गुरुवार, सितंबर 20, 2012

खुले बाज़ार के डिग्री व्यापार से जनित संकट और दूरगामी प्रभाव


               खुले बाज़ार के डिग्री व्यापार से जनित संकट और दूरगामी प्रभाव  
                                                                                   वीरेन्द्र जैन
       गत दिनों भोपाल के रेलवे भर्ती बोर्ड आफिस पर जूनियर इंजीनियर की भर्ती हेतु आयोजित की जाने वाली परीक्षा के प्रत्याशियों ने हंगामा कर दिया था क्योंकि उन्हें समय से प्रवेश पत्र ही नहीं मिल सके थे। इस हंगामे के कारण ही बेरोजगारी की दारुण दशा के एक और दृष्य के सच्चे दर्शन हो सके। जिस पद के लिए ये परीक्षार्थी एकत्रित हुए थे उसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं। उक्त परीक्षा के लिए कुल 125 पद विज्ञापित किये गये थे जिसके लिए सवा लाख आवेदन प्राप्त हुए थे जिसमें से कुल चालीस हजार को परीक्षा में बैठने के लिए प्रवेश पत्र जारी किये गये थे जिसमें से भी पाँच हजार लोगों तक समय से प्रवेश पत्र नहीं पहुँच सके थे और वे डुप्लीकेट प्रवेश पत्र पाने के लिए गुहार लगा रहे थे, जो हंगामे में बदल गया।
       पिछले वर्षों में शिक्षा का जो निजीकरण हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप जगह जगह पर प्राईवेट इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, आदि आदि कोर्सों के कालेज खुल गये जो मनमानी फीस लेकर भी अपने यहाँ सुयोग्य शिक्षकों की व्यवस्था नहीं कर रहे हैं क्योंकि इससे उनका अन्धा मुनाफा कम होता है। कालेजों के पास न उचित भवन हैं और न ही पुस्तकालय, न होस्टल हैं, न प्रयोगशालाएं फिर भी उन्हें अनुमति मिल जाती है क्योंकि ऐसे अधिकांश कालेज या तो नेताओं व उनके परिवारों के हैं या उनमें उनकी कोई हिस्सेदारी है। इन कालेजों का पढाई से कोई वास्ता नहीं है अपितु उनका इकलौता काम मोटी फीस लेकर डिग्री दे देना है और कैम्पस में कुछ कम्पनियों के भर्ती विभाग के अधिकारियों को छात्रों के खर्चे पर बुलवाकर कुछ को छोटी मोटी अस्थायी नौकरी दिलवा देना है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इन लड़कों को जो पैकेज देकर निचोड़ रही हैं वह वेतन इसी काम के लिए उनके देश में देय वेतन से बहुत कम होता है जबकि यहाँ वही अधिक लगता है। ऐसी नौकरी भी कुछ लोगों को ही मिलती है तथा बाकी के लोग जगह जगह साक्षात्कार देते फिरते हैं और निराशा में डूब जाते हैं। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में मनरेगा के अंतर्गत 3200 रुपये वेतन के ग्राम रोजगार सहायक  की नौकरी पाने के लिए एमएससी, एम ए., ही नहीं एमबीए, एमसीए भी आवेदन कर रहे हैं, व कर्ज लेकर भी लाखों रुपयों की रिश्वत देने को तैयार हैं। मध्य प्रदेश में 23हजार खाली पदों पर अब तक जिन 8210 लोगों को चुना गया है जिनमें से एक हजार से भी अधिक पोस्ट ग्रेजुएट या अधिक  है।
       स्मरणीय है कि अमेरिका में काम करने वाले कम्प्यूटर इंजीनियरों के बारे में पिछले दिनों एक कम्पनी प्रमुख ने कहा था कि भारत में कोई प्रतिभा विस्फोट नहीं हो गया है, भारत के जो लोग हमारे यहाँ काम करते हैं वे वैसे ही  हैं जैसे किसी शर्राफ की दुकान के बाहर गहने चमकाने का काम करने वाले बैठे रहते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम करने वाली यह पीढी अपनी जीवन पद्धति ऐसी बदल चुकी होती है कि वे अपनी कमाई में से जो कुछ भी खर्च करते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा वापिस विदेशी कम्पनियों को पहुँच जाता है| भले ही उसी स्तर के भारतीय उत्पाद अपेक्षाकृत कम कीमत में उपलब्ध हो, किंतु उन्हें विदेशी वस्तु के उपयोग की आदत पड़ चुकी होती है। बिजनैस मेनेजमेंट की डिग्री रखने वाले विदेशी ब्रांडेड आइटम खरीदते समय उसके उत्पादन मूल्य और बाज़ार मूल्य की गणना नहीं कर पाते, और खुशी खुशी अत्यधिक मुनाफा लुटाते रहते हैं।
