मंगलवार, जून 09, 2015

भारत-बंगलादेश समझौता और राजनीतिक दलों की पहचान



भारत-बंगलादेश समझौता और राजनीतिक दलों की पहचान
वीरेन्द्र जैन
      













 अगर आप हिन्दी कवि सम्मेलनों के किसी पुराने गीतकार से परिचित हों और उससे वर्तमान में मंच पर गीत कविता की दशा और दिशा के बारे में पूछें तो उसके कथन में उसके गीतों से भी ज्यादा दर्द मिलेगा। वह कहता मिलेगा कि इन चुटकलेबाज हास्य कवियों ने हिन्दी गीत को नष्ट कर दिया है। आज मर्मस्पर्शी भावों से भरे गीतों की जगह सतही सम्वेदना वाली तुकबन्दियों और फूहड़ता ने ले ली है। जो गीतकार अब भी मंच पर जा रहे हैं वे उक्त चुटकलेबाजों से कम पारिश्रमिक पाकर अपमान का घूंट पी हिन्दी गीत की वाचिक परम्परा को जीवित रखे हुये हैं। रोचक यह है कि इन्हीं फूहड़ हास्य कवियों की कविताओं और चुटकलों से आधार लेकर जो कामेडी शो होने लगे हैं उनसे अब मंच के हास्य कवि भी परेशान हैं क्योंकि उनके क्षेत्र पर भी अतिक्रमण हो गया है।
       गत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ढाका यात्रा के दौरान उन्होंने बंगबन्धु हाल ढाका में उपस्थित प्रमुख लोगों को जब सम्बोधित किया तो लगातार बजती तालियों के आधार पर कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने ढेरों चुटीले ज़ुमलों से मंच लूट लिया। उनका भाषण किसी समय के अटलबिहारी वाजपेयी की आमसभाओं की याद दिला गया जिनमें व्यक्त चुटीले सम्वादों का आनन्द आमसभा के बाद कई सप्ताह तक लोग लेते रहते थे। मोदी ने टूरिज्म और टैरिरिज्म की तुक मिलाते हुए टैरिरिज्म को समाप्त करने व टूरिज्म को बढावा देने की बात की। इसी क्रम में उन्होंने धार्मिक पर्यटन का एक बुद्ध सर्किट बनाने की बात उठाते हुए तुक जोड़ी कि जहाँ बुद्ध होंगे तो युद्ध नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अब विस्तारवाद का युग नहीं है अपितु विकासवाद का युग है और भारत ने कभी विस्तारवाद का समर्थन नहीं किया। जिस तरह से मंच के कलाकार अपनी प्रस्तुति के पूर्व स्थानीय श्रोताओं की भावनाओं को छूने की कोशिश में उस क्षेत्र के लोगों की क्षेत्रीयता को जगाते हैं और उस धरती का गौरवगान करते हैं, उसी तरह मोदी ने पहला वाक्य बंगला भाषा में बोल कर तालियों के बीच कहा कि सबसे पहले सूरज यहाँ निकलता है फिर भारत में रोशनी आती है। वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में आपका देश दुनिया में दूसरे नम्बर पर है और छह प्रतिशत की शानदार विकास दर बनाये हुये है। बंगलादेश के निर्माण में भारत की भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने भारतीय सैनिकों के बलिदान और पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिकों की वापिसी की चर्चा करते हुए अपनी शांतिप्रियता की नीति की याद दिलायी। वे यह याद दिलाना भी नहीं भूले कि भारत और बंगलादेश दोनों ही देशों की सबसे 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है और दोनों ही देशों में युवा शक्ति का भण्डार है।
