सुशांत सिंह राजपूत
की आत्महत्या और उससे उठे सवाल
वीरेन्द्र जैन
बालीवुड के एक लोकप्रिय फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत, जिन्होंने पिछले
दिनों अनेक सफल फिल्में की थीं, ने अचानक आत्महत्या कर ली, और पीछे कोई सुसाइड नोट
भी नहीं छोड़ा। इस घटना को लेकर लगातार अनेक तरह की कहानियां चर्चा में रहीं। ये
चर्चाएं इस बात का संकेतक हैं कि हमारे समाज, राजनीति और व्यवस्था में क्या चल रहा
है। हम कितने दोगले समाज को ढो रहे हैं।
कहने को हमारे यहाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था है, किंतु सच तो यह है कि हमारे समाज
ने अभी उस व्यवस्था को आत्मसात नहीं किया है। स्वतंत्रता संग्राम से उभरे नेताओं
के आभा मन्डल के अस्त होने के बाद सत्ता का लाभ लेने के लिए सामंती समाज से जन्मे
लोगों ने अपनी चतुराइयों से सारे संस्थानों पर अधिकार कर लिया और दिखावे के लिए
कथित लोकतंत्र का मुखौटा भी लगा कर रखा। वैचारिक राजनीति ही लोकतंत्र की आत्मा
होती है जिसे पनपने ही नहीं दिया और उसके छुटपुट अंकुरों को खरपतवार की तरह मिटा
दिया गया। अब सत्ता पर अधिकार जमाने के लिए धार्मिक आस्थाओं का विदोहन करने वाली
साम्प्रदायिकता, जातियों में बंटे समाज में जाति गौरव को उभारना, सामंती अवशेषों
की शेष लोकप्रियता भुनाना, पूंजी की मदद से अभावग्रस्त व लालची लोगों से वोट
हस्तगत कर लेना, पुलिस और दूषित न्यायव्यवस्था के सहारे बाहुबलियों की धमकियां, साधु
वेषधारियों समेत कला और खेल के क्षेत्र में अर्जित लोकप्रिय सितारों का उपयोग किया
जाता है। इसमें नीलाम होने वाला मीडिया अधिक बोली लगाने वाले के पक्ष में बिक जाता
है। सारी राजनीति राजनीतिक रूप से निष्क्रिय नागरिकों को उत्प्रेरित कर मतदान के
दिन वोट गिरवा लेने तक सीमित होकर रह गयी है। दलों के बीच की सारी प्रतियोगिता सत्ता
और उसके लाभों के लिए नये नये हथकण्डे अपनाने में होने लगी हैं। मुख्यधारा के सभी
प्रमुख दलों का कमोवेश यही स्वरूप है। समाज के अच्छे परिवर्तन और तेज विकास के लिए
किसी भी दल की सरकार के कोई प्रयास नहीं होते। भूल चूक से या दिखावे के लिए हो भी
जायें तो स्थास्थिति से लाभ उठाने वाली ताकतें उन्हें अपने कदम पीछे खींचने को
मजबूर कर देती हैं।
युवा अभिनेता सुशांत कुमार की आत्महत्या एक लोकप्रिय स्टार की ध्यानाकर्षक खबर
थी। वह बिहार का रहने वाला था और बिहार में इस साल चुनाव होने वाले हैं इसलिए
लोकप्रिय व्यक्ति के साथ घटी अस्वाभाविक घटना और सुसाइड् नोट न छोड़ जाने के कारण
पैदा रहस्य की अपने अपने हिसाब से मनमानी व्याख्या हुयी। उसका भरपूर राजनीतिक लाभ
लेने के लिए उसे और विवादास्पद बनाया गया व सनसनी बेच कर धनोपार्जन करने वाले
मीडिया ने जरूरी सवालों से कन्नी काटते हुए इसी पर सारी चर्चाएं केन्द्रित कीं।
सुशांत एक महात्वाकांक्षी और लगनशील युवा था जिसने अपनी इंजीनियरिंग की पढाई
छोड़ कर फिल्मी कैरियर अपनाया। उसकी मेहनत और लगन से उसे सफलता भी मिली व उसने
भरपूर धन भी कमाया। युवा अवस्था में कमाये गये धन से युवा अवस्था के सपने ही पूरे
किये जाते हैं व सुशांत बिहार जैसे राज्य के एक बन्द समाज से खुली हवा में आया था।
उसके द्वारा अर्जित धन, व लोकप्रियता ने उसे अनेक युवतियों का चहेता बनाया होगा
जिसमें से दो की चर्चा हो रही है क्योंकि वह खुद भी क्रमशः इनके निकट आया। एक से
दूरी होने, जिसे आज की भाषा में ब्रेकअप कहा जाता है, के बाद वह जिस दूसरी युवती
के निकट आया तो दोनों के बीच प्रतिद्वन्दिता स्वाभाविक है।
एक और बात पर ध्यान दिया जाना भी जरूरी है कि अपनी सफलता और सम्पन्नता के बाद
उसने अपने परिवार के साथ दूरी सी बना कर
