शुक्रवार, जुलाई 26, 2024

श्रद्धांजलि / संस्मरण प्रभात झा

 

श्रद्धांजलि / संस्मरण  प्रभात झा

वीरेन्द्र जैन

दिवंगत कामरेड शैलेन्द्र शैली जिन्होंने अपने ज्ञान, अध्ययन, विवेक और संवाद कौशल के सहारे बहुत कम उम्र में शिखर के राजनेताओं, बुद्धिजीवियों, रणनीतिकारों में अपना स्थान बनाया था, इतने सहज और आत्मविश्वास से भरे रहते थे कि किसी पद, धन या डिग्रीधारी के प्रभाव में नहीं आते थे। अवैज्ञानिक समझ से खुद को समझदार दिखाने का भ्रम करने वालों के साथ तो वे बहुत विनोद से बात करते थे कि पास बैठे लोगों को समझ में आ जाता था कि किसकी क्या प्रतिभा है। इसलिए वे अपने विचारों से असहमत लोगों से भी खूब संवाद करते थे और अन्दाज यह होता है कि जैसे वरिष्ठ जन अपने बच्चों से कहते हैं कि बेटे गुड़िया की शादी कर रही हो, करो पर पकवान क्या क्या परोसोगी, मुझे बुलाओगी या नहीं, या जैसे ईशा मसीह ने शांत चित्त होकर अंतिम शब्द कहे थे कि हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।

प्रभात झा जब ग्वालियर में पत्रकारिता में आये तब तक शैलेन्द्र शैली पहले छात्र नेता के रूप में और बाद में युवा सीपीएम के नेता के रूप में ग्वालियर में ही कार्य कर रहे थे। दोनों की विचारधारा एकदम विपरीत थी किंतु शैली जैसा युवा नेता अपने पूरे आत्म विश्वास के साथ सबसे संवाद रखता था। प्रभात झा भी उनकी इस प्रतिभा से प्रभवित थे और विमर्श करते रहते थे। उस दौर में दोनों ही सत्तारूढ काँग्रेस के विरोधी थे इसलिए एक बात में तो सहमति थी ही। शैली के अध्यन और विश्लेषण का लाभ ग्वालियर का पूरा पत्रकार जगत उठाता था। यह जानकारी मुझे तब मिली जब कामरेड शैली के निधन के बाद निकले लोकजतन के श्रद्धांजलि अंक में मैंने प्रभात झा का लेख पढा। तब तक वे भोपाल मैं भाजपा के मीडिया प्रभारी की तरह आ चुके थे। यह लेख पढने के बाद मुझे उनके बारे में जानने की जिज्ञासा हुयी तो पता चला कि दोनों के बीच में लोकतांत्रिक संवाद था। पता चला कि एक बार भाषा पर बातचीत के दौरान शैली ने मजाक में उनसे कहा था कि प्रभात तुम आर एस एस से हो इसलिए तुम्हारी मातृ भाषा मराठी होगी और मैं सी पी एम से हूं इसलिए मेरी मातृभाषा बंगाली होगी ।

जब मैं बैंक की नौकरी से मुक्त होकर भोपाल आया तो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश क्र लिए अतिरिक्त उत्साह से भरा हुआ था इसलिए नये विषयों पर निर्भीकता से लिखता था व उसे प्रकाशित कराने के लिए  मंच की तलाश में रहता था। ऐसा ही एक अवसर आया जब म.प्र. की दिग्विजय सिंह सरकार ने इतिहास पर एक तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन कराया था जिसमें देश के श्रेष्ठ इतिहासकार भागीदारी कर रहे थे। इसमें पढे गये कुछ पर्चों के बारे में प्रभात झा ने दैनिक भास्कर में एक आलोचनात्मक लेख लिखा। लगे हाथ मैंने उसी दिन के कुछ अंग्रेजी अखबारों में भिन्न विचार भी पढे तो तुरंत ही एक लम्बी प्रतिक्रिया लिख कर दैनिक भास्कर के तत्कालीन सम्पादक एन के सिंह के पास पहुंच गया। उन्होंने उसे देखा तो उन्हें विषय वस्तु तो पसन्द आयी किंतु उसका प्रतिक्रिया स्वरूप पसन्द नहीं आया। उन्होंने कहा कि यह क्या है कि बार बार ‘प्रभात झा ने यह कहा है’ ‘प्रभात झा ने यह कहा है’ आ रहा है। आप तो इसी पर एक स्वतंत्र लेख लिख लाइए जिसमें किसी के कथन पर टिप्पणी नहीं की गयी हो।

मैं विधिवत इतिहास का विद्यार्थी तो रहा नहीं और ना ही इंटरनैट गूगल आदि की सुविधाएं उपलब्ध थीं  था इसलिए मुझे सन्दर्भ सहित लिखने में समय लग गया व एक दिन बाद भी उस समय ले कर पहुंचा जब तक सम्पादकीय पेज बन चुका होता है। उन्होंने अप्रसन्नता भी व्यक्त की क्योंकि वे मेरे लेख के इंतजार में काफी देर तक पेज रोके रहे थे। फिर भी उन्होंने लेकर रख लिया। किसी राष्ट्रीय विषय पर बड़े अखबार के सम्पादकीय पेज पर छप सकने के मेरे सपने का यह अवसर था और मेरे अन्दर हलचल चल रही थी। उसी दिन मुझे दतिया के लिए निकलना था और मैं चला आया। दो दिन तक लगातार अखबार देखता रहा किंतु वह लेख नहीं छपा था। सब्र कर के रह गया।

दस दिन बाद जब लौट कर भोपाल आया और डाक देखी तब उसमें एक लिफाफा दैनिक भास्कर का भी दिखा। उत्सुकतावश सबसे पहले उसे ही खोला तो उसमें वह लेख मिला और उस पर लेख के उपयोग न कर पाने की पर्ची लगी हुयी थी। दुख हुआ पर जब पेज पलटे तो लेख के अंत में सम्पादक एन के सिंह का लाल स्याही से उप सम्पादक वीरेन मुंशी के नाम नोट था, ‘कृप्या इसे छापें’। अगले दिन जब मैं लिफाफा लेकर भास्कर कार्यालय पहुंचा तो एन के सिंह नहीं थे तो सीधे उप सम्पादक की केबिन में चला गया। जो सज्जन बैठे थे उनसे मैंने पूछा कि क्या आप ही मुंशीजी हैं तो उन्होंने इंकार किया और वताया कि मुंशी जी अब अखबार में नहीं हैं। उन्होंने मेरा परिचय और नाम जानना चाहा तो बताने पर ऐसा लगा कि वे मेरे बारे में पहले से जानते है और कहा कि आपके कुछ व्यंग्य लेख पड़े हुये थे जिनमें एक कल और बाकी भी अगले सप्ताहों में छप रहे हैं।

इस घटना के कई सालों तक मेरे लेखों को भास्कर के सम्पादकीय पेज पर स्थान मिलता रहा।

बाद में प्रभात झा ने राजनीति में कई छलांगें लगायीं। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री, दो बार राज्यसभा के सदस्य रहने के साथ प्रदेश के सर्वोच्च नेता के प्रतिद्वन्दी के रूप में भी पहचाने गये। कई वर्षों से वे मौन साधना कर रहे थे शायद स्वास्थ ही उसका कारण रहा हो। अपनी प्रतिभा और समर्पण से फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले लोगों के इतिहास में उनका नाम लिखा जायेगा। वे मेरी यादों में दर्ज हैं, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।  

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023

     

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