शनिवार, मार्च 17, 2012

राजनीति को लम्पट युवाओं से बचाना जरूरी


राजनीति को लम्पट युवाओं से बचाना जरूरी

वीरेन्द्र जैन   
                पिछले दिनों हुए पाँच विधानसभा चुनावों में से उत्तर प्रदेश के चुनावों का अपना एक अलग महत्व है।  यह महत्व केवल इसलिए ही नहीं है कि वह देश का सबसे बड़ा राज्य है, अपितु इसलिए भी है कि इसमें चुनाव परिणामों के प्रति जो भी कयास लगाये जा रहे थे, या प्रीपोल सर्वेक्षण थे जिसमें गठबन्धन को अवश्यम्भावी बताया जा रहा था, उन सब को झुठलाते हुए मतदाताओं ने एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया जिसका नेतृत्व एक युवा के हाथों में दिया गया है। उल्लेखनीय है कि इन चुनावों में दो करोड़ युवा मतदाता नये जुड़े थे और राज्य के चतुष्कोणीय चुनाव में पुराने मूल्यों में विश्वास रखने वाली भाजपा को छोड़ कर शेष तीन पार्टियों का नेतृत्व भी युवा नेताओं के पास था। यही कारण है कि मतदान में हुयी तीव्र बढोत्तरी के बाबजूद भाजपा के मतों में दो प्रतिशत की कमी आयी है और उसकी सीटें ग्यारह प्रतिशत घट गयी हैं।
      इस नये दौर में यह तय लग रहा है कि भारतीय राजनीति में अगला युग युवाओं का ही होगा, किंतु मुख्यधारा की राजनीति में जो युवा आ रहा है क्या वह इतना विश्वसनीय है कि उसके हाथों में लोकतंत्र की बागडोर सौंपी जा सके? उत्तर प्रदेश के नये युवा मुख्यमंत्री अखिलेश के शपथ ग्रहण समारोह में जो दृष्य उपस्थित हुआ वह बहुत आशाएं नहीं जगाता। मुख्यमंत्री के समर्थन में आये युवाओं ने न केवल शपथ ग्रहण के मंच पर ही कब्जा कर लिया, शपथ ग्रहण की मेज को तोड़ दिया, डायस को गिरा दिया अपितु सजावट के लिए लगाये गये फूल पत्तियों को नोंच कर फेंक दिया। वे चयनित मंत्रियों की कुर्सियों पर बैठ गये और बार बार अपीलें करने के बाद भी नहीं उठे। नई सरकार को उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की घोषणा करनी पड़ी है। चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद इस प्रदेश के विभिन्न नगरों में निकाले गये विजय जलूसों में जिस तरह की उद्दंडताका प्रदर्शन हुआ उसमें गोली लगने से एक बच्चे की मौत तक हो गयी, और पूरे प्रदेश में गुण्डागिर्दी का भय व्याप्त हो गया। इन जलूसों में ऐसा लग रहा था जैसे लोकतांत्रिक चुनाव न जीता हो अपितु किसी राजा के सैनिकों ने युद्ध जीता हो और वे विजित देश को लूटने के लिए निकल पड़े हों। असल में यह उस पूरी राजनीतिक संस्कृति में विकसित हो गया दोष है जो कुछ अपवादों को छोड़ कर समस्त मुख्य धारा के दलों में व्याप्त हो गयी है।
      इन दिनों सक्रिय राजनीति में जो युवा जुड़ रहे हैं उनमें से अधिकांश उस आर्थिक वर्ग से आ रहे हैं जो अपनी विरासत के कारण बिना कुछ परिश्रम के समस्त सुविधाओं वाला जीवन जीने के प्रति आश्वस्त हैं और शौकिया राजनीति उनके लिए अपनी पहचान स्थापित करने, सत्ता हथियाने, अपने अहं को तुष्ट करने, विरोधियों को नीचा दिखाने, ऐयाशी से भरा जीवन जीने, सरकारी मशीनरी को गुलाम बनाने, व अपने परिवार के व्यापारिक औद्योगिक हितों