उत्तर प्रदेश – मुख्यमंत्री चयन में अमर सिंह की भूमिका
वीरेन्द्र जैन
उत्तर
प्रदेश के चुनाव परिणाम आ चुके हैं तथा सपा बसपा, भाजपा, कांग्रेस को प्राप्त
सीटें, मत, आदि के बारे में विस्तार से चर्चाएं हो चुकी हैं व हो रही हैं। प्रदेश
में अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाये जाने के नेपथ्य में किसी समय के सब से महत्वपूर्ण
व्यक्ति और उसकी नई पार्टी के बारे में चर्चा जरूरी है। मेरा आशय, श्री अमर सिंह
और उनकी पार्टी लोकमंच से है जिसे लोकसभा और राज्य सभा में प्रतिनिधित्व करने वाले दो
सांसदों के भरपूर प्रचार के बाद भी कहीं कोई सफलता नहीं मिली। कहने की जरूरत नहीं
कि कभी समाजवादी पार्टी के सहारे देश की राजनीति में सक्रिय दखल रखने वाले अमर
सिंह को लोकतंत्र में अपनी हैसियत का अहसास हो गया होगा। पूर्वांचल का नारा उछालने
और समुचित मात्रा में धन व्यय करने के बाद भी फिलहाल उनका कोई राजनीतिक भविष्य
नहीं दिखता। अपने धन के बल पर वे किसी पिछड़े राज्य से एक राज्यसभा की सीट खरीद
सकते थे या अपने पुराने मित्र अरुण जैटली के सहारे भाजपा में सम्मलित होकर राज्य
सभा में पहुँचने का प्रयास कर सकते थे, किंतु उत्तर प्रदेश में बाबूलाल कुशवाहा को
सम्मलित करने के बाद भाजपा के अन्दर जितना
तीव्र विरोध उभरा था उसे देखते हुए अब अरुण जैटली भी यह साहस नहीं जुटा पायेंगे।
स्मरणीय है कि समाजवादी पार्टी को छोड़ने के बाद जब वे इंगलेंड गये थे तब वहाँ पर
उनके कभी के ‘बड़े भाई’ अमिताभ बच्चन भी प्रवास पर थे किंतु उन्होंने बहाँ प्रवास
पर गये हुए अरुण जैटली से लम्बी बात करना ज्यादा जरूरी समझा था। उन्होंने ही कभी जैटली
के सहारे भाजपा से परोक्ष मदद लेकर मुलायम की सरकार बनवायी थी और तभी से मुलायम
सिंह भाजपा के प्रति मुलायम हो गये थे। भाजपा के अन्य लोग उन्हें इसलिए भी पसन्द
नहीं करेंगे क्योंकि न्यूक्लियर डील के मसले पर आये अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा के
सांसदों को खरीदने का काम करने का आरोप अमर सिंह पर ही लगा था जिसके लिए उन्हें
जेल तक की हवा खानी पड़ी। यह मामला अभी तक लम्बित है और सुप्रीम कोर्ट के रुख को
देखते हुए इसमें दोषी पाये गये लोगों को दण्ड मिलना तय है। स्मरणीय है कि संसद में
नोटों की गिड्डियां उछाले जाने के दृष्य को देश के चालीस लाख लोग देख रहे थे, यदि
फिर भी किसी को सजा नहीं मिली तो देश की जनता का न्याय पर से रहा सहा विश्वास भी
उठ जायेगा और सदन एक तमाशा बन कर रह जायेगा। इसलिए दोनों पक्षों में से किसी एक
पक्ष को सजा मिलना तय होने के कारण यह गठजोड़ सम्भव नहीं हो सकता।
सम्भावना
यह भी हो सकती है कि वे सारे गिले शिकवे भुला कर मुलायम सिंह से आजम खान की तरह
गले मिल जायें क्योंकि मुलायम सिंह अंतिम समय तक उन्हें पार्टी से निकालने से डरते
रहे थे, पर मुलायम सिंह का परिवार उन्हें फूटी आँख भी नहीं देखना चाहता जिनमें
अखिलेश भी शामिल हैं। पार्टी से अलग होने के बाद वे कहते भी रहे हैं कि समाजवादी पार्टी
एक परिवार की पार्टी होकर रह गयी है। पिछले दिनों वे मुलायम सिंह के खिलाफ इतना
