कहाँ जाता है डकैतों का धन
वीरेन्द्र जैन
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गत तीस बरस से आतंक के पर्याय बने सवा पांच लाख रूपये के इनामी डकैत ददुआ को मार गिराया गया। ददुआ इस इलाके में पूरी राजनीति को अपने आतंक की दम पर नियंत्रित करता आ रहा था। उसका बेटा वीरसिंह अभी भी चित्रकूट से सपा के टिकिट पर जिला पंचायत का अध्यक्ष है व उसका भाई पिछली बार बसपा से विधायक का चुनाव लड़ा था तथा बाद में सपा की सरकार बनने के बाद वह सपा में शामिल हो गया था इस बार सपा के टिकिट पर चुनाव लड़ा था पर हार गया था। ददुआ के मारे जाने के बाद बदले में छह एसटीएफ के जवानों को मार डालने वाले डकैत ठोकिया की माँ भी गत विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी है और अच्छी संख्या में वोट पा चुकी है।
------पिछले दिनों ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र हेतु हुये उपचुनाव में जहां भाजपा ने अपनी लाज बचाने के लिये प्रदेश की पर्यटनमंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया को चुनाव में उतारा था वहीं कांग्रेस में चल रहे पार्टी मरम्मत के कार्यक्रम अनुसार सिंधिया परिवार के वैधानिक उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने परिवार की परम्परा से हट कर प्रचार में सक्रिय दिखना पड़ा था। अरबों की सम्पत्ति के मालिक इन लोगों ने चुनाव में करोड़ों रूपये खर्च करवाये होंगे। पर इन दोनों ही दलों के उम्मीदवारों को दो लाख के आसपास ही वोट मिल सके। वहीं प्रदेश के नामी डकैत रामबाबू गड़रिया की बहिन ने एक इनामी डाकू की बहिन हो कर भी पचास हजार से अधिक वोट प्राप्त कर लिये जबकि उसकी राजनीतिक सक्रियता का कोई पूर्व इतिहास नहीं रहा। विशवस्त सूत्रों के अनुसार उसने भी खर्च में कोई कमी नहीं की।
------ एक लम्बे अंतराल और करोड़ों रूपये फूंकने के बाद दक्षिण में वीरप्पन मारा गया था जिसकी विधवा ने पिछले दिनों चुनाव लड़ने की घोषणा की थी.
------कुछ ही समय पूर्व रामबाबू-दयाराम गड़रिया में से एक का कंकाल मिलने व दूसरे की गोली लगने से मृत्यु हो गयी। इनके सहयोगी रहे प्रताप गड़रिया, जो एक लाख रूपये का इनामी डकैत था को एनकाउन्टर में मार गिराया गया था।
------ देश की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुम्बई में दया नायकों जैसे पुलिस इन्सपैक्टरों के हाथों माफिया सरगना मारे जाते हेैं जो वहां के सम्पन्न लोगों की एक नम्बर- दो नम्बर की आमदनी में से डरा धमका व मौत का भय दिखा अपना हिस्सा वसूलते रहते हैं।
किसी अपराधी को गोली मार कर खत्म कर देने से उस क्षेत्र में अपराध की घटनाएं बन्द नहीं हो जातीं अपितु वे उपयुक्त समय पर कई जगहों से धीरे धीरे अंकुरित होने लगती हेैं। ऐसा लगता है कि सरकार का इरादा धन अपहरण के अपराधों को रोकना नहीं है अपितु वर्सीम घास की तरह नये उत्पादन हेतु उसे समय समय पर कतरते रहना है ताकि उनके पालते पशु चरते रहें और वे दूध दुहते रहें। गुना शिवपुरी क्षेत्र में सक्रिय गड़रिया गिरोह के प्रमुख सदस्यों को मार गिराने का दावा कर खुशियां मनाने व इनाम की राशि पाने के बाद ऐसा लगता है कि पुलिस अपने कर्तव्य की इतिश्री मान बैठी है। पुलिस को यह जानने की चिंता क्यों नहीं होती कि मृत डाकू ने अपने जीवन काल में जो दौलत लूटी थी, वह कहां है और उस धन का क्या व कैसा उपयोग हो रहा है। यही उदासीनता, वह आत्मसमर्पण के नाम पर मुठभेड़ से सुरक्षा पा लेने वाले डकैतों के प्रति भी दशर्ााती है।इस प्रकार से संचित राशि ही दूसरे डाकुओं को पैदा करती है व पालती है। मृत अपराधियों के घरवालों का तेजी से राजनीति की ओर झुकाव यह दर्शााता है कि वे राजनीति और राजनीतिज्ञों से पूर्व परिचित रहे हैं तथा उसे वे अपनी शरणस्थली मानते हैं। अपने धन व आतंक की दम पर चुने जाकर ये लोग देश के लोकतंत्र की भावना को हास्यास्पद बना देते हेैं। क्या एक डाकू के अंत के समानान्तर उसके अर्थतंत्र को भेदा जाना जरूरी नहीं है? क्या पुलिस का यह कर्तव्य नहीं होना चाहिये कि लूटी गयी या फिरौती के रूप में वसूली गयी रकम को बरामद करने के प्रयास हों और वह राशि पीड़ित परिवार के लोगों तक पहुंचायी जाये। पीड़ितों द्वारा रिपोर्ट की गयी राशि से अधिक बरामद होनें पर उस राशि का उपयोंग डाकुओं के साथ मुठभेड़ में मारे जाने वाले या घायल हो जाने वाले पुलिस परिवारों के सहायार्थ भी काम आ सकती है। डाकुओं की देह के अंत के साथ साथ जब उनके अर्थतंत्र को मजबूत करने वाले भी दण्डित होने लगेंगे तो नये डाकुओं के उदय में कठिनाई आयेगी जबकि अभी ऐसा होता है कि मृत डाकू के स्थापित तंत्र को सम्हालने के लिये नया उत्तराधिकारी जल्दी से सामने आ जाता है।
आयकर विभाग भी जब छापा मार कर आय से अधिक अर्जित की गयी राशि को पकड़ता है तो वह उस राशि पर लगाये जाने वाले टैक्स और दण्ड तक ही सीमित रहता है । उसके यह प्रयास नहीं होते कि वह उसके अर्जित किये जाने वाले स्त्रोतों की गहराई से पड़ताल कर पूरे जाल को ही नष्ट करे। ऐसी राशियों में बहुत सारी राशियां हिंसक-आर्थिक अपराधियों द्वारा अर्जित राशियों का भी भाग होना सम्भव है। सच तो यह है कि सरकार आर्थिक अपराधियों व सामाजिक अपराधियों में बड़ा भेद मान कर चलती है। आर्थिक अपराधियों के अपराधों को वह लाड़ले बच्चे की शौतानियां मानती है जबकि सामाजिक अपराधियाें के अपराधों को वह शत्रु के सिपाहियों द्वारा की गयी कार्यवाही मानकर उनकी जान ले लेने को तैयार रहती है। सच तो यह हेै कि बिना आर्थिकतंत्र के सहयोग के कोई डाकू कभी वीरप्पन या गड़रिया की हैसियत तक नहीं पहुंच सकता। आज राजनीति और राजनेता इसीलिये तो अविशवसनीय होते जा रहे हैं क्योंकि उनके द्वारा दिये गये भाषणों और किये गये उपायों में कौई तालमेल नहीं होता।
वीरेन्द्रजैन 2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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