बुधवार, अक्टूबर 03, 2012

धार्मिक जडताओं से मुक्ति ही धर्म को बचा सकती है


धार्मिक जडताओं से मुक्ति ही धर्म को बचा सकती है
                                                      वीरेन्द्र जैन

      धार्मिक क्षेत्र में इन दिनों बडा हडक़म्प मचा हुआ है। बदले हुये समय में जो चीजें सामने आ रही हैं, उन्होंने धर्मों के उन हवा महलों को धाराशायी कर दिया है जिनका आधार कुछ कल्पनाओं पर टिका हुआ था। विज्ञान की उपलव्धियों ने जिस यथार्थ को सामने रखा है उसकी धूप ने धर्मों द्वारा पैदा की गयी धुंध को छांटने का काम शुरू कर दिया है। इस धुंध से लाभ उठा कर जो लोग अपना हित साधते आ रहे थे उनकी पोल पट्टी खुल जाने से वे परेशानी महसूस कर रहे हैं।

            किसी जमाने में चेचक का बड़ा धार्मिक कारोबार चला करता था पर जब से देश में चेचक का उन्मूलन हुआ है तब से इस धन्धे का भी उन्मूलन हो गया  है। मेरा एक मित्र बतलाता है कि चेचक उन्मूलन के बाद देश में नया कोई भी शीतला माता का मन्दिर स्थापित नहीं हुआ है। वह मजाक में कहता है कि बेरोजगार युवकों को अब चिकनगुनिया माता का कोई्र मन्दिर बना लेना चाहिये। कभी सुप्रसिद्ध लेखक ख्वाजा अहमद अव्बास ने पाकिस्तान के इस्लामी कानून के बारे में  लिखा था कि डाक्टरों ने वहां अजीब समस्या खड़ी कर दी है। शरीयत कानून के अनुसार चोरी करने वाले के हाथ काटने का प्रावधान है पर डाक्टर कहते हैं कि तुम काट दो पर हम जोड़ दैंगे। जिन दिनों शरीयत कानून अस्तित्व में आया था तब शल्य चिकित्सा का ऐसा विकास नहीं हुआ था, पर अब हो गया है। कथित धार्मिक नियम अपने समय और क्षेत्र के सामाजिक नियम कानून रहे हैं और कोई भी कानून अपने समय की सामाजिक नैतिकताओं और उनको तोड़ने की घटनाओं के अनुसार ही बनता है और उसके अनुरूप ही उसे बदलते रहना चाहिये। कुछ लोग उन कानूनों से अतिरिक्त लाभ उठाते रहते हैं इसलिये वे उसमें परिवर्तन नहीं होने देना चाहते। ये जड़ता ही समाज में टकराव पैदा करवाती है। पर लाभान्वित होने वाला वर्ग सामाजिक कानूनों को धर्म से जोड़ देता है जिससे धर्मों में अन्धी आस्था रखने वाला एक वर्ग विभूचन की हालत में आ जाता है। उसे न्याय भले ही सामने दिखाई दे रहा हो पर सैकड़ों सालों पूर्व बनाये गये नियमों में उसकी आस्था चुपचाप अन्याय होने देती है। वह या तो चुप रहता है या जानबूझ कर कुतर्क करके हास्यास्पद होता हुआ झुंझलाता रहता है।

