लोकतंत्र की गाड़ी को
अराजकता की ओर ले जाने का प्रयास
वीरेन्द्र जैन
आजकल
पता ही नहीं चल रहा है कि इस देश में कोई सरकार है भी या नहीं! जिसके मन में जो आ
रहा है वह बिना सोचे समझे बोले चला जा रहा है और कुछ लोग तो कानून की परवाह किये
बिना उस पर अमल भी करने लगे हैं। पहले कभी खालिस्तान आन्दोलन चलाने वालों ने ऐसा
किया था किंतु वे इसे विद्रोह समझ कर ही कर रहे थे और उसका खतरा उठाने के लिए
तैयार भी थे, और उठाया भी। तत्कालीन सरकार और प्रधानमंत्री ने
एक सीमा तक ही इसे सहा था और फिर अपरेशन ब्लू स्टार किया गया था भले ही उसके लिए
देश की लोकप्रिय प्रधानमंत्री को अपनी जान देनी पड़ी हो। अगर कोई संविधान की शपथ
लेकर किसी पद पर बैठता है तो उसका दायित्व हो जाता है कि वह संविधान की रक्षा करे।
पर बड़े खेद की बात है कि संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए कतिपय लोग हिंसा की
धमकियां दे रहे हैं और सरकार लोकतंत्र के नाम पर न देख सुन रही है और न ही कुछ कर
रही है, जबकि किसी व्यक्ति के अधिकार उस सीमा तक ही हैं जब तक उसके कामों से दूसरे
के अधिकारों का हनन नहीं हो रहा हो।
पिछले
दिनों मुम्बई में राज ठाकरे ने बिहारियों को खुले आम धमकी देते हुए घुसपैठिया कहा
और उन्हें महाराष्ट्र से निकाल देने की धमकी दी। यह संविधान में दिये देश के
नागरिकों को देश के किसी भी भाग में बसने के अधिकार को खुली चुनौती है और परोक्ष
में देश के संविधान को ही चुनौती है। अगर वे ऐसा कुछ करने की कोशिश करते हैं तो यह
काम वे अपने बाहुबलियों की दम पर करेंगे अर्थात उनकी सेना देश और संविधान की रक्षा
के लिए नियुक्त सशस्त्र बलों से टक्कर लेगी। वैसे तो उन्होंने अपने दल का नाम
महाराष्ट्र नवनिर्माण ‘सेना’ ही रख छोड़ा है और वे जिस दल से निकल कर आये हैं, उसका
नाम भी शिव ‘सेना’ है जो उनकी इस धमकी का मौखिक समर्थन कर रही है। शिव सेना प्रमुख
बाल ठाकरे भी जिस भाषा में बात करते हैं वह किसी लोकतांत्रिक समाज की भाषा नहीं
है। अभी हाल ही में उन्होंने कहा कि वे पाकिस्तानी क्रिकेटरों को यहाँ नहीं खेलने
देंगे। यह भाषा किसी तानाशाह की भाषा है। उन्हें किसी भी विषय पर आन्दोलन करने और
सरकार को विवश करके उसको बातचीत के लिए सहमत करने का अधिकार तो है किंतु एक
निर्वाचित संस्था द्वारा लिए गये फैसले के विरुद्ध धमकी की भाषा में बात करने का
मतलब पूरी व्यवस्था को चुनौती देना होता है। किसी भी संप्रभुदेश में एक ही सेना हो सकती है
और ये दूसरी सेनाएं एक राजनीतिक दल की जगह एक सेना की तरह ही काम कर रही हैं और भारतीय
सेना को चुनौती देती सी लगती हैं। इन दलों में दूर दूर तक आंतरिक लोकतंत्र नहीं
है। स्मरणीय है कि उन्होंने कुछ ही दिन पहले मुस्लिमों के एक संगठन द्वारा मुम्बई
में की गयी हिंसा के खिलाफ एक बड़ी और शांत रैली निकाली थी जिसकी सबने प्रशंसा की
थी। किसी भी लोकतंत्र में असहमत होने और संविधान में वांछित परिवर्तन के लिए सदन
और सदन से बाहर मांग उठाने का अधिकार तो है किंतु जब तक वैसा परिवर्तन नहीं हो
जाता तब तक तत्कालीन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ही चलना पड़ेगा, और इसका खुले आम
