सोमवार, जून 07, 2021

श्रद्धांजलि व संस्मरण नरेन्द्र कोहली,

 

श्रद्धांजलि व संस्मरण

नरेन्द्र कोहली, और कम्प्यूटर की प्रेरणा 

वीरेन्द्र जैन

आजकल मैं इतना कम्प्यूटर निर्भर हो गया हूं कि पिछले दिनों हाथ से एक आवेदन लिखना पड़ा तो मैं अपनी खराब हस्तलिपि पर व्यथित हुआ, कि इतनी खराब लिपि तो मेरी तब भी नहीं थी जब मैंने लिखना सीखा था। यूनीकोड में लिखते रहने के कारण साधरण अंग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग में भी भूल हो जाती है। मित्र और रिश्तेदार मुझे कम्प्यूटर एडिक्ट मानने लगे हैं जिस बीमारी को कोरोना लाक डाउन और कुछ अखबारों के बन्द हो जाने ने और बढा दिया है।

आज श्री नरेन्द्र कोहली के निधन का समाचार सुन कर याद आया कि इसका संक्रमण मुझे उन्हीं से मिला था।

1995 में लखनऊ में अट्टहास का कार्यक्रम था और उस कार्यक्रम में मैं आमंत्रित था। उस वर्ष का अट्टहास सम्मान श्री नरेन्द्र कोहली जी को मिलना था जिनसे प्रत्यक्ष मुलाकात पहली बार हुयी। लखनऊ के नरही स्थित सरकारी गैस्ट हाउस में सबको ठहराया गया था और मुलायम सिंह सरकार के द्वारा  सबको स्टेट गैस्ट का दर्जा मिला हुआ था, वे ही मुख्य अतिथि के रूप में आये थे। इस आयोजन में प्रेम जनमेजय, हरीश नवल, प्रदीप चौबे, आदि अनेक पूर्व परिचित मित्र थे, जिनमें से हरीश और प्रेम तो उनके छात्र रहे होने के कारण बकायदा उन्हें गुरू का दर्जा देते आये हैं। मैंने भी सोचा कि नये परिचय से ज्यादा और नई जानकारियां हासिल करना चाहिए इसलिए दूसरे मित्रों के घूमने चले जाने के बाद भी मैंने कोहली जी के साथ बैठना उचित समझा।

मैं अपनी पूरी नौकरी के दौरान इस बात का अवसर तलाशता रहा कि किसी तरह मुझे इससे मुक्ति मिले और अगर न्यूनतम जीने की सुविधाएं सुनिश्चित हो जायें तो मुक्त लेखन कर सकूं। इस प्रयास में तीन बार बैं की नौकरी छोड़ने के उप्क्रम किये किंतु वापिस बुला लिया गया। आज सोचता हूं कि जाने किस कारण से ये भूल सफल होने से बच गयी बरना आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब होती। कोहली जी ने उस मुलाकात के दौरान बताया था कि उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ दी है और इन दिनों पूर्णकालिक लेखन कर रहे हैं। इसके साथ उन्होंने यह भी बताया था कि पत्नी अभी सेवा में हैं, और बच्चे शायद विदेश में हैं। इसके साथ ही सदा की तरह उन्होंने यह भी जोड़ा था कि वे हिन्दी के सर्वाधिक रायल्टी पाने वाले लेखक हैं। मैं जिस आदर्श को जीने के सपने देखता रहा था वह नमूने के तौर पर सामने बैठा था। यद्यपि बाद में मुझे उनके सुरक्षित जीवन और अपने बीच अंतर समझ में आया था किंतु उस समय तो मैं अभिभूत था। उन्होंने कहा था कि मैं लम्बे समय तक [शायद महीनों] अपने कमरे से बाहर नहीं निकलता और अपने कम्प्यूटर पर जो भी लिखता हूं उसे वहीं से पत्र पत्रिका या प्रकाशक तक भेज देता हूं। उन दिनों ई मेल का प्रयोग नहीं चला था सो उनके कथनानुसार वे फैक्स का उपयोग करते थे।

मैंने उसी दिन सोच लिया था कि मैं भी जब खुद को नौकरी से मुक्त कर सकूंगा तो पहला काम कम्प्यूटर खरीदने का ही करूंगा। उन दिनों कम्प्यूटर बहुत मंहगे थे और मैंने बिना पेंशन के विकल्प के नौकरी छोड़ दी थी इसलिए अपना सपना पूरा करने में छह साल और लग गये। बाद में जब मैंने कम्प्यूटर हासिल किया तो वो अब तक साथ साथ है भले ही मैं रायल्टी में कुछ भी नहीं कमा सका और मुफ्त सेवा करता रहा,  किंतु विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगभग दो हजार से अधिक लेख और अन्य रचनाएं लिखीं, वेब पत्रिकाओं में लिखने वाले उन दिनों कम लोग थे इसलिए देश विदेश की वेब पत्रिकाओं में अपना नया पुराना लेखन भेजता रहता था और वह कुछ ही मिनिटों में सामने दिख जाता था जिसे देख कर खुशी मिलती थी। फिर अपने ब्लाग बनाये तथा फेसबुक आने पर उससे जुड़ा जिससे सम्पादन मुक्त अभिव्यक्ति का अवसर मिलने के कारण मुक्ति का अहसास मिला। उन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत कम लेखक थे इसलिए रात रात भर लम्बी लम्बी बहसें भी चलीं।

बहरहाल सच यह है कि खुशी देने वाली मेरी कम्प्यूटर की आदत के बीज नरेन्द्र कोहली जी ने ही बोये थे, भले ही उनके लेखन पर कई बार मैंने कठोर टिप्पणियां भी की थीं।

उनकी प्रेरणा पर आभार व्यक्त करते हुये उनकी स्मृति को विनम्रतम श्रद्धांजलि।       

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

मो. 9425674629

 

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