ठेकेदारों द्वारा श्रम कल्याण और भ्रष्टाचार वीरेन्द्र जैन
अपर क्लास में सफर करने की सुविधा मिलने पर भी यात्री का क्लास अर्थात वर्ग तो वही रहता है जिससे वह आया हुआ होता है। अपनी नौकरी और किन्हीं सरकारी सेमिनारों आदि के लिये जाने पर मुझे रेलवे के अपर क्लास में यात्रा करने के सौभाग्य मिलते रहे हैं। इन यात्राओं के दौरान मेरे वर्ग और परिवेश के बीच जो द्वन्द पैदा होता है उसने मुझसे अक्सर ही कुछ न कुछ लिखवाया है।
पिछले दिनों ऐसी ही एक यात्रा के दौरान मेरे सहयात्री एक ठेकेदार थे और प्रारम्भिक बातचीत में इस बात की पुष्टि हो जाने पर कि में कोई सरकारी अधिकारी नहीं हूं और लिखने पढने का शौक रखता हूं, वे खुल गये और मुक्त कंठ से सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगे। विभिन्न विभागों में कितने पर्सेंट कमीशन किस किस को देना पड़ता और किस किस इंस्पेक्टर को महीने के महीने रकम पहुँचाना होती है इसका उन्होंने जम कर खुलासा किया और हर बार उस में नई नई तरह की गालियाँ मिलाते गये। वे यह भी बताते गये कि किस विभाग में कैसे कैसे भ्रष्टाचार होता है और ऐसे में सरकारी काम में गुणवत्ता कैसे बनाये रखी जा सकती है। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या कोई ऐसा भी अधिकारी मिला जो रिश्वत नहीं लेता हो तो उन्होंने दो एक नाम स्वीकार किये। पर जब मैंने पूछा कि क्या उस दौरान आपने गुणवता में सुधार किया था तो वे कुछ अचकचा कर बोले कि वे नहीं लेते तो क्या हुआ किंतु उनके कार्यालय के लोग तो लेते ही हैं। उनसे मेरा दूसरा सवाल था कि सरकार से आपको भुगतान की पूरी राशि तो एक नम्बर में मिलती है और आपको रिश्वत दो नम्बर में देना पड़ती है ऐसे में आप पूरी राशि पर टैक्स तो चुकाते नहीं होंगे फिर इस राशि को अपने खातों में व्यय में दिखाते होंगे, इस व्यय किस व्यय में दिखाते हैं? उनका सीधा सपाट उत्तर था कि यह सारा व्यय श्रम कल्याण में दिखाया जाता है।
श्रमिक कानून के अनुसार कार्य स्थल पर जो सुविधाएं होनी चाहिए वे कहीं नहीं होतीं फिर भी प्रत्येक ठेकेदार के व्यय खाते में श्रम कल्याण के नाम पर जो रकम दर्ज़ होती है वह उसकी वैधानिक जिम्मेवारियों से कई गुना अधिक होती है। यदि ठेकेदारों के खातों में दर्ज़ उक्त राशियों का विधिवत संयोजन किया जाये तो हम पायेंगे कि श्रमिक को उसके पारश्रमिक की राशि से भी अधिक की कल्याणकारी सुविधाएं मिलती हैं।
सच तो यह है कि श्रमिकों, वंचितों, दलितों, विकलांगों, आदि के कल्याण के नाम पर खर्च में दिखायी गयी बड़ी राशि रिश्वत की भेंट चड़ती है।
वीरेन्द्र जैन
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