            बदलता समय और वैज्ञानिक शिक्षा ,धार्मिक परिकल्पनाओं के प्रति संदेह पैदा करती हैं जिसका सामना करने के लिये निरन्तर विश्वास खोता हुआ धर्म झूठे चमत्कार पैदा करने के भोंड़े प्रयास करता रहता है। यह महज संयोग नहीं है कि एक सुनिश्चित समय में ही समुन्दर का पानी मीठा होने लगे, गणेशजी आदि दूध पीने लगें, मदर मेरी की आंखों से पानी निकलने लगे, पुराने भवनों की काई लगी दीवारों पर बन गयी आकृति सांई बाबा से मेल खाने लगे, कोई अध्यापक ईशु के दर्शन कराने लगे, जैन मन्दिरों के भवनों और मूर्तियों से बूंदें टपकने लगें, बुद्ध का अवतार पैदा हो जाये,। असल में ये सारे चमत्कार तेजी से डूब रहे धर्म को थोड़ा और जीवन देने की  फूहड़ कोशिश भर हैं। यह वही समय है जब एक जैन साध्वी अपने ओढे हुये ब्रम्हचरित्व को छोड़ कर  अपने प्रेमी के साथ भाग गयी होती है, इमराना के मामले में शरीयत कानून के आधार पर फैसला देने वालों  के खिलाफ चुप रहने को विवश  पढे लिखे मुसलमान शर्म के मारे मरे जा रहे होते हैं, गुड़िया के फैसले ने मौलानाओं के विवेक पर प्रश्चिन्ह खड़े कर दिये हों, शंकराचार्य बलात्कार, हत्या व धार्मिक संस्थानों के कोष का दुरूपयोग करने के आरोपों में गिरफ्तार हो रहे हों, प्रतिदिन किसी न किसी आश्रम या मठ के मठाधीश के यहां छापा पडने पर अश्लील सीडी ,हथियार, व फरार अपराधी पकड़े जा रहे हों, इमामबुखारी जैसे मुसलमानों के स्वयंभू ठेकेदार शबानाआजमी जैसी सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता व उत्कृष्ट कलाकार के बौद्धिक तर्कों का उत्तर उन्हें नाचने गाने वाली बता कर दे रहे हों तब ऐसे में धार्मिक संस्थाओं और उन पर अधिकार किये हुये धार्मिक चोगाधारियों में अन्धआस्था रखने वालों का विवेक संदिग्ध हो जाता है। सूचना तकनीक से लैस नई पीड़ी विवेकशून्य नहीं हो सकती इसलिये धर्मों का धन्धा करने वाले अपने अभियानों में चमक दमक रंगीनियां व मनोरंजन को अधिक से अधिक स्थान देने लगे हैं। कभी जो धर्म सादगी और नैसर्गिक सौन्दर्य से जुड़ा रहता था वह अब बनावटों का भन्डारगृह हो रहे हैं। प्रवचनकारों के कार्यालयों में मैटर तैयार करने के लिये पचासों लोग वेतन पर कार्यरत रहते हैं और आयोजनों से पूर्व सेविकाएं सौन्दर्य प्रसाधनों की आवश्यकताएं महसूस करने लगी हैं।

            प्रत्येक धर्म मानवता के हित में ही प्रारम्भ हुआ है व उन्होंने अपने समय के श्रेष्ठ ज्ञान को जगतहित में लगाया होता है। पर समय और परिवेश स्थिर नहीं होता । बदलती परिस्थितियों के साथ सम्बन्धित धर्म की समीक्षा होनी चाहिये, और होती भी रही है किंतु इस बीच में एक ऐसा वर्ग पैदा हो जाता है जो अपने स्वार्थों के कारण धर्म को अपने प्रारम्भिक स्वरूप में ही बनाये रखना चाहता है। यह जड़ता ही समस्याएं पैदा करती है जिससे क्रमश: धर्म संस्था विभाजन की और बढती है । आज इसी विभाजन के परिणामस्वरूप सैकड़ों की संख्या में धर्म पैदा हो गये हैं जो सभी धर्मों के सिद्धांतों में प्रथम स्थान रखने वाले सत्य की ही हत्या करते हैं।

            जो लोग धर्म को बचाये रखना चाहते हैं उन्हैं इसे जड़ता से मुक्त करना होगा । स्वतंत्रताओं की ओर दौड़ लगाती इस दुनिया को अधिक दिनों तक विवेकहीन धार्मिक परतंत्रता में बांध कर नहीं रखा जा सकता।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार र्स्टलिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल
फोन 9425674629

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