उल्लंघन अपराध की श्रेणी में आता है। खेद है कि कुछ दल या संगठन इस तथ्य को भुला
कर मनमानी करने लगते हैं। पिछले दिनों मुस्लिमों के कुछ संगठनों ने मुम्बई, लखनऊ,
इलाहाबाद, आदि जगहों पर जो दृष्य उपस्थित किया उन सब को ठीक ही कानून के दायरे में
लाया गया है और समुचित कठोर कार्यवाही अपेक्षित है। पर, क्या राज ठाकरे के बयानों
पर सरकार चुप बैठी रहेगी? 1993 में हुए दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट पर
सरकार ने अब तक कार्यवाही न करके कानून व्यवस्था तोड़ने वालों के हौसले बढाये हैं। बिडम्बनापूर्ण
यह है कि यही सरकार एक कार्टूनिस्ट को सरकार के विरोध में एक बैनर टांगने पर देश
द्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है।
गुजरात
में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक चुनी हुयी सरकार काम कर रही है। 2002 में
गोधरा में साबरमती एक्सप्रैस की बोगी संख्या 6 में घटित आगजनी के बाद सरकार द्वारा
संरक्षित जो नरसंहार घटित हुआ उसके बाद नरेन्द्र मोदी को वहाँ शासन करने का कोई नैतिक
अधिकार नहीं रह गया था। पूरे देश व भाजपा को छोड़ कर देश की सभी राजनीतिक पार्टियों
ने उनके आचरण की तीव्र निन्दा की पर उनकी सरकार को भंग करने की माँग नहीं की और
लोकतंत्र के हित में उन्हें सहन करते आ रहे हैं, क्योंकि राज्य की जनता ने उन्हें आम
चुनावों में बहुमत दिया है। दूसरी ओर एक विवादास्पद संत वेष में रहने वाला
व्यापारी उन्हें सरेआम चुनौती देता है कि अगर उसे सोमनाथ में अपना तम्बू नहीं
गाड़ने दिया गया जिसे वह सत्संग का नाम देता है तो वह मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेगा।
उल्लेखनीय है कि सम्बन्धित के आश्रम में दो बच्चों की सन्दिग्ध मृत्यु के बाद
स्थानीय लोग उसके तम्बू गाड़ने का विरोध कर रहे थे और आपसी संघर्ष की आशंका के कारण
अनुमति नहीं दी गयी थी। क्या किसी चुनी हुयी सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी देना
किसी अपराध का हिस्सा नहीं है, भले ही वह एक बाबा की वेषभूषा में विचरण करता हो ?
कोर्ट द्वारा गुजरात सरकार की एक मंत्री को अपने
क्षेत्र में कराये गये नरसंहार के लिए अपराध के बारह साल बाद सजा दी गयी है।
उल्लेखनीय है कि इस दौरान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सब कुछ जानते हुए भी न
केवल उसे विधायक के लिए टिकिट दिया अपितु चुने जाने के बाद मंत्री भी बनाया। सजा
मिलने के बाद विश्व हिन्दूपरिषद के स्वयंभू अध्यक्ष तीन सौ भगवा वेषधारियों के साथ
फैसले के विरोध में प्रदर्शन करते हैं और उन पर अदालत की अवमानना का कोई प्रकरण
दर्ज नहीं होता। ऐसा लगता है कि कुछ संगठन धर्म के नाम पर लोकतांत्रिक समाज की सभी
महत्वपूर्ण संस्थाओं को ठेंगे पर रख रहे हैं। इसी संघ परिवार की राजनीतिक शाखा
भाजपा ने कोयला के ब्लाक आवंटन पर आयी सीएजी रिपोर्ट के नाम पर संसद नहीं चलने दी।
भाजपा देश का दूसरा बड़ा राजनीतिक दल है और उसके समुचित संख्या में सदस्य बताये
जाते हैं, पर एक जनान्दोलन करने की जगह उन्होंने संसद नहीं चलने दी जो बहस और
विमर्श का मंच है। ऐसा उन्होंने पहली बार किया हो ऐसा भी नहीं है अपितु गत पाँच