विषवमन कर चुके हैं कि उन्हें वापिस लेने से समाजवादी पार्टी की लोकप्रियता का
ग्राफ भाजपा की तरह एकदम नीचे चला जायेगा। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर कहा है-
“ उनके जीने से ज्यादा जरूरी
है मुलायम सिंह यादव का मरना। मुलायम सिंह ने मुसलमानों को हमेशा धोखा दिया है।“ [दैनिक भास्कर 10 अगस्त 2010]
“चौदह साल तक जिनकी जबान को
कुरान की आयत और गीता का श्लोक समझा उन्हीं ने हमें रुसवा किया। मुलायम सिंह ने ही
कल्याण सिंह को सपा में शामिल किया। व्यक्तिगत रूप से में कल्याण सिंह को मुलायम
सिंह से बेहतर व्यक्ति मानता हूं क्योंकि वे साफ बात करते हैं और अपने कार्यों को
स्वीकार करते हैं। कभी हमारे बगलगीर रहे मुलायम वर्ष 2003 में जनादेश की वजह से
नहीं बल्कि मेरी कलाकारी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रह सके थे। राज बब्बर
को समाजवादी पार्टी में लाने और विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ विष्णु हरि
डाल्मियाँ के बेटे संजय डाल्मियाँ को पार्टी का कोषाध्यक्ष और सांसद बनाने वाले
मुलायम सिंह ही हैं।“ जनसत्ता 19 अक्टूबर 2010]
“मुलायम सिंह मेरे घर पर
कब्जा किये हुये हैं और खाली नहीं कर रहे हैं। महारानी बाग का यह घर मैंने ही
मुलायम सिंह को दिया था जिसका किरायानामा राम गोपाल के नाम से बना हुआ है जो
मुलायम सिंह के निकट के रिश्तेदार हैं” [डीबी स्टार नवम्बर 2010]
“आजम खान यह समझ लें कि अगर मैंने मुँह खोल दिया तो मुलायम
सिंह यादव मुश्किल में पड़ जायेंगे, उनको जेल जाना पड़ सकता है, जो आजम खान मुझे
दलाल कह रहे हैं, पहले वे जरा यह बताएं कि मैंने उन्हें क्या क्या दिया है। मुझे
सप्लायर कहने वाले समाजवादी पार्टी के अन्य नेता भी आगे आकर बताएं कि मैंने उन्हें
या मुलायम सिंह को क्या सप्लाई किया है,”।
“अखिलेश को मैंने ही
आस्ट्रेलिया भिजवाया था तथा मेरी ही राजनीति के सहारे यह चुनाव जीत सके हैं”
अमर सिंह दाँवपेंच की जिस राजनीति के
सहारे मुलायम के जनसमर्थन का सौदा उद्योगपतियों और व्यापार की राजनीति करने वालों
से करते रहे हैं उसमें बहुत कुछ काला सफेद करना पड़ता है जिसे उन्होंने मुलायम सिंह
की ओट में किया होगा। यही कारण है कि वे बार बार यह कहते रहते हैं कि अगर मैंने
मुँह खोल दिया तो वे मुश्किल में पड़ जायेंगे। बहुत सम्भव है कि मुलायम सिंह द्वारा
मुख्यमंत्री का पद ग्रहण न करने और सत्त्ता से दूर रहने के साथ साफ सुथरे जीवन
वाले युवा अखिलेश को मुख्य मंत्री बना कर दूरदर्शिता से काम लिया हो। देखना होगा
कि उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में अनुभव हीन युवा मुख्यमंत्री कैसी कैसी
चुनौतियों का सामना करता है!
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
Rajneeti ke is hamam mein sub nange hain.Jab jab koi party se alag hota hai, tab tab khulasa hota hai varna chup rehte hain!
जवाब देंहटाएंतब भी खुलासा कहाँ होता है केवल धमकियां ही होती हैं
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