क्या अमिताभ बच्चन किसी अपराध बोध के शिकार हैं?
वीरेन्द्र जैन
अमिताभ बच्चन ने गुजरात पर्यटन के विकास हेतु मोदी सरकार का ब्रांड एम्बेसडर बनना स्वीकार कर लिया है। इससे पूर्व वे अपनी फिल्म पा के प्रमोशन के लिये मोदी से मिले थे और उनके गले लग कर उनकी प्रशंसा की थी। उनके इस कृत्य को पूरी दुनिया में जहाँ जहाँ उनकी यश पताका फहरा रही है, आश्चर्य और शंका की दृष्टि से देखा गया है।
एक पत्नी और एक वेश्या में केवल इतना ही फर्क होता है कि पत्नी के पास स्वाभिमान होता है, किंतु जो [भले ही अपनी रोज़ी रोटी के लिये], अपना आत्मसम्मान और अपनी स्वतंत्रता बेच देती है वह वेश्या कहलाती है और नफरत की पात्र बनती है व कोई पतित भी दिन के उजाले में उससे मिलना नहीं चाहता।
वे कितने ही गरीब क्यों न हों किंतु उन सत्तर करोड़ लोगों से तो ऊपर ही होंगे जिनकी आमदनी कुल बीस रुपया रोज़ है तथा भूखे पेट सो कर भी ये लोग पतन के रास्ते पर नहीं जाते। पिछले दिनों जब एक परिचर्चा में एक प्रतिभागी ने वेश्यावृत्ति के पीछे गरीबी को इकलौता कारण बतलाने की कोशिश की तो दूसरे ने उसके प्रतिउत्तर में कहा था कि अगर ऐसा होता तब तो सभी गरीब औरतों को वेश्या हो जाना चाहिये था। फिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो उन्हें मोदी को गले लगाने में शर्म नहीं आयी। यह् उनकी वैचारिक स्वतंत्रता को सीमित करने की बात नहीं है, उन्हें पूरा हक है कि वे अगर मोदी और मोदीवाद को ठीक समझते हैं तो उसके साथ हो सकते हैं किंतु उन्होंने ऐसा करने का जो समय चुना है उसी के आधार पर उनका मूल्यांकन भी होगा। यह समय वह समय था जब उन्हें अपनी फिल्म पा को प्रमोट करने के लिये गुजरात सरकार का समर्थन चाहिये था, दूसरे उनके तत्कालीन राजनीतिक संरक्षक अमर सिंह और मुलायम सिंह के बीच महाभारत शुरू हो गया था जिसमें वे अमर सिंह के साथ थे जो उनके लिये इतने महत्वपूर्ण थे कि समाजवादी पार्टी के खिलाफ विवादास्पद बयान देने के बाद उनके दुबई से लौटने पर उन्हें रिसीव करने के लिये अमिताभ हवाई अड्डे पर पँहुचे थे। बाद में अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से निकाल भी दिया गया।
कुछ दिनों पहले वे उत्तर प्रदेश के ब्रांड एम्बेसडर थे और कहते थे कि उत्तर प्रदेश में है दम, क्योंकि यहाँ ज़ुर्म है कम जो बिल्कुल ही गलत बयानी थी किंतु फिर भी उसे किसी विज्ञापन की तरह उपेक्षित कर दिया गया था। अभी हाल ही में मोदी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे मोहित होकर अपने को सदी का महानायक की तरह प्रचारित कराने वाला व्यक्ति उसके चरणों में जा गिरे। मोदी की निन्दा को अगर ऊंची ऊंची अदालतों, मानव अधिकार आयोगों, अल्प्संख्यक आयोगों, महिला आयोगों, सभी तरह के मीडिया हाउसों, विरोधी दलों, स्वैच्छिक समाजसेवी संस्थाओं, साहित्यकारों, कलाकारों, संगीतकारों, के कथनों को छोड़ भी दें तो भी गुजरात के नरसंहारों के दौरान भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक अटल बिहारी बाजपेयी के उन नरसन्हारों की अलोचना के दौरान स्तीफे की पेशकश से समझा जा सकता है, जिसे जसवंत ने अपनी किताब में लिखा है। ये वही मोदी हैं जिन्हें अमेरिका और इंगलेण्ड जैसे देशों ने वीजा देने से इंकार कर दिया था। ये वही मोदी हैं जिनकी सरकार के खिलाफ एंकाउंटर के नाम पर सरे आम हत्याओं के आरोपों पर अदालतों ने भी संज्ञान लिये हैं।
