राजनीतिक सामाजिक और साहित्यिक रंगमंच के नेपथ्य में चल रही घात प्रतिघातों का खुलासा
शुक्रवार, सितंबर 17, 2010
.........दंगा होगा कि नहीं ?
...................दंगा होगा कि नहीं?
वीरेन्द्र जैन
कहा जाता है कि सट्टा खेलने वाले इस बात पर भी लाखों रुपयों का सट्टा लगा लेते हैं कि तय तिथि को दंगा होगा कि नहीं, और अपने दाँव को जीतने के लिए वे दंगा कराने वाली दोनों तरफ की ताकतों को यथा सम्भव मदद करते हैं ताकि वे लागत से ज्यादा कमा सकें। सत्ता का सट्टा खेलने वाले राजनीतिक दल भी अपनी जीत के लिए ऐसे ही प्रयास करते रहते हैं व सीधे सरल धर्मान्ध उनके जाल में फँसते रहते हैं।
राम जन्म भूमि व बाबरी मस्जिद भूमि विवाद से सम्बन्धित गत साठ वर्षों से चल रहे मुकदमे का फैसला सुनाया जाने वाला है जिसके आने से पहले ही देश के वे सारे राज्य जहाँ जहाँ संघ परिवार की प्रभावी उपस्तिथि है, दंगों की आशंकाओं से भर गये हैं। उत्तर पश्चिम व मध्य भारत के कुछ राज्यों में संघ सबसे अधिक सक्रिय और विध्वंसक क्षमताओं वाले संगठनों का नियंत्रक संगठन है। 1984 के चुनावों में जब उनकी राजनीतिक संस्था भाजपा लोकसभा की कुल दो सीटें जीत सकी थी तब सत्ता में आने के लिए इसने राम जन्म भूमि मन्दिर व बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को राजनीतिक मुद्दा बना कर जनता के बीच पेश किया, जबकि वे 1967 में उत्तर प्रदेश में और 1977 में केन्द्र की सत्ता में भागीदार रहे थे पर तब इन्हें कभी राम जन्म भूमि मन्दिर की याद नहीं आयी थी। इसके लिए भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं में से एक लाल कृष्ण आडवाणी एक मिनि ट्रक डीसीएम टोयटा को रथ का नाम देकर व उस पर अपने दल का चुनाव चिन्ह कमल का फूल पेंट करा के देश भर की यात्राओं पर निकल पड़े थे और अपने उत्तेजक भाषणों से अपने पीछे पीछे रक्त रंजित राह बनाते चले थे। जब एक ओर से हमला प्रारम्भ होता है तो सरकारी न्याय से उम्मीद न रखने वाले लोग उसकी प्रतिक्रिया भी करते हैं जो दंगों में परिवर्तित होता जाता है।
राजनीतिक रूप से चुनावों में पराजित होंने पर भाजपा इस विश्वास के अनुसार काम करती है कि जब भी जनता का अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच ध्रुवीकरण होता है तो राजनीतिक चेतना विहीन क्षेत्र में उसका लाभ बहुसंख्यकों की साम्प्रदायिकता करने वाले दल को मिलता है। उक्त क्षेत्रों में धर्म निरपेक्षता केवल एक आदर्श भर है और साम्प्रदायिकताओं से टकराने लायक संगठनात्मक जुझारू ताकत धर्म निरपेक्षता के पक्षधर दलों के पास नहीं है। बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता इसी स्तिथि का लाभ उठाने के प्रयास में रहती है। [जहाँ यह ताकत है वहाँ साम्प्रदायिकता सफल नहीं हो पाती और उसका प्रयोग करने वाले राजनीतिक दल सफल नहीं हो पाते]। सन 1989 के बाद से भाजपा परिवार का विस्तार इसी तरकीब से हुआ है और अब यह उसके लिए आजमाई हुयी तरकीब हो गयी है।
