सोमवार, मई 27, 2019

एक भिन्न भारत में एक भिन्न लोकतंत्र का उदय


 एक भिन्न भारत में एक भिन्न लोकतंत्र का उदय
वीरेन्द्र जैन

आम चुनाव से ठीक पहले भाजपा के एक सांसद साक्षी महाराज ने कहा था कि 2019 के चुनाव आखिरी चुनाव होंगे। शायद उनका आशय इस बात से रहा होगा कि 2019 में जीत जाने के बाद विपक्षी दल इतने क्षत विक्षत हो जायेंगे कि लम्बे समय तक चुनाव में उतरने लायक नहीं बचेंगे, इसलिए फिर उसके बाद आम चुनाव पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों की तरह औपचारिकता भर हो कर रह जायेंगे। इसी बात को दूसरी तरह से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि 2050 तक भाजपा ही राज करेगी। उल्लेखनीय है कि चुनाव परिणाम देते समय विभिन्न न्यूज चैनल जो ग्राफिक्स दिखा रहे थे उनमें से अनेक ने भाजपा प्लस दिखाने की जगह मोदी प्लस का टाइटिल लगाया था जिसका मतलब है कि अब भाजपा की जगह एक व्यक्ति नरेन्द्र मोदी ने ले ली है। एक चैनल तो परिणामों के साथ एक फिल्मी गीत सुना रहा था- मैं ही मैं हूं, मैं ही मैं हूं, दूसरा कोई नहीं। यह बिल्कुल इन्दिरा इज इंडिया की याद दिला रहा था।
भले ही यह बात जोर शोर से नहीं स्वीकारी जाती हो किंतु यह ज्वलंत सत्य है कि भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आनुषंगिक संगठन है और इससे सम्बन्धित अंतिम फैसला वहीं से होता है। 2013 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतारने का फैसला भाजपा के लोगों ने नहीं अपितु संघ ने ही लिया था जबकि इस फैसले के कुछ दिन पहले ही अरुण जैटली ने कहा था कि हमारी पार्टी में दस से अधिक लोग इस पद के योग्य हैं। घोषणा के एक दिन पूर्व ही वे कहने लगे थे कि मोदी को तुरंत प्रत्याशी घोषित कर देना चाहिए नहीं तो भाजपा हिट विकेट हो जायेगी। संघ ने तुरंत ही अडवाणी, सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, और एनडीए सहयोगी बाल ठाकरे की असहमति के बाद भी मोदी को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। मोदी की शर्त के अनुसार ही प्रचारक संजय जोशी को न केवल समस्त जिम्मेवारियों से मुक्त कर दिया गया था, अपितु उत्तर प्रदेश के घोषित हो चुके प्रभारी के पद से भी हटा दिया गया था। उसके बाद भाजपा का स्वरूप बदलता गया और वह अटल अडवाणी युग से बाहर निकल आयी। क्रमशः उसके पोस्टरों में से अटल अडवाणी आदि गायब होने लगे। आम सभाओं में किसी भी कीमत पर भीड़ जुटाने की योजनाएं बनायी गयीं। गुजरात से आये हुए लोगों का एक समूह सभा के बीच में मोदी मोदी के नारे लगा कर पार्टी की जगह व्यक्ति को स्थापित करने के बीज बोने लगा था। ड्रोन कैमरे से वास्तविक भीड़ को कई गुना दिखाने और उसके लाइव प्रसारण की व्यवस्थाएं की गयी थीं। अपनी छवि बनाने और विरोधियों की छवि बिगाड़ने में सोशल मीडिया का स्तेमाल और नैट वर्क तैयार कर लिया गया था जबकि विपक्षियों ने तब तक उस बारे में सोचा ही नहीं था। थ्री डी वीडियो तकनीक से मोदी जी के भाषण एक साथ दर्जनों जगह प्रसारित होने लगे थे। सोशल मीडिया पर अतिरंजित फालोइंग बताने की व्यवस्था कर ली गयी थी किंतु उसकी पोल खोलने वाले समाचार को सही प्रसारित नहीं होने दिया गया। जो कार्पोरेट घराने अपनी पसन्द का प्रधानमंत्री बनवाना चाहते थे उन्होंने ही प्रमुख मीडिया हाउसों को खरीद लिया था या उनसे सौदा कर लिया था. ताकि प्राइम टाइम पर पक्षधर एंकर ही संचालन करे। तत्कालीन सरकार और उसके नेताओं या रिश्तेदारों पर लगे आरोपों को उनकी छवि बिगाड़ने के लिए मीडिया पूरा प्रयास कर रहा था।
