मंगलवार, सितंबर 14, 2010

स्टिंग आपरेशन के पक्ष में हैं जैन संत तरुण सागर


स्टिंग आपरेशन के पक्ष में हैं जैन संत तरुणसागर
वीरेन्द्र जैन
भोपाल में इन दिनों अपने तीखे तेवर के लिए जाने जाने वाले युवा दिगम्बर जैन संत तरुण सागर का चातुर्मास चल रहा है। कई वर्षों से टीवी पर बुलन्द और भेदती आवाज में प्रवचन देने की उनके शैली ने देश भर हिन्दी श्रोताओं/ दर्शकों का ध्यान खींचा है। वे अपने कथन में तुकांतों का युग्म ही नहीं बनाते, अपितु प्रवचन के विषयों की परम्परागत शैली में सुधार करके अत्याधुनिक मनोरंजक प्रतीकों के साथ अपनी बात कहते हैं। वीआइपियों और सैलीब्रिटीज को अपने प्रवचन में खींच लाने का कौशल रखने वाले युवा संत ने इस वर्ष विधान सभा, और एमएसीटी में जाकर भी प्रवचन दिये हैं और नेताओं के खिलाफ खरी खरी बातें कहने से परहेज नहीं किया। यही कारण है कि मीडिया ने भी उनकी उपेक्षा नहीं की व उन्हें पर्याप्त कवरेज मिला। टीवी चैनलों ने उनके साक्षात्कार प्रसारित किये। सारे समाचार पत्र उनके कथनों को लगातार फोटो सहित छापते रहे हैं।
गत दिनों उन्होंने कुछ तीखे बयान दिये जिससे उनकी दृष्टि और साहस के प्रति आम जनता का ध्यान आकर्षित करते हैं।
गत दिनों धार जिले में एक बड़े श्रध्येय संत का निधन हो गया था, किंतु उनको कन्धा देने के लिए बोलियाँ लगीं और बाइस करोड़ रुपये एकत्रित किये गये। इसकी निन्दा करते हुए उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार में बोली लगाना एक गलत परम्परा है।
आशाराम बापू द्वारा अमेरिका से फरार बतायी गयी महिला को आश्रम में सुरक्षा से सम्बन्धित स्टिंग आपरेशन का समाचार प्रकाशित होने के अगले दिन ही उनका बयान था कि देश में दस प्रतिशत संत भ्रष्ट हैं अर्थात हर दसवाँ संत बगुला भगत बना बैठा है। आज देश के चर्चित संतों पर हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी और जालसाजी जैसे गम्भीर आरोपों ने सिद्ध कर दिया है कि कुछ लोग धर्म की आड़ में अपने गोरख धन्धों में जुटे हैं। इन्हें संत नहीं अपितु घोंघा बसंत कहना चाहिए। ये संतत्व को बदनाम करने वाले धर्म के दुश्मन हैं। स्टिंग आपरेशन के लिए टीवी चैनल को धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि इन नकाबपोश लोगों के असली चेहरे को उजागर कर श्रद्धालुओं को सचेत करने का काम किया है। उमाभारती के राजनीति में भाग लेने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि संत की वेशभूषा में राजनीति करना ठीक नहीं है।
उक्त समाचार पढ कर मेरे एक पड़ोसी मुझे जैन धर्म का अन्ध अनुआयी समझकर पहली बार मेरे घर आये और तरुण सागर की तारीफ करते हुए बोले अगर ये दिगम्बर साधु न हुए होते तो आज पूरी दुनिया में इनके नाम का डंका पिट रहा होता, पर दिगम्बर अवस्था में रहने के कारण दूसरे धर्मों के मानने वाले या विदेशी उन्हें नहीं आमंत्रित कर सकते। मैंने उक्त सज्जन को सिर से लेकर पैर तक देखने के बाद विनम्रता पूर्वक कहा पूछा कि दर्शन और आध्यात्म के क्षेत्र में उन्होंने और किन किन को पढा है, तो वे बोले कि मैंने तो ऐसा कुछ खास तो किसी को भी नहीं पढा है। मैंने कहा कि यही बात है, अगर वे बिना दिगम्बर साधु हुए इतने अच्छे विचार व्यक्त कर रहे होते तो भी न तो इतने नेता उनकी कढुवी बातें सुन रहे होते और ना ही अखबार वाले उन्हें छाप कर आपके पास तक पहुँचा रहे होते। ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ असामान्य तो होना ही पड़ता है और ज्यादा ध्यान आकर्षित करने के लिए ज्यादा असामान्य होना पड़ता है। पूजा करने के बाद घंटी, शंख, झालर, बजाना पड़ती है तब लोगों को पता चलता है कि आप पूजा कर रहे थे। वैसे एक बात बताऊँ कि वे स्वयं दिगम्बर हैं इसी लिए तो दूसरों का “दिगम्बर” होना उन्हें पसन्द आ रहा है और आप भी इसीलिए उनकी तारीफ कर रहे हैं। वे चुपचाप उठ कर चले गये।


वीरेन्द्र जैन
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