हिंसक भीड़ को उकसा कर बाबरी मस्जिद तुड़वाये जाने की जब दुनिया भर में निन्दा हुयी तब श्री आडवाणी ने कहा था कि यह घटना इसलिए हुयी क्योंकि सम्बन्धित विवाद का फैसला इतने अधिक समय से लम्बित रहा है जिससे लोगों का सब्र टूट गया और इसका परिणाम उक्त भवन के ध्वंस में सामने आया। किंतु अब जैसे जैसे उसके फैसले के दिन नजदीक आते गये वैसे वैसे संघ परिवार के बयान आते गये कि यह आस्था का मामला है और आस्था का फैसला अदालत से नहीं हो सकता। फैसला आने से पहले ही उन्होंने 16 अगस्त से धर्म की ओट लेकर पूरे उत्तर भारत के हनुमान मन्दिरों में हनुमत जागरण के नाम पर लोगों को एकत्रित करके अपनी ताकत को आंकने के प्रयास प्रारम्भ कर दिये। उनकी तैयारियाँ कैसी हैं इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश ने अपने सारे आईएएस आईपीएस अधिकारियों की छुट्टियां रद्द करने के बाद भी केन्द्र से सी आर पी एफ की छह सौ से अधिक कम्पनियां मांगी हैं। दूसरी ओर भाजपा शासित मध्य प्रदेश ने भी अपने अधिकारियों की छुट्टियां रद्द करने के बाद केन्द्र से अधिक से अधिक कम्पनियां शायद इसलिए भी मांगी हैं ताकि दूसरे राज्यों को समुचित संख्या में आवश्यक फोर्स न मिल सके। दूसरी तरफ आडवाणी ने एक बार फिर प्रधान मंत्री प्रत्याशी बनने की उम्मीद में भले ही इस विषय पर होंठ न खोलने की रणनीति अपना रखी हो किंतु परिवार के शेष नेता लगातार अदालत का अपमान सा करते हुये बयान दे रहे हैं। इस पार्टी ने 18-19 सितम्बर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलवायी है और इसके एक दिन पूर्व पार्टी महा सचिवों की बैठक होगी।
• इन्दौर में संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने कहा है कि यदि हमारे पक्ष में फैसला नहीं आया तो 26 सितम्बर को भारत बन्द का आवाहन किया जायेगा और 25 सितम्बर को पूरे देश में चक्का जाम किया जायेगा। यदि पक्ष में फैसला आया तो दीवाली मनेगी [ अर्थात अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्तेजित करने वाली घटनाएं होंगीं]। इन्दौर में ही भगवा ब्रिग्रेड में हिन्दू योद्धा भरती के लिए हजारों पोस्टर लगाये गये हैं।
• अशोक सिंघल कहते हैं कि कोर्ट से चाहे जो कुछ भी फैसला हो लेकिन अयोध्या में राम मन्दिर बनना चाहिए और सरकार को इस बाबत संसद में कानून बनाना चाहिए [गोया समस्या अयोध्या में राम मन्दिर बनाने की हो जबकि समस्या तो ठीक “उसी स्थान” पर राम मंदिर बनाने की बनायी गयी थी जहाँ पर बाबरी मस्जिद बनी हुयी थी, ताकि मुसलमानों से टकराव करने को एक धार्मिक रूप देकर बहुसंख्यकों की भावनाओं को भड़काया जा सके।]
• कल्याण सिंह भी यही बात दुहराने लगे हैं। वे आडवाणी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि जिन्हें 6 दिसम्बर 1992 की घटना पर शर्म आती हो वे नदी में जाकर डूब मरें, मुझे तो कोई शर्म नहीं है।