को सुरक्षित रखते हुए सरकारी अनुदानों व दूसरे लाभों को अपने हित में हस्तगत करने के लिए है। इस युवा की दृष्टि न तो व्यापक है और न ही सब जन सुखाय वाली है। वह जनता का, जनता के द्वारा जनता के लिए सिद्धांत वाले शासन को अपने निजी हितों में उपयोग करना चाहता है। पिछड़े वर्ग की जो जातियां कभी अपने सवर्ण आकाओं के लिए लठैती करती रही थीं वही मण्डल कमीशन के बाद सत्ता के स्वाद और सुखों से परिचित हुयीं और उन्होंने दूसरों को सत्ता दिलाने के लिए अपना खून पसीना बहाने की जगह अपनी ऊर्जा का स्तेमाल खुद की  सत्ता पाने के लिए लगाना शुरू कर दिया। आज इन युवाओं के पास बड़े बड़े क्रैशर हैं, ट्रक हैं, डम्पर हैं, गाड़ियां हैं, ताकत से हथियाये ठेके हैं और भ्रष्ट अधिकारियों से अपने पक्ष में काम कराने के लिए धन है व राजनेताओं के लिए समर्थकों की भीड़ है। कुल मिला कर युवाओं का एक बड़ा लम्पट वर्ग राजनीतिक दलों में प्रवेश कर चुका है जो मूल्य विहीन समर्थन के लिए लालायित नेताओं पर दबाव बना सकने में सक्षम है। राजनीतिक सोच विहीन यह वर्ग सत्ता से जुड़ी किसी भी पार्टी या नेता के पास जा सकता है क्योंकि इसकी न तो कोई विचारधारा है और न ही कोई प्रतिबद्धता ही है। भाजपा जैसी कभी अनुशासित रही पार्टी में भी विभिन्न आर्थिक सामाजिक  अपराधों व अनैतिकताओं से जुड़े युवा  अपराधी आये दिन पकड़े जा रहे हैं।  
      इस लम्पट युवा वर्ग के उदय के पीछे राजनेताओं की मूल्यहीनता का भी बड़ा हाथ है। जो राजनेता किसी भी तरह चुनाव जीत कर सत्ता सुखों के लालच में वोटों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं वे ही इनके सारे सही गलत कामों में पक्ष लेकर उन्हें भी मूल्यहीन बनाते रहते हैं। दूसरा दोष हमारी न्याय प्रणाली का है जो सामाजिक आर्थिक अपराधों में दण्ड नहीं दे पाती व समाज में विचरण करते रहने वाले अपराधी युवाओं को गलत रास्ता चुनने को विवश कर देते हैं। लम्पट युवाओं की दिन प्रति दिन बढती फौज किसी न किसी राजनेता के संरक्षण में उसकी अनुगामिनी होती है। लम्पटों का यह गिरोह लोकतंत्र की मूल भावनओं से जुड़े युवाओं और दलों को नुकसान पहुँचा रहे हैं इसलिए इन पर अंकुश लगाना या रोकना बहुत जरूरी है। यह काम उनकी ऊर्जा के सार्थक स्तेमाल के द्वारा किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के ऊर्जा और संकल्प से भरे युवा मुख्य मंत्री इस काम को हाथ में लेकर एक नई पहल कर सकते हैं। वे समाजवादी युवजन सभा जैसे युवा संगठन का गठन करके उसके प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं और युवाओं को कोई राजनीतिक कार्यक्रम सौंप सकते हैं। प्रशासनिक भ्रष्टाचार से घिरे समाज में एक आन्दोलन छेड़ सकते हैं और अन्ध विश्वास व साम्प्रदायिकता के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टि विकसित कराने का काम कर सकते हैं। यदि लम्पट युवाओं के चरित्र परिवर्तन के लिए काम नहीं किया गया तो वे किसी भी दिन युवा नेतृत्व को संकट में डाल सकते हैं।
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