जेल अधिकारी के पास दौलत के खजाने – एक विचारणीय प्रश्न
वीरेन्द्र जैन
मध्य प्रदेश में शायद ही कोई सप्ताह ऐसा जाता हो
जब किसी अफसर, इंस्पेक्टर, क्लर्क, चपरासी, ठेकेदार, व्यापारी, नेताओं के दलाल आदि
के यहाँ आयकर या लोकायुक्त का छापा न पड़ता हो या और उस छापे में अकूत धन सम्पत्ति
आदि न बरामद होती हो। बरामद की गयी ये अनुपातहीन सम्पत्ति रिश्वत, कमीशन, आदि के
द्वारा अर्जित की जाती है जो या तो अदालत दर अदालत लम्बे चले मुकदमों के बाद वापिस
उसी व्यक्ति के पास पहुँच जाती है, या मामूली जुर्माने आदि लगा कर मामले को रफा
दफा कर दिया जाता है। प्रदेश की जेलें अभी तक दण्डित भ्रष्टाचारियों को कैद रखने के
लिए तरस रही हैं। वह सम्पत्ति कैसे कैसे और किस किस के गलत काम कर कर के अर्जित की
गयी होती है उसकी कोई पूछ परख नहीं की जाती ताकि भविष्य में उसके रोकने की
व्यवस्थाएं की जा सकें। दण्ड देने के पीछे एक दृष्टिकोण यह भी होता है कि दूसरा
कोई व्यक्ति वैसी ही गलती करने से डरे, किंतु रोचक यह है कि पकड़े गये व्यक्ति के
बाद आने वाला उसका उत्तराधिकारी भी वैसे ही कामों में संलग्न हो जाता है और यदा
कदा कुछ समय बाद उनमें से कुछ ऐसे ही पकड़े भी जाते हैं, जिसे वे खेल भावना की तरह
लेते हुए कानून के छिद्रों से बच निकलने के रास्ते तलाशने कोई बड़ा वकील करने लगते
हैं। स्मरणीय है कि देश के मुख्य सतर्कता आयुक्त ने सेवा निवृत्ति के अगले दिन ही
कहा था कि देश का हर तीसरा आदमी [सरकारी कर्मचारी] भ्रष्ट है। उन्होंने यह भी कहा
था कि कुल तीन प्रतिशत भ्रष्टाचारी ही जाँच के दायरे में आ पाते हैं और उनमें से
भी कुल चार प्रतिशत पर कानूनी कार्यवाही होती है।
पिछले दिनों जिन आईएएस आफीसर्स, डिप्टी कलेक्टर्स्, इंजीनियर्स, रजिस्ट्रार, आरटीओ, निरीक्षक, आडीटर्स, स्टोरकीपर्स, एकाउंटेंट, पटवारी, चपरासी, आदि के यहाँ से छापों में जो करोड़ों की रकमें और सम्पत्तियाँ मिली हैं उनके बारे में तो एक अनुमान सा रहता है कि ये सम्पत्तियां कैसे भुगतान की फाइलें रोकने, काम में अड़ंगा लगाने, गलत फैसले लेने, झूठे बिल बनाने आदि के द्वारा बनायी जाती हैं। अगर कोई सरकार चाहे तो पूरा हिसाब करके सारे लेने और देने वालों को एक घेरे में ला सकती है पर ये काम सरकार के कामों की प्राथमिकताओं में नहीं आता जिसका कारण भी मंत्रियों की अनुपात हीन सम्पत्ति वृद्धि को देख कर अनुमानित किया जा सकता है।
पिछले दिनों जिन आईएएस आफीसर्स, डिप्टी कलेक्टर्स्, इंजीनियर्स, रजिस्ट्रार, आरटीओ, निरीक्षक, आडीटर्स, स्टोरकीपर्स, एकाउंटेंट, पटवारी, चपरासी, आदि के यहाँ से छापों में जो करोड़ों की रकमें और सम्पत्तियाँ मिली हैं उनके बारे में तो एक अनुमान सा रहता है कि ये सम्पत्तियां कैसे भुगतान की फाइलें रोकने, काम में अड़ंगा लगाने, गलत फैसले लेने, झूठे बिल बनाने आदि के द्वारा बनायी जाती हैं। अगर कोई सरकार चाहे तो पूरा हिसाब करके सारे लेने और देने वालों को एक घेरे में ला सकती है पर ये काम सरकार के कामों की प्राथमिकताओं में नहीं आता जिसका कारण भी मंत्रियों की अनुपात हीन सम्पत्ति वृद्धि को देख कर अनुमानित किया जा सकता है।