• विनय कटियार कहते हैं कि आस्था और विश्वास जैसे संवेदनशील विषयों का समाधान अदालत में नहीं किया जा सकता। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेन्द्र जैन कहते हैं कि विहिप को पूरे देश में कहीं भी बाबरी मस्जिद मंजूर नहीं है।
• विहिप के आचार्य धर्मेन्द्र ने कहा है कि यदि फैसला हिन्दुओं के प्रतिकूल होगा तो वे उसे नहीं मानेंगे [ जैसे वे पूरे देश के हिन्दुओं के प्रवक्ता हों]
• इस मुकदमे के पक्षकार निर्मोही अखाड़े के 82 वर्षीय भाष्कर दास ने कहा यदि फैसला उनके पक्ष में नहीं आया तो वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
यह सब देखते हुए लगता है कि संगठित संघ परिवार, धर्मनिरपेक्षता को असंगठित देखते हुए एक बार फिर उत्तर-मध्य भारत में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हेतु दंगों को अपने राजनीतिक लाभ की रणनीति के रूप में देख रहा है। अदालत का फैसला चाहे पक्ष में हो या विपक्ष में उसने अपनी योजनाएं तैयार कर ली हैं। यह बात उनके अनुकूल जा रही है कि देश की सुरक्षा एजेंसियां माओवादियों और अलगाववादियों से देश की रक्षा में लगी हुयी हैं इसलिए बहुत सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं दूसरी ओर कई राज्यों में भाजपा की राज्य सरकारें है इसलिए वे उनके इशारे पर वैसा ही काम करेंगीं जैसा कि 2002 में गुजरात में हुआ था जिसके दोषियों को आज की तारीख तक सजा नहीं मिल सकी है। यह देखते हुए लगता है कि कुछ क्षेत्रों में दंगे अवश्याम्भावी हैं। यदि सीमित लक्ष्य के लिए समस्त गैर भाजपा ताकतें इसके विरुद्ध एक मंच पर आ सकेंगीं तभी इनको रोकना सम्भव हो सकेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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"...दूसरी ओर भाजपा शासित मध्य प्रदेश ने भी अपने अधिकारियों की छुट्टियां रद्द करने के बाद केन्द्र से अधिक से अधिक कम्पनियां शायद इसलिए भी मांगी हैं ताकि दूसरे राज्यों को समुचित संख्या में आवश्यक फोर्स न मिल सके..."
जवाब देंहटाएंयदि फ़ोर्स न माँगते तब भी आप कहते कि, देखो इन्होंने फ़ोर्स नहीं माँगा इनकी नीयत दंगे करवाने की है…। यानी चित भी मेरी और पट भी मेरी… :)
चलिए मैं आप की बात मान लेता हू .पर क्या आप बताएँगे सिक्ख जाती का उदय क्यों हुआ .गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश दान क्यों किया ???? इतिहास गवाह है की आज भी अनेक मस्जिदे मंदिरों की जगह खड़ी है .आज जो आप को हिंदुत्व दिख रहा है वो इसी का प्रतिक्रिया फल है .
जवाब देंहटाएंमैंने खुद क़ुतुबमीनार (विष्णु स्तम्भ )के पास की मस्जिद पर लगा सरकारी शिला लेख देखा है जो बताता है की मस्जिद २७ जैन हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर बनाई गयी है .उस मस्जिद में जब तब मुस्लिम नमाज पड़ने की मांग करते है .
वैसे भी अगर वहा पर महावीर स्वामी जी की जन्म स्थली होती तो आप दूसरा राग आलाप रहे होते
' वहा पर'' से तात्पर्य राम जन्म भूमि से है
जवाब देंहटाएंजात न पुछो साधु की!!!
