तंत्र पर डगमगाता भरोसा और उग्रवाद का बढता खतरा वीरेन्द्र जैन
दंतेवाड़ा में सी आर पी एफ के 76 जवानों को निर्ममता पूर्वक मार दिये जाने के बाद और उसके पहले से भी हमारे प्रधान मंत्री कहते आ रहे हैं कि माओवादी या बामपंथी उग्रवाद देश के लिये सबसे बड़ा खतरा है। ये उग्रवादी मूलतयः आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाये हुये हैं इसलिए इस समस्या को आदिवासियों के विस्थापन और उनको उनके मूल अधिकारों व जीवन पद्धतियों से वंचित करने की समस्या से जोड़ कर भी देखा जा रहा है, किंतु बामपंथी उग्रवाद एक राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत काम कर रहा है और देश में चल रहे पूरे तंत्र को बदलने की बात कहते हैं क्योंकि उन्हें इस तंत्र पर भरोसा नहीं है। आज उनका प्रभाव देश के अनेक राज्यों में है और एक पूरी पट्टी उनके प्रभाव में बतायी जाती है। इनका संगठन प्रतिबन्धित है और ये भूमिगत होकर काम करते हैं इसलिए उनके सच्चे कथन प्राप्त करने का कोई साधन नहीं है और जो कुछ भी उनके बारे में सरकारी मशीनरी या अविश्वसनीय मीडिया द्वारा बताया जाता है उसी के आधार पर फैसला करना होता है। उनके द्वारा किये हुये बताये गये कामों से उनकी छवि ऐसी बन रही है कि वे विदेशी कम्पनियों और जंगलों का दोहन करने वाले ठेकेदारों से रकम वसूलते हैं और निरीह पुलिस वालों और अर्ध सैनिक बलों को मारते हैं। कह सकते हैं कि उनकी छवि अच्छी नहीं बन रही है जिससे वे कश्मीर, बोड़ो, नागा आदि अलगाव वादियों या इस्लामिक आतंकियों जैसे देखे जा रहे हैं, और सोचने की बात यह है कि इस खराब छवि की बाबज़ूद भी उनका विस्तार हो रहा है।
दूसरी ओर कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया चारों ही स्तम्भों के बारे में कुछ खबरें तो ऐसी नज़र आती हैं जिनसे तंत्र पर भरोसा करने वाले कानून प्रिय नागरिक का भरोसा भी डगमगाने लगता है।
• असामाजिक तत्वों से सुरक्षा करने वाले हमारे अर्ध सैनिक बलों की सुरक्षा के लिये जो बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदे गये थे उनमें व्यापक भ्रष्टाचार हुआ और ऐसे जैकेट खरीद लिये गये जिनके भरोसे हमारे जवान सीना तान कर गोलियों की बौछारों में चले गये और मौत के मुँह में समा गये।
• हमारे शत्रु देश के दूतावास में काम करने वाली महिला अधिकारी हमारे देश के गोपनीय दस्तावेज़ दुश्मन को सौंपने के आरोप में गिरफ्तार की जाती है।
• उत्तर प्रदेश में सीआरएफ के जवान ही माओवादियों को कारतूसों सप्लाई के काम में लिप्त पाये गये हैं। वे कारतूसों के खाली खोखे बेचते थे जिन्हें बाद में भरकर माओवादियों तक पहुँचाया जाता था।
• बांगलादेश की सीमा पर तैनात जवानों पर बांगलादेशी घुसपैठियों को एक एक हज़ार रुपये की दर से सीमा के अन्दर प्रवेश कराने के आरोप हैं।
• जो रक्षा उपकरण अस्तित्व में ही नहीं है उसकी खरीद के लिए सिफारिश करने को सत्तारूढ दल का अध्यक्ष तैयार हो जाता है और नोटों की गिड्डियाँ लेते और अगली बार डालर में माँगते कैमरे में रिकार्ड कर लिया जाता है।
• हथियारों की खरीद करने के लिए सीमा पर झूठे खतरे पैदा किये जानें लगें।