अमिताभ ने कभी वे फिल्में की थीं जिनमें युवाओं के अपने समय के आक्रोश को अभिव्यक्ति दी गयी थी और उससे वे अपने असामान्य लम्बे कद के बाबज़ूद नायक की तरह स्वीकार कर किये गये थे और इसी स्वीकार के आधार पर उन्होंने हज़ारों फिज़ूल के विज्ञापनों समेत न केवल भोपाल गैस काण्ड वाली यूनियन कार्बाइड की बैटरी जैसे विज्ञापन किये तो भी उन्हें सम्मान मिलता रहा। उन्होंने अपने को गंगा किनारा वाला छोरा बता कर उत्तर प्रदेश के लोगों का दिल जीता था किंतु उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ बाल ठाकरे परिवार के कुत्सित व्यवहार के बाद भी जब वे उन्हें पिता की तरह सम्मान देते बताये गये तो उसे उनकी मज़बूरी समझा गया। किंतु श्याम बेनेगल की देव जैसी फिल्म करने के बाद इस समय पैसे के लिये गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनना तो पतन और नंगे अवसरवाद की पराकाष्ठा है। वे यह भूल रहे हैं कि उनको विज्ञापन इसीलिये मिलते हैं क्योंकि उन्हें सिनेमा दर्शकवर्ग का प्यार मिला हुआ है किंतु जैसे ही कोई क्रिकेट खिलाड़ी लगातार रन बनाये बिना आउट होता रहता है तो उसकी विज्ञापन वैल्यू भी गिर जाती है। इसलिये अगर नैतिक मापदण्डों को छोड़ भी दें तो व्यावसायिक दृष्टि से भी यह कदम उचित नहीं है।
श्रीमती इन्दिरा गान्धी के कार्यकाल में लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचे और कभी राजीव गान्धी परिवार के पारवारिक मित्र रहे अमिताभ परिवार के मतभेद हो जाने के बाद ऐसा लगता है कि वे कहीं से स्वयँ को भयग्रस्त और असुरक्षित महसूस करते रहते हैं इसलिये राजनीति छोड़ देने की सौगन्ध खाने के बाद भी वे कहीं न कहीं राजनैतिक संरक्षण तलाशते रहते हैं। अमर सिंह मुलायम सिंह का साथ देना, अपनी पत्नी को राज्यसभा का सदस्य बनवाना और बनाये रखने की ज़िद करना और फिर मोदी जैसे नेता के गले लग कर उसके राज्य का ब्रांड एम्बेसडर बनना कुछ ऐसे ही संकेत करते हैं, जो उनके सुपरमैन की छवि से एक भयग्रस्त आदमी की छवि बनाते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र फोन 9425674629
वीरेन्द्र जैन
अमिताभ बच्चन ने गुजरात पर्यटन के विकास हेतु मोदी सरकार का ब्रांड एम्बेसडर बनना स्वीकार कर लिया है। इससे पूर्व वे अपनी फिल्म पा के प्रमोशन के लिये मोदी से मिले थे और उनके गले लग कर उनकी प्रशंसा की थी। उनके इस कृत्य को पूरी दुनिया में जहाँ जहाँ उनकी यश पताका फहरा रही है, आश्चर्य और शंका की दृष्टि से देखा गया है।
एक पत्नी और एक वेश्या में केवल इतना ही फर्क होता है कि पत्नी के पास स्वाभिमान होता है, किंतु जो [भले ही अपनी रोज़ी रोटी के लिये], अपना आत्मसम्मान और अपनी स्वतंत्रता बेच देती है वह वेश्या कहलाती है और नफरत की पात्र बनती है व कोई पतित भी दिन के उजाले में उससे मिलना नहीं चाहता।
वे कितने ही गरीब क्यों न हों किंतु उन सत्तर करोड़ लोगों से तो ऊपर ही होंगे जिनकी आमदनी कुल बीस रुपया रोज़ है तथा भूखे पेट सो कर भी ये लोग पतन के रास्ते पर नहीं जाते। पिछले दिनों जब एक परिचर्चा में एक प्रतिभागी ने वेश्यावृत्ति के पीछे गरीबी को इकलौता कारण बतलाने की कोशिश की तो दूसरे ने उसके प्रतिउत्तर में कहा था कि अगर ऐसा होता तब तो सभी गरीब औरतों को वेश्या हो जाना चाहिये था। फिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो उन्हें मोदी को गले लगाने में शर्म नहीं आयी। यह् उनकी वैचारिक स्वतंत्रता को सीमित करने की बात नहीं है, उन्हें पूरा हक है कि वे अगर मोदी और मोदीवाद को ठीक समझते हैं तो उसके साथ हो सकते हैं किंतु उन्होंने ऐसा करने का जो समय चुना है उसी के आधार पर उनका मूल्यांकन भी होगा। यह समय वह समय था जब उन्हें अपनी फिल्म पा को प्रमोट करने के लिये गुजरात सरकार का समर्थन चाहिये था, दूसरे उनके तत्कालीन राजनीतिक संरक्षक अमर सिंह और मुलायम सिंह के बीच महाभारत शुरू हो गया था जिसमें वे अमर सिंह के साथ थे जो उनके लिये इतने महत्वपूर्ण थे कि समाजवादी पार्टी के खिलाफ विवादास्पद बयान देने के बाद उनके दुबई से लौटने पर उन्हें रिसीव करने के लिये अमिताभ हवाई अड्डे पर पँहुचे थे। बाद में अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से निकाल भी दिया गया।