       डिग्री मिलने के बाद भी नौकरी न मिलने के कारण युवा अब ऐसी शिक्षा से विरत होने लगे हैं। इस वर्ष इंजीनियरिंग कालेजों में एडमीशन न होने का संकट छाया हुआ है। मध्य प्रदेश में अभी तक चालीस हजार सीटें खाली हैं जिनके भरने की कोई उम्मीद नहीं है। उल्लेखनीय यह है कि तकनीकी शिक्षा विभाग, इंजीनियर कालेज संचालक एसोसियेशन के मना करने के बाद भी आल इंडिया काउंसिल फार टेक्निकल एजूकेशन ने इस साल आठ हजार सीटें बढा दी थीं जिससे प्रदेश में इंजीनियरिंग की सीटों की संख्या 96 हजार पहुँच गयी है।
       प्राइवेट मेडिकल कालेजों की सीटों पर डोनेशन के आधार पर बेची गयी सीटों के सौदे के खुलासे सामने आये हैं, जिनमें एक एक सीट के लिए चालीस पचास लाख चुकाये जाने के समाचार जाँच में हैं। तय है कि इतनी बड़ी राशि चुकाने वाले अभिभावकों ने यह राशि स्वस्थ तरीके से नहीं कमाई होगी तथा अपर्याप्त योग्यता वाले जो डाक्टर इन कालेजों से डिग्रियां लेकर निकलेंगे वे गाँवों में जाकर गरीबों की सेवा नहीं करेंगे अपितु अपने अपने नर्सिंग होम्स खोलकर आने वाले मरीजों को आखिरी बूंद तक निचोड़ने का काम ही करेंगे। इस दलाली में जो आरोपी पकड़े गये हैं वे विभिन्न राजनीतिक दलों में अपनी सुविधानुसार सम्मलित होकर उनमें विकृति पैदा करते हुए, सही नेतृत्व को हाशिए पर धकलते रहे हैं। इससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं भी कुप्रभावित हो रही हैं।  
       इसी निजीकरण के चलते शिक्षा में जो व्यावसायीकरण बढा है उसने बड़े नगरों की अर्थ व्यवस्था में बहुत सारे विपरीत प्रभाव पैदा किये हैं। हास्टलों की कमी के कारण छात्र मिलकर फ्लेटों को किराये से लेने लगे हैं जिससे फ्लेटों के किराये लगभग दुगने हो गये हैं और आम नौकरी पेशा व्यक्तियों के सामने गम्भीर संकट खड़े हो रहे हैं। मकान मालिक कम किराया देने वाले पुराने किरायेदारों से मकान खाली कराने के लिए दबाव बनाने लगे हैं, और उसके लिए वैध अवैध तरीके अपनाने लगे हैं। इस तरह रहने वाले युवाओं के झुंड सैकड़ों की संख्या में उग आये नये नये फास्ट फूड सेंटरों पर देखे जा सकते हैं जो अनुपयोगी डिग्री के लिए अपने स्वास्थ को दाँव पर लगाते देखे जा सकते हैं। कम आय वाले निम्न मध्यम वर्ग के जो छात्र एजूकेशन लोन लेकर पढने को आते हैं उनमें से कई अधिक आय वाले अपने सहपाठियों की जीवन शैली के कुप्रभाव में सहज अपराध की ओर मुड़ रहे हैं। पिछले दिनों जंजीर, मोबाइल, पर्स आदि छीनने, मोटर साइकिलें चुराने आदि की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुयी है, और पकड़े गये लोगों में इन्हीं कालेजों के छात्र पाये गये हैं। आगामी वर्षों में जब नौकरियों में और भी कमी आयेगी तब शिक्षा ऋण लेकर पढे डिग्रीधारी नौजवानों में बैंक का कर्ज चुकाने के दबाव में फ्रस्ट्रेशन और बढेगा। यह फ्रस्ट्रेशन देश की राजनीतिक सामाजिक स्थितियों पर गहरा प्रभाव डालेगा। ऐसा लगता है कि राजनेताओं के निहित स्वार्थों के कारण इस क्षेत्र की गम्भीरता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जो खतरनाक हो सकता है।
वीरेन्द्र जैन
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