• आये दिन हमारे देश की प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अपनी आय से बहुत बहुत अधिक सम्पत्ति रखने के आरोप में आयकर विभाग द्वारा पकड़े जाते हैं, या रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों गिरफ्तार किये जाते हैं। अन्य मलाईदार विभागों के अधिकारी, इंज़ीनियर, आदि की तो कोई गिनती ही नहीं है। सरकारी कार्यालयों में या पुलिस थाने में जाने से आम आदमी आतंकित सा महसूस करता है।
• जनता के स्वास्थ से जुड़े मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष दो करोड़ की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार होते हों और उनके पास से भारी सम्पत्ति बरामद होती हो। राम मनोहर लोहिया अस्पताल का ह्रदय रोग चिकित्सक झूठे बायपास आपरेशन दिखाकर और मंगाये गये उपकरणों को वापिस बेचते हुये पकड़ा जाता हो।
• प्रत्येक राज्य के स्वास्थ विभाग द्वारा गलत या अक्षम दवाएं खरीदने और दवा खरीद में करोड़ों के घपले किये जाने के समाचार आते हों। स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी के नाम पर सरकारी आतंक फैला कर करोड़ों की दवाएं और मास्क आदि खरीद लिये जाते हों। प्राईवेट अस्पतालों में जाने पर मामूली बीमारी के इलाज़ में भी आदमी के बदन के कपड़े तक बिक जाते हों, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं होती हो।
• कागजों पर पुल पुलियां कुँएं बन जाते हों और भुगतान हो जाता हो।
• मंत्रियों, राज नेताओं के समीप के लोगों या रिश्तेदारों के यहाँ छापा पड़ने पर करोड़ों रुपयों की राशि और अचल सम्पत्ति के प्रमाण मिलते हैं, पर फिर भी मंत्रीजी मंत्रिमण्डल से नहीं हटाये जाते अपितु उनकी पत्नियाँ नोट गिनने की मशीन खरीदते हुए कैमरे की पकड़ में आती हैं। पार्टी की ज्यादा बदनामी के डर से किसी को हटा भी दिया जाता है तो उसकी पत्नी को टिकिट दे दिया जाता है।
• दूसरों की पत्नी को अपनी पत्नी बताकर विदेश में भेजने वाला संसद सदस्य पकड़ा जाता है और उसका कुछ भी नहीं बिगड़ता।
• एक प्रदेश में गठबन्धन के आधार पर निर्दलीय मुख्यमंत्री बन जाता हो जिसके ऊपर छापा पढने पर एक साल के अन्दर उसकी अवैध कमाई पाँच हज़ार करोड़ निकलती हो।
• संसद में सवाल पूछने, सांसद निधि स्वीकृत करने, आदि कामों के लिए धन लेते नेता कैमरे के सामने पकड़े जाते हैं और उनमें से कई को तो वही राजनीतिक दल फिर से उन्हें सदस्य बनाये रखता है।
• जिस बहस को देश में चालीस लाख लोग देख रहे हों, उसके मतदान में पाला बदलने के लिए दी गयी बतायी रिश्वत को संसद के पटल पर पटके जाने के बाबज़ूद उसकी जांच टायँ टायँ फिस्स होकर रह जाती है और किसी को भी सज़ा नहीं मिलती।
• बजट में कटौती प्रस्ताव आने पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री एनडीए के बजाय यूपीए के पक्ष में वोटिंग करते हैं और उनसे समर्थन की वापिसी की धमकी देने वाली भाजपा सरकार बनाने का प्रस्ताव मिलने पर समर्थन वापिसी का प्रस्ताव टाल देती है। कांग्रेस को पानी पी पीकर कोसने वाली मायावती यूपीए के पक्ष में वोटिंग करती हैं और कटौती प्रस्ताव के पक्ष में भाषण देने के बाद लालू प्रसाद और मुलायम सिंह भाजपा के साथ वोटिंग न करने के नाम पर वाक आउट करके परोक्ष में यूपीए के पक्ष में पाये जाते हैं।
• राज्यसभा के चुनाव में व्यापक पैमाने पर दल के उम्मीदवार के खिलाफ वोटिंग होती हो और जो भी धन सम्पत्ति वाला चाहे वह सदन में पहुँच कर विशेष अधिकारों को अपने व्यावसायिक हित में लगाता हो, पर उसके मूल दल को कोई शिकायत नहीं होती हो।