चालीस से अधिक दलों के साथ गठबन्धन बनाया गया था, चुनाव प्रबन्धन के लिए प्रशांत किशोर जैसे प्रबन्धकों को नियुक्त किया गया था। फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों, और अन्य सेलिब्रिटीज को उनके प्रभाव क्षेत्र के अनुसार टिकिट दिया गया था। दूसरे दलों के नेताओं को दल बदल करा के भरती किया गया था और टिकिट देने में उदारता बरती गयी थी, तब जाकर पश्चिमी और उत्तरी भारत में अर्जित 31 प्रतिशत मतों के सहारे पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी जो पूरे पाँच साल तक चुनावी मूड में रही।
लोकसभा के चुने हुये प्रतिनिधि केवल बहुमत की संख्या बनाने के लिए थे, उनमें से ज्यादातर को सरकार चलाने की कोई जिम्मेवारी नहीं दी गयी। इतना ही नहीं उन्हें सांसद निधि को व्यय करने की स्वतंत्रता भी नहीं दी गयी। मंत्रिमण्डल के प्रमुख विभाग राज्यसभा के चयनित सदस्यों जैसे, अरुण जैटली-वित्तनिर्मला सीतारमण-रक्षा, प्रकाश जावड़ेकर-मानव संसाधनपीयूष गोयल-रेलवे,कोल,विजय गोयल-पार्लियामेंट्री अफ़ेयर जगत प्रशाद नड्डा-स्वास्थ, धर्मेंद्र प्रधान-पेट्रोलियम, मुख्तार अब्बास नकवी-अल्पसंख्यक, सुरेश प्रभु-कॉमर्स,इंडस्ट्री स्मृती ईरानी-कपड़ा, रवि शंकर प्रसाद-लॉ,न्याय, हरदीप सिंह पूरी-गृह निर्माण,शहरी विकास, चौधरी वीरेंद्र सिंह-स्टील, अल्फोंसा-पर्यटन,इलेक्ट्रॉनिक, आदि को दिये गये। ये जनता के चुने हुए नहीं नेताओं के चुने हुये लोग हैं जिनमें से अनेक कार्पोरेट घरानों के द्वारा निर्देशित होंगे, जैसा कि नीरा राडिया मामले में हम लोग देख चुके हैं।
असफल वित्तीय व्यवस्था पर लगाये गये चुनिन्दा पदाधिकारियों, वित्तीय विशेषज्ञों के आरोपों को दबाने के लिए कभी देशद्रोह, कभी लव जेहाद, कभी गौ हत्या, कभी राम मन्दिर, कभी तीन तलाक, आदि आदि के नाम पर टीवी में बहसें छेड़ी जाती रहीं जो साम्प्रदायिकता से भरी हुयी होती थीं।
2019 आम चुनाव के परिणाम सचमुच चौंकाने वाले हैं। जीत के अंतर को देखते हुये प्रथम दृष्टि में ये सन्देहास्पद लगते हैं, किंतु परिणाम आने के बाद बिना किसी सबूत के ईवीएम आदि पर आरोप लगाना भी गलत होता है। इसलिए इन्हें यथावत सच मानते हुये इनका विश्लेषण करना होगा। अभी तक चुनाव परिणाम केवल सम्बन्धित दलों के कार्यों, योजनाओं, पर ही निर्भर नहीं करते थे अपितु, जाति, धर्म, धन, स्थानीय दबाव, आदि की भूमिका भी रहती थी। अब मोदीजी का कहना है कि आज के भारत के इन चुनावों में जाति धर्म, के आधार को छोड़ते हुये जनता ने सामाजिक विकास के आधार पर उनके पक्ष में मतदान किया है।[]वे यह नहीं बताते कि बेगुसराय में गिरिराज सिंह को कन्हैया के खिलाफ क्यों लगाया गया था] अगर ऐसा है तो यह एक बड़ा बदलाव है, भले ही वह गलत सूचनाओं के आधार पर लिया गया फैसला हो। आर्थिक क्षेत्र में लिये गये गलत निर्णयों को विभिन्न पदाधिकारियों के त्यागपत्रों से ही नहीं सुब्रम्यम स्वामी के बयानों से भी समझा जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में देशवासियों को लगातार अँधेरे में रखा ही जा रहा है, और उनकी राष्ट्रीय भावनाओं को भुनाया जा रहा है। सच कहने वालों को देशद्रोही कह कर मीडिया में शोर मचा दिया जाता है, ताकि संवाद न हो सके। यदि इतने अधिक लोगों ने अँधेरे को रौशनी मान लिया है तो निश्चित रूप से यह एक भिन्न भारत है और यह उसका भिन्न लोकतंत्र है। अब जो भी चुनाव होंगे वे इसी तरह के असत्य या अर्धसत्य आधारित होंगे और न होने के बराबर होंगे। न कोई राफेल सौदे के सच के बारे में जान सकेगा और ना ही सर्जीकल और एयर स्ट्राइक के बारे में। एक शेर है-
मैंने जब भी बात अपनी कहने की कोशिश करी
बस उसी क्षण आपकी जयकार के नारे लगे  
  वीरेन्द्र जैन
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