सविता भावी और बीमा एजेंट की मुसीबत
वीरेन्द्र जैन
हमारे यहाँ की पुराण कथाएं इस हद तक विश्वसनीय मानी जाती हैं कि लाखों करोड़ों लोग उन्हें सच्चा इतिहास मानते हैं। इन कथाओं के आधार पर मूर्तियाँ और मन्दिर बन जाते हैं, मेले लगते हैं जिनमें लाखों लोग एकत्रित होते हैं पूजा पाठ करते हैं, दान उपवास आदि करते हैं और अपनी पूजा अर्चना के आधार पर अपना वर्तमान और भविष्य अपनी सोच और लालच के अनुसार सुधरने की सुखद कल्पना करने लगते हैं। दरअसल यह रचे गये ग्रंथ और उसके पात्रों को दिये गये चरित्र की जीवंतता ही होती है जो रचनाकार की कल्पना को साकार कर देती है। गुलेरी का लहना सिंह हो या प्रेमचन्द का होरी हो या हमारी फिल्मों के सैकड़ों गब्बर सिंह या साम्भा जैसे चरित्र हों वे सच्चे से मालूम देते हैं। पिछले दिनों एक मित्र ने एक ऐसी रोचक घटना सुनायी जो भारतीय इंटरनेट का शौक रखने वालों के बीच रचे गये चरित्र की लोकप्रियता का भी संकेत देते हैं। रोचक यह है कि मशीनी आंकड़े उसकी लोकप्रियता को दर्शाते हैं जबकि नैतिकता का मुखौटा ओढे आम आदमी में कोई भी उसका दर्शक होना नहीं स्वीकारता।
उक्त मित्र को जो जीवन बीमा एजेंट हैं अपना एक बहुत पुराना मित्र अचानक नगर में मिल गया। अपने बीमा के प्रोफेशन के हिसाब से उसने उससे ज्यादा प्रगाड़ता प्रकट की जितनी कि शेष बची हुयी थी। तुरंत घर का पता लिया, फोन नम्बर लिया और पहले त्योहार पर शुभ कामनाएं दीं तथा दीवाली को मिठाई का डिब्बा लेकर घर पहुँचा। उसके कुछ दिनों बाद उसने उन लोगों के बीमा का प्रस्ताव रखा और एक कुशल बीमा एजेंट की तरह पति पत्नी दोनों का ही बराबर बराबर बीमा प्रस्तावित किया। जब वह फार्म भरने लगा तो उसने दोस्त से भावी का नाम पूछा जिस पर पति पत्नी दोनों ही सकुचा गये और उनकी पत्नी ने तो अपने नाम से बीमा करवाने से ही इंकार कर दिया। उसे आश्चर्य हुआ कि अभी तक तो सब ठीक था किंतु नाम पूछते ही अचानक ऐसा क्या हो गया कि अच्छा भला पका पकाया केस खराब हो रहा था। एक समझदार बीमा एजेंट होने के कारण उसने कहा कि हम बाद में आयेंगे, और वहाँ से चला आया। कुछ दिनों बाद उसने उस दोस्त को होटल में ड्रिंक पर इनवाइट किया और तीन पैग हो जाने के बाद धीरे से बात छेड़ दी। नशे में खुल जाने के बाद उसने बताया कि उसकी पत्नी का नाम सविता है तथा उसकी पिछली पोस्टिंग के दौरान जब उसके कुछ मित्रों को उसकी पत्नी का नाम मालूम हुआ तो वे कुटिल व्यंग्य भाव से सविता भावी, सविता-भावी, कहने लगे। तब तक उन्हें इस करेक्टर के बारे में पता नहीं था किंतु पड़ोस की कुछ महिलाओं ने आपसी बातचीत में उस करेक्टर के बारे में कुछ संकेत दिये तो उनकी पत्नी ने उस करेक्टर को देखने की ज़िज्ञासा की। इंटरनेट पर उसे देखने के बाद उसे इतना क्रोध आया कि अपने नाम से नफरत हो गयी और जो भी उसे सविता भावी कहता वह आग बबूला हो जाती क्योंकि उसे सविता भावी कहने वालों की व्यंग्यपूर्ण कुटिल मुस्कान की याद आ जाती। अब जब भी कोई उसे भावी कहता है तो वह उसके सामने अपना नाम ज़ाहिर करना अपनी तौहीन समझती है।
उक्त मित्र ने मान लिया है कि इंटर्नेट के इस करेक्टर की लोकप्रियता के कारण उसका बीमा का यह केस तो गया।
वीरेन्द्र जैन
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post hit karaane kaa sugam raastaa.
जवाब देंहटाएंhey bhagvaan kya duvidha hai ab log naam kaise rakhenge apne baccho ka kyuki ab to net par kuch bacha hi nahi hai
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग......
जवाब देंहटाएंहल्की सोच है
जवाब देंहटाएंआशा है सन्देश काफ़ी होगा
जवाब देंहटाएंघटिया पोस्ट
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