सोमवार, सितंबर 16, 2013

प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी पर मोदी के चयन से नया कौन जुड़ेगा?

 प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी पर मोदी के चयन से नया कौन जुड़ेगा?
वीरेन्द्र जैन

       बुन्देली भाषा में एक वाक्यांश आता है- मुँह का ज़बर होना। जब कोई अतार्किक ढंग से अपनी बात ठेलता हुआ दूसरे को बोलने ही नहीं देता तो उसे मुँह का ज़बर कहा जाता है। भारतीय राजनीति में कहा जा सकता है कि भाजपाई मुँह के ज़बर हैं। जो लोग भी टीवी चैनलों पर होने वाली बहसें सुनते हैं वे जानते हैं कि अधिकांश भाजपाइयों या भाजपा समर्थकों की यह कोशिश रहती है वे निरर्थक और अतार्किक बातों से इतना समय खराब कर दें ताकि उनसे भिन्न विचार रखने वालों को अपनी बात रखने का अवसर कम से कम मिले। संसद के सदनों में वे शोर मचा कर सदन को चलने नहीं देते ताकि तर्क और तथ्यों को स्थान नहीं मिले। जो नारेबाजी सड़कों पर करना चाहिए उसे वे संसद में करते हैं और सदन को स्थगित करना पड़ता है। इस तरह वे बहस को ठेल कर अपना काम तो चला लेते हैं पर इससे उनका अपराधबोध प्रकट हुए बिना नहीं रहता। उनके इस कारनामे से कुछ कुशिक्षित लोग भले ही बरगलाये जा सकते हों पर समझदार लोगों के सामने उनकी कार्यप्रणाली और चरित्र स्पष्ट हो जाता है।  
       जिन मोदी को सोचे समझे ढंग से एन केन प्रकारेण लगातार प्रचारित किया जाता रहा है उनके प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनाये जाने पर ऐसा प्रकट किया गया है जैसे वे एनडीए के एक दल के बहुमत से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी की जगह प्रधानमंत्री ही बन गये हों। यह तूमार उनकी छवि सुधारने और उनको जबरन जनता में रोपने के लिए बाँधा जा रहा है। स्मरणीय है कि गत वर्ष लालकृष्ण अडवाणी ने खेद के साथ साफ साफ कहा था कि जनता भाजपा को कांग्रेस के विकल्प के रूप में नहीं देख रही। इस बीच हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में मोदी के प्रचार में सक्रिय होने के बाद भी भाजपा ने अपने समर्थन और सरकारों को खोया है। उत्तर प्रदेश में तरह तरह की नौटंकियां करने के बाद वे सीटों की संख्या और वोट प्रतिशत में घटे हैं और उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों को उन्होंने खोया है। ऐसा तब हुआ है जब यूपीए शासन के खिलाफ लगातार लम्बे चौड़े आरोप लगाये जा रहे थे और मँहगाई अपने चरम की ओर बढ रही थी। उल्लेखनीय है कि जहाँ भाजपा की राज्य सरकारें रहीं हैं वहाँ भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में जाँच के बाद उनके पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की संलिप्तता पायी गयी है और आम अपराधियों की तरह अदालतों में वे सुनवाइयां टलवाने की कोशिशें करते पाये जाते हैं। ऐसे मामलों में जल्दी फैसला नहीं होने देने के उनके प्रयास उनकी प्रणाली के संकेत देते हैं। लोकायुक्तों की स्थापनाओं को वे टालते हैं [गुजरात] और जहाँ वह स्थापित है वहाँ उन्हें काम नहीं करने देते [मध्य प्रदेश] जहाँ काम करता है वहाँ उससे असहयोग करते हैं [कर्नाटक]।  
       सवाल उठता है कि ऐसे कौन से कारक हैं जो मोदी को प्रधानमंत्री की तरह दिखाने की नौटंकियां करने के लिए नकली लाल किला या नकली संसद भवन तक बनवाने, और 15अगस्त को समानांतर भाषण देने को प्रेरित करते हैं! सच तो यह है कि अन्दर से कमजोरी महसूस करने के बाद ही वे ये काम एक  भ्रम पैदा करने के लिए करते हैं। पार्टी का प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित हो जाने के बाद मोदी कैमरों की सीमा में इस तरह से लोगों के पाँव छू रहे थे गोया प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी की जगह प्रधानमंत्री ही बन गये हों।
       मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बदनाम व्यक्तित्वों में से आते हैं। अमेरिका उन्हें वीसा नहीं देना चाहती, ब्रिटेन को उनके प्रति नरम होने की खबरों का खण्डन करना पड़ता है, उनकी पार्टी के गठबन्धन के सदस्य उनके कारण उनका गठबन्धन छोड़ कर चले जाते हैं,[जनतादल-यू, तृणमूल कांग्रेस, लोकजनशक्ति, नैशनल कांफ्रेंस, बीजू जनता दल , नैशनल कांफ्रेंस आदि] जिनमें छोटे दलों से लेकर बड़े दल भी होते हैं। नोबल पुरस्कार से सम्मानित भारत रत्न अर्थशास्त्री उन्हें पसन्द नहीं करते[अमृत्य सेन]। सामाजिक कार्यकर्ताओं पर जब उनके प्रति नरम होने का आरोप लगाया जाता है तो वे सफाई देने में देर नहीं करते [अन्ना हजारे]। गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर को जब उनके समर्थक होने का भ्रम फैलाया जाता है तो वे कानूनी नोटिस देने की बात करते हैं [अमिताभ बच्चन]। वे केवल एक राज्य में लोकप्रिय हैं, पर पूरे देश और दुनिया में अलोकप्रिय हैं, लोग उनसे घृणा करते हैं। बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा जैसी कहावत के अनुरूप उनकी बदनामी को भाजपा भुनाना चाहती है। भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से लालकृष्ण अडवाणी को पिछली बार प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बना कर परखा जा चुका है व अटलबिहारी चुनाव में भाग लेने लायक स्वस्थ नहीं हैं। यही कारण है कि मोदीजी अपनी मुखरता, के कारण नये युवा नेतृत्व की तरह उभरे हैं। 2002 में हुए मुसलमानों के नरसंहार के बाद वे साम्प्रदायिकता से दुष्प्रभावित राज्य के बड़े वर्ग के बीच  दृढ नेतृत्व की तरह प्रचारित किये गये हैं। उनके मंत्रिमण्डल के सबसे वरिष्ठ मंत्री को जेल की यात्रा करनी पड़ी और उसके बाद अदालती आदेश से उसका प्रदेशनिकाला हुआ। उनकी दूसरी महिला मंत्री को आजन्म कैद की सजा हुयी है और उसके साथी को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी है। ये सब उस स्थिति में हुआ है जब उक्त लोगों को बचाने में पूरी सरकारी मशीनरी झौंक दी गयी। उनके मंत्रिमण्डल के एक सदस्य की हत्या हुयी और उसके पिता ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने सरे आम हत्या की ज़िम्मेवारी मोदी पर लगायी। झूठे एनकाउंटर के लिए जेल में बन्द डीजीपी ने जब यह काम उनके आदेश पर करने सम्बन्धित पत्र लिख कर उन पर लगे आरोप को पुष्ट कर दिया तब उन्हें और अपने आप को बचाने के लिए भाजपा को उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित करना पड़ा क्योंकि अब बचने का कोई दूसरा रास्ता शेष नहीं था।
       स्मरणीय है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी जल्दी से जल्दी बनाने अन्यथा पार्टी के हिट विकट हो जाने का खतरा बताने वाले राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जैटली ने इस बयान के कुछ ही दिन पहले कहा था कि पार्टी में मोदी समेत कम से कम दस लोग सम्भावित प्रत्याशी हैं। जैटली का बयान बंजारा के पत्र खुलासे के समानांतर आया जिससे पता चलता है कि इस पत्र की जानकारी मिलते ही उनके विचार बदल गये थे, और आनन फानन में मोदी के अभिषेक जैसा तुमुल कोलाहल पैदा कर दिया गया। स्मरणीय है कि मोदी की हरियाणा में हुयी रैली के बाद ही एक अखबार [दैनिक भास्कर 16 सितम्बर 2013] में इस आशय का समाचार प्रकाशित हुआ कि बंजारे के पत्र के पीछे भाजपा के ही एक गुजरात से सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री [अर्थात अडवाणी] का हाथ है। यह बंजारा के पत्र के खुलासे को दलीय प्रतिद्वन्दता में बदल कर उसके महत्व को कम करने का षड़यंत्र है।   
       सच तो यह है कि मोदी को यह प्रत्याशी पद देने के पीछे उनके कारनामों से उन्हें सुरक्षा दिलाने से अधिक कुछ भी नहीं है। मोदी के आने पर दुन्दभि बजाने वाले सब किराये के लोग हैं। उनके आने से न कोई दल उनके गठबन्धन से जुड़ रहा है और न ही जनता का कोई वर्ग। उद्योग जगत का एक हिस्सा केवल धन दे सकता है जिसके नियमानुसार उपयोग के लिए निर्वाचन आयोग अपनी पूरी सख्ती से कमर कसे हुए है। मध्यम वर्ग के जिस कुशिक्षित हिस्से के उनके दृढ अनुशासन, आर्थिक ईमानदारी, आंकड़ागत विकास जैसी हवाई बातों से प्रभावित होने का प्रचार किया जा रहा है उसका किंचित असर होने पर भी मोदी के कारण जितना नुकसान होने जा रहा है वह कई गुना अधिक है। अभी भी हमारे यहाँ मतदान को जातियों, सम्प्रदायों, क्षेत्रीयताओं, लुभावने व्यक्तित्वों, पैसों और दबावों आदि से मुक्त नहीं किया जा सका है। इसलिए यह मानना चाहिये कि सारी कवायद मोदी और उनके सहयोगियों को कानूनी कार्यवाही से कुछ समय के लिए बचाने से अधिक कुछ नहीं है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें