भाजपा में
मनमानी से संघ की अकड़ ढीली हो गयी है
वीरेन्द्र जैन
आरएसएस और भाजपा के सम्बन्ध कुछ कुछ अवैध
सम्बन्धों जैसे हैं जिन्हें दिन के उजाले में छुपाये रखा जाता है किंतु अँधेरे में
बनाये रखा जाता है। किंतु इनका यह सत्य भी ऐसे ही जग जाहिर है जैसा कि रहीम ने एक
दोहे में कहा है-
खैर, खून, खाँसी, खुशी, बैर, प्रीति, मदपान
रहिमन दाबे न दबे, जानत सकल जहान
खैर, खून, खाँसी, खुशी, बैर, प्रीति, मदपान
रहिमन दाबे न दबे, जानत सकल जहान
स्मरणीय
है कि जब महात्मा गान्धी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तब
इस प्रतिबन्ध से मुक्ति के लिए उसके पदाधिकारियों ने केन्द्र सरकार के समक्ष अपने
संगठन को शुद्ध सांस्कृतिक संगठन बताते हुए वादा किया था कि वह कभी राजनीति में
भाग नहीं लेगा। जब इस आश्वासन के बाद उस पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया तो उसने कुछ
ही दिन बाद राजनीतिक दल गठन करने के लिए अपने स्वयं सेवक भेज दिये जिनमें दीनदयाल
उपाध्याय, कुशा भाऊ ठाकरे, सुन्दर सिंह भंडारी, कैलाशपति मिश्र, अटल बिहारी
वाजपेयी, व लाल कृष्ण आडवाणी भी सम्मलित थे। तब से ही संघ दुहरा खेल खेल रहा है।
जहाँ एक ओर वह कहता है कि उसे जनसंघ, जिसका परिवर्तित नाम भारतीय जनता पार्टी है,
की कार्यप्रणाली से कोई मतलब नहीं है और उसके स्वयं सेवकों में तो सभी दलों के
सदस्य हैं, वहीं दूसरी ओर वह केवल भाजपा की छोटी से छोटी बात में दखल देता रहा है
व सारी गतिविधियां उसके निर्देश में ही चलती हैं। इतना ही नहीं नियंत्रण बनाये
रखने के लिए भाजपा में ब्लाक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठन मंत्री के सारे पद
केवल संघ प्रचारकों के लिए आरक्षित कर रखे हैं। संघ के स्वयं सेवक ही चुनावों में
भाजपा की रीढ रहे हैं और अपने प्रारम्भिक चुनाव उन्होंने इसी पूंजी की दम पर लड़े
हैं, और इसी के प्रभाव के अनुपात में सीटें जीती हैं। भाजपा के सारे बड़े नेता मौके
ब मौके अपने को स्वयं सेवक बतलाते रहते हैं और उनके गणवेष में समारोहों में शामिल
होते रहते हैं। असंतुष्ट होने पर संघ के एक निर्देश पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
पद से अडवाणी जैसे वरिष्ठतम नेता को दूध में पड़ी मक्खी की तरह अलग कर दिया जाता
है, और संघ के निर्देश पर ही राष्ट्रीय स्तर पर अज्ञात नितिन गडकरी को पार्टी का
राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाता है। दोनों ही मामलों में कार्यकारिणी अचम्भे से
देखती हुयी केवल सहमति देने को विवश होती है। संघ के निर्देश पर ही जसवंत सिंह
जैसे वरिष्ठ नेता को विपक्षी नेता का पद नहीं दिया जाता और संघ के आदेश पर ही पार्टी
से खुला विद्रोह करने वाली उमा भारती को पार्टी में पुनर्प्रवेश दिया जाया है।
राष्ट्रीय समाचार पत्रों में पिछले दो एक महीने में छपे समाचारों के शीर्षक सारी
कहानी कहते हैं
·
21मार्च 2012- संघ प्रमुख ने लगाई गडकरी की क्लास , भागवत का आदेश, कर्नाटक
संकट जल्द निपटाएं। नागपुर/नई दिल्ली संघ के प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह
भैय्याजी जोशी ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की क्लास ली। मंगलवार को तीन घंटे चली
मैराथन बैठक में दोनों शीर्ष पदाधिकारियों ने लम्बे समय से चले आ रहे कर्नाटक को
सुलझाने में असफल रहने पर गडकरी से स्पष्टीकण मांगा और इस मामले को जल्दी ही
पटाक्षेप करने को कहा। राज्यसभा के उम्मीदवारों में नागपुर के अजय संचेती, और म.प्र.