कुछ दिनों पहले वे उत्तर प्रदेश के ब्रांड एम्बेसडर थे और कहते थे कि उत्तर प्रदेश में है दम, क्योंकि यहाँ ज़ुर्म है कम जो बिल्कुल ही गलत बयानी थी किंतु फिर भी उसे किसी विज्ञापन की तरह उपेक्षित कर दिया गया था। अभी हाल ही में मोदी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे मोहित होकर अपने को सदी का महानायक की तरह प्रचारित कराने वाला व्यक्ति उसके चरणों में जा गिरे। मोदी की निन्दा को अगर ऊंची ऊंची अदालतों, मानव अधिकार आयोगों, अल्प्संख्यक आयोगों, महिला आयोगों, सभी तरह के मीडिया हाउसों, विरोधी दलों, स्वैच्छिक समाजसेवी संस्थाओं, साहित्यकारों, कलाकारों, संगीतकारों, के कथनों को छोड़ भी दें तो भी गुजरात के नरसंहारों के दौरान भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक अटल बिहारी बाजपेयी के उन नरसन्हारों की अलोचना के दौरान स्तीफे की पेशकश से समझा जा सकता है, जिसे जसवंत ने अपनी किताब में लिखा है। ये वही मोदी हैं जिन्हें अमेरिका और इंगलेण्ड जैसे देशों ने वीजा देने से इंकार कर दिया था। ये वही मोदी हैं जिनकी सरकार के खिलाफ एंकाउंटर के नाम पर सरे आम हत्याओं के आरोपों पर अदालतों ने भी संज्ञान लिये हैं।
अमिताभ ने कभी वे फिल्में की थीं जिनमें युवाओं के अपने समय के आक्रोश को अभिव्यक्ति दी गयी थी और उससे वे अपने असामान्य लम्बे कद के बाबज़ूद नायक की तरह स्वीकार कर किये गये थे और इसी स्वीकार के आधार पर उन्होंने हज़ारों फिज़ूल के विज्ञापनों समेत न केवल भोपाल गैस काण्ड वाली यूनियन कार्बाइड की बैटरी जैसे विज्ञापन किये तो भी उन्हें सम्मान मिलता रहा। उन्होंने अपने को गंगा किनारा वाला छोरा बता कर उत्तर प्रदेश के लोगों का दिल जीता था किंतु उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ बाल ठाकरे परिवार के कुत्सित व्यवहार के बाद भी जब वे उन्हें पिता की तरह सम्मान देते बताये गये तो उसे उनकी मज़बूरी समझा गया। किंतु श्याम बेनेगल की देव जैसी फिल्म करने के बाद इस समय पैसे के लिये गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनना तो पतन और नंगे अवसरवाद की पराकाष्ठा है। वे यह भूल रहे हैं कि उनको विज्ञापन इसीलिये मिलते हैं क्योंकि उन्हें सिनेमा दर्शकवर्ग का प्यार मिला हुआ है किंतु जैसे ही कोई क्रिकेट खिलाड़ी लगातार रन बनाये बिना आउट होता रहता है तो उसकी विज्ञापन वैल्यू भी गिर जाती है। इसलिये अगर नैतिक मापदण्डों को छोड़ भी दें तो व्यावसायिक दृष्टि से भी यह कदम उचित नहीं है।
श्रीमती इन्दिरा गान्धी के कार्यकाल में लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचे और कभी राजीव गान्धी परिवार के पारवारिक मित्र रहे अमिताभ परिवार के मतभेद हो जाने के बाद ऐसा लगता है कि वे कहीं से स्वयँ को भयग्रस्त और असुरक्षित महसूस करते रहते हैं इसलिये राजनीति छोड़ देने की सौगन्ध खाने के बाद भी वे कहीं न कहीं राजनैतिक संरक्षण तलाशते रहते हैं। अमर सिंह मुलायम सिंह का साथ देना, अपनी पत्नी को राज्यसभा का सदस्य बनवाना और बनाये रखने की ज़िद करना और फिर मोदी जैसे नेता के गले लग कर उसके राज्य का ब्रांड एम्बेसडर बनना कुछ ऐसे ही संकेत करते हैं, जो उनके सुपरमैन की छवि से एक भयग्रस्त आदमी की छवि बनाते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र फोन 9425674629
अमिताभ किसी अपराधबोध के शिकार नहीं हैं। असल बात यह है कि भारत देश को प्रगति करते न देख सकने वाले चीन-समर्थक बौखलाये हुए हैं।
जवाब देंहटाएंअपराधबौध नहीं है...इंश्येरेंस पालिसी है
जवाब देंहटाएंअनुनाद जी से सहमत… अमिताभ बच्चन में सारी की सारी बुराईयाँ अचानक पिछले एक माह में ही दिखाई देने लगी हैं सब को…
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