शनिवार, अगस्त 16, 2014

खाने और न खाने देने के मध्य म.प्र. सरकार



खाने और न खाने देने के मध्य म.प्र. सरकार
वीरेन्द्र जैन

       श्री नरेन्द्र मोदी सिर्फ देश के प्रधानमंत्री पद पर ही पदारूढ नहीं हैं, अपितु वे सत्तारूढ दल भाजपा के भी सर्वेसर्वा बन गये हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री काल में अपने कनिष्ठ मंत्री रहे अमित शाह को पार्टी के अध्यक्ष पद पर पदासीन करवा दिया है, और इस तरह पूरी पार्टी भी उनकी मुट्ठी में है। उल्लेखनीय है कि अनेक गम्भीर आरोपों से घिरे श्री शाह को अध्यक्ष पर बैठाने के फैसले का विरोध करने का साहस भी किसी भाजपा नेता ने नहीं किया जबकि उनके पूज्य श्री मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनाये जाने तक का विरोध श्री लाल कृष्ण अडवाणी, और सुषमा स्वराज जैसे वरिष्ठ नेताओं ने किया था और वे मुम्बई अधिवेशन से आमसभा को सम्बोधित किये बिना ही दिल्ली लौट आये थे। यह जानकारी चौंकाने वाली है कि देश के सबसे मुखर नेता रहे श्री अडवाणी ने इस लोकसभा में एक बार भी मुँह नहीं खोला, और यही दशा दूसरे वरिष्ठ नेता श्री मुरली मनोहर जोशी की भी है। ऐसा लगता है जैसे कि भाजपा में आपातकाल लागू कर दिया गया है।
       दो महीने के लम्बे मौन के बाद नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों अपना मुँह खोला तो चुनावी घोषणाओं की तरह दहाड़ भरी कि वे न खायेंगे और न खाने देंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय के भरेपूरे स्टाफ से सुसज्जित श्री मोदी ने अपना वक्तव्य अनौपचारिक ढंग से दिया जिस कारण उनके शब्द किसी प्रधानमंत्री की कार्यालयीन भाषा की तरह न होकर एक राजनेता की भाषा की तरह बाहर आये। उनकी भाषा के अभ्यस्त लोग समझ गये कि यह वक्तव्य पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार करने वालों को सावधान करने वाला वक्तव्य है और विशेष रूप से सत्तारूढ दल के लोगों के लिए दिया गया है। उल्लेखनीय है कि श्री मोदी ने बाराबंकी की सांसद द्वारा अपने पिता को सांसद प्रतिनिधि बनाये जाने और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी द्वारा अपने मौसेरे भाई को अपने पर्सनल स्टाफ में लेने के खिलाफ अपना असंतोष प्रकट किया था। दिल्ली में आगामी चुनावों को देखते हुए ऐसे तेवर उनकी राजनीतिक जरूरतों में भी शामिल हैं क्योंकि दिल्ली में उनका मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी से है जिसका गठन ही प्रशासनिक सुधार और लोकतंत्र के स्तम्भों में ईमानदारी लाने हेतु लोकपाल की स्थापना के नाम पर हुआ है। श्री मोदी के इस वक्तव्य का समय भी इसी बात की ओर इशारा करता है, क्योंकि यह किसी घटना, व्यक्ति, या दल विशेष से सम्बन्धित न होकर एक आम घोषणा जैसा है, और प्रत्येक पदासीन व्यक्ति के कर्तव्य का हिस्सा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में कुछ कानून है और राज्यों में लोकायुक्त हैं और घोषित रूप से कोई भी पदासीन नहीं कहता कि वह खा रहा है या किसी को खाने दे रहा है। जहाँ जहाँ भी भ्रष्टाचार प्रकट हुये हैं वहाँ वहाँ उस क्षेत्र विशेष की सरकारों को कार्यवाही करनी पड़ी है। दूसरे राज्यों के मुकाबले मोदी शासित गुजरात राज्य में ही लोकायुक्त की नियुक्ति में विलम्ब हुआ है और बाबूलाल बुखारिया जैसे मंत्रियों को निचली अदालत से दोषी पाये जाने के बाद भी मंत्री बना कर रखा गया। अच्छा होता कि वे अपने इस नये वक्तव्य के समय पिछली भूलों के बारे में भी स्पष्ट करते ताकि लोगों में आशा बँधती।