रखी। अपने धन को उनके बीच नहीं बांटा। अपने जीवन जीने के तरीके में उनका कोई अनुशासन
नहीं चाहा व अपना सुख दुख उनके साथ नहीं बांटा। वह अपने तरीके से मकान और मित्र
बदलता रहा। वह ना तो किसी राजनीतिक दल का प्रचारक बना, ना उसने शिवसेना द्वारा
बिहारियों के खिलाफ किये गये विषवमन के खिलाफ कोई बयान दिया। यहाँ तक कि प्रवासी कहे
जाने वाले मजदूरों पर जो संकट आया उसमें भी उसका बिहारी प्रेम या मजदूरों के साथ
सहानिभूति नहीं जगी। उसने सोनू सूद की तरह अतिरिक्त रूप से आगे आकर उनके लिए कुछ
नहीं किया, या करना चाहा। उसकी मृत्यु के बाद उससे सहानिभूति रखने वाले जो लोग
पैदा हुये वे पहले उसके साथ नहीं दिखे। अगर किसी माफिया गिरोह द्वारा भाई भतीजावाद
करते हुए उसके साथ कोई पक्षपात किया जा रहा था तो ये लोग तब कहाँ थे। एक सुन्दर
अभिनेत्री तो विवादों से ही अपना स्थान बनाने व बनाये रखने के लिए बहुत दिनों से इसी
तरह के भागीरथी प्रयास कर रही है। कला जगत में फिल्मी क्षेत्र ज्यादा लागत का
क्षेत्र है और मुनाफे के साथ अपनी लागत वसूलने के लिए निवेशक प्रतिभाओं को बिना
भेदभाव के स्थान देते हैं। उनकी चयन समिति में अगर फिल्मी दुनिया के लोग होते हैं
तो वे कभी कभी अपने रिश्तेदारों को प्राथमिकता दिला देते होंगे। पर टिका वही रह
सकता है। हेमा मालिनी व धर्मेन्द्र की बेटियों को अवसर तो मिला पर वे अपना स्थान
नहीं बना सकीं। कला के क्षेत्र में सफलता में प्रतिभा और सम्पर्क दोनों की भूमिका
रहती है। राजनीति में तो यह बात फिल्मी दुनिया से कई गुना अधिक है, व व्यापार में
तो विरासत ही चलती है। किंतु बिहार के चुनावों को देखते हुए साम्प्रदायिक राजनीति
खेलने वालों ने सुशांत की दुखद मृत्यु को एक साम्प्रदायिक मोड़ देने की कोशिश की और
उसकी आत्महत्या को कुछ मुस्लिम कलाकारों की उपेक्षा को जिम्मेवार ठहराने का प्रयास
किया। करणी सेना जैसे लोगों से प्रदर्शन करवाया। चिराग पासवान जैसे लोग देश की सबसे अच्छी
महाराष्ट्र पुलिस की तुलना में बिहार पुलिस को उतारने की बात पर बल देने लगे व
बिहार सरकार से चुनावी सौदेबाजी के उद्देश्य से बिहार सरकार की आलोचना करने लगे।
एक कलाकार के भावुक फैसले के बाद असली सवाल उसके द्वारा अर्जित धन के खर्च या
निवेश का है। यह धन जरूर किसी ना किसी के
पास होगा और उसके विधिवत विवाह न करने के कारण परिवार के सदस्यों का कानूनी अधिकार
बनता है, जिन्हें उसने जीते जी नहीं दिया था और अपने मित्रों या महिला मित्रों की
मदद से खर्च या विनियोजित किया होगा। एक खबर यह भी चल रही थी कि वह उसे केरल में
किसी खेती में निवेश करना चाहता था जिसको न करने के लिए उसकी महिला मित्र ने
विपरीत सलाह देकर रुकवा दिया था।
समाज बदल रहा है तो सामाजिक सम्बन्धों पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा। कुछ को वह
अच्छा लगेगा व कुछ परम्परावादियॉं को नहीं लगेगा। विरासत का कानून परम्परावादी
रिश्तों को ही मान्यता देता है। कथित दिल और आत्मा के रिश्तों को ना तो मापा जा
सकता है और ना ही उनका कोई स्थान है। दुखद यह है कि इसके लिए दोनों तरफ से ही
अनावश्यक कथाएं गढी जाती हैं, फैलायी जाती हैं। कुछ के लिए तो आपराधिक षड़यंत्र भी
रचे जाते हैं। संजय गाँधी की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी और मनेका गाँधी के बीच
सम्पत्ति के हक के लिए मुकदमेबाजी भी हुयी थी व मुकदमा जीतने के बाद इन्दिरा गाँधी
ने वह सम्पत्ति वरुण गाँधी के नाम कर दी थी। रोचक यह है कि उस समय तक वरुण गाँधी
वयस्क नहीं हुये थे इसलिए वह फिर से उनकी नेचरल गार्जियन मनेका गाँधी के हाथों में
पहुंच गयी थी।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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