रविवार, जुलाई 18, 2010

राजनेताओं की गालियां और नारी विमर्श


राजनेताओं की गालियाँ और नारी विमर्श
वीरेन्द्र जैन
स्वयं को सांस्कृतिक संगठन बताने वाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा नियुक्त भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तरांचल की एक आम सभा में भाषण करते हुए कहा कि अफज़ल गुरू क्या कांग्रेस का जमाई लगता है या कांग्रेस ने उसे अपनी बेटी दे रखी है जो उसको फाँसी नहीं दे रही। संघ परिवार किसी भी समस्या को हिन्दू मुस्लिम समस्या की तरह प्रस्तुत करने के खेल पर चलता है ताकि समाज का ध्रुवीकरण करा के स्वयं को बहुसंख्यकों का प्रतिनिधि बतला कर वोट बटोरे जा सकें। उनके इस इकलौते कार्यक्रम में पिछले दिनों ईसाइयों द्वारा धर्म परिवर्तन का मुद्दा भी गाहे वगाहे जोड़ दिया जाता है ताकि इस बहाने सोनिया गाँधी पर प्रहार किया जा सके, जो संयोग से राष्ट्रव्यापी इकलौती पार्टी के धुरी हैं और अपने पैतृक धर्म से ईसाई हैं।