पिछले दिनों इन्दौर की सेन्ट्रल जेल अधीक्षक के
यहाँ छापे में जितनी बड़ी मात्रा में सम्पत्तियां मिली हैं वे चौंकाने वाली हैं। इस
छापे में पकड़ में आयी सम्पत्ति की कुल कीमत लगभग पन्द्रह करोड़ है। इनमें भोपाल की
पाश कालोनी में तीन आलीशान मकान, एक गर्ल्स हास्टल, चार दुकानें पाँच प्लाट, 14
एकड़ कृषि भूमि व इन्दौर के विकास प्राधिकरण की योजनाओं में दो प्लाट सम्मलित हैं।
छापे के दौरान ही सम्बन्धित अधीक्षक के लड़के ने दो लाख रुपयों की पोटली बना कर खिड़की
से सड़क पर फेंक दिये जिसे दो पुलिस कानिस्टबलों द्वारा देख लिये जाने से वे बरामद
हो गये। अगले दिन जब उनका लाकर खोला गया तो उसमें ग्यारह लाख रुपये बरामद हुये। सवाल
उठता है कि जिस जेल अधीक्षक द्वारा कुल अर्जित वेतन 39 लाख के आस पास ही बैठता हो
उसके पास 15 करोड़ कीमत की सम्पत्तियां सरकार और कानून को किस तरह से चूना लगा कर
एकत्रित हो गयीं!
जेल
जाने के अनुभवों से सम्पन्न विभिन्न व्यक्तियों से जानकारी करने पर ज्ञात हुआ है
कि अदालतों द्वारा बमुश्किल दी गयी सजा को धता बता कर ही ये सम्पत्तियां अर्जित की
जाती हैं। मुकदमों को लम्बे समय तक टालने के बाद जो भी व्यक्ति जेल पहुँचता है वह
अगर पैसे वाला या प्रभावशील हुआ तो जेल में जाते ही बीमार बन जाता है जिससे उसे
सिक यूनिट में भेज दिया जाता है जहाँ उसे लेटने के लिए पलंग, कूलर, तथा डाक्टरों
द्वारा बताया गया खाना मिलने लगता है, जो जेल में मिलने वाले पशुओं के भोजन के
समतुल्य भोजन की तुलना में बहुत शानदार होता है। इस सुविधा की कीमत चुकायी जाती है
जो किसी भी पाँच सितारा होटल के कमरे व भोजन से कई कई गुना होती है। पद और पैसे
वाले व्यक्ति को जेल के कैदियों से अपनी सुरक्षा भी करना पड़ती है क्योंकि जेल
अधिकारियों की मिली भगत से ऐसी परिस्तिथियां बना दी जाती हैं जिस कारण वे ऐसी
सुरक्षा लेने के लिए विवश हो जाते हैं। बताया गया है कि जब पुराने खूंखार कैदी गालियां
बकते हैं या उन पर हमला कर देते हैं तो जेलर की भाषा में इसे कैदियों की आपसी लड़ाई
माना जाता है। अपने खूंखार तरीके से आतंक पैदा करने वाले कुछ कैदी हर जेल में जेलर
द्वारा पाले जाते हैं जिनके साथ समझौता करा के जेलर उचित सुविधा शुल्क लेकर अमीर
कैदी को, सुरुचिपूर्ण भोजन घर या होटल से मँगवाने की सुविधा दे कर उनकी सुरक्षा
सुनिश्चित करता है। पैसा मिलने पर आदतन अपराधी कैदियों को मोबाइल भी उपलब्ध करा
दिया जाता है जिससे वे जेल में बैठे हुए ही जेल से बाहर के दौलतवानों को डराते
धमकाते रहते हैं और धर्मस्थल बनवाने आदि के नाम पर पैसे वसूल करते रहते हैं। जाहिर