जवाब देंहटाएं''वैसे भी अगर वहा पर महावीर स्वामी जी की जन्म स्थली होती तो आप दूसरा राग आलाप रहे होते... ''
अभिषेक जी एक तरफ आप कह रहे है कुतुबमीनार 27 जैन मंदिरों का तोड बर बनायी गयी है, दुसरी तरफ आपका उपरोक्त कथ्य।
आप जैन होने के कारण लेखक पर 'वहा पर' अलग राग आलापने का आरोप कर रहे है, आपके कुतर्क के अनुसार लेखक को कुतुबमीनार वाली बात का समर्थन करना चाहिये था। लेखक के लेखन या विचारों में से इस संबध में (कुतुबमीनार के जैन मंदिरो के तोडने) या ऐसे ही किसी अन्य मामले में एक भी टिप्प्णी निकाल कर बताये अन्याथा माफी के साथ अपना बकवास कुतर्क वापस लेवे।
मंदिर मस्जिद तोडने का रिकार्ड बनाने वाले दुसरे पर मंदिर तोडने का आरोप करते है बडा ही हास्यापद मंजर है। हिन्दुओ ने कितने बोद्घ मंदिर व जैन मंदिर तोडे जरा उनका भी सज्ञान लेकर आवे फिर बात करे। जैनीयों को बदनाम करने के लिये कैसी कैसी मुर्तिया बनवायी वो भी जरा देखकर आवे। बोद्घ धर्म को हिन्दोस्तान से हकालने के लिये ब्राहृमणों (उस समय हिन्दू शब्द प्रचलित नहीं था) द्वारा किये धतकर्म के निशां को आपके या संघ विहीप शिवसेना बजरंगी फिरंगीयों के उलजुलुल बकवास मिटा नहीं सकते है।
पहले बोद्घो को निपटाया, फिर दलितो को खुब दबाया, सिखो को तबीयत से जलाया, अब मुस्लिमों को निपटा रहे है। हिन्दू मुस्लिम, हिन्दू जैन, हिन्दू ..., ये लडाई आप आखिर कब तक लडना चाहते है? जरा सोचकर बतावे।
''इन्दौर में ही भगवा ब्रिग्रेड में हिन्दू योद्धा भरती के लिए हजारों पोस्टर लगाये गये हैं।''
जवाब देंहटाएंइन पोस्टरों पर भगतसिंह व आजाद की तस्वीर को प्रमुखता के साथ छापा गया है। ये मरदुद धर्मनिरपेछता के सबसे बडे पैराकार भगतसिंह के नाम का इस्तेमाल करने तक से बाज नहीं आ रहे है। हिन्दू धर्म, मंदिरों व उनमें बैठे निरीह ईश्वर की रक्षा के लिये जिस हिन्दू सेना को बनाया जा रहा है उसे बनाने में देश के सबसे बडे नास्तिक विचारक भगतसिंह की तस्वीर। शर्म आती है आज के इन बुजदिल हिन्दूवादियों पर, अपने पोस्टर पर छापने के लिये इन्हें आखिरकार एक नास्तीक साम्यवादी विचारक ही मिला। छी छी...
ईश्वर सावरकर गोलवरकर गोडसे की आत्मा को शांती दे...
जय श्री राम!
मंदिर वही बनायेंगे कसम राम की खाते है।
faisla to aa gaya par dange nahin huye. jain sahab ke anusar to hinduon ke paksh mein faisla aane par bhi dange hone the. kahiye ab kahan jakar munh chipange aap. is desh mein hindu aur muslim ke un tabkon, jinhe kattarvadi kaha jata hai, se bhi jyady taklif dharmnirpekshta ke syambhu thekedoron ko hoti hai. ho bhi kyon na, giddhon ki tarah inki roti ka intjam bhi to dange aur khoon kharabe phir unki reporting aur hinduvadiyon ko gali dekar hi hota hai.G.K.
जवाब देंहटाएं@जी के अर्थात गुमनाम कुमार जी, शायद आपने अंतिम वाक्य नहीं पढा और अगर नहीं पढा है तो दुबारा पढो और फिर भी नहीं समझ में आये तो इसी ब्लाग की ताजा पोस्ट अयोध्या का फैसला .......... पढिये। दंगे करवाता कौन घूमता है और मोटर को रथ बना कर उस पर अपनी पार्ती का चुनाव चिन्ह लगाता है? जो लोग शांति का वाता वरण बनाना चाहते हैं वे आपको धन्धेबाज ्नजर आते हैं। आपका अपराध बोध तो इसी से जाहिर होता है कि आप गुमनामी में रह कर पत्थर फैंकते हैं।
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