में नजमा हेपतुल्ला के चयन पर भी असंतोष जताया।...........
·
18मार्च2012- संघ ने दी भाजपा को नसीहत, विधानसभा चुनावों में मिला हार से
नाखुश। नईदिल्ली, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भाजपा के विधानसभा चुनावों में खराब
प्रदर्शन से खासा नाखुश है। उन्होंने कहा है कि भाजपा को इस सवाल का जबाब ढूंढना
चाहिए कि सांगठनिक ढांचा और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के एक मजबूत सीरीज होने के बाबजूद
मतदाताओं की नजर में वह क्यों नहीं चढ सकी। ...............
·
18मार्च2012- गडकरी पर नहीं बनी सहमति। नागपुर/ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में नितिन गडकरी को फिर से भाजपा की कमान
सौंपने की संघ मंशा रास नहीं आ रही है। वे संजय जोशी को संगठन महामंत्री का मौका
देने के भी खिलाफ हैं।...................
·
16मार्च 2012- संघ म.प्र. सरकार की कार्यशैली से नाराज। नागपुर / भाजपा शासित
राज्यों के संघ प्रचारकों ने पार्टी नेताओं की कार्यशैली पर और खासतौर पर मध्य
प्रदेश की भाजपा सरकार को लेकर जिस तरह से नाराजगी जाहिर की, उससे इस बात की प्रबल
सम्भावना है कि संघ इस बार भाजपा को लेकर बड़े फैसले ले सकता है। ...........
·
13मार्च2012- जनसत्ता सम्पादकीय- संघ का शिकंजा.........लोकसभा चुनाव में मिली
हार के बाद संघ के सरसंघ संचालक मोहन भागवत ने पार्टी नेताओं को तलब करने से पहले
सीधे संवाददाता सम्मेलन बुला कर नसीहत दी थी, और पार्टी अध्यक्ष को बदलने की जरूरत
रेखांकित ही नहीं की थी अपितु बदल भी दिया था। विधानसभा चुनावों में मिली ताजा हार
के बाद उन्होंने फिर से सार्वजनिक रूप से नेतृत्व बदलने की जरूरत बतायी। ......
गुजरात भाजपा इकाई में खींचतान और विद्रोह के बाबजूद भी मोदी बचे रहे तो उसकी बड़ी
वजह संघ का उन पर वरद हस्त का होना था।
इन समाचारों और विचारों से भाजपा पर संघ के नियंत्रण का पता
चलता है, पर भाजपा में उफन रहे भ्रष्टाचार और दौलत से चुनाव संचालन के कारण भाजपा
के नेताओं की संघ पर निर्भरता कम होती जा रही है और उनमें संघ से स्वतंत्र होने की
छटपहाटें दिखायी देने लगी हैं।
कुछ नमूने देखिए-
·
राजस्थान में वसन्धुरा राजे ने जिन गुलाब चन्द्र कटारिया की जन जागरण यात्रा
को रुकवाया वे संघ के कट्टर स्वयं सेवक रहे हैं और राजस्थान में सरकार बनने के बाद
भले ही दिखावटी मुख्यमंत्री का पद वसन्धुरा राजे को दिया गया था पर गृहमंत्री जैसा
महत्वपूर्ण पद संघ ने उन्हें ही दिलवाया था। भैरोंसिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति पद
पर चुने जाने के बाद विपक्ष के नेता पद पर उन्हें ही प्रतिष्ठित किया गया था।
भाजपा सरकार के दौर में वे मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार माने जाते थे।
उनकी यात्रा पहले संघ और फिर पार्टी से अनुमति लेने के बाद ही निकाली जा रही थी पर
पद जाने की आशंकाओं से ग्रस्त वसुंधरा ने उन्हें चुनौती देकर और 59 विधायकों से
त्यागपत्र लिखवा कर सीधे सीधे संघ को चुनौती दे दी है। वसन्धुरा की माँ विजयाराजे
सिन्धिया ने काँग्रेस से नाराज होने के कारण बदला लेने के लिए भाजपा को अटूट साधन
उपलब्ध कराये थे जिसकी बदौलत ही भाजपा[पूर्व जनसंघ] अपना आधार तैयार कर पायी थी।
अडवाणी पीढी के लोग अब भी उनसे उपकृत महसूस करते हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता
