मोदीमय होती भाजपा
की बदलती भाषा और प्रतीक
वीरेन्द्र जैन
जैसे जैसे भाजपा मोदीमय होती जा रही है वैसे
वैसे उसके छोटे बड़े नेता वाणी का संयम खोते हुए ऊल जुलूल बोलने लगे हैं। उल्लेखनीय
है कि भरतीय संस्कृति का मुखौटा पहिने भाजपा एक लम्बे समय तक चतुराईपूर्ण भाषा व
प्रतीकों के माध्यम से साम्प्रदायिकता के कुटिल प्रयोग करती रही है, तब अनेक चालाक
भाषा शास्त्री उसकी योजनाएं बनाते थे। ऐसा करते समय वे भले ही दादा कौणकेनुमा बहुअर्थी
बातों का प्रयोग करते रहे हों किंतु उनकी भाषा में वक्त जरूरत के लिए एक शिष्ट अर्थ
भी होता था। स्मरणीय है कि एक पैट्रोल डीजल चलित वाहन को रथ का नाम संघ परिवार की
ओर से ही दिया गया और भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवाणी जिस डीसीएम टोयटा वाहन द्वारा
सोमनाथ से अयोध्या की ओर चले थे उसे रथ और उनकी इस राजनीतिक यात्रा को रथयात्रा
कहा गया था। संज्ञा का यह परिवर्तन बहुत बारीक खेल था। रथ, पशुओं द्वारा खींचा
जाने वाला एक प्राचीन सामंती वाहन था जिसके उपयोग के उदाहरण हमारी पुराण कथाओं में
मिलते हैं। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ को श्रीकृष्ण द्वारा सारथी की
भूमिका में संचालित किये जाने का वर्णन और उस आशय के अनेक चित्र लोगों की
स्मृतियों में बसे हुए हैं। उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी बहुत प्रसिद्ध
है। जब अडवाणीजी द्वारा रथ का नाम देकर यात्रा निकाली गयी थी तब उस मोटर वाहन को
रथ का रूप भी दिया गया था। उस दौर की पूरी राजनीतिक परिस्तिथि, साम्प्रदायिक घनत्व,
को देख कर इस यात्रा की पटकथा, रास्ता, और उत्तेजक नारे तय किये गये थे। वाहन पर
उनकी पार्टी का बड़ा सा चुनाव चिन्ह भी अंकित था किंतु सावधानीवश पार्टी का नाम
नहीं था। आवश्यकतानुसार वे कमल के फूल को भारतीय और हिन्दू संस्कृति से जोड़ कर
अर्थ बदल सकते थे। कथित राम जन्मभूमि मन्दिर के पुनर्निर्माण से शुरू करके उन्होंने
चतुराई से उसे अयोध्या में भव्य राम मन्दिर निर्माण के अभियान में बदल दिया था और
बड़े नाटकीय भोलेपन से सवाल करते थे कि अयोध्या में भगवान राम का मन्दिर नहीं बनेगा
तो कहाँ बनेगा? जबकि सच यह था कि वे अयोध्या में रामजन्म भूमि मन्दिर के स्थान पर
बनी बतायी मस्ज़िद को तोड़ने के लिए एक सम्प्रदाय की भावनायें उकसाना और दूसरे
समुदाय की भावनाओं को भड़काना ही उनका लक्ष्य था, ताकि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से
बहुसंख्यक वोट बटोरे जा सकें। अपने शोर शराबे भरे धुआँधार प्रचार में वे एक ऐसी
विशाल तस्वीर का दुष्प्रचार कर रहे थे जिसमें भगवान राम एक सलाखों वाली कोठरी में
कैद से प्रदर्शित हो रहे थे। जबकि सच यह था कि बाबरी मस्ज़िद में कई दशकों से नमाज
नहीं पड़ी जा रही थी और जब से 1949 में तत्कालीन जिलाधीश द्वारा षड़यंत्र पूर्वक
रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी गयी थी तब से वहाँ उनकी पूजा हो रही थी। असंख्य
अन्य मन्दिरों की तरह वहाँ भी सुरक्षा और दर्शन की सुविधा एक साथ देने के लिए सामने
से सलाखों वाले पट लगे हुए थे। उक्त जिलाधीश बाद में जनसंघ के टिकिट पर लोकसभा का
चुनाव भी लड़े थे।
उक्त
उदाहरण उस दौर की, जिसे अटल-अडवाणी दौर कहा जा सकता है, की भाषागत चतुराई के
उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। आज जब सब कुछ मोदी अर्पित किया जा रहा है तब आज
की भाषा अपेक्षाकृत अशिष्ट और अधिक फासीवादी है। सोशल मीडिया पर अनेक बेनामी या
छद्म नाम और पहचान वाले सेवक नियुक्त कर दिये गये हैं जो मोदी की अन्धभक्ति व सच
को तोड़ मरोड़, झूठ का दुष्प्रचार करने के लिए अपने विरोधियों के खिलाफ जिस तरह की
गन्दी भाषा, अश्लील गालियों, और प्रतीकों का प्रयोग कर रहे हैं, उसे देख कर लग रहा