है कि इस वसूली के लिए अपराधी का एजेंट जेलर साहब के लिए भी उचित व्यवस्था करता
है। कुछ जिलों में तो अपराधियों को रहजनी करने के लिए रात में छोड़ा भी जाता है
ताकि वे कमाई करके ला सकें और पुलिस उन्हें गिरफ्तार भी नहीं कर सके। गाँव के कई
लाइसेंसधारी तो अपनी बन्दूक भी इस काम के लिए किराये पर चलवाते हैं। जब जेलर
अपराधी के जेल के अन्दर होने की पुष्टि कर रहा हो तब उसके खिलाफ रिपोर्ट कैसे हो
सकती है। सर्वसुविधा सम्पन्न जेल उनकी सुरक्षागाह बनी रहती है।
कैदियों
के भोजन से खूब कमाई की जाती है क्योंकि उन्हें जेल के नियामानुसार भोजन नहीं दिया
जाता। बहुत सारे न्यायाधीश तो जेल में गये बिना ही सब ठीक होने की निरीक्षण
रिपोर्ट दे देते हैं, जो कैदियों द्वारा बतायी गयी दशा से मेल नहीं खाती। कैदियों द्वारा किये गये काम का पूरा भुगतान
उनके जेल से छूटने पर दिया गया बताया जाता है पर जो आम तौर पर कैदी से दस्तखत लेने
के बाद जेल अधिकारियों के पास ही रह जाता है। प्रभावशाली कैदियों को सुविधा शुल्क
चुका कर बिना अदालती अनुमति के छुट्टियां मिलती रहती हैं। जो जितना खूंखार अपराधी
होता है उसकी छुट्टी उतनी ही मँहगी होती है। देश विरोधी आतंकी घटनाओं के सम्बन्ध
में कैद लोगों की उनके लोगों से मुलाकात करा देने की कीमत भी बहुत होती है।
एक
जेलर का भ्रष्टाचार इसलिए अधिक गम्भीर है क्योंकि इससे समाज में जेल जाने के प्रति
भय कम हो जाता है। जब पैसे से जेल में सारी असुविधाओं को निर्मूल किया जा सकता है
तो व्यक्ति नैतिक होने की जगह सारा ध्यान किसी भी वैध अवैध तरीके से धन कमाने में
लगा देता है। आंकड़े गवाह हैं कि सवर्ण जातियों और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को
कम से कम सजाएं मिल सकी हैं तथा जिन्हें कभी भूले भटके मिलती भी हैं उन्हें उनके
घर जैसी सुविधाएं मिलती रही हैं। कभी किसी ने मजाक में जेल को ससुराल कहा था किंतु
उपरोक्त घटना बताती है कि पैसा होने पर यह सचमुच ससुराल जैसी बन सकती है। बताया
गया है कि कतिपय कारागारों में तो सतत जुआ चलता रहता है और सट्टे के नम्बर भी लगते
रहते हैं।
जिस
जेल के जेलर के यहाँ छापा मारकर इतनी बड़ी रकम पकड़ी जाती है उसमें ही कुछ खूंखार
आतंकी भी बन्द रहते आये हैं। यदि पैसे की दम पर कोई आतंकी जेल से भागने में सफल हो
जायेगा तो हमारे जाँबाज सुरक्षा बलों के सदप्रयासों को ठेस लग सकती है । इसलिए
जरूरी है कि इस तरह के भ्रष्टाचार के अपराध में पकड़े गये आरोपियों से कठोर तरीके
पूछताछ हो ताकि लोकतंत्र के तल में बैठ रही गन्ध से मुक्ति पायी जा सके।
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सार्थक एवं विचारणीय आलेख है आपका किन्तु आप इस मामले में केवल मध्य प्रदेश पर उंगली नहीं उठा सकते आज कल पूरे देश का यही हाल है। फिर चाहे वो यू.पी हो या एम.पी या फिर कोई राज्य....
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