• बड़े बड़े रईस संसद सदस्य अपने वेतन भत्ते अनाप-शनाप ढंग से बड़ा लेते हों तथा पेंशन आदि सुविधायें लेकर ज़िन्दगी भर मुफ्त यात्रायें करते हों, किंतु सदन में भाग लेना तो दूर उसमें उपस्थित होना भी ज़रूरी नहीं समझते हैं।
• सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश स्वीकार करता हो कि तीस प्रतिशत ज़ज़ भृष्ट हैं और ऐसे न्यायाधीश रंगे हाथों पकड़े जाते हों जिनके लेपटाप में किसी मुकदमे के दो तरह के फैसले मिल जाते हों ताकि रिश्वत के पैसे मिल जाने पर पहला नहीं तो दूसरा फैसला सुनाया जाने वाला हो।
• मीडिया में सम्पादकों पत्रकारों का स्थान दलाल लेते जायें जो सरकारी अधिकारी और अखबार मालिक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकें।
• चुनावों में पैसे का खेल इतना बढ गया हो कि करोड़ों रुपया खर्च करके ही लोग चुनाव जीत पाते हों, और एक ही टर्म में पूरा वसूल करने की दम रखते हों।
• धर्म के नाम पर बाबा बड़े बड़े फाइव स्टार आश्रम चला रहे हों जहाँ व्यभिचार से लेकर हत्या बलात्कार आदि अपराध हो रहे हों, वे कैमरे के सामने ब्लेकमनी को व्हाइट करने के सौदे करते देखे जाते हों, धार्मिक विश्वासों को भुनाने के लिए राजनीति में उतरते हों तथा उनके सारे अपराध दबा दिये जाते हों।
• जहाँ सरे आम सगोत्र विवाह के नाम पर युवाओं को फांसी दे दी जाती हो और एक डीजीपी जैसे पद पर रहा व्यक्ति उस फांसी को ठीक ठहराता हो। जहाँ आई जी जैसे पद पर बैठा पुलिस अधिकारी राधा बन कर नाचता हो।
• जहाँ मुख्यमंत्री के जन्म दिन पर भेंट करने के लिए चन्दा न देने पर विधायक इंजीनियरों के कत्ल करा देते हों।
• जहाँ गरीबों, वंचितों आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, अल्प संख्यकों, बेरोजगारों के नाम पर बनायी योजनाओं की सारी राशि नौकरशाही, नेतागिरी, मिलकर हड़प जाती हो और थोड़ी सी खुरचन पत्रकारों को भी डाल देती हो।
वगैरह................................ ऐसी दशा में यदि सारी दूषित छवि के बाद भी सबसे बड़े खतरे के और बड़े होने की सम्भावनाएं बढती जा रहीं हों तो उसका हल एक बार सरकारी गोली से निकाल लिए जाने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती कि वे रक्तबीज़ की तरह जल्दी दुबारा पैदा नहीं होंगे। ज़रूरत इस बात की भी है कि कानून का सख्ती से पालन करा के लोकतंत्र में अनास्था पैदा करने वाली इन घटनाओं को रोका जा सके और दोषियों को जल्द से जल्द सज़ा दिलायी जा सके। अब भी समय है जिसमें माओवादियों के तंत्र से अपने तंत्र को अच्छा साबित किया जा सकता है। एक तंत्र के प्रति जब भरोसा टूटने लगता है तो व्यक्ति भूल से और गलत दिशा की ओर भी मुड़ने लगता है। आज़ादी के प्रारम्भ में असंतुष्ट होने पर लोग कहते थे कि इससे तो अंग्रेज़ों का राज ही अच्छा था, बाद में लोग मिलेट्री शासन या तानाशाही में विकल्प खोजने लगे थे। सरकारी मशीनरी से निराश होकर लोग कहने लगते हैं कि ये कर्मचारी तो इमरर्जैंसी में ही ठीक चलते हैं। माओवादियों की ओर भी लोग ऐसी ही निराशा की स्तिथि में देखने लगे होंगे जिसे अच्छी सरकार के अच्छे कामों से दूर किया जा सकता है।
कहा गया है चिकित्सा से परहेज बेहतर होता है।
वीरेन्द्र जैन
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