साल में उन्होंने जनता के बीच जाने की जगह सदैव ही संसद में गतिरोध उत्पन्न किया
है। ऐसा लगता है कि वे तय किये बैठे हैं कि जब तक सत्ता उन्हें नहीं मिलती तब तक
वे लोकतंत्र की सारी संस्थाओं को नहीं चलने देंगे। सेना और पुलिस के सेवानिवृत्त
कर्मियों को दल में शामिल करने की उन्होंने गुप्त मुहिम चला रखी है जिसके कारण
उनके सदस्यों में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है। वे न्यायिक फैसलों और विभिन्न
आयोगों की जाँच रिपोर्टों को तभी मानते हैं जब वे उनके पक्ष में होती हैं अन्यथा
उनका विरोध करते हैं। प्रशासन को भ्रष्ट करने में इनके द्वारा शासित राज्यों के
मंत्रियों ने संकल्प ले रखा है तथा ईमानदार अधिकारियों की गलत पदस्थापना के द्वारा
वे उन्हें सबक सिखाते रहते हैं।
पंजाब
में भाजपा की गठबन्धन वाली अकाली दल की सरकार है और यह सरकार प्रदेश के एक
मुख्यमंत्री की हत्या के आरोप में सजा पाये व्यक्ति की फाँसी की सजा को माफ करवाने
के लिए जोर डालती है और उसे ज़िन्दा शहीद घोषित करती है। बंगाल की मुख्यमंत्री
केन्द्र सरकार के निर्देश के बाद भी बंगलादेश जाने से इंकार कर देती हैं और देश
हित के कुछ महत्वपूर्ण फैसले नहीं हो पाते। गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी यदा कदा
केन्द्र को कोई टैक्स न चुकाने की धमकी देते रहते हैं। जम्मू कश्मीर राज्य, जो
निरंतर सेना की सुरक्षा में है, की सरकार तो अलगाववादियों के दबाव में कभी भी कुछ
भी कहती रहती है, जो देश के हितों के विपरीत भी चला जाता है।
कुल मिला कर कह सकते हैं कि अलगाववादी, नक्सलवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी, आरक्षणवादी, धार्मिक कट्टरपंथी ही नहीं अपितु पंजीकृत राष्ट्रीय दल भी ऐसे आचरण कर रहे हैं जिससे संविधान और देश की सुरक्षा पर गम्भीर खतरा महसूस किया जा रहा है। ऐसी ही स्थितियां कठोर शासन की माँग बना देती हैं जो प्रारम्भ में तो राहत देता हुआ सा लगता है पर बाद में निरंकुश, स्वार्थी और दमनकारी होने लगता है, और अंत में आंतरिक संघर्ष की स्थितियां ला देता है। इसलिए जरूरी है कि देश के सभी राजनीतिक दल अपने आचरणों को संविधान के दायरे तक सीमित करके चलें। जो दल और उसके नेता निजी स्वार्थ में इस अराजकता को पैदा कर रहे हैं उन्हें शायद इसके दुष्परिणाम की कल्पना नहीं है।
कुल मिला कर कह सकते हैं कि अलगाववादी, नक्सलवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी, आरक्षणवादी, धार्मिक कट्टरपंथी ही नहीं अपितु पंजीकृत राष्ट्रीय दल भी ऐसे आचरण कर रहे हैं जिससे संविधान और देश की सुरक्षा पर गम्भीर खतरा महसूस किया जा रहा है। ऐसी ही स्थितियां कठोर शासन की माँग बना देती हैं जो प्रारम्भ में तो राहत देता हुआ सा लगता है पर बाद में निरंकुश, स्वार्थी और दमनकारी होने लगता है, और अंत में आंतरिक संघर्ष की स्थितियां ला देता है। इसलिए जरूरी है कि देश के सभी राजनीतिक दल अपने आचरणों को संविधान के दायरे तक सीमित करके चलें। जो दल और उसके नेता निजी स्वार्थ में इस अराजकता को पैदा कर रहे हैं उन्हें शायद इसके दुष्परिणाम की कल्पना नहीं है।
वीरेन्द्र जैन
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