रीता बहुगुणा-मायावती प्रकरण
भाजपा की भाषा प्रयोग करने के भटकाव
वीरेन्द्र जैन
उत्तर प्रदेश काँग्रेस पार्टी की अध्यक्ष श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी ने कुमारी मायावती के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया वह काँग्रेस की भाषा नहीं है। रोचक यह है कि बदले समय और परिस्तिथियों में ये आज की मायावती की भी भाषा नहीं है जो कि श्रीमती सोनिया गांधी की तरह अब सारे वक्तव्य 'किसी' वकील और भाषाविद के द्वारा देख लेने व सुधार कर देने के बाद ही 'पढती' हैं।
दर असल उत्तेजना की इस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग भाजपा और शिवसेना जैसी पार्टियां करती रहती हैं। उत्तरप्रदेश में अपने खोये गौरव को जल्दी वापिस पाने की हड़बड़ी में कुछ काँग्रेस नेता भी भाजपा के शार्टकट को अपनाने लगे हैं। भाजपा अपने एक धड़ और कई मुखों से संवाद करती है जिससे उसे आवश्यकता पढने पर इंकार कर देने की सुविधा रहती है। अपने नाम के आगे साध्वी लगाने वाली ऋतंभरा, अपने को विश्व के हिंदुओं की संस्था मानने वाली विश्व हिंदू परिषद के स्वयं भू अंर्तराष्ट्रीय महा सचिव तोगड़िया, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, आचार्य धर्मेंन्द्र, आदि ऐसी ही भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। स्मरणीय है कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए वातावरण बनाने वाले अभियान के दौरान, धर्म की ओट ले ये लोग जगह जगह जाकर जो विषवमन करते थे उसे धार्मिक रूप देने के लिए चारों ओर भगवा रंग के झन्डे भी लगवा देते थे। ऋतंभरा ने तो कई सभाओं में खुला आवाहन करते हुये कहा था कि हिन्दू युवा वीरों में से प्रत्येक को किसी मुस्लिम युवती से एक हिन्दू संतान पैदा करना चाहिये। वरूण गांधी को जिस तरह के भाषणों के लिए कानून की गिरफ्त में आना पड़ा है वैसे भाषण तो नब्बे के दशक में बहुत आम थे, पर उस समय ना तो कमजोर बहुजन समाज पार्टी को सीधी सत्ता की चुनौती थी और ना ही कॉंग्रेस के पास सक्षम एकजुट नेतृत्व था जो इसका कानूनी और राजनीतिक मुकाबला कर पाता इसलिए ये सारे भाषण अलक्षित रह गये व आये दिन होने वाली हिंसा से भयभीत सुनने वाले अल्पसंख्यक खून का घूंट पी कर रह गये थे या टकराहट पर उतर कर अपना ही नुकसान कर लेते थे। ये ऋतंभरा ही थीं जो भीड़ में पूछा करती थीं कि जब हिंदू चोटी रखता है तो मुसलमान दाढी रखता है, जब हिंदू हाथ सीधे धोता है तो मुसलमान कोहनी से धोता है, हिंदू मुर्दा जलाया जाता है तो मुसलमान गाड़ा जाता है तो बताओ कि जब हिंदू मुँह से खाना खाता है तो मुसलमान को कहाँ से खाना चाहिये? ये केवल कुछ अपेक्षाकृत शिष्ट नमूने हैं पर यदि इनके पुराने भाषणों को देखा जाये तो पता लगेगा कि देश में साम्प्रदायिक विषवमन कर समाज का ध्रुवीकरण करने और उस ध्रुवीकरण को वोटों में बदलने का जो काम थोक में उस समय किया गया था उसी ने भाजपा को दो की संख्या से अस्सी और फिर दोसौ तक पहुँचने में मदद की थी।
उत्तेजक भाषा से मिली इस चुनावी सफलता ने न केवल पूरे संघ परिवार की ही भाषा बदल दी थी अपितु दूसरे कई चुनावी दलों को भी ये शार्ट कट ललचाने लगा था। यही वह समय था जब कभी सचमुच समाजवादी रहे मुलायमसिंह को अमरसिंह का हाथ थामना पड़ा था व लालूप्रसाद ने राजनीतिक भाषा में सस्ता विनोद व देशी प्रतीकों का समन्वय स्थापित किया था। स्मरणीय है कि गोधरा में साबररमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 में हुये अग्नि कांड के बाद पूरे गुजरात में जिस तरह से मुसलमानों का नरसंहार किया गया था व उनकी सम्पत्ति लूटी गयी थी उसके ठीक बाद ही गुजरात विधानसभा के चुनाव भी होने थे। मुख्य चुनाव आयुक्त लिंग्दोह, जो अपनी अनुशासन प्रियता, ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए विख्यात थे, ने साम्प्रदायिक ध्रुवी करण को देखते हुये चुनावों की तिथि को आगे बढाने का फैसला लिया था। आमतौर पर ऐसी स्थिति में विपक्षी दल को शिकायत होती है पर सत्तारूढ दल स्वीकार कर लेता है किंतु इस अवसर पर गुजरात के सत्तारूढ दल को ही चुनाव आयुक्त से शिकायत रही क्योंकि वे साम्प्रदायिक उत्तेजना के आधार पर चुनाव जीतना चाहते थे, और उत्तेजना कैसी भी हो वह एक सीमित समय से अधिक नहीं खींची जा सकती। चुनाव स्थगित होने से आतंकित होकर मोदी ने श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी, और मुख्य चुनाव आयुक्त लिंग्दोह के खिलाफ जिस भाषा और प्रतीकों का स्तेमाल किया था वह बेहद गंदा था जिसमें श्रीमती गांधी को जर्सी गाय और राहुल को बछड़ा तक कहा था व मुख्य चुनाव आयुक्त के एवं श्रीमती गांधी के ईसाई होने के कारण उनके बारे में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया था जिन्हें लिखा नहीं जा सकता। चुनाव की नई तिथि तक समाज में उत्तेजना बनाये रखने के लिए मोदी ने प्रदेश में रथ यात्रा का कार्यक्रम बना लिया था और मुसलमानों के खिलाफ पाँच बीबियाँ पच्चीस बच्चे जैसी बातें प्र्रचारित करने की कोशिश की थी।
श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी जो काँग्रेस में आने से पहले समाजवादी पार्टी में भी रह चुकी हैं, व भाजपा नेता और उत्त्राखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूरी जिनके ममेरे भाई हैं, ने उत्तेजक भाषा का सहारा लेने की प्रेरणा भाजपा से ही सीखी हुयी लगती है। उत्तेजक भाषण एक तरह की चालाकी होती है जो अपने ही लोगों के खिलाफ की जाती है। यह खुद पीछे रह कर अपने संगठन के कम समझदार प्रशांसकों को उत्तेजित कर हिंसक होने के लिए उकसाने का काम करता है। भाजपा जब जब हिंसा फैलाती है तो उस हिंसा में उसके छोटे बड़े नेताओं का कोई नुकसान नहीं होता पर उसके गैर समझदार कार्यकर्ता अपनी उत्तेजना में अपना व दूसरों का नुकसान काफी कर लेते हैं। यह तो अच्छा है कि काँग्रेस के वरिष्ठ नेतृत्व ने उचित समय पर इस भूल को पहचान लिया तथा अपनी ही प्र्रदेश अध्यक्ष की उत्तेजक भाषा को उनकी भूल बताया।
इस अवसर पर भी भाजपा अपने अवसरवादी चरित्र से बाज नहीं आयी और वरूण मामले पर सुश्री मायावती के खिलाफ की गयी सारी टिप्पणियों को दरकिनार करते हुये श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि रीता बहुगुणा ने जो कहा वह ऐसा ही है जैसे कि कोई कहे कि अगर तुम्हारी हत्या हो जाये तो मैं मुआवजा दूंगीं। श्रीमती स्वराज यह बात भूल गयीं कि कुछ ही दिनों पहले ही उनकी ही पार्टी के ही एक पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने रामसेतु वाले मामले पर डीएमके के नेता एम करूणानिधि की हत्या करने वाले को उसके बजन के बराबर सोना देने की घोषणा की थी, पर पूरी भाजपा में से किसी ने भी इसे गलत नहीं ठहराया था। इतना ही नहीं हाल के विवाद में उन्होंने बीएसपी के सांसदों द्वारा सदन में हंगामा करने को उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया बतलाया जबकि पिछले साल जब मायावती ने कहा था कि वे भाजपा को जूते की नोक पर रखती हैं तो भाजपा के पार्टी मुखपत्र 'कमल संदेश' ने मायावती की जाति की ओर इशारा करते हुये सम्पादकीय में लिखा था कि मायावती शायद भूल गईं हैं कि चमड़े का सिक्का कुछ दिन तो चलता है पर बाद में चाबुक बन कर स्वयं को ही चोटिल करने लगता है(जनसत्ता 22 फरबरी 2008)। स्मरणीय है कि वरूण की गिरफ्तारी के मामले पर इन्हीं भाजपा नेताओं ने मायावती की सरकार को बरखास्त करने की मांग भी की थी। पर भाजपा के साथ तीन तीन बार सरकार बना चुकी मायावती ने इस अवसर पर साम्प्रदायिक दलों की निंदा करते हुये यूपीए की सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखने की घोषणा करते हुये समझदारी से चाल चली है।
लगता है कि इस घटना से काँग्रेस ने भी सबक सीखा है और वह भी भविष्य में उधार की भाषा के प्रयोग से बचेगी व इसीसे उसकी सरकार भी बची रहेगी।
वीरेन्द्र जैन
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