समाज के ध्रुवीकरण पर राजनीति करने का यह तरीका उनका जनसंघ की स्थापना के समय से ही चला आ रहा है और उनका अस्तित्व ही इसी कौशल पर बना हुआ है। वे कभी गौ हत्या के नाम पर दिल्ली में प्रदर्शन करते हुये संसद पर हमला करा देते हैं तो कभी राम मन्दिर के नाम पर बाबरी मस्ज़िद ध्वंस करने के लिए रथ यात्राएं निकालते हैं। उनकी राजनीति के प्रमुख मुद्दों में समान आचार संहिता, धारा 370 की समाप्ति, बंगला देश से आये शरणार्थियों में से मुस्लिम शरणार्थियों को बाहर निकालने आदि कभी भी उठाये जाने वाले मुद्दों में से हैं। कभी कोई नये मन्दिर का निर्माण न कराने वाले और सूने पड़े धमस्थलों के बारे में न सोचने वाले इस संगठन को हमेशा वे ही धर्मस्थल याद आते हैं जो विवादित होते हैं और जिन के बहाने अल्पसंख्यकों से विवाद भड़काया जा सकता हो, इनमें चाहे काशी मथुरा की इमारतें हों या भोजशाला की हो। वैसे उनकी सूची में साढे तीन सौ इमारतों की सूची सुरक्षित है। अफज़ल को फाँसी देने के बारे में भी उनकी चिंताएं देश की अस्मिता के खिलाफ दुस्साहस करने वाले अपराधी को फाँसी देने की चिंताएं नहीं हैं क्योंकि फाँसी की सजा पाये तो बहुत सारे लोग पहले से ही सूची में हैं, अपितु उनका जोर इसे हिन्दू बनाम मुस्लिम बनाने पर है। एक बड़े राजनीतिक दल के अध्यक्ष के रूप में न केवल विषयों के चयन में ही दूरदर्शी होन पड़ता है अपितु भाषा के चयन में शालीन और संयमित होना पड़ता है, इतिहास बताता है जब राजीव गाँधी पर अचानक एक बड़ी ज़िम्मेवारी आ गयी थी और उन्होंने किसी दूसरे का लिखा “बड़े पेड़ के गिरने पर धरती हिलने वाला” वाक्य बोल दिया था तो वह वाक्य हमेशा ही उनके साथ चिपका रहा, और न केवल उनके जीवन काल में अपितु उसके बाद भी इस एक वाक्य को उनके खिलाफ उदाहरण की तरह प्रस्तुत किया जाता रहा। गडकरी का वाक्यविन्यास तो न केवल एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष की गरिमा को ही गिराते हैं अपितु शालीनता की भी सारी हदें तोड़ते रहते हैं। गडकरी के गाली प्रयोग से दो सवाल उठते हैं, पहला तो यह कि उनके पास अपनी बात कहने के लिए उचित राजनीतिक भाषा और प्रतीकों का अभाव है और दूसरा यह कि वे नारी को दोयम दर्जे का नागरिक मानने वाले पिछड़े लोगों में से हैं। यह इसलिए कि हमारे यहाँ जितनी भी अशालीन गालियाँ हैं वे सभी नारियों को केन्द्रित करके दी जाती हैं, इसके विपरीत जितने भी आशीर्वाद हैं वे पुरुषों के हित में दिये जाते हैं। यहाँ तक कि जब नारी को आशीर्वाद दिया जाता है कि सौभाग्यवती रहो, तो वह भी नारी को पुरुष हित के प्रतिफल के रूप में प्राप्त होने वाला आशीर्वाद है जो मूल रूप से उसके लिए नहीं है। इसलिए जब भी अशालीन गाली का प्रयोग किया जाता है तो वो परोक्ष में एक महिला विरोधी कदम भी होता है। पुरातन काल, जिसकी संघ परिवार प्रसस्ति गाता रहता है, में जब महिलाओं को समानता देने का विचार भी सामने नहीं आया था तब वे सम्पत्ति के रूप में मानी जाती थीं तथा उनके पति उनके स्वामी, मालिक आदि कहलाते थे। लोकतांत्रिक विकास ने इस अवधारणा को बदला है और नागरिकता में लिंग भेद न मानने वाला हमारा संविधान नारी और पुरुष को समान नागरिक मानता है। दो भिन्न धर्मों के बीच होने वाले विवाह में साम्प्रदायिक लोग हमेशा इस बात को आधार बनाते हैं कि अगर हमारी बेटी ने किसी दूसरे धर्म वाले से शादी की है तो हम पराजित हो गये और यदि हमारे किसी बेटे ने दूसरे धर्म की लड़की से शादी की है तो हम जीत गये। संघ परिवार ने विभिन्न धर्मों के बीच हुये विवाहों पर जो तनाव फैलाने की हजारों कोशिशें की हैं वे हिन्दू लड़कियों द्वारा मुस्लिम लड़कों से शादी करने पर ही की हैं, जबकि हिन्दू लड़कों द्वारा किसी मुस्लिम लड़की से शादी करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुयी। संघ परिवारी परम्परावादियों के बीच इसी मनोविज्ञान का लाभ उठाना चाहते हैं। यह नारी और उसके अधिकारों को दोयम दर्जे का बनाये रखने की कोशिश भी है।
यदि गडकरी की गाली पर भाषा और समाज शास्त्र की दृष्टि से विचार करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस कोई व्यक्ति या परिवार नहीं है एक संस्था है। इसलिए बेटी या बेटा कांग्रेस का नहीं अपितु उसके सदस्यों का ही हो सकता है। [जैसे प्रज्ञा ठाकुर संघ की बेटी नहीं हो सकती] चूंकि कांग्रेस भाजपा के विपरीत एक धर्म निरपेक्ष संस्था है इसलिए उसमें समान अनुपात में सभी धर्मों के मानने वाले सदस्य होंगे, और कोई आरोपी किसी का दामाद भी हो सकता है या बहू भी हो सकती है, या कोई भी रिश्तेदार हो सकता है। किंतु क्या कानूनी और प्रशासनिक फैसले किसी रिश्तेदारी के आधार पर तय होते हैं! क्या किसी कांग्रेसी ने कभी अफजल को बेकसूर बताया है या फाँसी के फैसले को गलत बताया है? किंतु जब अटल बिहारी बाजपेयी ने राहुल महाजन की शर्मनाक हरकत को जवानी की भूल बता कर हल्का करने की कोशिश की थी और संघ समेत किसी ने भी उनकी निन्दा तक नहीं की थी। यह कैसी बिडम्बना है एक और तो अफजल को फाँसी से बचाने के लिए वकालत करने वाले राम जेठमलानी को पार्टी के एक बड़े वर्ग के विरोध के बाबजूद राज्य सभा का सदस्य चुनवा दिया जाता है और दूसरी ओर अफजल की फाँसी को एक प्रमुख दल का अध्यक्ष अपना प्रमुख मुद्दा बनाता है, जबकि अटल सरकार के समय ही तीन तीन दुर्दांत आतंकवादियों को विमान में बैठा कर छोड़ा गया था। ऐसा लगता है कि गडकरी जी जनता की राजनीतिक चेतना को और मीडिया की पहुँच को समझने में भूल कर रहे हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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