       उल्लेखनीय है कि भारत और बंगलादेश के बीच हुआ भूमि स्थानांतरण का समझौता बहुत व्यवहारिक समझौता है इससे दोनों देशों के बीच 161 एनक्लेवों का आदान-प्रदान किया गया है। बांग्लादेश को 111 सीमाई एनक्लेव हस्तांतरित किये जायेंगे जबकि 51 एनक्लेव भारत का हिस्सा बनेंगे। इस समझौते के तहत भारत को 500 एकड़ भूमि प्राप्त होगी जबकि बांग्लादेश को 10 हजार एकड़ जमीन मिलेगी। इस समझौते से 50 हजार लोगों की नागरिकता का सवाल भी सुलझ जायेगा। उल्लेखनीय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है और यह मुद्दा दोनों देशों के संबंधों में एक बड़ा अड़चन बना हुआ था। अब  भारत-बांग्लादेश के बीच 41 साल पुराने सीमा विवाद पर समझौता हुआ। भारत करीब 17 हजार एकड़ जमीन बांग्लादेश को देगा। बांग्लादेश करीब 7 हजार एकड़ जमीन भारत को देगा। दोनों देशों के बीच जमीन अदला-बदली पर सहमति बनी। इस ऎतिहसिक समझौते की पृष्ठभूमि पिछली सरकार ने ही तैयार कर ली थी किंतु अपने चुनावी लाभ के लिए देश के हित की चिंता न करने वाली भाजपा इसका मुखर विरोध कर रही थी, लोकसभा में विपक्ष की नेता के रूप में सुषमा स्वराज ने कहा था कि उनकी पार्टी यह समझौता नहीं होने देगी। आज जिस भाषा में नरेन्द्र मोदी ने बंगलादेश के लोगों की भावनाओं को जाग्रत किया उसी भावुकता के सहारे उनकी पार्टी अपनी वोटों की राजनीति के लिए भावनाएं भड़का कर इसका विरोध कर रही थी। अपनी सरकार के लिए भाजपा का यह बदला स्वरूप जो अब देश के हित में है, बताता है कि उनका देश हित सत्ता के हिसाब से बदलता रहता है। राजनीतिक रूप से यह समय भाजपा की अवसरवादी राष्ट्रीयता को पहचानने का भी समय है।
       यही समय है जब ममता बनर्जी की राजनीति को भी पहचाना जाना चाहिए। बंगाल राज्य की राजनीति में वे बामपंथी शासन का विकल्प बन कर उभरी थीं व अपनी सादगी से ईमानदारी का मुखौटा ओढ कर एक समझौताहीन दृढ नेता मानी जाती थीं। उन्होंने भी पिछली बार इसी समझौते पर अपना विरोध दर्शा कर और बंगलादेश जाने से खुल इंकार करके देश के बाहर सरकार की किरकिरी करवायी थी। जबसे उनकी पार्टी के बड़े बड़े नेता शारदा कांड में गले गले तक फँस गये हैं तब से मोदी सरकार के आगे वे शरणागत हो गयी हैं और अपनी सारी अकड़ भूल गयी हैं। उनका विनम्र होना स्वागत योग्य माना जाना चाहिए किंतु विनम्रता के इस प्रदर्शन का जो कारण है उससे पता चलता है कि वे कागज़ी शेरनी हैं और उनकी पेंटिंग्स का बाज़ार कुछ दागी संस्थानों तक ही सीमित है।
       बंगलादेश दौरे के समय मन्दिरों मठों की राजनीति करने वाले नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में अटलबिहारी की उस दुर्गा का कहीं उल्लेख नहीं किया जिसके दुस्साहस पूर्ण फैसले से बंगलादेश अस्तित्व में आया और न ही उन्होंने उस पिछली सरकार का उल्लेख करने की जरूरत समझी जिसने इस समझौते की भूमिका तैयार की थी किंतु इसे लागू करवाने के लिए भारत जैसे लोकतंत्र में जिस कूटनीति की जरूरत होती है वह उन नौकरशाह नेताओं के पास नहीं थी। इस समझौते का स्वागत करते समय विभिन्न दलों के चरित्रों को पहचानने में भूल नहीं करना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन                                                                          
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