       भाजपा शासित एक राज्य मध्य प्रदेश भी है जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। कोई सप्ताह ऐसा नहीं जाता जब आयकर, सीबीआई, या लोकायुक्त द्वारा कहीं न कहीं छापा न मारा जाता हो और इन छापों में करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति, गहने, या नगदी न बरामद होती हो। अधिकारियों, बाबुओं, पटवारियों से लेकर नेताओं के रिश्तेदारों के यहाँ ही ये छापे डाले जा रहे हैं और जनप्रतिनिधियों के प्रति सावधानी बरती जा रही है। शासन और प्रशासन से जुड़े लोगों का कहना है कि यह सम्भव ही नहीं है कि सम्बन्धित मंत्रियों की जानकारी और जुड़ाव के बिना इतने लम्बे समय तक इतनी बड़ी बड़ी राशियों के भ्रष्टाचार होते रहें। यदि ऐसा होता भी हो तो भी सम्बन्धित विभाग के मंत्रियों की नैतिक जिम्मेवारी तो बनती ही है और उन्हें उस पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश सरकार के जो पूर्व वरिष्ठ मंत्री इन दिनों जेल में हैं वे मुख्य मंत्री के इतने विश्वसनीय और कृपापात्र थे कि उनके पास संस्कृति, जनसम्पर्क, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास, धार्मिक न्यास और धर्मस्व, विभाग की जिम्मेवारी एक साथ थी। पूर्व में उनके पास खनिज विभाग भी रहा है। व्यापम के भ्रष्टाचार प्रगट हो जाने और उनकी संलिप्तता के संकेत मिल जाने के बाद भी उन्हें टिकिट दिया गया था और मामले की उच्च न्यायालय की निगरानी में चले जाने के बाद ही उन्हें गिरफ्तार किया गया। अपनी गिरफ्तारी के समय उक्त मंत्री ने बयान दिया था कि बड़े लोगों को बचाने के लिए उनका गिरफ्तार हो जाना ही ठीक है। अब क्या यह बताने की जरूरत है कि बड़े लोग कौन हैं और उनके पद पर जमे रहते हुए भी क्या उनके मातहत अधिकारी जाँच के साथ न्याय कर सकते है! क्या यह सीबीआई की जाँच के लिए उपयुक्त मामला नहीं है! गुड़ न खाने का उपदेश देने वाले बाबाजी ने पहले खुद गुड़ खाना छोड़ा था तब उन्होंने खुद को दूसरों को सलाह देने का पात्र माना था। इस पारदर्शी समय में ओखली में गुड़ फोड़ते रहना सम्भव नहीं है इसलिए जरूरी हो जाता है कि ऐसे आदर्श सन्देशों को देने के साथ साथ स्वयं के दल को साफ सुथरा करके सन्देश देने की पात्रता अर्जित करें। मोदीजी यह जरूरी क्यों नहीं समझते कि व्यापम की जाँच के परिणाम आने तक वे उन राजनेताओं को पद से अलग होने को कहें जिनके ऊपर सन्देह बना हुआ है! विडम्बना यह है कि जब भाजपा के ही विधायक प्रदेश के मंत्री के खिलाफ सार्वजनिक आरोप लगाते हैं तो उन्हें ही चुप रहने की सलाह दी जाती है।
       इसमें कोई सन्देह नहीं कि लोकसभा चुनाव के दौरान जनता के बीच जो उम्मीदें बोयी गयी थीं वे सूखती जा रही हैं और अभी तक केवक ज़ुबानी जमा खर्च चल रहा है। आम लोगों और मीडिया में अच्छे दिन आने की बात फील-गुड की तरह मजाक में बदल चुकी है और न खाने व न खाने देने की बात भी इसी निराशा की भावना से देखी जा सकती है। मध्य प्रदेश समेत सभी भाजपा शासित राज्यों में एक कामराज योजना जैसी योजना लाने की जरूरत है तब ही सही रूप में यह सन्देश जायेगा।
वीरेन्द्र जैन
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