दागी के परिवारियों
का पार्टीप्रवेश, मुलायम सिंह की भाजपाई
हरकत
वीरेन्द्र जैन
पुरानी कथा
कहानियों में ऐसा जिक्र आता है जिसमें निरवंशिया राजा के निधन पश्चात नगरवासी ऐसा
भी तय कर लेते हैं कि किसी तय तिथि पर नगर की सीमा में सबसे पहले प्रवेश करने वाले
व्यक्ति को ही राजा बना दिया जाये। सामंती अवशेषों के प्रभाव वाले लोकतंत्र में भी
कुछ विचित्र संयोगों से उभरे व्यक्तियों को सरकारें चलाने के अवसर मिल जाते हैं। उत्तर
प्रदेश में मुलायम सिंह ऐसे ही नेता हैं, जो वैसे तो अच्छे प्रशासक नहीं हैं पर आगामी
अवसरों की कल्पना कर एच. डी. देवगौड़ा की तरह देश के प्रधानमंत्री बनने तक के सपने
देखने लगे हैं। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत भले ही समाजवादी आन्दोलन में राम
मनोहर लोहिया के सिपाही की तरह हुयी हो किंतु उनकी वर्तमान राजनीति से उस अतीत का
कोई सम्बन्ध नहीं है। वे अगर सैद्धांतिक समाजवादी रहे होते तो अब तक उसी दशा में
पहुँच गये होते जिसमें शेष सारे समाजवादी पहुँच गये हैं, पर आज उनकी पार्टी की
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पूर्ण बहुमत वाली सरकार चल रही है। उनका उभार हिन्दू
साप्रदायिकता की प्रतिक्रिया में उभरी मुस्लिम एकजुटता के साथ मण्डल दौर में बने
मुस्लिम यादव गठजोड़ का परिणाम था जिसे अमर सिंह जैसे चतुर व्यापारी की सौदेबाज़ी का
कूटनीतिक लाभ मिला। यह परिस्थितिजन्य संयोग ही है कि वे प्रदेश की राजनीति में
प्रथम दो दलों में से एक हैं।
मुलायम सिंह
समाजवादी विचारधारा के इतिहास, भाजपायी अवसरवाद, कांग्रेसी गवर्नेंस, मण्डलवाद
जनित पिछड़ों की जातिवादी एकजुटता, कार्पोरेट जगत से गठजोड़ की अमर सिंही शैली,
अल्पसंख्य्कों को बरगलाने वाले बयानों, अमिताभ परिवार की लोकप्रियता को भुनाने,
आदि से निर्मित व्यक्तितत्व हैं, जो अपने खानदान और निकट रिश्तेदारों के संगठन से
अपनी व्यक्तिवादी पार्टी चला रहे हैं जिसमें उनके बेटे, बहू, भाई, भतीजे,
रिश्तेदारों, जाति भाइयों से बचे स्थानों पर समर्थकों, और अन्य लाभार्थियों को जगह
दी जाती है। कभी किसी कालेज में चल रहे कवि सम्मेलन के दौरान किसी कवि द्वारा
सरकार विरोधी कविता सुनाये जाने से विचलित स्थानीय थानेदार द्वारा मना किये जाने
पर उस थानेदार को उठाकर पटक देने वाले युवा, छात्र पहलवान मुलायम सिंह ही थे जो उस
समय समाजवादी युवजन सभा के जुझारू सदस्य थे। संविद सरकारों के दौर में उन्हें
उभरने का अवसर मिला और वे नेता बन गये। कहते हैं कि सत्ता भ्रष्ट करती है और
सम्पूर्ण सत्ता सम्पूर्ण भ्रष्ट करती है, जो उन पर क्रमशः लागू होती गयी। जब
उन्हें समर्थन मिला, सत्ता मिली तो उस जन समर्थन को भुनाने और सत्ता के लाभों का
विदोहन करने की सलाह देने वाले लोग भी मिलते गये और वे समाजवादी नाम से जुड़े रह कर
भी चरित्र में भाजपायी होते गये जिसकी पुष्टि उनके निकटतम सहयोगी रहे बेनी प्रसाद
वर्मा पिछले दिनों बहुत तल्खी से करते रहे हैं। आजकल वे अडवाणी जी को सत्यभाषी
हरिश्चन्द्र बताने लगे हैं और 18 वर्ष पूर्व अयोध्या में कानून व्यवस्था बनाये
रखने की कार्यवाही के लिए माफी माँगने लगे हैं।
उत्तरप्रदेश
का दुर्भाग्य यह रहा कि जैसे ही लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित होती गयी वैसे ही
मतदाताओं को भावनात्मक रूप से बरगलाने का सिलसिला बढता गया। कभी मन्दिर बनवाने के
नाम, कभी दलितों के उत्थान के नाम, कभी पिछड़ों के नाम, तो कभी किसानों के नाम पर वोट
निकलवाये जाते रहे किंतु उन वोटों से शोषित पीड़ित वर्गों का भला कभी नहीं हुआ। एक
बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक वोट तो उनकी सुरक्षा के नाम पर ही हथियाया जाता रहा।
देश का सबसे बड़ा ऎतिहासिक प्रदेश सबसे अधिक निरक्षरों, कुपोषित बच्चों, अन्धविश्वासियों,
, सर्वाधिक बेरोजगारों, अपराधियों, यौन अत्याचारों, दलित उत्पीड़न, और भ्रष्टाचार
से ग्रस्त प्रदेश है। विकास योजनाओं, व सशक्तिकरण के नाम पर जो बन्दरबाँट होती है
उसी को जीमने के लिए सारी राजनीतिक कुश्तियां चलती हैं। सारी लड़ाई गलत काम के
विरोध की नहीं अपितु लूट में हिस्सेदारी के लिए होती है। सभी तरह के आर्थिक
अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण चाहिए होता है जिसके लिए सत्तारूढ दल उनकी
प्राथमिकता में होता है, यही कारण है कि सारे आर्थिक अपराधी सत्ता बदलने के बाद
सत्तारूढ दल की जयजयकार करते और नये मंत्रिमण्डल के अभिनन्दन में बड़े बड़े विज्ञापन
और होर्डिंग लगवाते हुए देखे जाते हैं।
उत्तर प्रदेश
की पिछली बसपा सरकार में परिवार कल्याण मंत्री बाबूलाल कुशवाहा पर राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ अभियान [एन आर एच एम] में करोड़ों के घपले का आरोप है और वे अभी
जेल में हैं। यह घोटाला उजागर होने के बाद अनेक सम्बन्धित अधिकारियों की कारावास
में सन्दिग्ध मौतें हो चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा
चुनावों से पहले बाबूलाल कुशवाहा को अपनी पार्टी में सदस्यता दे दी थी जिसकी
व्यापक निन्दा हुयी थी। इस निन्दा से प्रभावित होने वाले चुनाव परिणामों की आशंका
को देखते हुए भाजपा ने अपनी पार्टी के अन्दर से भी श्री कुशवाहा का विरोध करवा
दिया था और उनसे फिलहाल अपनी सदस्यता स्थगित करने का बयान दिलवा दिया था। समाजवादी
पार्टी ने चुनावों के दौरान भाजपा द्वारा एक ओर तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान
छेड़ने और दूसरी ओर दागियों को पार्टी में सम्मलित करने के दुष्कृत्य की कड़ी आलोचना
की थी। बिडम्बना यह है कि अब मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने जेल में बन्द इन्हीं
बाबू लाल कुशवाहा की पत्नी और भाई को गाजे बाजे के साथ समाजवादी पार्टी में
सम्मलित कर लिया है जो परोक्ष में घोटाले के अभियुक्त को ही सदस्य बनाने के समान
है। स्मरणीय है कि यह भाजपा के अनुशरण की तरह है जिसके विरोध के नाम पर मुलायम
सिंह अल्पसंख्यकों के वोटों के समीकरण बना कर चुनाव जीतते हैं। रोचक यह है कि अब “डील विशेषज्ञ” भाजपा भी मुलायम
सिंह की वैसी ही कठोर निन्दा कर रही है और पूछ रही है कि यह डील कितने में हुयी।
तय है कि कभी समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी विरोधी बहुजन समाज पार्टी सरकार में
मंत्री रहे अभियुक्त का पहले भाजपा में शामिल होने का प्रयास और फिर राज्य में
सत्तारूढ समाजवादी पार्टी में सम्मलित होने के लक्ष्य बहुत साफ हैं जो इस इतने बड़े
आर्थिक भ्रष्टाचार और इससे सम्बन्धित हत्या जैसे अपराध की जाँच को प्रभावित करने
से कम कुछ भी नहीं हो सकता।
यह घटना उसी
समय घटी है जब सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग संसद व विधानसभाओं में अपराधियों की
बढती संख्या पर अपनी चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं। सत्तारूढ समाजवादी पार्टी का झंडा
लगा कर सरे आम गुंडागर्दी और लूटपाट करने के मामले में तथा अधिकांश थानों में
पदस्थ जाति विशेष के पुलिस इंस्पेक्टर न केवल जातिवादी आग्रह रखने अपितु स्थानीय
समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता की अनुमति से संचालित होने के आरोपों से घिरे हैं
जिससे प्रदेश में भयानक असंतोष है जिसके दर्शन हाल ही में इलाहाबाद में हुये हैं।
ऐसी दशा में एक बड़े अपराध के अभियुक्त की पत्नी व भाइयों को पार्टी में सम्मलित
करके पहलवान मुलायम सिंह ने भाजपानुमा बेशर्मी जैसी बड़ी भूल की है जिसका राजनीतिक नुकसान
उन्हें उठाना पड़ेगा।
वीरेन्द्र जैन
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