है कि यह भाजपा में मोदी युग का बदलाव है। नोबल पुरस्कार एक अंतर्राष्ट्रीय
पुरस्कार है जो पुरस्कृत के कामों की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का संकेत होता है।
इसे भाजपा ने भी स्वीकारा है जब एनडीए के शासन काल में वह इसी पुरस्कार से
पुरस्कृत होने पर भारतीय मूल के लेखक
नायपाल को बुलाकर सम्मानित करती है जिनका कथन है कि माथे पर टीका लगा होना दिमाग
के खोखले होने का प्रमाण होता है। यह भी एक संयोग होता है कि उस समय उनका स्वागत
करने वालों में मुरली मनोहर जोशी ही प्रमुख थे जिनका माथा सदैव ही टीके से सज्जित
रहता है।
सोशल
मीडिया के छद्मनामी शिखण्डियों द्वारा किये जाने अश्लील भाषायी आक्रमण को दरकिनार
भी कर दें तो एक बुद्धिजीवी सम्पादक द्वारा अमृत्य सेन के बारे में जो कहा गया उसे
आज की बदलती भाजपायी वृत्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। राज्य सभा का एक और
कार्यकाल पाने के लिए मोदी की अन्ध चापलूसी में उनका यह कहना कि मोदी को
प्रधानमंत्री पद के लिए पसन्द न करने पर भाजपा शासन आने पर वे उनका भारत रत्न
वापिस ले लेंगे, एक ऐसा बयान था जो सोचने के तरीकों के पीछे की कहानी कहता है।
मोदी के छद्मनामी सोशल मीडिया सेवकों द्वारा अमृत्य सेन ही नहीं उनकी अभिनेत्री
बेटी की फिल्मी भूमिकाओं से चित्र निकाल कर उन पर अश्लील टिप्पणियां यह बताती हैं
कि यह केवल चन्दन मित्रा तक ही सीमित भूल नहीं थी अपितु इस पूरे नये वर्ग को इसी मानसिकता
के लिए तैयार कर दिया गया है। परोक्ष में यह मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के
रूप में नापसन्द करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के लिए भी एक धमकी थी जिनकी अभिनेत्री
बेटी फिल्मों में कहानी के अनुसार सभी तरह की कुशल भूमिकाएं कर रही है। कल के दिन
वे उसके द्वारा अभिनीत भूमिकाओं के चित्र भी इसी तरह डाल सकते हैं।
गुजरात
के चुनाव में रिपोर्टिंग के लिए गये भाजपा समर्थक पत्रकारों की टीम ने लौट कर अटल
बिहारी और उनकी टीम के खिलाफ लगातार ऐसी ही भाषा में लिखना शुरू कर दिया जिससे कि
भाजपा समर्थकों में उनकी व अडवाणी की छवि को धूसरित किया जा सके। किसी समय भाजपा
के थिंक टैंक माने गये गोबिन्दाचार्य ने जब मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य
घोषित किया तो मोदी की इसी टीम ने उनके चरित्र पर वैसी ही कीचड़ उछालनी शुरू कर दी
जैसी वे कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं के खिलाफ उछालते रहते थे। जब पानी सर से ऊपर
हो जाता है तो पार्टी के सत्तालोलुप नेता अपने को केवल अलग कर लेते हैं, या यह कह
देते हैं कि यह पार्टी का मत नहीं है। वे सम्बन्धित और उसके कथन या कार्य की
आलोचना नहीं करते और न ही कार्यवाही की माँग करते हैं, जैसा कि चन्दन मित्रा जैसे
मामलों में हुआ है।
मोदीयुग
की भाजपा ने मोदी की वह भाषा और ढीठता सीख ली है जो वे 2002 में तत्कालीन मुख्य
चुनाव आयुक्त लिंगदोह, सोनिया गान्धी, राहुल गान्धी, मुसलमानों, नरसंहार में
पीड़ितों को मरहम लगाने की जगह क्रिया की प्रतिक्रिया या कार के नीचे आये पिल्ले
जैसे बयानों में बोलते रहे हैं। मोदी के कार्यकाल में हुए एनकाउंटर या दूसरी
हत्याएं भी संघ परिवार की साम्प्रदायिक हिंसा से वैसी ही भिन्न हैं। इसी का परिणाम
है कि राज्य स्तरीय नेता भी ऐसी ही भाषा बोलने लगे हैं। गत दिनों गुना जिले के
मधुसूदन गढ में मध्य प्रदेश के परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि अगर कोई
पार्टी की बुराई करे तो उसकी जुबान खींच लो।
वीरेन्द्र जैन
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मोबाइल 9425674629
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