सोमवार, मार्च 25, 2019

चुनौती दुष्प्रचार का सामना करने की है


चुनौती दुष्प्रचार का सामना करने की है
वीरेन्द्र जैन

सुप्रसिद्ध पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर का शे’र है-
मैं सच कहूंगी, और फिर भी हार जाऊंगी
वो झूठ बोलेगा, और लाजबाब कर देगा
सैम पित्रोदा के बयान के बाद भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह और उनकी पार्टी के बड़बोले बयानबाज नेताओं ने असंसदीय भाषा में जिस तरह की आलोचना की है, उससे एक सामान्य, सरल, देशभक्त के नाम पर भक्त बन चुके नागरिक को ऐसा लग सकता है जैसे कि पित्रोदा ने राहुल गाँधी के निर्देश पर गोपनीय दस्तावेजों से बहुत बड़ा देश विरोधी बयान दे डाला हो जिससे भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ गयी हो। इनमें से किसी ने भी उस पूरे साक्षात्कार को नहीं सुना होगा जिसमें से वह वाक्यांश चुना गया है, जिस पर निशाना लगाया जा रहा है। भक्त तो अज्ञान के शिकार हो सकते हैं किंतु स्वयं कांग्रेस के नेताओं ने भी भाजपा सरकार के प्रचारतंत्र और जरखरीद मीडिया की दी हुयी भाषा में यह कहना शुरू कर दिया कि ऐसे कथन आत्मघाती हैं, और तुरंत ही उन्हें उनके निजी विचार बता कर पल्ला झाड़ लिया गया। सैम पित्रोदा से पहले दिग्विजय सिंह, शशि थरूर और मणिशंकर आदि भी अपने साक्षात्कारों में से कुछ चयनित वाक्यांशों के लिए अपनों की आलोचना के शिकार हो चुके हैं। कांग्रेसियों की ये विवेकहीन मौकापरस्तियां त्वरित चुनावी लाभ के लालच में दूरगामी नुकसान करने वाली हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि सुशिक्षित सैम पित्रोदा के कथन की भाषा भी गलत नहीं थी और कम से कम राहुल गांधी व नरेन्द्र मोदी के कुछ बयानों की भाषा से बेहतर थी।
कांग्रेस के बड़े नेता सच जानते हैं, किंतु वे इस भय से ग्रस्त हैं कि मीडिया को गुलाम बना चुकी भाजपा उनके सवालों को सामने नहीं आने देगी व किसी वाक्यांश को गलत ढंग से उठा कर उन्हें देशद्रोही प्रचारित कर देगी। आम चुनाव के इस संवेदनशील समय में वे उन विषयों को छूना भी नहीं चाहते जिनमें ऐसा खतरा संभावित हो। यही कारण है कि पूरे कांग्रेस नेतृत्व ने शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गरदन दबा कर खुद को सुरक्षित मानना चाहा है, जबकि सच तो यह है कि प्रचारतंत्र पर अधिकार जमाये हुए भाजपा चाय वाले से लेकर नीचता को नीची जाति बता कर दुष्प्रचार का कोई भी अभियान चला सकती है। जरूरत रेत में गरदन घुसाने की नहीं अपितु दुष्प्रचार के तंत्र को तोड़ने की है। ऐसा इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि काँग्रेस अब एक संगठन विहीन जमावड़ा है जो हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, के नाम पर चल रहे लठैत संगठन आरएसएस से मौके पर सीधा मुकाबला नहीं कर सकता। यह संगठन भाजपा के नाम से आजकल केन्द्र और कई राज्यों में सत्तारूढ है व सेना, पुलिस, प्रशासन, और न्याय व्यवस्था में उसका हस्तक्षेप स्पष्ट है। वे असत्य या अर्धसत्य बोल कर राजनीतिक मुद्दों को भावनात्मक बना देते हैं व जन आस्था वाले पौराणिक प्रतीकों के आधार पर इतिहास व वर्तमान को अपनी राजनीति के अनुकूल प्रचरित करने में समर्थ हैं। गैरभाजपा दलों के पास झूठे के पर्दाफाश की समान क्षमता वाला कोई तंत्र नहीं है।
कांग्रेस के नेता यह क्यों नहीं कह सके कि देश के लिए शहीद सैनिकों के परिवार यदि अपनी आत्मा की शांति के लिए भारत सरकार द्वारा एयर स्ट्राइक के परिणाम जानना चाहते हैं तो वे देश की सेना और उसके बलिदानों का विरोध कैसे कर रहे हैं? यही बात जब सेम पित्रोदा भी सैनिक परिवारों की भाषा दुहराने लगते हैं तो उससे दुश्मन देश को लाभ कैसे मिलता है, जबकि वह परिवार खुद भी यही बात कह रहा है। जब सत्तारूढ दल का सबसे बड़ा नेता पुलवामा जैसे बड़े आतंकी हमले के बाद खुद चुनाव प्रचार में लगा रहता है तब एकता प्रदर्शित कर चुके विपक्ष से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह उसके लिए सेना के शौर्य का राजनीतिक लाभ लेने के लिए खुला मैदान छोड़ दे। एयर फोर्स के कमांडर ने प्रैस कांफ्रेंस में साफ कहा था कि सेना ने अपने दिये गये लक्ष्य पर सटीक बमबारी की, इस बयान से स्पष्ट है कि सरकार द्वारा अगर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के आदेश दिये गये थे तो आतंकी शिविरों में उपस्थित प्रशिक्षणार्थियों का सफाया हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ है तो सरकार द्वारा सेना को भिन्न आदेश दिये गये थे। देश को सेना और उसके शौर्य पर भरोसा है और उसके कथन को सही मानती है। किंतु एक ओर सेना को भिन्न आदेश देना और दूसरी ओर जनता के सामने अपने झूठे शौर्य का बखान करते हुए वोट बटोरने की कोशिशें देश को धोखा देना है। ऐसे में एक नागरिक द्वारा शहीदों के परिवार की आवाज में आवाज मिलाते हुए सचाई जानने का प्रयास गलत कैसे कहा जा सकता है?
सरकार ने आतंकी हमले के समय जो कुछ किया वह ठीक किया, और कोई भी सरकार होती तो यही करती या करती रही है, या करना चाहिए था। सरकारों को दूरगामी दृष्टि से बहुत सी बातों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेने होते हैं। दोष तो यह है कि अपने राजनीतिक हित के लिए विरोधी दलों को दोषी व देशद्रोही बताना व विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त भिन्न सूचनाओं के कारण भ्रमित देश की जनता द्वारा सच्चाई जानने की कोशिश को गलत बताना। सैम पित्रोदा ने अमित शाह और नरेन्द्र मोदी को चुनौती देते हुए कहा है मैं वैज्ञानिक हूं, आंकड़ों में भरोसा करता हूं। मुझे बहुत सारे राज मालूम हैं, मेरे पास न तो कोई बैंक खाता है, न सम्पत्ति, न ही महिलाओं को लेकर कोई कहानी है। किसी भी तरह से मेरे ऊपर कोई उंगली नहीं उठा सकता। 
मोदी और शाह को समझ आने से पहले यह बात काँग्रेस और गैरभाजपा विपक्ष को समझना चाहिए कि मूल समस्या प्रचार के साधनों का एकाधिकार है और इस एकाधिकार को तोड़ने के लिए उन्हें एक साथ झूठ का विरोध करना चाहिए, अन्यथा पंचतंत्र की कहानी के ठग बछड़े को कुत्ता बना कर छोड़ेंगे।
वीरेन्द्र जैन
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