पद पर नियुक्ति के संघर्ष में वे पहले ही भाजपा और संघ नेताओं को नाकों चने चबवा
चुकी हैं।
·
मध्यप्रदेश में आरएसएस के आनुषांगिक संगठन किसान संघ ने संघ से अनुमति लिये बिना
पहले ही मुख्यमंत्री निवास घेर लिया था, और कुछ आश्वासन लेकर ही वापिस लौटे थे। इस
बार पहले तो एक धरने के दौरान किसान संघ और आरएसएस कार्यकर्ताओं के बीच बकायदा
मारपीट हुयी और एक दूसरे के खिलाफ रिपोर्टें लिखवायी गयीं वहीं गैंहू खरीद के
मामले में किये गये चक्काजाम के बाद पुलिस ने न केवल गोली चलायी अपितु एक किसान को
गोली मार कर उसकी लाश का आनन फानन में अंतिम संस्कार भी करवा दिया। इसके साथ ही
किसान संघ के अध्यक्ष और महासचिव को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इस बीच भले ही
उन्होंने एक जेबी पदाधिकारी बना कर भ्रम उत्पन्न करने की कोशिश की हो, किंतु
प्रदेश में किसान संघ के संघर्षशील नेता ही अभी भी किसान संघ के किसानों की पहली पसन्द
के नेता हैं। संघ के इशारों पर प्रदेश अध्यक्ष द्वारा किसान संघ के लोकप्रिय
अध्यक्ष को ब्लेकमेलर कहा गया और संघ में कई अनियमितताओं के आरोप लगाये। ऐसे में
संघ और किसानों के बीच टकराव तय है।
·
कर्नाटक में येदुरप्पा ने स्वयं को मुख्यमंत्री बनाने की माँग लेकर न केवल
धमकी दी अपितु अपने पक्ष के विधायकों और मंत्रियों के त्यागपत्र भी ले के रख लिये।
येदुरप्पा पहले कभी संघ के स्वयं सेवक रहे थे किंतु सत्ता का स्वाद चखने के बाद वे
रेड्डी बन्धुओं की शह पर खुली बगावत पर उतारू हैं। संघ सत्ता की ओट में काम करने
का अभ्यस्त हो चुका है और वह किसी भी तरह दक्षिण के इकलौते राज्य में संकीर्ण और
जुटाये गये बहुमत से प्राप्त सत्ता खोना नहीं चाहता। यदि वह सैद्धांतिक आधार पर
सत्ता दाँव पर लगाता है तो विभाजन तय है। इसके विपरीत जाने पर देश भर में स्वयं
सेवक और समर्थक संघ में आस्था खो देंगे।
·
गुजरात में नरेन्द्र मोदी को केशुभाई ने खुली चुनौती दी है जबकि संघ मोदी के
साथ है। संघ के कृपापात्र भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और स्वयं को
प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी समझने वाले नरेन्द्र मोदी एक दूसरे को फूटी आँख नहीं
देखना चाहते। ऐसे में संघ को अपनी पक्षधरता तय करनी पड़ेगी।
इसी
तरह हिमाचल में शांता कुमार बनाम धूमल, उत्तराखण्ड में निशंक बनाम खण्डूरी बनाम
कोशियारी उत्तरप्रदेश में योगी, बनाम, राजनाथ सिंह, बनाम लालजी टण्डन, बनाम
कटियार, बनाम कलराज मिश्र के साथ अब मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और चुनावों
में मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित उमाभारती के साथ वरुण गान्धी मनेका गान्धी के बीच
चल रहे द्वन्द में संघ को चुनाव करना पड़ रहा है और इस चुनाव के बाद उसकी ताकत का
कमजोर होना तय है। गठबन्धन वाली सरकारों में तो क्षेत्रीय दल इस राष्ट्रीय दल के
साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं और संघ की छाया से भी बचते हैं। कुल मिला कर
कहा जा सकता है कि संघ की कूटनीति अब संकट में घिर गयी है। तभी पिछले दिनों संघ ने
विधानसभा चुनावों के पूर्व झुंझला कर कहा था कि भाजपा हार जाये तो अच्छा और बिल्कुल
से हार जाये तो बहुत अच्छा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें