अशोक चक्रधर का अपमान करने का हक नहीं अर्चना वर्मा को
जनसत्ता २४ जुलाई के अंक में अशोक चक्रधर को हिंदी अकादमी का उपाध्याक्छ बनाये जाने के खिलाफ अर्चना वर्मा द्वारा स्तीफा देने के साथ जो कारण दिए गए हैं वे सार्वजनिक होने से अशोक के सम्मान और कवि सम्मलेन के धंधे पर जो असर पड़ेगा वह बड़ा नुकसान होगा . यह तय है कि साहित्य में विधाओं के आधार पर जो स्तरीकरण कर दिया गया है उसके अनुसार विश्वनाथ त्रिपाठी नित्यानंद तिवारी हिमांशु जोशी लीलाधर मंडलोई का एक सदस्य कि तरह कम करना हास्यास्पद होता और उन्हें अपना सम्मान बचाने के लिए स्तीफा दे देना चाहिए पर वे १२४ राज परिवारों के सदस्यों से बनी सरकारों से लोकतंत्र कि आशा रखते हों तो वह उनकी नासमझी होगी इस शासन में तो इसी तरह जागीरें बांटी जाती रही हैं और बाँटीं जाती रहेंगी . पिछले दिनों भोपाल में भी क्या कम नंगा नाच होता रहा है? धर्मवीर भारती और चिरंजीत को तथा हरी शंकर परसाई और काका हाथरसी को एक साथ पद्मश्री देने वाली सरकारों से क्या आशा कि जा सकती है . वैसे हास्य रस भी एक रस है .उर्दू के मुश्ताक अहमद युसुफी का "आबे गुम" जिन्होंने पढी है वे जान सकते हैं कि हास्य भी कद्दावर साहित्य का हिस्सा हो सकता है
बहुत अनावश्यक पोस्ट है यह !
जवाब देंहटाएंपोस्ट है यह?
जवाब देंहटाएंबंधु, क्या अशोक चक्रधर कोई तोप हैं जो उनका अपमान नहीं हो सकता?
जवाब देंहटाएंआपने जो लिखा है कृपया स्पष्ट करें।
जवाब देंहटाएंमेरे भाई क्या आप यह स्पष्ट करने की ज़हमत उठाएंगे कि पोस्ट क्या होती है ? वैसे पोस्ट में पसंदगी का बटन रहता है जो आपका हक है बाकी ब्लॉगर का हक है
जवाब देंहटाएंअगर आपने पोस्ट में अंतर्निहित व्यंग नहीं पहचाना तो में क्या कर दूँ!