं का निर्माण किया जाता रहा है जो हस्तकला का बेजोड़ नमूना होती हैं। मनेका गाँधी जो केन्द्र सरकार के मोदी मंत्रिमण्डल में महिला एवं बालविकास मंत्री हैं, अपने पर्यावरण प्रेम के लिए जानी जाती हैं। वे पिछले अनेक वर्षों से पशु पक्षियों के संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रही हैं, और हाल ही में उन्होंने मोरपंख के कारोबार को अवैध घोषित किये जाने में सरकार के सामने आ रही रुकावट से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बयान दिया है।
         अपने बयान में उन्होंने कहा है कि मोरपंख के कारोबार को अवैध घोषित करने में सरकार के सामने सबसे बड़ी रुकावट जैन समाज का विरोध है। उल्लेखनीय है कि जैन मुनि जो पैरों में जूते नहीं पहिनते हैं, अपने साथ मोरपंखों से बनी एक झाड़ूनुमा निर्मति रखते हैं जिससे रास्ता और बैठने सोने का स्थान साफ करते रहते हैं, इसे पिच्छि कहा जाता है। यह पिच्छि भार में कम और उपयोग में कोमल होती है। जब इसे बदला जाता है तो पुरानी पिच्छि की नीलामी की जाती है और धार्मिक लोग उसे हजारों रुपये देकर खरीदकर स्मृति के रूप में रखते हैं। जैन धर्मालम्बियों का प्रमुख सिद्धांत अहिंसा है। आम तौर पर जैन मन्दिरों में चमड़े का बेल्ट और पर्स आदि ले कर जाने की मनाही है जिसका कारण यह है कि चमड़े की कुछ वस्तुएं प्राप्त करने के लिए पशुओं का शिकार भी किया जाता है। वैसे आमतौर पर चमड़े की नब्बे प्रतिशत से अधिक वस्तुओं के लिए पशुओं का शिकार नहीं किया जाता अपितु स्वाभाविक रूप से मृत या मांसाहार के लिए वध किये गये पशु की खाल से ही बनायी जाती हैं, पर सन्देह का लाभ देने के कारण उन्होंने सभी तरह के चमड़े की वस्तुओं का बहिष्कार किया हुआ है। ऐसा अहिंसक समाज और उसके संत अगर यह महसूस करें कि उनके द्वारा स्तेमाल की गयी पिच्छियों के कारण राष्ट्रीय पक्षी मोर का शिकार किया जा रहा है तो सांसारिक भौतिक वस्तुओं के त्याग की पराकाष्ठा में जीवन व्यतीत करने वाले संत शायद उसके स्तेमाल का विकल्प तलाशने में थोड़ी सी भी देर न करें, क्योंकि मोर पंखों की कलात्मकता से उन्हें कोई लगाव नहीं होता है।
         यदि केन्द्रीय मंत्री मनेका गाँधी की इस बात में किंचित भी सचाई हो कि मोर पंखों के लिए मोरों का शिकार किया जाता है, जो राष्ट्रीय प्रतीक होने के कारण एक बड़ा अपराध भी है तो उन्हें बिना किसी तुष्टीकरण के तुरंत ही कानूनी कार्यवाही करना चाहिये थी। इन दिनों देश में लगभग पाँच हजार जैन संत होंगे जो पिच्छि का स्तेमाल करते होंगे और एक पिच्छि के उपयोग का समय लगभग दो से तीन वर्ष बताया जाता है। यह मान्यता है कि मोर के पंख स्वाभाविक रूप से गिरते हैं जिन्हें एकत्रित करके इस तरह की हस्तकलाओं का निर्माण और व्यापार किया जाता है। अपनी उम्र पूरी करने के समय तक मोर पूरी तरह पंख विहीन हो जाता है। भारत सरकार के मंत्री के पास ज्यादा उपयोगी आंकड़े और सूचनाएं होना चाहिये।
         कभी पत्रकारिता करने वाली और सूर्या नामक पत्रिका की सम्पादक रह चुकी मनेका गाँधी नेहरू-गाँधी परिवार की महत्वपूर्ण सदस्य हैं और यही वंश परम्परा भाजपा में उनकी और उनके पुत्र की हैसियत निर्धारित करती है। अगर राजनीतिक कौशल की दृष्टि से देखा जाये तो भाजपा में उन्हें प्राप्त पदों को प्राप्त करने की पात्रता रखने वाले बहुत सारे वरिष्ठ लोग हैं। सदैव से सत्ता के लिए हर तरह के समझौते करने को उत्सुक रहने वाली भाजपा ने कभी उन्हें उनकी वंश परम्परा के कारण पद दिये थे ताकि वे संसद में आपनी संख्या बढा सकें पर ताजा चुनावों में उनकी यह मजबूरी नहीं रही है जिसके परिणाम स्वरूप ऐसे लोगों का महत्व कम हो गया है। यही कारण है कि ऐसे लोग अपने को अधिक से अधिक हिन्दूवादी राजनीति का सिपाही बताने की कोशिश करने लगे हैं। स्मरणीय है कि पिछले आम चुनावों के ठीक पहले वरुण गाँधी ने मुसलमानों के खिलाफ जो और जैसा बयान दिया था, उन्हें जानने वाले बताते हैं कि उनकी सोच वैसी नहीं है। वे तो केवल भाजपा और संघ के प्रति ज्यादा बफादारी दिखाने के लिए हाथ काटने की भाषा तक चले गये थे। विधानसभा के ताजा उपचुनावों के परिणाम आने से पूर्व भाजपा के लोग उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के अनुसार जल्दी सरकार बना लेने के सपने देखने लगे थे और उसी की तैयारी में न केवल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही बढा रहे थे अपितु संवेदनशील अपराधों को सुर्खियों में लाकर उन्हें अतिरंजित भी कर रहे थे। वे जल्दी से जल्दी उत्तर प्रदेश की सरकार को भंग करने की परिस्तिथियां बनाने में लग गये थे। बड़े बड़े मानवीय संकटों पर मुँह न खोलने वाली मनेका गाँधी भी अपने पुत्र को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखने लगी थीं व उन्होंने इस आशय का बयान भी दिया था।
         पिछले दशकों में जब से गठबन्धन सरकारों का दौर शुरू हुआ है उसी के समानांतर राजनीति निहित स्वार्थों का खेल होकर रह गयी है। भाजपा की जीत में अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु दल बदलने वालों की बड़ी संख्या है जिनमें से अभी बहुत कम लोगों को पद के रूप में उनका मेहनताना मिल सका है। फास्ट फूड के इस दौर में केवल सड़कों को ही वाहन रेस का मैदान नहीं बना दिया गया है अपितु हर क्षेत्र में पात्रता और उचित समय से पहले फल पाने का लालच बढ रहा है। इसके लिए बहुत बेशर्मी से साधनों की पवित्रता को पूरी तौर पर भुला दिया गया है। इसी के समानांतर राजनीतिज्ञ जितनी जल्दी लोकप्रियता लूट लेते हैं उतनी ही जल्दी उनकी लोकप्रियता का पतन भी होता है। परिणाम सामने है। क्या मनेकाजी सबक लेंगीं?
वीरेन्द्र जैन
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अप्सरा टाकीज के पास भोपाल -462023
मो. 09425674629
    

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